कोविड-19 महामारी के चलते लगा लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ने के साथ ही मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर के छोटे-मझोले उपक्रमों (एसएमई) का संकट भी बढ़ गया है। पिछले महीने लॉकडाउन की घोषणा के बाद पूरे देश के लगभग चार करोड़ प्रवासी श्रमिक अपने गांव-घर के लिए प्रस्थान कर गए थे। अब जब सरकार ने 20 अप्रैल से कुछ औद्योगिक इकाइयों में उत्पादन शुरू करने की अनुमति दी है, तो श्रमिकों की किल्लत उनके लिए सबसे बड़ा संकट होगा। श्रमिकों की समस्या को लेकर सभी इकाइयां आशंकित हैं। उन्हें लग रहा है कि पता नहीं कितने कर्मचारी कब तक वापस आएंगे, क्योंकि जब तक हालात सामान्य नहीं होते तब तक उनका लौटना मुश्किल है। एक और डर है कि लॉकडाउन के चलते जो मजदूर फंसे हैं, वे भी साधन मिलते ही चले जाएंगे। कुछ कंपनियों ने बेशक अपने कर्मचारियों को रखा हुआ है, लेकिन ऐसी कंपनियों की संख्या कम ही है। कच्चे माल और तैयार माल बेचने की सप्लाई चेन भी टूट गई है। उद्योग जगत से जुड़े लोगों का कहना है कि हालात समान्य होने में चार से छह महीने लग सकते हैं। ऐसे में, बहुत सी कंपनियों के सामने सर्वाइवल का संकट आ सकता है।
सरकार ने जो नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, उनके मुताबिक मजदूर 3 मई तक एक राज्य से दूसरे राज्य में या एक जिले से दूसरे जिले में नहीं जा सकेंगे। गृह मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, हॉटस्पॉट को छोड़कर बाकी जगहों पर 20 अप्रैल से औद्योगिक टाउनशिप, ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक इकाइयां, दवा और चिकित्सा उपकरण की इकाइयां, एसईजेड और निर्यातोन्मुखी इकाइयां खुल सकेंगी। लेकिन इनमें सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों के पालन के साथ कंपनी को कर्मचारियों के रहने का बंदोबस्त भी करना पड़ेगा और उनके आने-जाने की व्यवस्था भी करनी पड़ेगी। उन्हें कर्मचारियों का बीमा भी करवाना पड़ेगा। हाइवे पर चलने वाले ढाबे और ट्रक रिपेयर की दुकानें, इलेक्ट्रिशियन, आइटी रिपेयर, प्लंबर, मोटर मेकैनिक, कारपेंटर की दुकानें भी खुल सकेंगी।
एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम के चेयरमैन और एमएसएमई चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट रजनीश गोयनका ने आउटलुक से कहा, “फैक्ट्रियों में काम करने वाले ज्यादा मजदूरों ने पलायन नहीं किया है। बात उन्हें फैक्ट्री लाने-ले जाने की है, तो कंपनियां इसके लिए तैयार हैं, क्योंकि इस पर आने वाले खर्च की तुलना में फैक्ट्री बंद रखने पर नुकसान ज्यादा होगा।” कैट के राष्ट्रीय सचिव और सिंहभूम चेंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज के पूर्व प्रेसिडेंट सुरेश सोंथालिया ने भी कहा कि आस-पास के मजदूर तो खुद आ जाते हैं, दूर रहने वालों के लिए बस का इंतजाम करने को सभी इकाइयां तैयार हैं।
चंडीगढ़, पंजाब के लुधियाना, जालंधर, मंडीगोबिंदगढ़, खन्ना, हरियाणा के पानीपत, सोनीपत, यमुनानगर और हिमाचल प्रदेश के बद्दी-बरोटीवाला और कालाअंब के उद्योगों में काम करने वाले करीब 30 लाख श्रमिकों के साथ यहां की करीब डेढ़ लाख एसएमई संकट में हैं। मंडीगोबिंदगढ़ स्टील फर्नेस एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र गुप्ता ने बताया, “यहां काम करने वाले करीब 30,000 श्रमिकों में से आधे अपने मूल राज्य लौट गए हैं। लॉकडाउन के चलते तमाम इन्फ्रास्ट्रक्चर और कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट ठप हैं। लॉकडाउन खुलने के बाद भी स्थिति सामान्य होने में छह महीने का समय लग सकता है।”
हैंडलूम मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन पानीपत के अध्यक्ष रमेश वर्मा ने कहा कि यहां के करीब 18,000 छोटे बड़े उद्योगों में काम करने वाले करीब 80 हजार दिहाड़ी मजदूरों में से 60 फीसदी काम बंद होने की वजह से अपने मूल राज्य जा चुके हैं। वर्मा ने आशंका जताई कि लॉकडाउन के बाद कई महीने तक उत्पादन सामान्य नहीं हो पाएगा। हिमाचल के बद्दी-बरोटीवाला और नालागढ़ फार्मा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के संगठन सचिव मुकेश जैन ने कहा, “पैकेजिंग मेटीरियल गैर-जरूरी वस्तुओं की श्रेणी में है। इसकी किल्लत से दवाओं की पैकेजिंग में मुश्किल हो रही है। उत्पादन पहले की तुलना में घटकर 20 फीसदी रह गया है। कर्फ्यू में गैर-जरूरी वस्तुओं की आवाजाही के लिए डीएम की मंजूरी लेना ट्रांसपोर्टर्स और उद्यमियों के लिए बड़ी सिरदर्दी है।”
जहां प्रशासन की तरफ से मंजूरी है, वहां भी श्रमिकों की कमी के कारण उत्पादन नहीं हो पा रहा है। ऑल इंडिया सॉलवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और राइसिला ग्रुप के चेयरमैन ए.आर. शर्मा ने बताया कि सरकार ने राइस ब्रान ऑयल के उत्पादन के लिए लिखा, पर श्रमिकों के काम पर न लौटने से काम ही शुरू नहीं हो सका। ऑल इंडिया ब्रेड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष और किट्टी फूड्स लिमिटेड के सीएमडी रमेश मागो ने कहा कि ब्रेड उत्पादन और वितरण में 40 फीसदी कमी आई है। ब्रांडेड कंपनियों के लिए आटा तैयार करने वाले पंचकूला स्थित कुमार फ्लोर मिल्स के सीएमडी विनोद मित्तल के मुताबिक, पैकेजिंग की किल्लत के चलते ब्रांडेड कंपनियों को आपूर्ति 80 फीसद घट गई है।
गोयनका के अनुसार, ज्यादातर इकाइयों में 40-50 फीसदी श्रमिक ही प्रवासी हैं। इसलिए उत्पादन शुरू करने में ज्यादा परेशानी नहीं आएगी। लुधियाना, मंडीगोबिंदगढ़ और जालंधर में तो पांच-छह दशक से उद्योग-धंधे हैं। इसलिए 60 फीसदी से अधिक श्रमिक तीसरी-चौथी पीढ़ी के हैं, जो यहां के स्थायी निवासी हो गए हैं। लुधियाना के श्रमिक बहुल इलाके आत्मनगर विधानसभा क्षेत्र से लोक इंसाफ पार्टी के विधायक और उद्यमी सिमरजीत सिंह बैंस ने बताया कि दिहाड़ीदार श्रमिकों को छोड़ दें तो 60 फीसदी से अधिक श्रमिक तीन-चार दशकों से यहीं रह रहे हैं।
मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के सामने श्रमिकों की किल्लत के अलावा कच्चे माल की उपलब्धता और तैयार माल की सप्लाई की भी समस्याएं हैं। गोयनका मानते हैं कि इनके सामान्य होने में तीन से चार महीने लग जाएंगे। समस्या मांग की भी आएगी। होशियारपुर के सोनािलका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स ग्रुप के वाइस चेयरमैन ए.एस. मित्तल ने बताया कि उनके प्लांट में कार्यरत 8,000 श्रमिकों और 350 एंसिलरीज में काम करने वाले करीब 20,000 श्रमिकों में से 80 फीसदी स्थानीय हैं। इसलिए संकट श्रमिकों का नहीं, बल्कि कृषि उपकरणों की मांग को कायम रखने का है। एवन साइकिल के सीएमडी ओंकार पाहवा भी मानते हैं कि लुधियाना के साइकिल उद्योग में लॉकडाउन खुलने के बाद समस्या बिक्री की रहेगी।
बहुत सी मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां निर्यात पर निर्भर हैं। इनमें उत्पादन शुरू हो भी गया तो सामान भेजने की दिक्कत है। जालंधर स्पोर्ट्स गुड्स् मैन्युफैक्चरर्स ऐंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रघुनाथ राणा के मुताबिक, उत्पादन ठप होने से जालंधर के खेल उद्योग का सालाना 800 करोड़ रुपये का निर्यात कारोबार ठप हो गया है। 70 फीसदी निर्यात यूरोप और अमेरिका को होना था, जहां महामारी के चलते खेल गतिविधियां ठप हैं। टोक्यो ओलंपिक और भारत में आइपीएल समेत तमाम खेलों का आयोजन टलने से यहां के उद्योगों के करीब 150 करोड़ रुपये के ऑर्डर रद्द हुए हैं।
उद्योग जो सामान बनाते हैं, उनकी आपूर्ति दूसरे राज्यों में भी होती है जो लॉकडाउन में संभव नहीं लगती। इंडियन इंडस्ट्री एसोसिशन की एमएसएमई स्टडी एेंड रिसर्च कमेटी के अध्यक्ष रजत मेहरा कहते हैं, “हमें अपना काम करने के लिए कच्चा माल से लेकर पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन तक की जरूरतों को देखना है। अभी ट्रांसपोर्टेशन लगभग शून्य है। एक ही प्रदेश में आवागमन आसान नहीं है। दूसरे प्रदेश से आने वाले सामान के बारे में तो अभी सोच भी नहीं सकते।” सोंथालिया भी कहते हैं कि जब तक आवागमन पूरी तरह शुरू नहीं होता, तब तक हम उत्पादन करके भी क्या करेंगे। मेहरा के अनुसार, लॉकडाउन से पहले ही जरूरी उद्योगों के बारे में सोच लिया जाता तो समस्या इतनी बड़ी नहीं होती। सीआइआइ, लखनऊ के पूर्व अध्यक्ष सचिन अग्रवाल कहते हैं, “जरूरी सामान से जुड़े उद्योगों में उत्पादन बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उनके सामने कच्चे माल की समस्या न आए। कच्चा माल लाने से लेकर तैयार माल वेंडर तक पहुंचाने में ट्रांसपोर्ट की दिक्कतों को समाप्त किए बगैर हालात नहीं सुधर सकते।”
फैक्टरी मालिकों की एक और शिकायत है कि वेतन नहीं रोकने के सरकारी निर्देश से कर्मचारियों में गलत मैसेज गया है। बहुत से कर्मचारी फैक्ट्री आकर भी काम करना जरूरी नहीं समझ रहे। इस स्थिति को समझने के लिए कानपुर अपर श्रम आयुक्त कानपुर का आदेश काफी है। उन्होंने सरकारी अधिसूचना का हवाला देते हुए 5 अप्रैल को सभी नियोक्ताओं को निर्देश दिया कि कोविड-19 महामारी के चलते अस्थायी रूप से बंदी के दौरान सभी नियोक्ताओं को अपने मजदूरों को मजदूरी सहित अवकाश दिया जाएगा। ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ एफआइआर दर्ज की जाएगी।
एक तरफ उद्योगों के सामने काम शुरू करने को लेकर व्यवस्थागत दिक्कतें हैं, तो दूसरी ओर विभागीय तालमेल का अभाव और प्रशासनिक अड़चनें उनकी मुश्किलें और बढ़ा रही हैं। साहिबाबाद-गाजियाबाद क्षेत्र के उद्यमियों में गाजियाबाद के उद्योग उपायुक्त वीरेंद्र कुमार का कथित ऑडियो मैसेज खौफ का कारण बन गया। इस ऑडियो में कुछ उद्यमों को कहा गया कि उन्हें अगले दिन से काम शुरू कर देना है। संबंधित मजिस्ट्रेट उनके काम शुरू करने की सत्यता की जांच करेंगे। ऐसा नहीं करने वाले उद्योगों का लाइसेंस रद्द भी किया जा सकता है। एक उद्योगपति ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, इस आपातकालीन परिस्थिति में उद्योगों के साथ संवेदनशील व्यवहार की जरूरत थी। लेकिन अफसरों ने बेहद रुखाई और सख्ती से काम लिया। सुविधाएं मुहैया कराने के बजाय कानून के नाम पर मुश्किलें पैदा की जा रही हैं।
इन हालात में उद्यमी सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं। हालांकि लॉकडाउन के तीन हफ्ते बीत जाने के बावजूद अभी तक उद्योग जगत के लिए किसी पैकेज की घोषणा नहीं की गई है। गोयनका ने कहा, “लॉकडाउन खत्म होने के बाद लिक्विडिटी की बड़ी समस्या आने वाली है। उम्मीद है कि सरकार जल्दी ही एमएसएमई के लिए 75,000 करोड़ रुपये का पैकेज जारी करेगी। अगर इन्हें मदद नहीं मिली तो छह महीने में 50 फीसदी एमएसएमई खत्म हो जाएंगे।” सोंथालिया के मुताबिक सरकार को छोटे कारोबारियों के लिए पैकेज लाना चाहिए, कर्ज पर ब्याज फिलहाल माफ कर देना चाहिए, आगे भी एक साल के लिए ब्याज की दर आधी रखी जानी चाहिए।
हालांकि, मौजूदा परिस्थितियों में भी कुछ लोगों को अवसर नजर आ रहा है। गोयनका ने बताया कि बहुत से निर्माता चीन से निकलना चाहते हैं। भारत के ही कुछ निर्माता जो पहले चीन में मैन्युफैक्चरिंग करवा कर सामान मंगवाते थे, अब वे यहां बनवाने के लिए हमसे संपर्क कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर पांच फीसदी ज्यादा कीमत भी देनी पड़े तो वे भारत में सामान बनवाना पसंद करेंगे। निर्यातकों के संगठन फिओ के अध्यक्ष एस. सराफ ने भी सरकार से कहा है कि यह विदेशी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को भारत आकर्षित करने का बढ़िया मौका है।
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उम्मीद है सरकार एमएसएमई के लिए 75,000 करोड़ रुपये का पैकेज जारी करेगी। इन्हें जल्दी मदद नहीं मिली तो छह महीने में 50 फीसदी एमएसएमई खत्म हो जाएंगे
रजनीश गोयनका, प्रेसिडेंट
एमएसएमई चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्रीज
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हमारे और हमारी एंसिलरी इकाइयों के कुल 20 हजार श्रमिकों में से 80 फीसदी स्थानीय, इसलिए संकट श्रमिकों का नहीं, बल्कि कृषि उपकरणों की मांग को कायम रखने का
ए.एस. मित्तल
वाइस चेयरमैन, सोनालिका इंटरनेशनल ट्रैक्टर्स
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जरूरी सामान से जुड़े उद्योग में उत्पादन के लिए जरूरी है कि उनके सामने कच्चे माल की समस्या न आए। इसके लिए ट्रांसपोर्ट की दिक्कतों को खत्म करना जरूरी
सचिन अग्रवाल
पूर्व अध्यक्ष, सीआइआइ, लखनऊ