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18 अगस्त 2025 · AUG 18 , 2025

धारावी: पुनर्विकास या विनाश

अदाणी समूह से जुड़े नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और महाराष्ट्र सरकार का धारावी को पर्यावरण के अनुकूल नया रूप देने का वादा, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग
धारावी का पुर्नविकास

धारावी के बीचोबीच मनोहर जोशी कॉलेज के कमरे में बाबूराव माने बैठे हैं। वे यहां के पूर्व विधायक और धारावी बचाओ आंदोलन (डीबीए) के नेता हैं। सामने खुले नक्शे पर इतिहास, सपने और अनिश्चितता की रेखाएं हैं। बाबूराव उस जगह को देख रहे हैं, जिसके कई साल वे प्रतिनिधि रहे। इस बार उनके चेहरे पर उम्मीद से ज्यादा थकान है। वे धीरे से कहते हैं, ‘‘यह योजना धारावी की सूरत बदल सकती है, लेकिन इसकी कीमत क्या होगी?’’ बाबूराव माने और उनके जैसे कई लोग जिनके लिए मुंबई का यह घना इलाका, जिसे ये लोग अपना घर कहते हैं, के लिए धारावी पुनर्विकास योजना सिर्फ रियल एस्टेट का बदलाव नहीं है, यह बड़ा परिवर्तन है, जो धारावी की अनोखी आर्थिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहचान को मिटा सकता है। उनकी सबसे बड़ी चिंता क्या है? पर्यावरण।

वे आगे कहते हैं, ‘‘हम, धारावी बचाओ आंदोलन के लोग, अपनी रणनीति तय करने के लिए जल्दी ही बैठक करेंगे। इस योजना में कई खामियां हैं, लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इसमें पर्यावरण और बुनियादी ढांचे पर पड़ने वाले असर को बहुत कम महत्व दिया गया है।’’

चमड़ा उद्योग पर खतरे की तलवार

धारावी की सबसे बड़ी चिंताओं में एक है, यहां का चमड़ा उद्योग। इस उद्योग को अक्सर गलत समझा जाता है। धारावी की बड़ी पहचान और टिकाऊ अर्थव्यवस्थाओं में से एक यह उद्योग है। यहां भारत की सबसे अधिक टेनरी (चमड़े के कारखाने) हैं।  धारावी में बने चमड़े के सामान दुनिया भर में भेजे जाते हैं। यह सिर्फ कारोबार ही नहीं, बल्कि कई परिवारों की पीढ़ियों से चली आ रही आजीविका का सहारा भी है।

बाबूराव माने कहते हैं कि यह केवल रोजगार की बात नहीं है। इस उद्योग से आपस में कई चीजें जुड़ी हुई हैं। यह मजबूत आर्थिक तंत्र का हिस्सा है। उन्हें यहां से हटाकर कहीं और ले जाया जाएगा, तो ये उस तरह नहीं चल पाएंगे, जैसे यहां चलते हैं।

करीब सात सौ करोड़ रुपये सालाना कमाने वाला यह कारोबार सैकड़ों प्रोसेसिंग यूनिट पर आधारित है जहां भेड़, बकरी, भैंस और गाय की खाल पर काम होता है। इसके अलावा धारावी में हजारों छोटे उद्योग चलते हैं, जैसे प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग, कपड़े का उत्पादन और पुरानी धातुओं को उपयोग लायक बनाना। इन उद्योगों के लिए केवल जगह नहीं, बल्कि पास में मजदूरों के घर, ढुलाई की सुविधा  और पर्यावरण से जुड़ी खास व्यवस्था की जरूरत होती है। जैसे कचरा साफ करने की इकाइयां और हवा के आने जाने की सही व्यवस्था।

आंकड़ों के पार

धारावी पुनर्विकास परियोजना को महाराष्ट्र सरकार और अदाणी समूह की संयुक्त भागीदारी वाली कंपनी नवभारत मेगा डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड चला रही है। यह बहुत बड़ी कंपनी है। धारावी के लगभग 620 एकड़ क्षेत्र में से 269 एकड़ को विकास के लिए योग्य माना गया है। इसमें 116.6 एकड़ लोगों के पुनर्वास और 118.4 एकड़ व्यापारिक और खुदरा उपयोग के लिए निर्धारित किया गया है। केवल 99 एकड़ को खुली जगह के रूप में रखने का प्रस्ताव है।

सरकारी आंकड़ों में धारावी की जनसंख्या बहुत कम दिखाई गई है। 2011 की जनगणना में यहां करीब 3 लाख लोग बताए गए थे, जबकि असल में अब यहां 7 से 10 लाख लोग रहते हैं। धारावी के पुनर्विकास की योजना के तहत, कई लोगों को धारावी से बाहर बसाने का प्रस्ताव है। उन्हें मुंबई के अलग-अलग इलाकों में शिफ्ट किया जा सकता है, जैसे माहिम में रेलवे की 47.5 एकड़ जमीन है, कुर्ला में मदर डेयरी की 21.5 एकड़, मुलुंड का 58.1 एकड़ का सॉल्ट पैन, मलाड का अक्सा इलाका जो 140 एकड़ में फैला है और देवनार डंपिंग ग्राउंड की 124 एकड़ जमीन इसके लिए उपयोग में ली जा सकती है। लेकिन ये सभी जगहें या तो पर्यावरण के लिए खतरे से भरी हैं या फिर कानूनी उलझनों में फंसी हुई हैं।

कमजोर जमीन और खतरनाक मिसालें

शहरी विकास विशेषज्ञ हुसैन इंदौरवाला इस योजना का गंभीरता से अध्ययन कर चुके हैं। वे इन स्थानों को पर्यावरणीय टाइम बम बताते हैं। उनका कहना है कि सॉल्ट पैन क्षेत्र मूलतः दलदल क्षेत्र है, जो बाढ़ के पानी को सोखने के काम आता है। साथ ही यह पर्यावरण के लिए बेहद अहम है। पर्यावरणीय असर का मूल्यांकन किए बिना इन पर निर्माण करना स्थायी नुकसान का कारण बन सकता है। सभी जानते हैं कि ऐसा कोई मूल्यांकन नहीं किया जा रहा है।

देवनार इलाका सबसे ज्यादा विवादास्पद है। यह मुंबई का सबसे पुराना और सबसे बड़ा कचरा डंपिंग ग्राउंड है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार ऐसे क्षेत्रों को बॉयोरिमेडिएशन की आवश्यकता होती है और वहां पंद्रह वर्षों तक कोई निर्माण नहीं किया जा सकता। लेकिन धारावी योजना सात साल के भीतर पूरी करने का लक्ष्य लेकर चल रही है।

सीपीसीबी की 2021 की गाइडलाइनों के अनुसार किसी भी बंद या सक्रिय डंपिंग ग्राउंड पर या उसके सौ मीटर के अंदर घर, स्कूल या अस्पताल नहीं बनाए जा सकते। देवनार में अब भी कचरा डाला जात है और उसे सबसे खतरनाक स्थलों में गिना जाता है। 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, यह स्थल हर घंटे 6,200 किलोग्राम मीथेन गैस छोड़ता है। यह देश के सबसे बड़े मीथेन उत्सर्जक स्थानों में एक है।

इंदौरवाला कहते हैं कि लोगों को व्यवस्थित जगह से निकालकर किसी जहरीले वातावरण में भेजा जा रहा है। यह पुनर्वास नहीं, बल्कि उपेक्षा है।

खतरनाक समझौता

धारावी बचाओ आंदोलन से जुड़े राजू कोरड़े इसे पर्यावरणीय अन्याय कहते हैं। उनका कहना है कि सरकार सक्रिय कचरा स्थल पर उद्योग बसाना चाहती है। यह केवल खतरनाक ही नहीं, बल्कि अवैध भी है। धारावी से चमड़ा और अन्य छोटे उद्योगों को देवनार ले जाने से ये कारोबार बंद भी हो सकते हैं।

महाराष्ट्र सरकार ने 2023 में देवनार के पास चमड़ा उद्योग पार्क की घोषणा की थी जिसमें सौ से अधिक शोरूम और सुविधाएं शामिल थीं। लेकिन स्थानीय लोग उस पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। चमड़ा उद्योग विकास निगम ने एक सलाहकार नियुक्त किया है लेकिन अब तक कोई समयसीमा या पर्यावरण स्वीकृति सार्वजनिक नहीं की गई है।

कोरड़े कहते हैं कि नई टेनरी या कुटीर उद्योग शुरू करने में लाखों रुपये लगते हैं और धारावी के अधिकतर छोटे व्यापारी यह खर्च नहीं उठा सकते। इसका नतीजा यह होगा कि लोग कर्ज में डूब जाएंगे या उनका कारोबार ही खत्म हो जाएगा। बाबूराव माने भी साफ कहते हैं कि धारावी के लोग कहीं नहीं जाएंगे। उनके अनुसार मुनाफे की चाह में कुछ उद्योगपति लोगों की जिंदगी से खेल रहे हैं।

बड़ी तस्वीर

धारावी सिर्फ तोड़फोड़ का नहीं, बल्कि विस्थापन का भी सामना कर रही है। वह भी ऐसे जीवन से, जो वर्षों से कम संसाधनों में टिकाऊ तरीके से चलता आया है। धारावी के लोग कई साल से चीजों के फिर इस्तेमाल  और रीसाइक्लिंग जैसे तरीकों को अपनाते आए हैं। उनके जीवन के तरीके को आज दूसरी शहरी योजनाएं अपनाना चाहती हैं।

इंदौरवाला कहते हैं, हम स्वाभाविक चक्रीय अर्थव्यवस्था को खत्म कर रहे हैं ताकि कांच की बड़ी इमारतें बनाई जा सकें। उनमें बिजली की खपत ज्यादा होगी और ये कचरा भी ज्यादा फैलाएंगी। यह पुनर्विकास नहीं, बल्कि विनाश की प्रक्रिया है।

धारावी बचाओ आंदोलन अपनी अगली रणनीति की तैयारी कर रहा है। माने सोचते हैं कि असली सवाल अब यह है कि क्या हम आधुनिकता की दौड़ में उन मूल्यों को खो रहे हैं, जिन्होंने धारावी को हमेशा से जिंदा और मजबूत बनाए रखा था। सवाल कई हैं, जिनके उत्तर खोजे जाने हैं। धारावी को बचाने के लिए शायद उत्तर जरूरी हैं।

 

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