दिल्ली को 'छोटा जान के' कोई भी दावेदार शायद ही किसी तरह की गफलत पालने की गलती कर सकता है। लड़ाई कितनी बड़ी है, इसका अंदाज बतौर रिकॉर्ड आधी सदी से ज्यादा की ठिठुराती ठंड में भी राजधानी की सड़कों और विश्वविद्यालयों में उफनती सरगर्मियों से लग सकता है, जिसकी आहट समूचे देश और विदेशों तक में गूंज रही है। वैसे भी, दिल्ली के विधानसभा चुनाव देश में बेहद बंटी सियासत के इस दौर में ऐसे मुकाम पर हैं कि इस पर बहुत कुछ दांव पर लगा है। ये चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए अपने एकमात्र ठिकाने को बचाए रखकर आगे की सियासत की दिशा तय करने के लिए अग्निपरीक्षा सरीखे हैं तो भाजपा के लिए हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में 'राष्ट्रवाद' की सियासत के पिटने के बाद इसका जादू नए सिरे से वापस पाने के लिए करो या मरो जैसे हैं। तीसरे दावेदार कांग्रेस के लिए भी 2019 के लोकसभा चुनावों में बेहतर वोट प्रतिशत पाने के बाद अपने को साबित करने के आखिर मौके की तरह हैं। लेकिन इतनी अहम लड़ाई के लिए ये दावेदार कितने तैयार हैं?
यह भी गजब का संयोग है कि परीक्षा की तारीख 8 फरवरी के ऐलान होने के साथ जवाहरलाल नेहरू विवि दहकने लगा। 11 फरवरी के नतीजों में इसका और नागरिकता संशोधन कानून तथा एनसीआर के मुद्दों पर जामिया मिल्लिया इस्लामिया और दूसरी हलचलों का क्या असर होगा, यह तो बाद की बात है, मगर इनसे मुद्दे जरूर कुछ खुलने लगे हैं। सवाल यह भी है कि दिल्ली का दिल इन मुद्दों से प्रभावित होगा या फिर आप की केजरीवाल सरकार के पांच साल के कामकाज पर ही उसका मन डोलेगा?
पहले पिछले चुनावों के गणित पर नजर डालते हैं, जिनसे यह अंदाजा मिल सकता है कि किस दावेदार को कितनी मशक्कत करनी पड़ सकती है? 2015 के पिछले विधानसभा चुनाव में आप ने 54.34 फीसदी वोट पाकर 67 सीटें जीतने का रिकॉर्ड बनाया था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत घटकर 18 प्रतिशत हो गया। विधानसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ तीन सीटें ही मिलीं और वोट 32.19 फीसदी था। लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत फिर बढ़कर 46 प्रतिशत से ज्यादा हो गया। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो गया। उसका वोट 14.9 फीसदी घटकर 9.05 फीसदी रह गया था। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 22.46 प्रतिशत हो गया और कुल सात में पांच सीटों पर वह दूसरे स्थान पर रही।
तारीखों की घोषणा के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने कहा कि देश में पहली बार लोग सकारात्मक वोटिंग करेंगे। लोग अच्छे स्कूल, अच्छे अस्पताल और अच्छी सड़कों के लिए मतदान करेंगे। केजरीवाल सरकार द्वारा दी गई मुफ्त सुविधाओं का असर आम लोगों पर स्पष्ट दिख रहा है। धौलाकुआं से बदरपुर जा रही एक महिला उर्मिला कुमारी कहती हैं, “कुछ भी कहो, केजरीवाल ने काम तो किया है।” केजरीवाल ने अपनी सरकार के पांच साल पूरे होने पर रिपोर्ट कार्ड जारी कर उपलब्धियां गिनाई हैं। लेकिन भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी कहते हैं कि केजरीवाल सरकार ने जनता के लिए कुछ नहीं किया। उसके दावे जनता को गुमराह करने वाले हैं। भाजपा दिल्ली मीडिया प्रमुख अशोक गोयल कहते हैं कि पहले टैंकरों के जरिए गरीबों की बस्तियों में लोगों को साफ पानी मिल जाता था, लेकिन अब उन्हें बोतलबंद पानी खरीदना पड़ रहा है।
भाजपा नेता कहते हैं कि केजरीवाल सरकार हर मोर्चे पर फेल रही है। महिलाओं को मुफ्त बस सेवा तो मुहैया कराई, लेकिन बसों की संख्या घटने से सेवाएं प्रभावित हो रही हैं। सरकार मोहल्ला क्लीनिक की बात करती है, लेकिन वह 1,000 के बजाय सिर्फ 300 मोहल्ला क्लीनिक खोल पाई। बिजली के मामले में भाजपा का आरोप है कि केजरीवाल सरकार ने मुफ्त बिजली के नाम पर आम जनता से ज्यादा बिजली कंपनियों को फायदा पहुंचाया है। आप के रिपोर्ट कार्ड के जवाब में भाजपा ने उसके खिलाफ चार्जशीट जारी की है। कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का भी कहना है कि सरकार पूरी तरह विफल रही है। अब जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं है।
इस बार अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा बड़ा बनने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 23 अक्टूबर 2019 को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वालों को मालिकाना हक और हस्तांतरण का अधिकार देने के संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस तरह भाजपा ने 1,731 अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करके मतदाताओं को रिझाने का प्रयास किया। दूसरी ओर केजरीवाल ने 65,000 झुग्गी वालों को सर्टिफिकेट सौंपे। दिल्ली सरकार ने सर्वे करके सर्टिफिकेट में मकान का कोड, परिवार का विवरण, फोटो, वोटर आइडी नंबर और मकान में रहने की अवधि का ब्योरा दिया गया है। जबकि पीएम अनधिकृत कॉलोनी आवास अधिकार योजना के तहत केंद्रीय शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी ने 20 लोगों को रजिस्ट्री सौंपकर कहा कि हम वादा पूरा करते हैं। लेकिन दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का कहना है कि जब तक इन अवैध कॉलोनियों की जमीन का भू-उपयोग नहीं बदला जाएगा, तब तक उन्हें राहत मिलने वाली नहीं है। इन अनधिकृत कॉलोनियों में करीब 40 लाख लोग निवास करते हैं। दिल्ली के कुल 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 30 क्षेत्रों में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। वैसे एक पहलू यह भी है कि इन अनधिकृत कॉलोनियों में अधिकांश निवासी पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से संबंध रखने वाले हैं। दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा नया नहीं है। 2008 में शीला दीक्षित सरकार ने प्रोविजनल सर्टिफिकेट बांटकर लोगों को आश्वस्त करने का प्रयास किया। 2013 के विधानसभा चुनाव से एक साल पहले भी शीला दीक्षित सरकार ने इन कॉलोनियों को नियमित करने का वायदा किया था। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष का आरोप है कि केजरीवाल ने पिछले पांच साल में गरीबों के लिए एक भी मकान नहीं बनवाया। 2014 से पहले कांग्रेस सरकार ने हजारों फ्लैट बनवाए, लेकिन केजरीवाल सरकार इनका आवंटन तक नहीं कर पाई।
आप ने अपनी प्रचार रणनीति पहले ही तैयार कर ली है। इसी के तहत उसने नारा दिया है, ‘दिल्ली बोले दिल से, केजरीवाल फिर से।’ इसके अलावा बैठकें करके केजरीवाल मतदाताओं से जुड़ने और अपना संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा भी जनता से जुड़ने के साथ उनके सुझाव जुटाने में लग गई है। उसने ‘मेरी दिल्ली, मेरा सुझाव’ अभियान लांच किया है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने अभियान की शुरुआत करते हुए कहा कि 49 वीडियो रथ लोगों के सुझाव एकत्रित करेंगे।
लेकिन मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के मामले में भाजपा ऊहापोह की स्थिति में है। पार्टी ने प्रधानमंत्री मोदी के होर्डिंग लगाकर केजरीवाल के मुकाबले उन्हें चेहरा बनाने का प्रयास किया है। इससे मतदाताओं को आकर्षित करना मुश्किल होगा। केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने एक कार्यक्रम में मनोज तिवारी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बताया लेकिन दो घंटे बाद ही उन्होंने ट्वीट करके इससे इनकार कर दिया।
भाजपा के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना आसान नहीं है। दिल्ली में पिछले कुछ वर्षों में पूर्वांचली मतदाताओं की संख्या तेजी से बढ़ी है। सूत्रों का कहना है कि मनोज तिवारी को केंद्रीय नेतृत्व का समर्थन हासिल होने के कारण वह दिल्ली के चेहरा बन गए हैं लेकिन दिल्ली के स्थानीय भाजपा नेता उन्हें बाहरी मानते हैं। दिल्ली के कद्दावर नेताओं में साहिब सिंह वर्मा, मदन लाल खुराना के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और विजय गोयल हैं। लेकिन इन दोनों ही नेताओं की भूमिका सीमित दिखाई देती है। आउटलुक ने जब हर्षवर्धन से चुनावी तैयारियों पर बात करनी चाही तो वे बचते दिखाई दिए।
भाजपा टिकट वितरण के लिए हर सीट पर स्थानीय पदाधिकारियों और वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के बीच गोपनीय मतदान करवाकर राय जुटाएगी। वह 15 जनवरी तक प्रत्याशियों की सूची जारी कर सकती है। दूसरी ओर आप भी टिकट वितरण की प्रक्रिया में जुट गई है। पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि अच्छी छवि वाले विधायकों को दोबारा टिकट दिया जा सकता है। पार्टी थ्री सी यानी करप्शन, क्राइम और कैरेक्टर पर उम्मीदवारों को अवश्य परखेगी।
‘केजरीवाल सरकार पूरी तरह विफल रही है। अब जनता उनके झांसे में आने वाली नहीं है’
सुभाष चोपड़ा, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस