कोरोना से लड़ाई अब लॉकडाउन-2 में पहुंच गई है। देशवासी अब 3 मई तक लॉकडाउन में ही रहेंगे। यानी लॉकडाउन 40 दिनों का हो गया है। स्थिति की गंभीरता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 14 अप्रैल के बयान से साफ होती है, जिसमें उन्होंने ‘जान भी और जहान भी’ की बात की। प्रधानमंत्री का डर इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि भारत में महज 14 दिनों में कोविड-19 संक्रमित लोगों की संख्या पांच गुनी होकर 11 हजार के पार कर गई है। एक अप्रैल को देश में 1998 लोग संक्रमित थे, जो 14 अप्रैल को 11,487 हो गए। एक मार्च को तो देश में महज तीन लोग कोरोना संक्रमित थे। इसमें भी चिंता की बात यह है कि 13 और 14 अप्रैल को ऐसा पहली बार हुआ जब एक दिन में एक हजार से ज्यादा मामले आए। संक्रमण के साथ मृत्यु दर भी बढ़ रही है। एक अप्रैल से 14 अप्रैल के बीच कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 11 गुना तक बढ़ी और अब तक 393 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण देश के 354 जिलों तक पहुंच गया है।
बढ़ते हुए आंकड़ों पर कोविड-19 के लिए बनी टॉस्कफोर्स के सदस्य और भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने आउटलुक से कहा, “आंकड़े बढ़ने की प्रमुख वजह ज्यादा टेस्टिंग न होना है, लेकिन हमें घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि अभी हम स्टेज 3 में नहीं पहुंचे हैं। यानी कम्युनिटी संक्रमण का खतरा नहीं है। अच्छी बात है कि देश में हॉटस्पॉट की पहचान हो गई है। इन इलाकों को संक्रमण मुक्त कर चेन को तोड़ सकते हैं।” भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) से मिली जानकारी के अनुसार, 14 अप्रैल तक देश में 2,29,426 लोगों के टेस्ट किए गए। इसके अलावा अब एंटीबॉडी टेस्ट भी कराने की तैयारी है। इसके जरिए हर्ड इम्युनिटी का आकलन किया जा सकेगा। आइसीएमआर में सेंटर फॉर एडवांस रिसर्च इन वायरोलॉजी के प्रमुख डॉ. टी.जैकब. जॉन का कहना है, “भारत का मौजूदा हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर इटली-अमेरिका जैसी स्थिति से निपटने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। लॉकडाउन अवधि का इस्तेमाल स्वास्थ्य सुविधाएं तैयार करने पर होना चाहिए। सरकार को प्राइवेट सेक्टर को साथ लाना चाहिए, जिससे निचले स्तर तक सेंट्रल कमांडिंग सिस्टम तैयार किया जा सके।”
अभी तक सरकार की तैयारी भी पर्याप्त नहीं नजर आती है। स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार 11 अप्रैल तक देश में 586 अस्पतालों को कोविड-19 के मरीजों के लिए खास तौर से तैयार किया गया था। इनमें एक लाख आइसोलेशन बेड और 11,500 आइसीयू बेड हैं। हालांकि नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 के अनुसार, देश में कुल 7.10 लाख बेड हैं। अगर 40 दिन के लॉकडाउन के बाद स्थिति नहीं सुधरती है तो लचर स्वास्थ्य सुविधाएं गंभीर स्थिति खड़ी कर सकती हैं।
लॉकडाउन के 21 दिनों के पहले चरण में कुछ ऐसे भी अनुभव रहे जो उम्मीद जगाते हैं। मसलन, राजस्थान के भीलवाड़ा में जिस तरह से संक्रमण को रोका गया। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के आगरा और केरल के पत्थनमिट्टा मॉडल की भी चर्चा है। राज्य भी इन मॉडलों को अपनाने पर जोर दे रहे हैं। गुलेरिया कहते हैं, “जहां भी संक्रमण को सफलतापूर्वक रोका गया, उसका अध्ययन करने की जरूरत है। दूसरे संक्रमित जगहों पर उन तरीकों को अपनाना चाहिए। इससे हम संक्रमण की चेन को तोड़ पाएंगे।”
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का भी मानना है कि एक समय दिल्ली का दिलशाद गार्डन हॉटस्पॉट बन गया था, लेकिन तुरंत एक्शन से आज वहां संक्रमण के मामले रुक गए हैं। इसके लिए पूरे इलाके को सील करके घर-घर जाकर लागों की टेस्टिंग की गई। जिनमें जरा भी लक्षण मिले, उन्हें क्वारंटाइन किया गया और आइसोलेशन में रखा गया। इसका फायदा यह हुआ कि संक्रमण की चेन टूट गई और स्थिति नियंत्रण में आ गई। जैन के अनुसार इसी तरह दिल्ली के दूसरे इलाकों में कदम उठाए जा रहे हैं जिसके अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द ही दूसरे क्षेत्रों में भी संक्रमण रुक जाएगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में 14 अप्रैल तक चार राज्यों में संक्रमित लोगों की संख्या एक हजार से अधिक थी- महाराष्ट्र में 2,801, दिल्ली में 1,561, तमिलनाडु में 1,204 और राजस्थान में 1,046। मध्य प्रदेश और गुजरात में भी संक्रमण तेजी से बढ़ा है। इन दोनों राज्यों में क्रमश: 741 और 695 मामले सामने आए हैं। करीब 21 करोड़ आबादी वाले उत्तर प्रदेश में भी नोएडा, गाजियाबाद, आगरा, लखनऊ संक्रमण के बड़े क्षेत्र बन गए हैं। 14 अप्रैल तक राज्य में 660 लोग संक्रमित हो चुके हैं। राहत की बात यह है कि प्रदेश के 75 जिलों में से 35 जिले कोरोना के संक्रमण से बचे हुए हैं। लेकिन लॉकडाउन के पहले चरण में जिस तरह से प्रदेश में प्रवासी मजदूरों को समस्याओं का सामना करना पड़ा, बॉलीवुड सिंगर कनिका कपूर की वजह से राज्य सरकार के मंत्रियों पर संक्रमण का खतरा बढ़ा और नोएडा के डीएम का विवादों के साथ तबादला हुआ, वह मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के लिए लॉकडाउन-2 में नई चुनौती बन सकता है। इन सबके बीच केरल में बेहतर रणनीति का असर दिखा है। देश में सबसे पहले जिन राज्यों में मामले आए थे, उनमें केरल भी था, लेकिन डेढ़ महीने में इनकी संख्या 386 तक ही पहुंची है।
लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने के साथ केंद्र सरकार यह भी समझ चुकी है कि देश पूरी तरह से लॉकडाउन में रहा, तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है, अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बैठ जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए 20 अप्रैल से कई स्तर पर छूट देने की कोशिश की गई है, ताकि जिससे अर्थव्यवस्था का पहिया फिर से घूमने लगे। गृह मंत्रालय ने जो दिशानिर्देश जारी किए हैं, उसके मुताबिक खेती से जुड़ी गतिविधियों, किराना, राशन की दुकानें, फल-सब्जी, डेयरी, पोल्ट्री, मीट, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर, बढ़ई आदि रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़े व्यवसाय को शुरू किया जा सकेगा। ई-कॉमर्स कंपनियों, कूरियर सर्विसेज, आइटी कंपनियों और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को भी शर्तों के साथ काम शुरू करने की अनुमति दी गई है। निर्यात करने वाली इकाइयां भी काम शुरू कर सकेंगी। सरकार के इस फैसले से साफ है कि वह लॉकडाउन को लंबा नहीं खींचना चाहती है। हालांकि, उसकी पहली प्राथमिकता कोरोना के संक्रमण को रोकने की है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने साफ कहा है कि अगर हॉटस्पॉट के मामले बढ़े तो यह ढील वापस ली जा सकती है।
कोविड-19 की चपेट में अब लगभग पूरी दुनिया है। पूरे विश्व में 14 अप्रैल तक 20 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके थे और एक लाख 30 हजार से ज्यादा की मौत हो चुकी थी। अमेरिका इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। वहां अब तक छह लाख से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं और 30 हजार से ज्यादा की मौत हो चुकी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 15 मार्च तक दुनिया में सिर्फ 1.5 लाख मामले थे।
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कोरोना विजेता
निष्ठा अग्रवाल
रायपुर, छत्तीसगढ़
मैं राज्य की पहली कोरोना मरीज हूं। 15 मार्च को मै लंदन से रायपुर पहुंची थी। एयरपोर्ट पर मेरी स्क्रीनिंग भी की गई थी। लेकिन मेरे अंदर कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे। फिर भी एहतियातन मैंने खुद को घर में आइसोलेट कर लिया। बुजुर्ग दादा-दादी और माता-पिता को देखते हुए यह जरूरी था। मैं 17 मार्च को खुद ही टेस्ट कराने एम्स पहुंची, लेकिन लक्षण न होने की वजह से कोई टेस्ट करने को तैयार नहीं था। काफी कोशिश के बाद मेरा टेस्ट हुआ। दो दिन बाद रिपोर्ट पॉजिटिव निकली और मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। लेकिन उसके बाद जो हुआ उसने मुझे काफी तकलीफ दी। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की बाढ़ आ गई। हर जगह मुझे दोषी ठहाराया जाने लगा। कहा जाने लगा कि मैंने कोरोना संक्रमण की बात छुपाई। यह बातें ऐसे समय में हो रही थीं, जब मैं खुद तकलीफ में थी और मौत से लड़ रही थी। मेरी गुजारिश है कि मरीजों के प्रति संवेदनशील बनें। न बन सकें, तो कम से कम उन्हें बदनाम न करें। संक्रमण होने पर घबराए नहीं, डॉक्टर पर भरोसा करें। किसी भी हालत में इसे छिपाए नहीं। सरकार, डॉक्टर, प्रशासन बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। आज जब मैं ठीक हो गई हूं तो लोग विजेता जैसा मेरा स्वागत कर रहे हैं।
रवि भोई
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कोरोना विजेता
23 वर्षीय युवक, चंडीगढ़, पंजाब
मैं भगवान में विश्वास नहीं करता हूं। आत्म शक्ति और स्वास्थ्य कर्मियों के सहयोग की बदौलत मैं कोविड-19 को मात देने में कामयाब रहा। मैं 15 मार्च से 17 मार्च के बीच, विदेश से आए अपने एक मित्र के परिवार वालों के संपर्क में आया था। 19 मार्च की रात मुझे तेज बुखार आया। मैं अपने नजदीक के एक डॉक्टर के पास इलाज के लिए गया। वहां से मुझे पीजीआइ चंडीगढ़ रेफर कर दिया गया। कोविड-19 की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर परिवार में चिंता स्वाभाविक थी। मैं उन सभी डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्य कर्मियों को धन्यवाद देता हूं, जिनकी बदौलत मैं स्वस्थ हुआ। नियमित रूप से मेरी दिन में दो बार जांच की जाती थी। देखने में आया कि कुछ लोग इस स्थिति में मानसिक संतुलन खोने लगते हैं। मेरे साथ ऐसी कोई समस्या नहीं आई। मुझे भरोसा था कि मुझे कोई दिक्कत नहीं आएगी। 5 अप्रैल को मुझे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया।
(पहचान जाहिर नहीं करना चाहते)
नीरज झा
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मध्य प्रदेश में रक्षक हुए लापरवाह
मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के 45 अधिकारी कोरोना संक्रमित हो गए हैं। इसकी बड़ी वजह आला अधिकारियों की लापरवाही है। कई अधिकारियों ने अपने संक्रमण की जानकारी छुपाई, साथ ही, विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का भी उल्लंघन किया।
स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव की कमान संभाल रही पल्लवी जैन गोविल ने बताया कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई है, लेकिन दावा किया कि उनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं हैं। वह सोशल डिस्टेंसिंग को नजरअंदाज कर बैठकें करती रहीं। उनके इस रवैए पर भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे कहते हैं, “पल्लवी जैन का बेटा अमेरिका से लौटा था, वह होम क्वारंटाइन था, लेकिन उसकी ट्रेवल हिस्ट्री प्रशासन को नहीं बताई गई। उनके बेटे की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई, लेकिन पल्लवी जैन की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। पल्लवी जैन के अलावा हेल्थ कॉर्पोरेशन के एमडी और आयुष्मान योजना के सीईओ जे. विजय कुमार की रिपोर्ट भी दो बार पॉजिटिव आई है। विजय कुमार ने भी अपनी कांटैक्ट लिस्ट सार्वजनिक नहीं की। राज्य में कोरोना को हराने के लिए दोनों आइएएस अधिकारियों के पास अहम जिम्मेदारी थी। कोरोना से लड़ने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए कोर ग्रुप में जे. विजयकुमार के अलावा 12 आइएएस अफसर भी शामिल हैं। अब सभी होम क्वारंटाइन हैं। अजय का कहना है जानकारी छुपाने और दूसरे लोगों की जान जोखिम में डालने के आरोप में दोनों अफसरों के खिलाफ एफआइआर दर्ज होना चाहिए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दोनों अधिकारियों को विभाग से हटा दिया है। लेकिन इस लापरवाही की भरपाई आसान नहीं।
रवि भोई
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फतेह सिंह
नवांशहर, पंजाब
अपने दो दोस्तों के साथ सात मार्च को मेरे पिता रागी बाबा बलदेव सिंह जर्मनी से इटली होते हुए अपने गांव पठलावा पहुंचे थे। घर लौटने पर तेज-बुखार था 12 मार्च को उन्हें जालंधर के निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। लेकिन वहां हालत में सुधार नहीं हुआ और 18 मार्च को 72 साल की उम्र में वह हमें छोड़कर चले गए। इस बीच पीजीआइ चंडीगढ़ की रिपोर्ट में मौत का असल कारण कोरोना संक्रमण पाया गया। पिता जी इस बीच जिन लोगों से मिले थे, उनमें से 27 लोग कोरोना से संक्रमित हो गए। जिसमें मैं, मेरी मां, मेरे भाई, बहन, रिश्तेदार और दोस्त शामिल थे। गांव के सरपंच भी इसकी चपेट में आ गए। पिता के अंतिम संस्कार के समय परिवार के छह सदस्य नवांशहर के सिविल अस्पताल में भर्ती थे। संस्कार भी सफाई कर्मियों ने ही किया। दो साल का मेरा भतीजा भी कोरोना पॉजिटिव हो गया। 2 अप्रैल को अस्पताल में मना भतीजे का जन्मदिन मेरे लिए मुबारक दिन था, क्योंकि उसी दिन मेरी पहली रिपोर्ट निगेटिव आई और 5 अप्रैल को आई दूसरी रिपोर्ट भी निगेटिव निकली। मुझे भतीजे और मेरे दो भाइयों हरिंदर और सुखविंदर को अस्पताल से छुट्टी मिलने की बहुत खुशी है। अब मैं अस्पताल से छुट्टी मिलते ही सबसे पहले पिता जी के अस्थि विसर्जन के लिए कीरतपुर साहिब जाऊंगा।
हरीश मानव
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नीतीश की कोरोना परीक्षा
पटना से गिरिधर झा
विधानसभा चुनाव के मात्र कुछ महीने पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को एक अप्रत्याशित समस्या से जूझना पड़ रहा है। कोरोनावायरस जैसी वैश्विक महामारी से उत्पन्न परिस्थिति से लड़ना एक पिछड़े राज्य के मुखिया के लिए कांटों भरा हो सकता है। विगत पंद्रह वर्षों में नीतीश मुख्यतः बिहार के चतुर्मुखी विकास के मुद्दे पर ही चुनाव जीतते आए हैं और इस बार भी उनके गठबंधन का मुद्दा कुछ अलग न होगा, लेकिन क्या चुनावी समर में कोरोना संकट के दौरान उनकी सरकार द्वारा किए गए राहत कार्य की तुलना में पूर्व में उनके द्वारा किए गए विकासोन्मुखी कार्य गौण हो जाएंगे?
नीतीश कुमार शुरू से इस बात से अवगत थे कि कोरोना संक्रमण के फैलने का सबसे अधिक प्रभाव प्रदेश में और प्रदेश से बाहर रह रहे गरीब लोगों, विशेषकर प्रवासी बिहारी मजदूरों की जिंदगियों पर पड़ेगा। इसीलिए उन्होंने उनकी मदद के लिए सरकार द्वारा तत्काल 100 करोड़ रुपये की राशि जारी करने की घोषणा की। उन्होंने भारत सरकार को ट्रेनों और वायुयानों के परिचालन बंद करने की भी सलाह दी, ताकि प्रवासी लोगों के आवागमन से संक्रमण के फैलने का खतरा कम किया जा सके लेकिन इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा किसी निर्णय पर पहुंचने के पूर्व ही मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में रह रहे बिहारी मजदूर ट्रेनों से अपने गांव लौटने लगे।
नीतीश आने वाले खतरे को भांप चुके थे। लॉकडाउन शुरू होने के पहले दो दिनों में ही हजारों बिहारी मजदूर पटना वापस लौट आए थे लेकिन तब तक उनकी जांच के लिए दानापुर स्टेशन पर मेडिकल कैंप लग चुके थे। इसी बीच दिल्ली और अन्य बड़े शहरों से ऐसी खबरें भी आने लगीं कि हजारों की संख्या में वहां रहने वाले बिहारी और अन्य मजदूर लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार होने के कारण अपने-अपने गृह राज्यों के लिए पैदल ही परिवार सहित कूच कर गए हैं। यह नीतीश सरकार के लिए खतरे की घंटी थी। परिस्थिति का आकलन करते हुए नीतीश ने विभिन्न राज्यों की सीमाओं को बंद करने की अपील की लेकिन तब तक बाहर रहने वालों की बड़ी तादाद बिहार पहुंचने लगी। ऐसा लगने लगा कि राज्य भर में कोरोना संक्रमण का विस्फोट अब होने ही वाला है।
उन्हें राज्य में न सिर्फ कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकना था बल्कि बिहार के उन लाखों दिहाड़ी मजदूरों के भरण-पोषण का ख्याल भी रखना था। उन्होंने उनकी तत्काल राहत के लिए कई घोषणाएं कीं। सरकार ने सभी राशन कार्डधारियों को एक महीने की मुफ्त राशन देने और उनके बैंक खातों में एक हजार रुपये हस्तांतरित करने की घोषणा की। इसके अलावा विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत पेंशनधारियों के खाते में तीन महीने के अग्रिम पेंशन डालने तथा सभी चिकित्सकों और अन्य स्वाथ्यकर्मियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन देने की भी पहल की। नीतीश ने वैसे मजदूरों के लिए जो दूसरे राज्यों में फंसे हुए थे प्रति व्यक्ति एक हजार रुपये उनके बैंक खाते में स्थानांतरित करने का निर्णय किया। इसमें दो मत नहीं है कि ऐसे प्रवासी बिहारियों की वापसी से राज्य में संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ गया है।
मार्च महीने में मुंगेर के एक युवक की दुबई से लौटने के बाद कोरोनावायरस संक्रमण से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद संक्रमण का खतरा बहुत बढ़ गया था। 13 अप्रैल तक राज्य भर में कोरोना मरीजों की संख्या मात्र 64 थी जिसमें सिर्फ एक ही मृत्यु हुई है। उनमें से 22 लोगों को इलाज के बाद छुट्टी दी जा चुकी है। राहत की बात है कि अब तक किसी संक्रमित व्यक्ति को आइसीयू की जरूरत नहीं पड़ी है। जानकारों का मानना है कि राज्य में कोरोना मरीजों के कम होने का मूल कारण अपेक्षाकृत स्तर पर जांच होने का अभाव है। लगभग 11 करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में फिलहाल सिर्फ चार स्थानों पर जांच की सुविधा है।