समन्वयवादी नगरी
अगर आप पहले अयोध्या नहीं आए हैं, तो एक बार जरूर आइए। मर्यादा के सनातन प्रतीक भगवान राम की जन्मस्थली का गौरव पाया यह शहर अपनी समन्वयवादी छवि के लिए प्रसिद्ध रहा है। कई परतों में लिपटी हुई धार्मिक मान्यताओं और पौराणिक महत्व के स्थलों के लिए भी अयोध्या जानी जाती है। एक ओर, त्याग और तप के लिए प्रसिद्ध नंदीग्राम है, जहां भरत ने चौदह साल तक राम की अनुपस्थिति में अयोध्या का राज्य-संचालन किया, तो दूसरी ओर गोप्रतार घाट, जहां राम जल-समाधि लेते हैं। इन्हीं अंतरध्वनियों के बीच हजारों आस्था केंद्रों के साथ सांस लेता यह शहर, उन चार रास्तों (गौरा गयासपुर, पुरवा चकिया, तारडीह और रामपुर भगन) का भी साक्षी है, जिधर से राम वन-गमन के लिए गये। यही नहीं, अयोध्या पांच जैन तीर्थंकरों की जन्मस्थली और गौतम बुद्ध के वर्षावास के रूप में भी इतिहास में समाहित है।
परिक्रमा सूत्र
गोस्वामी तुलसीदास ने 1574 ई. में रामनवमी के दिन रामचरितमानस लिखने का आरंभ यहीं से किया और शुरुआत के तीन कांड यहीं लिखकर वे काशी गए। अनगिनत रामरसिक भक्त कवियों ने अपनी पदावलियां राम की भक्ति में लिखीं, जिनमें संत कृपानिवास, अग्रदास, युगलानन्यशरण और रामसखी जैसे ढेरों नाम शुमार हैं। डच इतिहासकार हंस बेकर ने इस क्षेत्र की पौराणिक महत्ता पर अंग्रेजी में एक किताब अयोध्या लिखी। अवधवासी लाला सीताराम बीए की दो प्रमुख कृतियां श्री अवध की झांकी और अयोध्या का इतिहास से इस शहर के अंतरमन का पता लगता है। वैसे कुछ ऐसी किताबें भी हैं, जिनके बगैर अयोध्या-परिक्रमा पूरी नहीं होती। इनमें भागीरथ ब्रह्मचारी (अयोध्या दर्पण), रामनाथ ज्योतिषी (रामचंद्रोदय), महात्मा बनादास (उभय प्रबोधक रामायण), पंडित उमापति त्रिपाठी ‘कोविद’ (सरयू अष्टक), महारानी वृषभान कुंवरि (वृषभान विनोद) और मानसिंह ‘द्विजदेव’ (शृंगार लतिका सौरभ) वगैरह यकीनन याद की जा सकती हैं। और भी बहुत कुछ है यहां।
झूला पड़ा कदम की डारी
कोविड-19 महामारी के चलते इस वर्ष अयोध्या में बरसों पुरानी परंपरा टूटी, जब हरियाली तीज के दिन होने वाला मणिपर्वत का झूला महोत्सव नहीं हुआ। इस दिन अयोध्या के छोटे-बड़े लगभग छह हजार मंदिरों से राम-जानकी के विग्रह अपने मंदिरों से निकलकर झूलन के लिए जाते हैं। उसी दिन से शुरू होकर रक्षाबंधन तक अयोध्या के मंदिरों में सावन झूला होता है। इन दिनों गौनिहारिनों और कथावाचकों से गलियों में गूंजता ये गीत सुन सकते हैं- ‘झूला पड़ा कदम की डारी, झूलैं अवधबिहारी ना।’ अयोध्या में वर्ष भर के ऋतु-परिवर्तन के साथ लाखों की भीड़ वाले कई पर्व देखे जा सकते हैं। इनमें रामनवमी और राम-विवाह के अलावा कार्तिक मास की पंचकोसी और चौदहकोसी परिक्रमा का विशेष अभिप्राय है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू में स्नान, जैसे आस्था की डुबकी में अयोध्या की सनातन नगरी को पुनर्नवा करता है। अवधी का यह ठेठ मंगल-गीत आज डिजिटल युग आ जाने के बाद भी लोकलय में स्त्रियां गाती हैं, ‘चलो अस्नान बिमल जल सरजू के/राम कहैं हम सरजू नहाबै/सीता कहैं हम चलब जरूर...।’ दीपावली हमेशा से ही अयोध्या का भव्य आयोजन रहा है, मगर पिछले कुछ वर्षों से वर्तमान उत्तर प्रदेश सरकार ने राम की पैड़ी पर बड़ा दीपोत्सव आयोजित करना शुरू किया है, जिस पर देश-भर के लोगों और मीडिया की निगाह गई है।
मिलीजुली विरासत
वैष्णव परंपरा के इस शहर का मुख्य स्वभाव राम की नवधा भक्ति के साथ बीतरागी जैसा रहा है, क्योंकि यह साधुओं और बैरागियों का भी नगर है। फिर वह, प्रेममार्गी संत पलटूदास हों या बाद के भगवानदास और रामशंकर दास ‘पागलदास’, जो कुदऊ सिंह ‘अवधी घराना’ के बड़े पखावजी हुए। बगल सटे हुए फैजाबाद (अब अयोध्या) की नवाबी रवायतें इसे सहकार का एक अलग रंग देती हैं, जैसे- इंशा लेखन, कैनवास पर तैल माध्यम से बनाई जाने वाली पोट्रेट कला, जिसे यूरोपीय चित्रकार टिली कैटल ने 1766 ई. में नवाब शुजाउद्दौला के समय में आरंभ किया और हस्तकला की जामदानी और तंजेब का काम। गजल की दुनिया की महान गायिका बेगम अख्तर ने अपनी शुरुआत अख्तरीबाई फैजाबादी नाम से इसी शहर से की थी। कई अन्य अफसाने भी हैं, जो अयोध्या और फैजाबाद को मिलाकर संस्कृति का खूबसूरत पन्ना रंगते हैं।
मनभावन खुरचन
अयोध्या आएं, तो खुरचन पेड़ा खाए बगैर न जाएं। खाने-पीने की कुछ चीजें अयोध्या को विशिष्ट बनाती हैं, जिनमें हनुमानगढ़ी के बाजार में बेसन के लड्डू, रामदाना, बताशे के अलावा महावीर की टिकिया, रामआसरे के पेड़े-रबड़ी और चिरौंजीलाल की लस्सी जरूर चखें। शृंगारहाट से शास्त्रीनगर की छोटी-छोटी दुकानों में समोसे, कचौड़ी, पूड़ी-सब्जी, दही-जलेबी, इमरती और मालपुए की अपनी ठसक है। अफसोस कि बरुआ महाराज के समोसे अब इतिहास हो गए हैं।
नदियों की गोदी
अयोध्या में सिर्फ सरयू ही नहीं बहती, बल्कि इस परिक्षेत्र को अपने जल से कुछ अन्य नदियां भी भिगोती हैं, जिनमें तिलोदकी गंगा, तमसा, वेदश्रुति, धेनुमती और मंजूषा भी अपनी धारा के साथ शामिल हैं। ‘जय सियाराम’ का अभिवादन आत्मीय है और पारंपरिक भी....
(अयोध्या राज परिवार से जुड़े संगीत, कला मर्मज्ञ। लता मंगेशकर और बेगम अख्तर पर चर्चित पुस्तकें)