महामारी डरावनी हारी भी ले आती है और माली हालत पहले से ही गोता लगा रही हो तो यह किस गर्त में ले जाएगी, इसके अशुभ संकेत चारों ओर दिखने लगे हैं। बुजुर्गों और रिटायर्ड लोगों की आय के प्रमुख साधन लघु बचत योजनाओं पर केंद्र सरकार ने 1.4% तक की बड़ी कटौती की है। कोविड-19 महामारी के चलते मैन्युफैक्चरिंग, होटल और रेस्तरां और सड़क ट्रांसपोर्ट लगभग बंद हैं। हालांकि दवा और जरूरी जिंसों की दुकानें खुली हैं। करीब 80% आर्थिक गतिविधियां ठप हैं और लाखों लोग बेरोजगार हो रहे हैं। कंपनियां और राज्य सरकारें वेतन में कटौती कर रही हैं। तेलंगाना सरकार ने वेतन कटौती की घोषणा की है। महाराष्ट्र सरकार ने वेतन दो किस्तों में, पहले 60% और फिर 40% देने का फैसला किया है। दुनिया के शेयर बाजारों के लिए मार्च तिमाही 1987 के बाद सबसे खराब साबित हुई।
एक अप्रैल से वित्त वर्ष 2020-21 की काफी मायूस शुरुआत हुई है। महामारी के डर और खाने-पीने का कोई साधन नहीं होने से लाखों प्रवासी श्रमिक अपने घर चले गए हैं, जिनका जल्दी लौटना मुश्किल है। लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां शुरू होंगी तब श्रमिकों की बड़ी कमी हो सकती है। इसलिए एसबीआइ ने इस वर्ष विकास दर 2.5% रहने की उम्मीद जताई है, जो उदारीकरण के बाद सबसे कम होगी। नोमुरा सिक्युरिटीज ने तो यहां तक कहा है कि जून तिमाही में भारत की अर्थव्यवस्था का आकार 10% तक घट सकता है। आइएमएफ के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था मंदी में प्रवेश कर चुकी है, इस बार स्थिति 2009 से ज्यादा गंभीर होगी। ऐसे में आम आदमी से लेकर उद्योग जगत तक, हर कोई सरकार से उम्मीद लगाए बैठा है। सरकार ने कुछ घोषणाएं की हैं, पर वे नाकाफी हैं। आर्थिक गतिविधियां लगभग ठप हैं, इसलिए डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन घटेगा। कंपनियों में उत्पादन कम हो रहा है या ठप है, तो आगे जीएसटी कलेक्शन भी मामूली ही होगा। पेट्रोल-डीजल की बिक्री सामान्य दिनों की तुलना में 5% रह गई है, इसलिए एक्साइज ड्यूटी संग्रह भी कम रहेगा। ऐसे में सरकार का राजस्व लक्ष्य से काफी कम रहेगा। नोमुरा का अनुमान है कि 2020-21 में राजकोषीय घाटा छह फीसदी तक पहुंच सकता है। लेकिन पीएचडी चैंबर के प्रेसिडेंट डी.के. अग्रवाल समेत तमाम विशेषज्ञों का मानना है कि अभी राजकोषीय घाटा प्राथमिकता नहीं, संकट से निकलना प्राथमिकता है। सरकार को तरलता के साथ मांग बढ़ाने के उपाय भी करने होंगे। इस लिहाज से लघु बचत योजनाओं पर ब्याज घटाना प्रतिगामी कदम है।
जरूरी वस्तुओं की सप्लाई बाधित
एक तो महामारी का डर और दूसरे, सरकार के आदेशों में अनिश्चितता। दोनों का मिला-जुला असर है कि जरूरी चीजों की ढुलाई भी प्रभावित हो रही है। मेडिकल टेक्नोलॉजी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन पवन चौधरी के अनुसार चिकित्सा उपकरण ले जाने वाले ट्रकों को भी रोका जा रहा है। एफएमसीजी कंपनियों का कहना है कि ट्रकों की कमी और कर्मचारी नहीं मिलने से जरूरी वस्तुओं की सप्लाई बाधित हो रही है। कैच ब्रांड नाम से खाद्य पदार्थ बेचने वाले डीएस ग्रुप के सीनियर मैनेजर मनोज कुमार ने बताया कि लॉकडाउन के चौथे दिन कुछ घंटों के लिए ऑनलाइन विक्रेताओं को सप्लाई की अनुमति मिली। लेकिन सप्लाई हो तो कैसे? राज्यों के बॉर्डर सील होने के कारण ट्रक खड़े हैं। ऑल हरियाणा ट्रक ऐंड ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सुरेश शर्मा के अनुसार, ट्रक मालिकों को प्रति ट्रक रोजाना 4,000 रुपये का नुकसान हो रहा है। देश में करीब 30 लाख ट्रक खड़े हैं, जो सप्लाई चेन के टूटने संकेत हैं। बहुत जगहों पर तो ड्राइवर ट्रक छोड़कर आ गए हैं। बजाज ऑटो के एमडी राजीव बजाज ने तो लॉकडाउन को अनावश्यक बताया है।
असर हर सेक्टर पर
लॉकडाउन से मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, होटल और रेस्तरां, एयरलाइंस और मॉल जैसे बिजनेस ज्यादा प्रभावित हैं। जरूरी सामान के लिए रिटेल स्टोर तो खुले हैं पर बिजनेस लगातार गिर रहा है। रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सीईओ कुमार राजगोपालन ने बताया कि 15 दिनों में बिक्री 30-40% कम हो गई है। होटल और रेस्तरां तो पूरी तरह बंद हैं। नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट अनुराग कटियार के मुताबिक दुकानें खुलने के बाद भी कुछ महीने तक बिक्री आधी ही रहने का अंदेशा है। ज्यादातर देशों ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बंद कर रखी हैं। भारत में घरेलू उड़ानें भी बंद हैं। इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन का आकलन है कि दुनिया भर की एयरलाइंस को 250 अरब डॉलर के रेवेन्यू का नुकसान होगा। सेंटर फॉर एशिया पेसिफिक एविएशन ने भारत के लिए 3.6 अरब डॉलर के नुकसान का अनुमान लगाया है।
मैन्युफैक्चरिंग में 25% योगदान करने वाले ऑटोमोबाइल सेक्टर (कंपोनेंट समेत) में 76 लाख लोग काम करते हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियों के संगठन सियाम के अनुसार, बंदी के कारण रोजाना 2,300 करोड़ रुपये के रेवेन्यू का नुकसान हो रहा है। मोबाइल फोन कंपनियों में भी कामकाज नहीं हो रहा है। इंडियन सेलुलर ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के चेयरमैन पंकज महेंद्रू के अनुसार 21 दिन के लॉकडाउन से 15,000 करोड़ रुपये के नुकसान का अंदेशा है। यह महामारी ऐसे समय फैली है जब फसलों की कटाई चल रही है। शुरुआती रोक के बाद सरकार ने किसानों और मंडियों को लॉकडाउन से छूट दे दी है। इस महामारी से खेती को कितना नुकसान होगा अभी यह अनुमान लगाना मुश्किल है।
जब सर्विस सेक्टर, मैन्युफैक्चरिंग और कृषि तीनों प्रभावित हो तो आर्थिक विकास की बात करना बेमानी है। इसीलिए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति समीक्षा में पहली बार विकास दर का कोई अनुमान नहीं लगाया। हालांकि एसबीआइ की ईकोरैप रिपोर्ट के अनुसार मार्च तिमाही में विकास दर 2.5% रहेगी। इसका अंदेशा है कि 21 दिन के लॉकडाउन से कम से कम आठ लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। पीएचडी चैंबर के अग्रवाल कहते हैं, “अगले वित्त वर्ष की पहली छमाही अर्थव्यवस्था के लिए खराब रहेगी। उसके बाद रिकवरी इस बात पर निर्भर करेगी कि महामारी पर कितना काबू पाया जा सका है और उससे कितना नुकसान हुआ है।” क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी इस संकट को 2008 के संकट से इस मायने में अलग मानते हैं कि इसने आर्थिक गतिविधियों पर पूरी तरह ब्रेक लगा दिया है। सबसे ज्यादा बुरी स्थिति असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों की है, जिनमें से आधे के पास किसी तरह की सामाजिक सुरक्षा नहीं है। अग्रवाल के अनुसार, सरकार को असंगठित क्षेत्र के लिए रिवाइवल पैकेज लाना चाहिए, उन्हें ब्याज मुक्त और बिना कोलेटरल वाला कर्ज मिले। एमएसएमई के लिए 25,000 करोड़ रुपये का अलग फंड बनाना चाहिए।
सरकार की मदद बहुत कम
भारत में कोरोना वायरस का पहला मामला 30 जनवरी को सामने आया था। इसके बावजूद सरकार की तरफ से राहत उपायों की घोषणा में दो महीने लग गए। 26 मार्च को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की। लेकिन एटक महासचिव अमरजीत कौर ने एक बयान में कहा कि किसान सम्मान निधि जैसी पुरानी स्कीमों को भी पैकेज में शामिल कर लिया गया। बीपीएल परिवारों को तीन महीने तक प्रति माह पांच किलो गेहूं या चावल और एक किलो दाल, बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों को एक-एक हजार रुपये नकद, महिला जनधन खाताधारकों को 500 रुपये प्रति माह और उज्ज्वला स्कीम के तहत तीन महीने तक मुफ्त रसोई गैस सिलिंडर कुछ अच्छे कदम अवश्य हैं, लेकिन ये इतने छोटे हैं कि लंबे समय तक लोगों का गुजारा नहीं हो सकता। पूर्व िवत्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के अनुसार खेतिहर मजदूरों और निजी क्षेत्र में काम करने वालों की संख्या बहुत है, उनका रोजगार चलता रहे इसके लिए ठोस योजना नहीं है।
बिना काम-धंधे के कर्ज लौटाने में सबको दिक्कत होगी। इसलिए रिजर्व बैंक ने बैंकों को अनुमति दी है कि वे इएमआइ भुगतान पर मार्च से मई तक छूट दे सकते हैं। कंपनियों के लिए भी वर्किंग कैपिटल लोन के ब्याज पर तीन महीने की छूट है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद कंपनियों के सामने नकदी की समस्या होगी। इसके लिए रिजर्व बैंक ने कई उपाय किए हैं। पांच साल में पहली बार तय समय से पहले मौद्रिक नीति की समीक्षा करते हुए रिजर्व बैंक ने रेपो रेट 0.75% घटाकर 4.4% कर दिया। यह 2008-09 के संकट के समय से भी कम है। तरलता बढ़ाने के अन्य उपायों में कैश रिजर्व रेशियो चार से घटाकर तीन फीसदी करना और लॉन्ग टर्म रेपो ऑपरेशन भी शामिल हैं। इनसे 3.74 लाख करोड़ रुपये की लिक्विडिटी बढ़ेगी। इसके बावजूद सुधार आसान नहीं होगा। लॉकडाउन के चलते आम लोगों और कंपनियों की आमदनी बंद होने से मांग कम रहेगी। अग्रवाल के अनुसार कंपनियों को अतिरिक्त 25% वर्किंग कैपिटल की जरूरत पड़ेगी। सरकार को इस पर ब्याज में रियायत देनी चाहिए।
दूसरे देशों से पैकेज की तुलना नहीं
दूसरे देशों के राहत पैकेज देखें तो उनमें अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र का ध्यान रखा गया है। भारत में अभी तक टुकड़ों में पैकेज दिए गए हैं। अमेरिका ने दो लाख करोड़ डॉलर के पैकेज की घोषणा की है, जो उसकी जीडीपी का 10% है। भारत में सरकार का पैकेज जीडीपी का एक फीसदी भी नहीं है। ज्यादातर अमेरिकी नागरिकों को 1,200 डॉलर और बच्चों के लिए 500 डॉलर मिलेंगे। छोटी कंपनियां कर्मचारियों को वेतन दे सकें, इसके लिए उन्हें 367 अरब डॉलर दिए जाएंगे। फेड रिजर्व पहली बार कॉरपोरेट बांड खरीद रहा है। इंग्लैंड ने कॉरपोरेट के लिए 425 अरब डॉलर के पैकेज की घोषणा की है। कंपनियों को सरकार की गारंटी वाले सस्ते लोन दिए जाएंगे। बेरोजगार होने वालों को 80% वेतन के बराबर भुगतान किया जाएगा। ऑस्ट्रेलिया हर 15 दिन में 1,500 डॉलर देगा। भारत में कॉरपोरेट सेक्टर को अभी पैकेज का इंतजार है।
21 दिन के लॉकडाउन के बाद क्या होगा, कोई नहीं जानता। अमेरिका में कंपनियां बंद होने से बेरोजगारों की संख्या 33 लाख बढ़ गई। मई में वहां बेरोजगारी दर 13% तक पहुंचने की आशंका है, जो फरवरी में 50 साल में सबसे कम 3.5% थी। भारत में तो बेरोजगारी दर पहले ही चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है। इस महामारी के चलते कितने लाख लोग बेरोजगार होंगे, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि संकट कितने दिनों तक चलता है। हालांकि मायूसी भरी इन खबरों के बीच एक अच्छी खबर भी है। जिस चीन से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला, वहां दो महीने की बंदी के बाद 98.6% मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में उत्पादन शुरू हो गया है। इनमें 90% कर्मचारी भी काम पर लौट आए हैं। जिस हुबेई से संक्रमण की शुरुआत हुई थी, वहां 29 मार्च से घरेलू उड़ानें भी शुरू कर दी गईं।
----------------------------------------------------------
पांच साल के निवेश के लिए यह अच्छा समय
निमेश शाह, एमडी और सीईओ, आइसीआइसीआइ प्रूडेंशियल
रिजर्व बैंक के कदम से तरलता बढ़ेगी और पूंजी की लागत कम होगी। इससे कोरोनावायरस के कारण होने वाले नुकसान से बचाव में फाइनेंशियल सेक्टर को मदद मिलेगी। ऐतिहासिक रूप से देखें तो ऐसे अस्थिर समय लंबे समय में निवेश के लिए अच्छे होते हैं। ऐसा मौका 2008 और 2001 में भी आया था। तीन से पांच साल तक के लिए निवेश करने वालों को इक्विटी में अच्छा मुनाफा होगा। 2008 के संकट के बाद निवेशक अब परिपक्व हो गए हैं, इसलिए रिडेंप्शन का दबाव नहीं है। प्रमुख आर्थिक आंकड़े जैसे चालू खाते का घाटा और महंगाई दर नियंत्रण में हैं। इसलिए दूसरे विकासशील देशों की तुलना में भारत की स्थिति फिलहाल बेहतर लग रही है। हालांकि लॉकडाउन 21 दिन से ज्यादा हुआ तो पूंजी बाजार में शॉर्ट टर्म के लिए अस्थिरता आ सकती है।
---------------------------------------
निवेशकों को झटका ः सेंसेक्स अपने उच्चतम स्तर से अब तक 32 फीसदी नीचे
---------------------------------------
अतिरिक्त वर्किंग कैपिटल पर ब्याज कम हो, एसएमई के लिए 25 हजार करोड़ का फंड बने
डी.के. अग्रवाल, प्रेसिडेंट, पीएचडी चैंबर