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6 मार्च 2023 · MAR 06 , 2023

फिल्म: बॉलीवुड की जासूसी दुनिया

पठान से यशराज फिल्म्स के साथ-साथ मंदी के दौर से गुजर रहे बॉलीवुड को भी मिली नई संजीविनी, स्पाई यूनिवर्स की फिल्मों ने साबित किया कि जेम्स बॉण्ड की खराब नकल नहीं
जलवा जासूसी काः रोमियो-अकबर-वॉल्टर, एजेंट विनोद, राजी, पठान, वॉर, एक था टाइगर, बेबी जैसी फिल्मों ने स्पाई थ्रिलर के बाजार में रौनक ला दी (दाएं से बाएं)

बॉलीवुड के रुपहले परदे पर अंडरकवर एजेंटों यानी खुफिया जासूसों का ऐसा जलवा पहले कभी नहीं दिखा। बॉक्स ऑफिस पर पठान की जबरदस्त सफलता ने ‘सीक्रेट एजेंट’ को फिलहाल हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का सबसे पसंदीदा किरदार बना दिया है। सिद्धार्थ आनंद के निर्देशन में बनी फिल्म ने न सिर्फ शाहरुख खान के करियर में नई जान फूंकी है, बल्कि निर्माता आदित्य चोपड़ा के बैनर को उसके सबसे बुरे दौर से भी उबारा है। यशराज फिल्म्स की पृथ्वीराज और शमशेरा जैसी बड़ी बजट की फिल्में पिछले साल टिकट खिड़कियों पर दर्शकों के लिए तरस गईं, लेकिन पठान ने अब उसकी भरपाई कर दी है। 25 जनवरी को प्रदर्शित होने के बाद शाहरुख खान, दीपिका पादुकोण, जॉन अब्राहम अभिनीत फिल्म ने सिर्फ दो सप्ताह में दुनिया भर में 877 रुपये का व्यवसाय कर लिया। भारत में कमाए लगभग 453 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड आंकड़ा इसमें शामिल है।

पठान में शाहरुख ने एक सीक्रेट एजेंट की भूमिका निभाई है, जो भारत को तबाह करने के दुश्मनों के मंसूबों पर पानी फेर देता है। यह फिल्म यशराज फिल्म्स की बहुचर्चित ‘स्पाई यूनिवर्स’ शृंखला की चौथी फिल्म है। इस थीम पर बनी पहली तीनों फिल्में, सलमान खान अभिनीत एक था टाइगर (2012), टाइगर जिंदा है (2017) और ह्रितिक रोशन, टाइगर श्रॉफ की वार (2019) ब्लॉकबस्टर साबित हुई हैं। ट्रेड समीक्षकों के अनुसार, लगभग 600 करोड़ रुपये में बनी इन चारों फिल्मों ने अब तक 2,300 करोड़ रुपये से अधिक का व्यवसाय किया है। जाहिर है, स्पाई यूनिवर्स की फिल्मों से यशराज फिल्म्स के साथ-साथ मंदी के दौर से गुजर रहे बॉलीवुड को भी संजीविनी की नई खुराक मिल गई है।

पठान में शाहरुख के साथ सलमान ‘टाइगर’ के जाने-पहचाने किरदार में दिखे, जो उन्होंने यशराज फिल्म्स की स्पाई यूनिवर्स की पहली दो फिल्मों में निभाया था। खबरों की मानें तो शाहरुख इस यूनिवर्स की अगली फिल्म, टाइगर 3 में सलमान के साथ दिखेंगे। उसके बाद दोनों खान सुपरस्टार हृतिक की वार 2 में भी एक साथ नजर आएंगे। इसलिए आने वाले समय में टिकट खिड़कियों पर पठान से भी बड़ा धमाल दिख सकता है। 

स्पाई यूनिवर्स की फिल्मों की व्यापक सफलता ने सबका ध्यान ऐसी ऐक्शन फिल्मों पर खींचा है, जिसमें नायक एक अंडरकवर एजेंट की केंद्रीय भूमिका निभाता है, अंग्रेजी फिल्मों के जेम्स बॉण्ड की तर्ज पर लेकिन वह बंदूक सिर्फ अपने राष्ट्र की रक्षा के लिए उठाता है।

हालांकि बॉलीवुड में स्पाई थ्रिलर का बनना कोई नई परिपाटी नहीं हैं। हाल के वर्षों में फैंटम (2015) और राजी (2018) से लेकर हाल की मिशन मजनू (2023) तक कई सफल-असफल फिल्में बनीं। फिलहाल निर्देशक अनुराग बासु रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) के मशहूर सीक्रेट एजेंट रवींद्र कौशिक की जीवनी पर आधारित एक फिल्म, द ब्लैक टाइगर पर काम कर रहे हैं। पहले इस फिल्म में सलमान खान काम करने वाले थे लेकिन उनके फिल्म छोड़ने के बाद अब नए नायक की तलाश शुरू हो गई है। पाकिस्तान में भारतीय जासूस के रूप में चर्चित कौशिक के कारनामों ने पहले भी फिल्म निर्माताओं को लुभाया है। 2018 में प्रदर्शित आर.ए. डब्लू. (रोमियो अकबर वाल्टर) भी उन्हीं की जिंदगी पर आधारित थी, जिसमें जॉन अब्राहम ने केंद्रीय भूमिका निभाई थी। फिल्म में जैकी श्रॉफ का किरदार रॉ के पूर्व प्रमुख रामनाथ काव से प्रभावित था। हालांकि द ब्लैक टाइगर कौशिक के जीवन पर बनाने वाली पहली आधिकारिक फिल्म होगी। 

इसी तरह मेघना गुलजार ने वास्तविक चरित्रों पर आधारित विक्की कौशल-अलिया भट्ट अभिनीत राजी का निर्माण किया, जो हरिंदर सिंह सिक्का की किताब, कॉलिंग सहमत पर आधारित थी। फिल्म में अलिया भट्ट ने एक कश्मीरी मुस्लिम लड़की सहमत खान की भूमिका निभाई थी, जो एक राष्ट्रवादी मिशन पर पाकिस्तानी सेना के एक बड़े अधिकारी के घर में शादी करती है और वहां से रॉ एजेंट के रूप में गुप्त सैन्य सूचनाएं अपने देश भेजती है। फिल्म बड़ी हिट साबित हुई। 

लेकिन, पठान या यशराज फिल्म्स की स्पाई यूनिवर्स की बाकी फिल्मों का असल जिंदगी के किरदारों से दूर-दूर का वास्ता नहीं। दरअसल ये सब जेम्स बॉण्ड सीरीज की अंग्रेजी फिल्मों से प्रेरित हैं, जिनमें आजकल के दौर की जरूरतों के अनुसार वीएफएक्स की मदद से ऐसे शानदार ऐक्शन दृश्य फिल्माए गए हैं, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध करते हैं। ये फिल्में हिंदी सिनेमा के उस दौर की जासूसी फिल्मों की तरह हैं, जो पूरी तरह काल्पनिक होती थीं। आज भले ही जासूसी फिल्मों में काम करने के लिए बड़े से बड़ा स्टार इच्छुक रहता हो लेकिन बीते दौर में अगर अशोक कुमार की समाधि (1950) और देव आनंद की ज्वेल थीफ (1967) जैसे अपवाद छोड़ दें तो ऐसी फिल्मों को हमेशा ‘बी-ग्रेड’ की संज्ञा दी जाती थी, जिन्हें कोई भी बड़ा अभिनेता करने से कतराता था।

दक्षिण भारत के मशहूर निर्देशक रवि नगाइच ने जब फर्ज (1967) बनानी शुरू की तो उन्होंने देसी जेम्स बॉण्ड की भूमिका के लिए सबसे पहले फिरोज खान से संपर्क किया जो उन दिनों कई छोटी बजट की फिल्मों में काम कर रहे थे। कई अन्य अभिनेताओं के इनकार करने के बाद फिल्म आखिरकार जीतेंद्र को मिली जो उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष कर रहे थे। फिल्म की अप्रत्याशित सफलता ने जीतेंद्र को रातोरात स्टार बना दिया और कई बड़े निर्माताओं की जासूसी फिल्में बनाने में दिलचस्पी जागी। उस दौर के मशहूर फिल्मकार रामानंद सागर ने आंखें (1968) जैसी सुपरहिट फिल्म बनाई, जिसकी सफलता ने धर्मेंद्र को बड़े स्टारों की श्रेणी में खड़ा कर किया। जहां तक सत्तर और अस्सी के दशक का सवाल है, रवि नगाइच को ही जासूसी फिल्मों का शहंशाह समझा जाता है। फर्ज की सफलता के बाद उन्होंने धर्मेंद्र के साथ कीमत (1973) और फिरोज खान के साथ काला सोना (1975) जैसी हिट फिल्में बनाई लेकिन उनकी फिल्म सुरक्षा (1979) ने एक नए कलाकार मिठुन चक्रवर्ती को स्टार बना दिया। इस फिल्म में मिठुन ने सीक्रेट सर्विस एजेंट गनमास्टर जी-9 की भूमिका निभाई। वैसे तो मिठुन को अपनी पहली फिल्म, मृणाल सेन की मृगया (1976) के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका था, लेकिन सुरक्षा की अप्रत्याशित सफलता ने व्यावसायिक सिनेमा में उनकी सफलता का मार्ग प्रशस्त किया। नगाइच के साथ बाद में उन्होंने वारदात (1981) और साहस (1981) जैसी फिल्मों में भी सीक्रेट सर्विस एजेंट की भूमिका निभाई। उन फिल्मों में बप्पी लाहिड़ी के संगीतबद्ध किए लोकप्रिय डिस्को गानों से मिठुन को डांसिंग स्टार का खिताब मिला, जिसकी बदौलत उन्हें डिस्को डांसर (1982) में काम मिला, जो उनके करियर की सबसे बड़ी हिट साबित हुई। उसी दौर में जीतेंद्र ने रवि नगाइच के साथ रक्षा (1982) और निर्देशक रवि टंडन की बॉण्ड 303 से अपनी देसी बॉण्ड की इमेज को फर्ज के बाद पुनर्जीवित करने की पुरजोर कोशिश की लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। 

दरअसल उस वक्त तक भारत के सिनेमाघरों में जेम्स बॉण्ड सीरीज की द स्पाई हु लव्ड मी (1977) जैसी फिल्मों का प्रदर्शन शुरू हो चुका था, जिन्हें देखने के लिए दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ती थी। उनमें से एक, ऑक्टोपसी (1983), जिसमें कबीर बेदी और टेनिस स्टार विजय अमृतराज प्रमुख भूमिकाओं में थे, की शूटिंग उदयपुर में हुई थी। भव्य स्तर पर बनाई गई उन फिल्मों को देखने के बाद भारतीय दर्शकों में उनके सस्ते देसी संस्करणों को देखने में दिलचस्पी नहीं रही।

नब्बे के दशक के रोमांटिक फिल्मों के दौर में जासूसी फिल्मों का स्थान अंडरवर्ल्ड पर बनी फिल्मों ने ले ली, लेकिन पिछले एक दशक में सलमान खान जैसे सितारों के एक था टाइगर जैसी स्पाई फिल्मों में काम करने से वह दौर लौटा। इस कड़ी में नीरज पांडेय ने बेबी (2015) और नाम शबाना (2017) और अय्यारी (2018) जैसी फिल्में बनाईं, जो रॉ एजेंटों पर आधारित थी। इस कड़ी में राजी की सफलता जासूसी फिल्मों के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई। हालांकि अभी तक किसी भी जासूसी फिल्म को वैसी सफलता नहीं मिली थी जैसी शाहरुख खान की पठान को मिल रही है। इसकी सफलता ने स्पाई जॉनर को उस मुकाम पर पहुंचा दिया है जहां वह पहले कभी नहीं पहुंची। आज चोटी के कलाकारों के कारण बॉलीवुड का स्पाई यूनिवर्स परदे पर ज्यादा रोमांचक दिखने लगा है। अब उनकी फिल्मों को जेम्स बॉण्ड की फिल्मों की खराब नकल नहीं कहा जा सकता। 

देसी जेम्स बॉण्ड के जलवे

अशोक कुमार

अशोक कुमार (समाधि)

दादा मुनि हिंदी सिनेमा के पहले बड़े स्टार थे जिन्होंने रमेश सहगल की फिल्म समाधि (1950) में एक देशभक्त जासूस की भूमिका निभाई। यह फिल्म नेताजी सुभाष चंद्र बोस के युवाओं को आजाद हिंद फौज से जुड़ने के आह्वान से प्रेरित थी।

देव आनंद

देव आनंद (ज्वेल थीफ)

गाइड (1965) में टूरिस्ट गाइड की भूमिका के बाद देव आनंद ने अपने भाई विजय आनंद के निर्देशन में ज्वेल थीफ जैसी स्पाई थ्रिलर में काम किया, जो सुपर हिट साबित हुई।

महेंद्र संधू

महेंद्र संधू (एजेंट विनोद)

आज के नौजवान दर्शक एजेंट विनोद को भले ही सैफ अली खान की फिल्म समझते हों, लेकिन इस नाम की पहली फिल्म महेंद्र संधू के नाम 1976 में दर्ज है, जिसकी सफलता ने उन्हें इंडस्ट्री में नए धर्मेंद्र के रूप में स्थापित किया।

आंखें

धर्मेंद्र (आंखें)

फर्ज की सफलता से प्रेरित होकर रामानंद सागर ने धर्मेंद्र के साथ आंखें (1968) जैसी जासूसी फिल्म बनाई, जो उस दौर की सफलतम फिल्मों में से एक थी।

सुरक्षा

मिठुन चक्रवर्ती (सुरक्षा)

मिठुन को मृगया में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के बाद भी बंबई की सड़कों पर रातें गुजारनी पड़ी लेकिन रवि नगाइच की फिल्म सुरक्षा में देसी बॉण्ड की भूमिका मिली तो उनकी किस्मत ने करवट ली।

फर्ज

जीतेंद्र (फर्ज)

कई अन्य अभिनेताओं ने फर्ज (1967) को ठुकरा दिया तो रवि नगाइच की फिल्म जीतेंद्र की झोली में आ गिरी। फिल्म की सफलता के बाद उन्होंने वापस मुड़ कर नहीं देखा। 

विश्वरूपम

कमल हासन (विश्वरूपम)

वर्ष 2013 में कमल हासन ने विश्वरूपम नामक फिल्म में एक अंडरकवर एजेंट की भूमिका अदा की। फिल्म वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की मुहिम पर आधारित थी।

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