देव आनंद सिर्फ एक कलाकार का नहीं, बल्कि फसाने का नाम है। फसाना इसलिए कि सौ साल बीत जाने के बाद भी न नाम की चमक फीकी पड़ी, न अदाकारी की। जन्मशताब्दी वर्ष में उनकी फिल्मों को फिर से सिनेमाघरों में दिखाया जा रहा है। एक पीढ़ी वह है जिसने उस दौर में पहले दिन पहला शो देखा होगा। दूसरी पीढ़ी वह है जिसने इन किस्सों को सिर्फ सुना है। दिलचस्प यह है कि दोनों पीढ़ियां मिल कर ज्वेल थीफ, गाइड, हरे रामा हरे कृष्णा, जैसी फिल्मों की फिर से गवाह बन रही हैं। राजू गाइड का जादू, ज्वेल थीफ का रोमांच, जॉनी मेरा नाम का रहस्य, क्या कुछ नहीं है देव साहब की फिल्मों में। हरे राम हरे कृष्ण का प्रशांत बहन को खोजने के लिए हर जतन करता है और हर बहन का चहेता बन जाता है। वह वही जादू जगाता है, जो उसने कभी बंबई का बाबू में जगाया था और नकली बेटा बन कर सबको रुलाया था। कुछ खास फिल्मों पर एक नजर
हर रंग कमालः 1. बंबई का बाबू, 2. बाजी, 3. देस परदेस, 4. गाइड, 5. हरे रामा हरे कृष्णा, 6. हम दोनों, 7. तेरे मेरे सपने, 8. ज्वेल थीफ, 9. जॉनी मेरा नाम, 10. प्रेम पुजारी, 11. काला बाजार, 12. टैक्सी ड्राइवर