कोरोना कोविड-19 वायरस पूरे विश्व में एक व्यापक संक्रामक महामारी का रूप ले चुका है। रोग की भयावहता और इसकी तेज गति के संक्रमण के कारण कई देशों ने अपने यहां पूर्ण लॉकडाउन कर दिया, यानी सभी काम रोक दिए गए और सभी व्यक्तियों को अपने घरों में रहने के लिए बाध्य कर किया गया। विश्व में पहली बार इस तरह की घटना हुई कि पूरा विश्व ही जैसे इस महामारी से बचाव के लिए रुक गया हो। किंतु क्या यह कोविड-19 वास्तव में इतना भयानक है जितना इसे प्रस्तुत किया जा रहा है? मैं इसके बारे में कुछ आवश्यक तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूं जो कि अभी तक चर्चा में अधिक नहीं है।
सबसे पहले, क्या यह रोग इतना भयावह है जितना कि इसे घोषित किया जा रहा है? विश्व में प्रतिवर्ष इन्फ्लुएंजा से 40-50 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। अमेरिका की शीर्ष राजकीय संस्था सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के अनुसार इस रोग से वर्ष 2019 में उनके देश में ही 61,000 लोगों की मृत्यु हुई। उस अनुपात में कोविड-19 से अभी तक कम मौतें हुई हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भी प्रकार के वायरस को समाप्त करने के लिए कोई औषधि नहीं है। इसको केवल टीका द्वारा ही रोका जा सकता है, जिससे कि शरीर में इस वायरस के विरुद्ध एंटीबॉडीज बन जाएं। ताकि जब भी यह वायरस शरीर को रोग ग्रसित करने लगे तो एंटीबॉडीज उसको रोक दें और रोग नहीं होने दें। टीके के अतिरिक्त शरीर में रोग को पुनः होने से रोकने के लिए एंटीबॉडीज संक्रमित व्यक्ति में विकसित हो जाते हैं, जिससे उसे दोबारा वह रोग नहीं होता है। कोविड-19 के संबंध में भी यह मानना उचित होगा कि संक्रमित होने और ठीक होने के बाद जीवनपर्यन्त प्रतिरोधक क्षमता बनेगी। वैज्ञानिकों के अनुसार अगर 60 प्रतिशत व्यक्तियों में यह प्रतिरोधकता आ जाती है तो शेष व्यक्ति अपने आप प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर लेंगे। इसे हर्ड प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं।
अगर रोग का कोई टीका हो तो उससे भी प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त की जा सकती है। लेकिन कोविड-19 का टीका बनने में अभी समय लगने की संभावना है। ऐसे में रोग के माध्यम से हर्ड का एक विकल्प हो सकता है। इस विकल्प में अनेक अनिश्चितताएं हैं। पर संभव है कि यह रोग उन व्यक्तियों में अधिक से अधिक फैले जिनमें यह गंभीर रूप नहीं ले पाए और वे सभी बिना कोई लक्षण के या बहुत ही कम लक्षणों के साथ ठीक हो जाएं और उनमें प्रतिरोधक क्षमता बन जाए। अभी तक कोविड -19 से संक्रमित व्यक्तियों में पुरुष अधिक संक्रमित हुए हैं और महिलाएं कम। संक्रमित होने वाले व्यक्तियों की औसत आयु 47-49 वर्ष है और मृतकों की औसत आयु 76-80 वर्ष है। अर्थात मृत होने वाले अधिकतर व्यक्ति 75 वर्ष से अधिक आयु के ही हैं और उनमें भी अधिकतर ऐसे हैं जो अन्य रोग जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दमा अथवा हदय रोग से ग्रसित हैं। अतः इस रोग को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि जो व्यक्ति 55 वर्ष से अधिक आयु के हैं, उन्हें संक्रमित होने से बचाया जाए। इस रोग से अभी तक 9 वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे की मृत्यु नहीं हुई है, अर्थात इससे यह अर्थ निकाला जा सकता है कि यह रोग बच्चों में गंभीर रूप नहीं लेता है और वे सभी ठीक हो जाते हैं। ऐसे में क्या 9 वर्ष से छोटे बच्चे जिनकी संख्या भारत में लगभग 25 प्रतिशत है, का उपयोग हर्ड प्रतिरोधक क्षमता बनाने में किया जा सकता है। यह एक जोखिम वाला काम है, पर इसकी संभावना विपत्ति के समय तलाशी जा सकती है ।
जर्मनी के हेम्बर्ग विश्वविद्यालय ने सन 2020 के प्रथम दो माह में विश्व में हुई मौतों का जो आंकड़ा दिया है, उसके अनुसार फरवरी माह के अंत तक विश्व में 11,77,141 रोगी कैंसर से, 2,40,950 एचआईवी से, 1,53,696 मलेरिया से, 69,602 की साधारण जुकाम से मृत्यु हुई थी।
अमेरिका की जोस होपकिन्स विश्वविद्यालय ने एक गणितीय मॉडल के आधार पर यह दिखलाया है कि भारत अगर इस तालाबंदी को सफलतापूर्वक लागू करता है तो उसके यहां लगभग 12 करोड व्यक्ति संक्रमित होंगे और इसका अधिकतम स्तर मई 2020 के तीसरे अथवा चौथे सप्ताह में होगा। कुछ इसी प्रकार की स्थिति लंदन के इम्पीरियल
महाविद्यालय और अमेरिका के ही मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआइटी) ने भी दर्शाई है। उनके अनुसार तालाबंदी से संक्रमण प्रसार रुकेगा और कम व्यक्ति संक्रमित होंगे लेकिन यह लंबे समय तक बना रहेगा। इसके विपरित बिना लॉकडाउन के तेजी से संक्रमण होने से अधिक व्यक्ति रोगग्रस्त होते पर यह कम समय में समाप्त होता। ऐसी विडंबना भरी परिस्थिति में ब्राजील, मेक्सिको, जापान एवं कुछ समय तक ब्रिटेन ने लॉकडाउन न करने का निर्णय लिया और वे अभी गलत सिद्ध नहीं हुए हैं।
भारत में इस रोग से निपटने और प्रकोप को कम करने के लिए अत्यन्त गंभीर तैयारी की जा रही है। इसके लिए प्रत्येक जिले में रोगियों एवं शंकित व्यक्तियों को अलग रखने के लिए बड़े पैमाने पर पंलगों की व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त आइसीयू और वेन्टीलेटर भी इसके लिए तैयार किए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मासिक ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस जिसके माध्यम से टीकाकरण एवं प्रसूति जांच की जाती थी, उसे भी बंद कर दिया गया है। आकस्मिक ऑपरेशन के अलावा अन्य सभी ऑपरेशन टाल दिए गए हैं। निजी क्षेत्र को भी सहयोग हेतु पाबंद कर दिया गया है। वैसे चीन जहां पर यह रोग अप्रत्याशित रूप से प्रारम्भ हुआ वह अब कह रहा है कि उनके देश में यह समाप्ति के कगार पर है। लेकिन यह जो लॉकडाउन है और इसके कारण से लोगों के रोजगार छिन गए हैं और भूखे रहने की स्थिति बनती जा रही है। विकल्प के रूप में अगर पूर्ण लॉकडाउन के स्थान पर आवश्यकतानुसार लक्षित लॉकडाउन को अपनाया जाता तो अधिक बेहतर होता।
(लेखक जन स्वास्थ्य अभियान के नेशनल को-कन्वीनर हैं)
----------------------------------------
इस परिस्थिति में भी ब्राजील, मेक्सिको, जापान और कुछ समय तक ब्रिटेन ने भी लॉकडाउन नहीं किया है