आजकल के क्रिकेट सितारे न साहित्य पढ़ते हैं और न ही पुरानी उपलब्धियों का ज्ञान हासिल करने में दिलचस्पी दिखाते हैं। मुझे याद है, कोलकाता में वीनू मांकड़ और पंकज रॉय के फोटो को देखकर एक महान भारतीय बल्लेबाज ने पूछा था, “पंकज रॉय तो प्रणब रॉय (चयनकर्ता) के पिता हैं, पर यह दूसरा खिलाड़ी कौन है?” भारतीय और विश्व क्रिकेट के इतिहास से जो परिचित हैं, वे जानते हैं कि वीनू मांकड़ क्रिकेट इतिहास के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ आलराउंडर्स में से एक माने जाते हैं। उन वीनू मांकड़ के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करके उस महान भारतीय बल्लेबाज ने यह दिखा दिया कि आज का भारतीय खिलाड़ी अनुबंधों, धन-दौलत पर ही नजर रखता है। अन्य बातों से कोई सरोकार भला उसे क्यों हो?
महान सुनील गावसकर से करीब 40 वर्ष छोटे भारतीय कप्तान विश्व प्रसिद्ध विराट कोहली ने इसी अल्प ज्ञान के कारण कह दिया कि भारत को जीत और आक्रामकता की राह ‘दादा’ यानी सौरव गांगुली ने दिखाई। उनके ऐसा कहने के पीछे भारतीय क्रिकेट के पुराने इतिहास के प्रति उदासीनता तथा सौरव गांगुली के भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की कमान संभालने वाली बात भी हो सकती है। आज का खिलाड़ी अपने तात्कालिक हितों की रक्षा के प्रति बहुत ही जागरूक होता है। फिर इस बात में सच्चाई तो है कि सौरव गांगुली के नेतृत्व में विदेशियों से आंखों से आंखें मिलाकर मुकाबला करने की ताकत दिखाई दी थी। लॉर्ड्स की बालकनी से कमीज उतार कर जोश से हवा में लहराने की उनकी अदा हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी के मन में घर कर गई थी।
विराट कोहली के वक्तव्य ने सुनील गावसकर को कुछ हद तक आहत किया, क्योंकि आज भारत अगर पहली पायदान पर है, तो इसके पीछे सौरव गांगुली से भी पहले के कालखंड के सुनील गावसकर, अजीत वाडेकर, कपिलदेव, कर्नल सी.के. नायडू, विजय हजारे, लाला अमरनाथ, दिलीप सरदेसाई, पॉली उमरीगर और स्पिन के जादूगर ई. प्रसन्ना, बिशन सिंह बेदी, चंद्रशेखर तथा वेंकटराघवन जैसी प्रतिभावान हस्तियों का हाथ था। सन 1971 में अजीत वाडेकर के नेतृत्व में भारत ने इंग्लैंड को इंग्लैड में हराया तथा वेस्टइंडीज को वेस्टइंडीज जाकर हराया। वेस्टइंडीज तब विश्व क्रिकेट की सबसे बड़ी और ताकतवर टीम मानी जाती थी। एंडी रॉबर्ट्स, माइकल होल्डिंग, मैलकम मार्शल तथा कॉलिन क्रॉफ्ट की तूफानी चौकड़ी विश्व क्रिकेट के नामी-गिरामी बल्लेबाजों को धूल चटा चुकी थी। पर भारत ने उन्हें उनके घर में हराया तो क्रिकेट की दुनिया आश्चर्यचकित रह गई।
विराट कोहली अपनी कप्तानी और बल्लेबाजी में बेहतर प्रदर्शन तथा नतीजे दिखा रहे हैं, तो इसका कारण है विश्व क्रिकेट में ताकत का बदलता समीकरण व परिस्थितियां। आज जिस प्रकार का तेज आक्रमण भारत के पास है, वैसा भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कभी नहीं रहा। तेज गेंदबाज हमेशा जोड़ियों में अपना शिकार करते हैं। विकेटों के गिरने की संभावना तभी बनती है, जब दबाव दोनों छोर से हो। पहले ऐसा नहीं होता था। सन 1932 में अगर तेज गेंदबाज मोहम्मद निसार अकेले किला लड़ाते थे, तो बाद में रमाकांत देसाई ने वही काम किया। कपिलदेव ने जरूर स्विंग गेंदबाजी की अद्भुत क्षमता दिखाई और उनकी आउटस्विंगर क्रिकेट इतिहास की मारक गेंद के रूप में शुमार होती है। पर उन्हें भी दूसरे छोर से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता था। जवागल श्रीनाथ और जहीर खान को अकेले ही संघर्ष करना पड़ा। पर आज तो बुमराह, शमी, ईशांत, उमेश यादव तथा भुवनेश्वर कुमार के रूप में विकेट टपकाने वाले तेज गेंदबाजों की जोड़ियां नसीब हो गई हैं।
पहले बाउंसरों की भी कोई सीमा नहीं थी और विकेट्स भी ढंके हुए नहीं होते थे। अब तो सारा दृश्य ही बल्लेबाजों के पक्ष में हो गया है। ऐसे में तकनीकी रूप से सक्षम बल्लेबाज रनों की अच्छी फसल काट सकते हैं। विराट कोहली जब ऐसी पिचों पर खेलते हैं तो लगता है, उन्हें आउट करना टेढ़ी खीर है। फिर गेंदबाजी का स्तर दुनिया भर में गिर गया है। न तो अब रॉबर्ट्स, होल्डिंग, मार्शल, टॉमसन, लिली और वसीम अकरम का तूफान है और न ही बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर जैसी स्पिन की जादूगरी। गेंदबाजी के मामूलीपन के इस दौर में भारतीय तेज आक्रमण निखर कर सामने आया है। यही कारण है कि भारत आज आर्थिक और मैदानी तौर पर विश्व क्रिकेट के सिंहासन पर बैठा है।
टेस्ट क्रिकेट के प्रति गिरती अभिरुचि एक चिंता का विषय बन गई है। क्रिकेट खेल के बजाय व्यवसाय बनता जा रहा है। शास्त्रीय क्रिकेट को सर्वोपरि मानने वालों का इस कारण दिल बैठा हुआ है। टेस्ट क्रिकेट की लोकप्रियता पर एक दिवसीय क्रिकेट और टी-20 क्रिकेट का कामयाब हमला हो गया है। दूधिया रोशनी में बल्लेबाजों के लिए रनों की फसल देने वाली आसान पिचों पर चौके-छक्कों की बरसात होने लगी है। इसे देखकर दर्शक रोमांचित हैं। नए दर्शक भी खेल से जुड़ गए हैं। क्रिकेट का ज्ञान आवश्यक नहीं रह गया है। महिलाएं व पग्गड़धारी किसान भी क्रिकेट देखने लगे हैं। सिनेमा में तीन घंटे बिताने से तो यह मनोरंजन उन्हें बेहतर लगता है। खेल को ग्लैमर के साथ जोड़ दिया गया है और आधे-अधूरे कपड़े पहने बालाएं चीयरलीर्डस की भूमिका में दिखाई देने लगी हैं। क्रिकेट खिलाड़ी अब नायक नहीं, महानायक बन चुके हैं।
इसीलिए जब आवाजें उठती हैं कि टेस्ट क्रिकेट, यानी असली क्रिकेट की रक्षा होनी चाहिए, तब नियमों में परिवर्तन की जरूरत महसूस की गई। टेस्ट क्रिकेट में रोमांच भरने के लिए गुलाबी गेंद से दिन व रात वाला टेस्ट क्रिकेट भी खेला जाने लगा है। भारत जैसे देश में जहां बिजली की कमी के कारण किसानों की फसलें खराब हो रही हैं, वहां फ्लड लाइट क्रिकेट खेलकर मनोरंजन के नाम पर बिजली का व्यय होना चिंताजनक है। मैदानों को हरा रखने के लिए कितने ही किलोलीटर पानी का इस्तेमाल हो रहा है। फिर भले ही पानी की कमी के कारण सूखती फसल को देखकर किसान आत्महत्या ही क्यों न कर रहा हो?
ऐसी स्थिति में जब क्रिकेट से जुड़ी हर खबर प्रमुख समाचार बन जाती है, दिलचस्प खबरें बनाकर परोसना भी एक व्यावसायिक कुशलता की बात मानी जाने लगी है। लोग क्रिकेट के अलावा यह भी जानना चाहते हैं कि किस क्रिकेटर का किस अभिनेत्री के साथ रोमांस चल रहा है। शृंखला तथा प्रतिस्पर्धा को और अधिक दिलचस्प बनाने के लिए ‘युद्ध संसार’ की रचना भी की जाती है। जहां बात मामूली हो, वहां भी विवाद पैदा करके लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश होती है। गावसकर और विराट कोहली के बीच ट्विटर पर नोक-झोंक हमारे प्रचार तंत्र की इसी सक्रियता का नतीजा है। गावसकर ने तो अपने एक वक्तव्य में साफ कर दिया है कि “मैदान पर तो उनकी महत्वाकांक्षाओं का अंबार है, पर मैदान से बाहर कोई महत्वाकांक्षा नहीं है।” पर क्या विराट कोहली की व्यावसायिक तीक्ष्णता को देखते हुए हम यह बात उन पर भी लागू कर सकते हैं? शायद नहीं! इसीलिए तो हम कहते हैं कि आदमी पैसे को नहीं, पैसा आदमी को चला रहा है। इसीलिए तो बात का बतंगड़ बनाना एक आम बात हो गई है।
(लेखक जाने-माने स्पोर्ट्स कमेंटेटर हैं)
गावसकर के अनुसार, मैदान पर उनकी महात्वाकांक्षाओं का अंत नहीं, लेकिन मैदान से बाहर कोई महत्वाकांक्षा नहीं। क्या कोहली पर यह बात लागू कर सकते हैं