हाल में संपन्न हुए पांच राज्यों के चुनावों के कुछेक महीने पहले हिमाचल प्रदेश में तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत ने राज्य ही नहीं, समूचे देश की सियासी फिजा में नया रंग घोल दिया था। कहा गया कि उसी के असर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन विवादास्पद केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस ले लिया। आसन्न विधानसभा चुनावों में भी विपक्ष की संभावना प्रबल होती दिखी। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव नतीजों में कांग्रेस की दुर्गति से हिमाचल में भी सियासी मौसम कुछ अनिश्चित-सा हो गया है, जहां नवंबर-दिसंबर में चुनाव तय हैं। सियासी परंपरा तो भाजपा और कांग्रेस को बारी-बारी से सत्ता देने की रही है, लेकिन इस बार सरकार बदलने की परंपरा जैसे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में टूटी है, सत्तारूढ़ भाजपा पूरे दमखम से यहां भी इस मिथक को तोड़ने में जुट गई है।
कांग्रेस में मौका लपकने की तैयारी और जज्बा नहीं दिख रहा है। न उसका कोई बड़ा सर्वसम्मत चेहरा है, न उसके पास कोई नैरेटिव दिखता है। वीरभद्र सिंह जैसे दिग्गज की अनुपस्थिति में राज्य कांग्रेस में कोई ऐसा चेहरा नहीं जिसकी राज्य भर में अपील हो। महंगाई, बेरोजगारी, किसानी की दिक्कतों से त्रस्त लोगों की नाराजगी का खमियाजा भाजपा को हाल में उपचुनावों में भुगतना पड़ा, लेकिन क्या यह नाराजगी ही पार्टी की वैतरणी पार करेगी? पार्टी फिलहाल इसी के आसरे दिखती है। कुछ स्वतंत्र विश्लेषकों का मानना है कि विपक्षी दल चार उपचुनावों में जीत से उत्साहित हैं, लेकिन नेतृत्व की खींचतान भी साफ है। विधायक तीन से चार गुटों में बंटे हुए हैं। अपना कार्यकाल पूरा कर चुके प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर को बदले जाने की सुगबुगाहट भी है।
कुछ दिन पहले ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी प्रमुख नेताओं को दिल्ली बुलाया था। लेकिन कोई रणनीति बनी हो, यह अभी स्पष्ट नहीं है। वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश लोहुमी कहते हैं, ‘‘पार्टी में राठौर की कोई ताकत नहीं है। उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। कई मौजूदा या पूर्व विधायकों का आधार मजबूत है और काडरों से जुड़ाव भी है।’’ पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह ने नवंबर 2021 में मंडी लोकसभा चुनाव जीतकर दावेदारी मजबूत की है।
विपक्ष के नेता मुकेश अग्निहोत्री कहते हैं, ‘‘पार्टी को अगली सरकार बनाने का विश्वास है। पिछले चार वर्षों में भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ बहुत कम हुआ है और माहौल सरकार विरोधी बन चुका है। लोग भाजपा के झूठे वादों से तंग आ चुके हैं।’’ लेकिन भाजपा के मुख्य प्रवक्ता रणधीर शर्मा कहते हैं, ‘‘वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद कांग्रेस के पास उनकी प्रतिभा और सार्वजनिक स्वीकार्यता से मेल खाने वाला एक भी नेता नहीं है। हमें नहीं लगता कि 2022 के चुनावों में हमारे लिए कोई खतरा है।’’
उधर, आम आदमी पार्टी राज्य में कुछ असंतुष्ट कांग्रेसी नेताओं और भाजपा के कुछ चेहरों को अपने पाले में लाकर एक नई चुनौती पेश करने की कोशिश में है। उसकी योजना विधानसभा चुनावों में सभी 68 सीटों पर लड़ने की है। अगर आप भाजपा विरोधी वोटों में थोड़ा भी सेंध लगाती है तो कांग्रेस को उसका नुकसान झेलना पड़ सकता है। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुखविंदर सुक्खू कहते हैं, ‘‘हिमाचल में आप का कोई आधार नहीं है। लोगों को प्रदेश का निर्माण करने वाले कांग्रेस पर भरोसा है। व्यवस्थित बदलाव के लिए पार्टी में युवा नेतृत्व का उदय होगा।’’
लेकिन वह युवा नेतृत्व दिखाई नहीं पड़ता। इसके उलट, भाजपा में राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा, मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर जैसे नए नेता उभरे हैं। नड्डा के गृह जिले बिलासपुर में राजनीति विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर प्यारे लाल चंदेल कहते हैं कि हिमाचल के परिणाम नड्डा के लिए रामबाण भी हो सकते हैं, इसलिए वे हर कीमत पर जीत आश्वस्त करने में जुटे हैं। फिर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा उनके पास है ही।