तख्त कितना ही छोटा हो पर मौजूदा सियासी माहौल में दांव कितने ऊंचे हैं, इसकी 'क्रोनोलॉजी' समझने के लिए यह काफी है कि अदनी-सी दिल्ली कैसे विवादी बोलों का मैदान बन गई, जो देश के राजनैतिक इतिहास में शायद ही भुलाए जा सकें। चाहे नतीजे कुछ भी हों मगर वह 'करंट' शायद लंबे समय तक झकझोरता रहेगा, जिसका जिक्र केंद्रीय गृह मंत्री ने चुनाव प्रचार का आगाज करते वक्त अपनी पार्टी भाजपा के कार्यकर्ताओं की बैठक में किया था। उसके बाद तो ‘गोली’, ‘आतंकवादी’, ‘शाहीन बाग की साजिश’ ऐसे फिजा में गूंजी कि अपनी सरकार के लिए दोबारा जनादेश मांग रहे आम आदमी पार्टी के नेता, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी अपनी बिजली, पानी, अस्पताल, स्कूल को भूलकर ‘दिल्ली का बेटा’ होने की ‘इमोशनल’ अपील करने लगे। यह भी गौरतलब है कि केजरीवाल और आप के नेता शाहीन बाग, जामिया और जेएनयू से दूरी बनाए रखे। तो, यह सवाल जबान पर आ जाता है कि क्या देश में खुल रही नई सियासत का दिल्ली आईना बन गई है?
बेशक, 8 फरवरी को मतदान और 11 फरवरी को मतगणना में जीत चाहे जिस पार्टी को मिले, यह चुनाव नेताओं के विवादास्पद और विभाजनकारी बयानों के लिए ज्यादा जाना जाएगा, खासकर आखिरी दिनों में जैसे तीखा और बेसिरपैर के बोल उभरे हैं। यह जानना भी कोई आसमान से तारे तोड़ने जैसा नहीं है कि आधी-अधूरी दिल्ली का तख्त इतना क्यों अहम हो गया है? यकीनन तख्त से ज्यादा वह सियासत है, जिसकी ओर देश को ले जाने की कोशिश हो रही है। वैसे, यह कोशिश हाल में ही पिछले झारखंड चुनावों में भी हो चुकी है लेकिन वहां नतीजे कुछ और आए। शायद यह भी वजह है कि इन सर्दियों में दिल्ली का पारा चढ़ाने की कोशिश की गई। लेकिन आइए पहले जानें, यह अध्याय कैसे खुला और कहां तक गया। यह भी गौरतलब है कि इसमें शीर्ष भी पीछे नहीं रहा।
अमित शाह के “ऐसा बटन दबाओ कि करंट शाहीन बाग में लगे” वाले बयान के बाद पहले भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा ने एक सभा में कहा, “कुछ साल पहले कश्मीर में जो आग लगी थी, तो वहां कश्मीरी पंडितों की बहन-बेटियों के साथ रेप हुआ था। दिल्ली वालों को सोच-समझकर फैसला करना पड़ेगा। ये लोग आपके घरों में घुसेंगे। आपकी बहन-बेटियों को उठाएंगे, उनका रेप करेंगे, उनको मारेंगे। इसलिए आज समय है। कल मोदी जी और अमित शाह जी बचाने नहीं आएंगे।” फिर वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर नमूदार हुए और एक चुनावी सभा में नारा लगवाया, ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो...’ (इशारे में जिक्र शाहीन बाग का था)। फिर, पहले जामिया और उसके बाद शाहीन बाग में फायरिंग की एक के बाद एक कई घटनाएं भी हो गईं तो आप और कांग्रेस ने इसके लिए भाजपा नेताओं की बयानबाजी को ही जिम्मेदार ठहराया। आप ने शिकायत की, तो चुनाव आयोग ने प्रवेश वर्मा के चुनाव प्रचार पर 96 घंटे और ठाकुर पर 72 घंटे की रोक लगा दी। हालांकि रोक खत्म होने के बाद ठाकुर ने कहा, “लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं। वोट का प्रयोग सही तरह से करें और बुलेट पर बैलेट भारी पड़े, ऐसा होना चाहिए।”
फिर आए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ। उन्होंने अपनी मशहूरियत को नाकाम नहीं होने दिया और बोले, “केजरीवाल तो शाहीन बाग वालों को बिरयानी खिला रहे हैं।” सिलसिला रुका नहीं। अबकी बार सबसे संयत समझे जाने वाले वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “केजरीवाल एकदम मायूस चेहरा करके पूछ रहे हैं कि क्या मैं आतंकवादी हूं? इसके बहुत सबूत हैं। आपने खुद कहा था कि मैं अराजकतावादी हूं। आतंकवादी और अराजकतावादी में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है।” इससे पहले प्रवेश वर्मा ने भी अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बताया था। उनके लिए तो चुनाव आयोग की सख्ती भी बेमानी साबित हुई। शायद इसीलिए आयोग की तरफ से रोक की अवधि खत्म होते ही उन्होंने बयान दिया, “अरविंद केजरीवाल नक्सली और देशद्रोही हैं। पाकिस्तान के मंत्री के साथ उनकी सांठगांठ है, और मैंने पहले जो बयान दिया था उस बयान पर आज भी कायम हूं।” आदित्यनाथ तो कह गए कि “केजरीवाल असामाजिक और भारत-विरोधी तत्वों के हाथों का खिलौना बन गए हैं।” भाजपा ने अपने कई मुख्यमंत्रियों, यहां तक कि जदयू के नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ले आई, ताकि बिहारी वोटों को भी तोड़ा जा सके। उसने करीब 200 सांसदों को भी प्रचार में झोंक दिया।
वैसे, भाजपा ने इस चुनाव को शाहीन बाग के जरिए सीएए और एनआरसी पर केंद्रित रखना चाहा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कड़कड़डूमा की रैली में उसे भुला नहीं पाए, “शाहीन बाग में प्रदर्शन महज संयोग नहीं, बल्कि एक प्रयोग है। इसके पीछे ऐसी साजिश है जो राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करने का इरादा रखती है।” प्रचार के आखिरी दिनों में तीनों पार्टियां घर-घर जाने के अभियान में लगीं। भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लिए अभी तक कोई चेहरा सामने नहीं आया है। उसकी इस कमजोरी को भांपते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने चुनौती दी कि भाजपा मुख्यमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम बताए, मैं उसके साथ बहस करने को तैयार हूं।
अब आइए घोषणा-पत्रों और मुफ्त बिजली पानी पर, जिसकी शुरू में भाजपा खिल्ली उड़ाती रही। लेकिन उसके घोषणा-पत्र में जरा झांकिए। भाजपा के घोषणा-पत्र में गरीबों को दो रुपये किलो आटा, कॉलेज जाने वाली छात्राओं को मुफ्त इलेक्ट्रिक स्कूटी, बिजली-पानी पर सब्सिडी जारी रखने, हर घर में शुद्ध जल की सप्लाई, 200 नए स्कूल और 10 नए बड़े कॉलेज खोलना और 10 हजार करोड़ रुपये की इन्फ्रास्ट्रक्चर योजना जैसे वादे प्रमुख हैं। फिर मतदान से सिर्फ चार दिन पहले घोषणा-पत्र जारी करने वाली आम आदमी पार्टी ने अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पानी, 24 घंटे पानी, राशन की घर पर डिलीवरी, 10 लाख वरिष्ठ नागरिकों को धार्मिक स्थलों की मुफ्त सैर कराने, हर परिवार को संपन्न बनाने, दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का प्रयास करने और 24 घंटे बाजार खोलने के पायलट प्रोजेक्ट जैसे वादे किए हैं। कांग्रेस के वादों में हर महीने 5,000-7,500 रुपये बेरोजगारी भत्ता, बिजली और पानी उपभोक्ताओं के लिए कैशबैक स्कीम, हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली, 100 इंदिरा कैंटीन खोलना जहां 15 रुपये में खाना मिलेगा, बजट का 25% प्रदूषण घटाने और परिवहन सुविधाएं बढ़ाने पर खर्च करना प्रमुख हैं।
बहरहाल, ऐसे भीषण प्रचार के बाद दिल्ली के लोगों का दिल कहां बैठता है, यह तो नतीजे के दिन ही पता चलेगा। इससे यह भी जाहिर होगा कि देश में अगली सियासी राह किधर मुड़ेगी।
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दिल्ली के चुनाव इतने अहम सिर्फ तख्त के लिए नहीं, बल्कि उस सियासत के लिए हैं, जिसकी ओर देश को ले जाने की कोशिश है