दीपिका पादुकोण अपनी नई फिल्म छपाक में एसिड अटैक सर्वाइवर लक्ष्मी अग्रवाल की भूमिका निभा रही हैं। 2018 में आई पद्मावत के अप्रतिम खूबसूरत स्त्री के किरदार से यह बिलकुल अलग है। लेकिन दीपिका के लिए यह बदलाव सहज है। आउटलुक के गिरिधर झा के साथ बातचीत में, भारत की सबसे अधिक कमाई करने वाली इस अभिनेत्री ने अपने कॅरिअर और जीवन के बारे में बातें कीं। उन्होंने यह भी बताया कि किस बात ने उन्हें निर्माता बनने के लिए प्रेरित किया और क्यों नए लोगों के साथ काम करने में उन्हें कोई झिझक नहीं है, वह क्या है जिसने उन्हें निजी जीवन में अवसाद से जूझने और वापसी की लड़ाई के लिए तैयार किया। साक्षात्कार के प्रमुख अंश:
एक अभिनेत्री, निर्माता और महिला के रूप में छपाक आपके लिए कितनी महत्वपूर्ण है? एसिड अटैक सर्वाइवर के जीवन पर बनी बायोपिक समाज के लिए कितनी अहम है?
यह बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म है। अभिनेता के तौर पर तो यह और महत्वपूर्ण है, क्योंकि मैं सोचती हूं कि जहां मैं हूं वहां से ज्यादा लोगों को प्रभावित कर सकती हूं। फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सब एसिड हिंसा के बारे में तो जानते हैं, पर मुझे नहीं लगता कि हम इसके गंभीर परिणामों से वाकिफ हैं। ऐसी घटनाएं बड़ी तादाद में होती हैं। इसलिए जरूरी है कि मैं उन लड़कियों की जिजीविषा पर रोशनी डालूं, जो लड़कर वापसी करती हैं। चाहे वह लक्ष्मी हो या दूसरी पीड़िताएं जिनसे मिलने का मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे हारी नहीं, बल्कि अटैक के बाद विजेता की तरह सामने आईं और हम सभी के लिए प्रेरणा बन गईं।
भारत में अब भी एसिड अटैक हो रहे हैं। क्या आपको लगता है कि छपाक इसे खत्म करने के बारे में ठोस संदेश दे पाएगी?
क्यों नहीं! मैं मानती हूं कि फिल्म विभिन्न स्तरों पर दर्शकों से बात करती है। यह हिंसा के प्रभाव के बारे में, उन्हें शिक्षित करने के बारे में है। यह हमारे देश में अपराधों की संख्या के बारे में बात करती है और उस कठोर वास्तविकता के बारे में भी, जिनका सामना लड़कियों को करना पड़ता है। यह उनके लड़ने की भावना और न्याय व्यवस्था पर भी बात करती है। निर्देशक मेघना गुलजार इन सभी को कहानी के साथ बुनने में सफल रही हैं।
व्यावसायिक ब्लॉकबस्टर के बीच आपने खेले हम जी जान से (2010), आकर्षण (2011) और पीकू (2015) जैसी सार्थक भूमिकाएं की हैं। क्या हम कह सकते हैं कि आप अपनी नई फिल्म के साथ अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकल रही हैं? क्या आपके अब तक के कॅरिअर में छपाक सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिका है?
मैंने यह नहीं कहा कि मैं अपने कम्फर्ट जोन से बाहर आ रही हूं, लेकिन हां, मेरे लिए यह अब तक का सबसे चुनौतीपूर्ण किरदार है। इसने मुझे शारीरिक और भावनात्मक दोनों रूप से प्रभावित किया है।
जब मेघना गुलजार कहानी सुनाने आईं, तो आप पूरी स्क्रिप्ट सुने बिना ही फिल्म के लिए तैयार हो गईं। ऐसा क्या खास था जिसने अभिनेता के तौर पर आपको आकर्षित किया?
इसमें छिपे संदेश ने, जो मानवीय भावना की लड़ाई और जीत से भरा था, और मेघना गुलजार की ईमानदारी ने भी! फिल्म निर्माता के रूप में मैं उनके विश्वास और ईमानदारी को महसूस कर सकती थी। मैं उनकी आंखों में ईमानदारी देख सकती थी। वे लंबे समय से इस कहानी के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ी थीं। वह इस कहानी को बड़े परदे पर लाने के लिए उत्सुक थीं। उनके साथ मैंने एक भावनात्मक रिश्ता महसूस किया। मेरे लिए विषय का आकर्षण यही था।
रोल की तैयारी से पहले जाहिर है आप लक्ष्मी अग्रवाल से मिली होंगी। जब आपने उनकी कहानी उन्हीं से सुनी तो आपको कैसा लगा?
मैं उनसे कई बार मिली लेकिन मैं पूरी बातें उनसे सुनना नहीं चाहती थी। मैं नहीं चाहती थी कि वे मुझे दोबारा वही सब सुनाएं जिससे वो गुजरी हैं। मैं उनसे मिली क्योंकि मैं उनके जीवन की बारीकियों को पकड़ना चाहती थी।
लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी प्रेरणादायक है। उनके चरित्र को वास्तविकता में उतारने के लिए आपने क्या किया? इसे वास्तविक बनाने के लिए क्या आप किसी विशेष प्रक्रिया से गुजरीं?
आप कई बार स्क्रिप्ट पढ़ सकते हैं, तैयारी के लिए निर्देशक से बातचीत कर सकते हैं, लुक टेस्ट या कॉस्ट्यूम टेस्ट भी कर सकते हैं। बाहरी परिवर्तन के लिए आप यह सब कर सकते हैं, लेकिन भावनात्मक परिवर्तन तभी होता है जब आप इस चरित्र को निभाना शुरू करते हैं। मेरे लिए वास्तविक परिवर्तन ‘एक्शन’ और ‘कट’ के बीच होता है। लक्ष्मी अपनी जिंदगी में जिन हालात से गुजरीं, उसे मैं अभिनय करते वक्त खोज रही थी। यह कुछ ऐसा होता है जिसके लिए आप तैयार नहीं रहते। आप सिर्फ कल्पना कर सकते हैं कि वो पल कैसा था। लेकिन जब आप वास्तव में शूटिंग शुरू करते हैं तब आप उसे महसूस करते हैं।
अभिनेता प्रोस्थेटिक और वेशभूषा के जरिए उस व्यक्ति जैसा दिख सकता है जिसका किरदार वह निभा रहा है। लेकिन आखिरकार अभिनेता को किसी भी बायोपिक में भावनाओं को खुद दिखाना पड़ता है। आपने यह कैसे किया?
आप चलने या बातचीत के तरीके से उस चरित्र की तरह दिख सकते हैं। इससे शारीरिक यानी बाहरी परिवर्तन तो हो सकता है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा भावनात्मक परिवर्तन है। मेरे मामले में, इस परिवर्तन का कुछ हिस्सा प्री-प्रोडक्शन की तैयारी के दौरान हुआ और कुछ हिस्सा भूमिका निभाने के दौरान। इसकी तैयारी के लिए आपको उस पल को जीना और अनुभव करना होता है।
आपके पति और कई फिल्मों में सह-कलाकार रणवीर सिंह, अपनी हर भूमिका के लिए विशेष तैयारी करते हैं। पद्मावत में अलाउद्दीन खिलजी का नकारात्मक चरित्र निभाने के लिए उन्होंने महीनों खुद को अपार्टमेंट में बंद कर लिया था। क्या आप भी वैसी तैयारी में विश्वास करती हैं?
किसी अभिनेता के लिए इस तरह की तैयारी बहुत ही व्यक्तिगत होती है। हर फिल्म के लिए प्रक्रिया एक समान भी नहीं होती। यह फिल्म की जरूरत पर निर्भर करता है। हर अभिनेता के पास किसी भी चरित्र को चित्रित करने का अलग तरीका होता है। मुझे नहीं लगता कि किसी विशेष भूमिका के लिए कोई तयशुदा फार्मूला हो सकता है।
छपाक के साथ आप निर्माता बन गई हैं। क्या इस फिल्म के पहले से आप अपना प्रोडक्शन हाउस बनाने की सोच रही थीं या स्क्रिप्ट सुनने पर यह सहज प्रक्रिया थी?
यह सहज प्रतिक्रिया थी, हालांकि प्रोड्यूसर बनना पहले से ही योजना में था। मैं सही फिल्म का इंतजार कर रही थी। हम प्रोडक्शन हाउस की तैयारी कर रहे थे और जब मेघना ने विषय सुनाया, तो लगा निर्माता के रूप में इस फिल्म के साथ जुड़ने पर वास्तव में मुझे गर्व होगा। मुझे लगा यह अलग तरह की फिल्म है जिसे ज्यादा समर्थन और सहारे की जरूरत थी।
सुपरस्टार होते हुए आप किसी स्टार के साथ बड़े बजट की व्यावसायिक फिल्म बना सकती थीं, लेकिन निर्माता के रूप में आपने छोटी लेकिन गंभीर, सार्थक फिल्म छपाक चुनी। आपके बैनर तले आगे आने वाली फिल्में क्या इसी तरह की होंगी?
ऐसा नहीं है कि मैं केवल गंभीर कहानियों पर फिल्में बनाऊंगी, लेकिन मैं सार्थक फिल्में बनाना चाहूंगी। हालांकि, जरूरी नहीं कि हर फिल्म सामाजिक हो। ऐसा हो भी नहीं सकता। कुछ ऐसी फिल्में हों जो मेरे चेहरे पर मुस्कान लाएं या मुझे प्रतिबिंबित करें। पीकू बड़े बजट की ब्लॉकबस्टर फिल्म नहीं थी लेकिन उसमें सुंदर भावनाएं थीं। मुझे लगता है कि यह बताना अभी जल्दबाजी होगी। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ेंगे पता चलता जाएगा। मैं खुद को बांधना नहीं चाहती। हालांकि निर्माता के रूप में भी मेरी पसंद वही होगी जो अभिनेता के रूप में होती है, अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनना।
अब तक चुनिंदा नायिकाएं ही कॅरिअर की ऊंचाई पर निर्माता बनीं। आप दोनों भूमिकाएं किस तरह निभाएंगी?
एक्टिंग के साथ निर्माता के रूप में काम करना चुनौतीपूर्ण होता है। तब तो और चुनौतीपूर्ण हो जाता है जब निर्माता ही फिल्म में अभिनय कर रहा हो। लेकिन यह आपको समझने की जरूरत है कि किस वक्त आप कौन सी भूमिका निभाना चाहते हैं। छपाक की शूटिंग के दौरान मैं प्रोडक्शन में शामिल नहीं होती थी, शूटिंग खत्म होने के बाद यह काम करती थी।
एक निर्माता के रूप में बॉक्स ऑफिस कितना महत्वपूर्ण होगा?
निर्माता के रूप में यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि फिल्म बजट के भीतर रहे। लेकिन छपाक जैसी फिल्म बजट से आगे निकल जाती है। एक अभिनेता और एक निर्माता के रूप में यह हमारी सफलता होगी कि अगर हम लोगों के जीवन और समाज में परिवर्तन की शुरुआत करने में सक्षम रहें। मेरे लिए, इसकी सफलता का पैमाना बॉक्स ऑफिस नहीं है। प्रासंगिक वह बदलाव है जिसे हम समाज में ला सकेंगे।
आपके पास इस वर्ष कई रोमांचक फिल्में हैं। आपकी अगली फिल्म क्रिकेट आइकन कपिलदेव की बायोपिक 83 है, जिसमें आप कपिल की पत्नी रोमी का किरदार निभा रही हैं।
फिल्म में यह बहुत ही छोटा हिस्सा है। मुश्किल से पांच या छह सीन हैं। लेकिन कहानी में यह महत्वपूर्ण है क्योंकि फिल्म में दर्शक कपिलदेव के भावनात्मक और कमजोर पक्ष को उनके चरित्र के माध्यम से देख पाएंगे। प्रकाश पादुकोण की बेटी होने के नाते मैंने देखा कि मेरे पिता की सफलता की यात्रा में मेरी मां की भागीदारी थी। यह मेरे लिए रोमी देव की भूमिका निभाने का भावनात्मक निर्णय था।
आप विक्रांत मैसी के साथ छपाक कर रही हैं। सिद्धार्थ चतुर्वेदी के साथ भी एक फिल्म साइन की है। यह आपकी बहादुरी ही है कि आप नए लोगों के साथ फिल्में कर रही हैं...
मैं कभी किसी फिल्म में स्टार कास्ट, निर्देशक या निर्माता के प्रलोभन में नहीं फंसती। मुझे केवल ऐसी फिल्मों का लालच होता है, जिनमें कहानियां कुछ कहती हों, भले ही इसका मतलब सिद्धांत या विक्रांत के साथ काम करना हो। मेरे लिए कलाकारों को कास्ट करना निर्देशक की जिम्मेदारी है और मैं इस पर कभी सवाल नहीं उठाऊंगी। मैं मानती हूं कि सिद्धांत और विक्रांत अपनी भूमिकाओं के लिए सही हैं।
आपने ऐसा मुकाम हासिल किया है जो कुछ सुपरस्टार के लिए बहुत मुश्किल हो सकता है। वे किसी न किसी बहाने महिला समकक्षों के साथ काम करने से बचते हैं...
मैंने इस बारे में कभी नहीं सोचा और मैं दूसरों की तरफ से जवाब कैसे दे सकती हूं, उनसे पूछिए।
ओम शांति ओम (2007) के साथ हिंदी सिनेमा में शुरुआत करने के बाद 12 साल से अधिक समय बीत चुका है। अपनी यात्रा को कैसे देखती हैं?
इस दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा। हर फिल्म और हर चरित्र ने मेरे जीवन को प्रभावित किया।
आपके कॅरिअर में एक समय ऐसा भी था जब आपकी फिल्में नहीं चल रही थीं और आप निजी जीवन में अवसाद से जूझ रही थीं। आपने उस विफलता को कैसे संभाला?
दोनों फेज का आपस में कोई संबंध नहीं है। जब मेरा कॅरिअर कहीं नहीं जा रहा था, वो बिलकुल अलग समय है। डिप्रेशन मुझे तब हुआ जब व्यावसायिक मोर्चे पर सब बढ़िया चल रहा था। इसलिए दोनों बातों को जोड़ा नहीं जा सकता। मैं ऐसी हूं जो हमेशा पीछे मुड़ कर यह देखती हूं कि आखिर कुछ काम क्यों नहीं हुए, या आखिर क्यों मैंने फलां चीज चुनी, या मैंने अपने पुराने अनुभव से क्या सीखा या मेरा रास्ता क्या था? इसलिए बीता हुआ वक्त फिर से मेरे लिए सीख से भरा होता है।
आप उनके लिए आदर्श हैं, जो अवसाद के समान अनुभव से गुजर चुके हैं। आप ऐसी हस्ती हैं, जिसने अपने अनुभव के बारे में खुलकर बात की। लेकिन क्या तब कभी आपने सोचा कि सब कुछ छोड़ कर अपने घर बेंगलूरू लौट चलें?
बेशक, मैंने सबकुछ छोड़ देने के बारे में सोचा था। उन दिनों मुझमें जागने की ताकत नहीं थी, काम करने की ताकत नहीं थी। मेरे पास कुछ भी करने की प्रेरणा नहीं थी। अवसाद के चरम पर मेरे विचार ऐसे ही थे। मैंने बेंगलूरू लौटने के बारे में सोचा था, लेकिन इन सब से परे, मेरे अंदर एक आवाज थी जो मुझसे कहती थी, “धैर्य रखो”, “यह भी बीत जाएगा” और “तुम इससे लड़ सकती हो।” नकारात्मक विचार थे, लेकिन एक गहरी और बुलंद आवाज भी थी, जो कहती थी कि मैं इससे बाहर आ जाऊंगी।
क्या फिल्म उद्योग महिलाओं के लिए काम करने के लिए अच्छी जगह है? जब आपने शुरू किया था, तब यह इंडस्ट्री कैसी थी?
मैंने अपने कॅरिअर की शुरुआत एक महिला निर्देशक (फराह खान) के साथ की थी। इसलिए मैं वास्तव में इस पर टिप्पणी नहीं कर सकती कि माहौल कैसा था। कई महिलाएं हैं जो इस पेशे में नहीं आना चाहतीं। लेकिन आज हर विभाग में महिलाएं हैं। यह इसलिए संभव हुआ है क्योंकि महिलाएं अब अलग चीजें करना चाहती हैं, और इसलिए भी कि समाज इसे स्वीकार करने लगा है।
अब कंटेंट पहले से कहीं ज्यादा सफलता की कुंजी बन गया है। क्या आपको लगता है कि दर्शक अब समझदार हो चुके हैं और स्टार सिस्टम खत्म हो जाएगा?
बिलकुल। हम जो कर रहे हैं वह इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि इसकी बहुत मांग है। दो-तीन साल के दौरान बिना किसी बड़े सितारे के कई छोटे बजट की फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन फिल्मों में कौन स्टार था। मुझे लगता है हम एक ऐसे युग में जा रहे हैं, जहां स्टार सिस्टम आखिरकार खत्म हो जाएगा।
XXX: रिटर्न ऑफ जेंडर केज (2017) के बाद, हॉलीवुड का कोई और प्रोजेक्ट है?
अभी किसी विदेशी प्रोडक्शन में काम नहीं कर रही हूं। मुझे हॉलीवुड और दूसरी फिल्मों में अंतर करना पसंद नहीं है। मुझे लगता है अब सिनेमा वैश्विक हो गया है। किसी छोटे देश की छोटी सी फिल्म को भी पूरे विश्व में नोटिस किया जाता है। कई मायनों में छपाक ऐसी ही फिल्म है जो वैश्विक तौर पर प्रासंगिक है।
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लक्ष्मी से मैंने ज्यादा बात नहीं की। मैं नहीं चाहती थी कि उन्हें वे सब बातें दोहरानी पड़ें जिन्हें उन्होंने झेला है
(दीपिका छपाक में लक्ष्मी की भूमिका निभा रही हैं)