पहाड़ों की तलहटी में हरी-भरी लहलहाती फसल, प्याज की तरह लगे फल और खिले हुए फूल किसी का भी मन मोह लेंगे। मगर यह फसल देखकर अफीम तस्करों की बांछें खिल जाती हैं। झारखंड के खूंटी और चतरा जैसे जिले पोस्ता की अवैध खेती के गढ़ बन गए हैं, जिससे अफीम निकलता है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल ही खूंटी और चतरा जिले में 1600 एकड़ से अधिक भूमि पर अफीम की अवैध खेती नष्ट की गई। इस साल अभी तक ढाई सौ किलो से अधिक अफीम नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने राज्य पुलिस की मदद से जब्त किया है। हालांकि यह बरामदगी या नष्ट की गई फसल बेहद मामूली है। यह अलग बात है कि इसी उपलब्धि पर एनसीबी और पुलिस वाले अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।
दरअसल अफीम की प्रोसेसिंग करके ही ब्राउन शुगर और हेरोइन बनाई जाती है। राजधानी रांची के सीमावर्ती इलाकों के साथ-साथ पलामू, लातेहार, हजारीबाग, सिमडेगा, सरायकेला में भी इसकी खेती होती है। लेकिन झारखंड में किसी के पास इसका लाइसेंस नहीं है, इसलिए सब अवैध है। जानकार बताते हैं कि कम कीमत और बेहतर गुणवत्ता की वजह से यहां के अफीम की मांग काफी है, इसी वजह से झारखंड देश का सबसे बड़ा अवैध अफीम उत्पादक प्रदेश बन गया है।
पीएलएफआइ, टीएसपीसी, भाकपा माओवादी जैसे नक्सली संगठन और आपराधिक गिरोहों के संरक्षण में अफीम कारोबारी अपना धंधा कर रहे हैं। 2017 में खूंटी में पत्थलगड़ी समर्थकों ने पुलिस के तीन सौ जवानों को बंधक बना लिया था। पांचवी अनुसूची और ग्रामसभा के हवाले इन इलाकों में प्रशासन और बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित था। उन्हीं इलाकों में अफीम की ज्यादा खेती होती है। उस साल खूंटी में 1500 एकड़ में अफीम की फसल नष्ट की गई थी। पोस्ता की खेती से पोस्ता दाना तो निकलता ही है, अफीम भी निकलता है और बची हुई फली डोडा कहलाती है। डोडा का भी नशे के धंधे में बड़ा इस्तेमाल होता है। यहां से यूपी, राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात और दूसरे राज्यों में इसकी तस्करी होती है।
एनसीबी सुपिरिटेंडेंट सुरेश सिंह कहते हैं, “देश में सबसे अधिक अवैध अफीम की खेती झारखंड में होती है। यहां खपत न के बराबर है, सारी सप्लाई बाहर की जाती है। चतरा के गिद्धौर प्रखंड में अगर दस पत्थर उछालेंगे तो नौ अफीम से जुड़े लोगों को लगेंगे। वहां के दस घरों की तलाशी ली गई थी। तब हर घर का एक व्यक्ति जेल गया था। ” रांची-खूंटी में ऐसे स्थानों पर खेती होती है, जहां पैदल 10 से 15 किलोमीटर चलना पड़ता है। सुरक्षाकर्मी उन इलाकों तक पहुंच नहीं पाते। तस्करी में महिलाओं और नाबालिगों का भी इस्तेमाल हो रहा है। गाड़ी में बच्चों के स्कूल सर्टिफिकेट तक रखे जाते हैं, ताकि गाड़ी किसी परिवार की लगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोग यहां अफीम से मॉर्फिन, ब्राउन शुगर तैयार करने की ट्रेनिंग देते हैं। फिर तैयार पाउडर की शक्ल में उसे दूसरे राज्यों में पहुंचाया जाता है। तब उससे हेरोईन तैयार की जाती है।
डेढ़ दशक से अधिक समय से चतरा में पत्रकारिता कर रहे जुलकर नैन कहते हैं, “2002-03 के आसपास पंजाब के खेतों में काम करने गिद्धौर से गए कामगार वहां से अफीम की खेती का हुनर सीखकर आए और यहां खेती शुरू की। 2007 में पहली बार नक्सलियों के संरक्षण में एक हजार एकड़ में अफीम की अवैध खेती की खबर छपी तो तत्कालीन डीजीपी बीडी राम ने संज्ञान लिया। आज जंगल काटकर सिर्फ चतरा के करीब दस हजार एकड़ में अफीम की अवैध खेती हो रही है।”
हाल की जब्ती
11 सितंबर रांची के ओरमांझी से पांच किलो अफीम के साथ दो तस्कर गिरफ्तार। चतरा होते हुए उत्तर प्रदेश ले जाने की तैयारी थी।
2 सितंबर उत्तर प्रदेश के बरेली में सप्लाई करने आए चतरा के तीन तस्करों को साढ़े चार किलो अफीम के साथ गिरफ्तार किया गया।
2 सितंबर रांची के तुपुदाना में 750 किलो अफीम के साथ पांच तस्कर गिरफ्तार।
25 अगस्त रांची के रिंग रोड पर बीआइटी मेसरा पुलिस ने 30 लाख का डोडा ले जा रहे दो ट्रकों को पकड़ा
23 अगस्त रांची के नामकुम रिंग रोड के पास 1600 किलो डोडा के साथ दो तस्कर गिरफ्तार।
11 अगस्त रांची पुलिस ने ओरमांझी से 17 किलो अफीम और 98 बोरा डोडा पकड़ा
15 जून सरायकेला, खरसावां से 750 किलो डोडा और 130 किलो अफीम के साथ सात लोग गिरफ्तार।
11 मई चतरा पुलिस ने राजपुर थाना क्षेत्र से 57 किलो अफीम और भारी मात्रा में डोडा के साथ दो लोगों को गिरफ्तार किया।
23 अप्रैल चतरा जिला में कुंदा थाना की पुलिस ने 36 किलो अफीम के साथ चार तस्करों को गिरफ्तार किया।