द्वारका से 160 किलोमीटर दूर माधवपुर घेड के बारे में कम लोग ही जानते हैं। गुजरात के पोरबंदर जिले के माधवपुर घेड (बारिश का पानी जमा होने का स्थान, जिसका बाद में खेती में उपयोग किया जाता है) का विशेष महत्व है। साढ़े तीन हजार वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने यहां के माधवराय जी मंदिर में रुक्मणि के साथ विवाह किया था। आज भी हर वर्ष रामनवमी से पांच दिनों तक यहां भव्य आयोजन किया जाता है। गुजरात के तीन मेले प्रसिद्ध हैं, भवनाथ मेला जो जूनागढ़ जिले में शिव भक्तों और साधकों का मेला है। दूसरा, तरणेतर का मेला जिसमें आदिवासी स्वयंवर रचा जाता है। तीसरा, माधवपुर का मेला जहां श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणि के साथ हुआ था। रुक्मणि कृष्ण से उम्र में भी बड़ी थीं और यह अंतर्जातीय विवाह था। श्रीकृष्ण बताना चाहते थे कि शादी बड़ी उम्र की लड़की से भी की जा सकती है और दूसरी जाति की भी। जरूरत है तो बस एक-दूसरे की भावनाओं को समझने और उनकी कद्र करने की।
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार विष्णुजी ने नारदजी के साथ छल किया था। उन्हें खुद का रूप देने के बजाय वानर का रूप दे दिया। इस कारण वे लक्ष्मीजी के स्वयंवर में हंसी के पात्र बन गए और उनके मन में लक्ष्मीजी से विवाह करने की अभिलाषा दबी रह गई थी। नारदजी को जब इस छल का पता चला तो वे क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को श्राप दिया कि उन्हें पत्नी वियोग सहना होगा। इस श्राप की वजह से ही रामावतार में भगवान राम को सीता का वियोग सहना पड़ा और कृष्णावतार में राधा का।
राधा और रुक्मणि दोनों कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। पुराणों के अनुसार देवी रुक्मणि का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था और राधा भी अष्टमी के दिन ही अवतरित हुई थीं। राधा और रुक्मणि के जन्म में एक अंतर यह है कि रुक्मणि का जन्म कृष्ण पक्ष में और राधा का शुक्ल पक्ष में हुआ था। राधा को नारदजी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और रुक्मणि से श्रीकृष्ण की शादी हुई। कुछ विद्वान मानते हैं कि राधा नाम की कोई महिला नहीं थी, रुक्मणि ही राधा थीं। दोनों माता लक्ष्मी की अंश हैं, संभवतः इसलिए ऐसा कहा जाता है।
श्रीकृष्ण और रुक्मणि कैसे मिले
द्वारका में रहते श्रीकृष्ण और बलराम का नाम चारों ओर फैल गया था। उन दिनों विदर्भ देश में भीष्मक नाम के एक परम तेजस्वी और सद्गुणी राजा थे। कुंडिनपुर उनकी राजधानी थी। उनके पांच पुत्र और एक पुत्री थी। उसमें लक्ष्मी के समान ही दिव्य लक्षण थे, अतः लोग उसे ‘लक्ष्मीस्वरूपा’ कहते थे। रुक्मणि विवाह योग्य हुईं तो पिता भीष्मक को उनके विवाह की चिंता होने लगी। रुक्मणि के पास जो लोग आते, वे श्रीकृष्ण की प्रशंसा किया करते थे। श्रीकृष्ण के गुणों और उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर रुक्मणि ने मन ही मन निश्चय किया कि वे श्रीकृष्ण को ही पति रूप में वरण करेंगी।
उधर श्रीकृष्ण को भी पता चल गया था कि भीष्मक की पुत्री रुक्मणि परम रूपवती तो हैं ही, परम सुलक्षणा भी हैं। लेकिन भीष्मक का बड़ा पुत्र रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था। वह बहन रुक्मणि का विवाह शिशुपाल से करना चाहता था, क्योंकि शिशुपाल भी श्रीकृष्ण से द्वेष रखता था। भीष्मक ने पुत्र की इच्छानुसार रुक्मणि का विवाह शिशुपाल के साथ ही करने का निश्चय किया और तिथि भी निश्चित कर दी। रुक्मणि को जब इस बात का पता लगा तो वह बड़ी दुखी हुईं। रुक्मणि ने श्रीकृष्ण के पास संदेश भेजा, “मेरे पिता मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरा विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहते हैं। मेरे कुल की रीति है कि विवाह पूर्व वधू नगर के बाहर दर्शन करने जाती है। मैं चाहती हूं, आप मंदिर पहुंचकर मुझे पत्नी रूप में स्वीकार करें। यदि आप नहीं पहुंचेंगे तो मैं अपने प्राणों का परित्याग कर दूंगी।” रुक्मणि का संदेश पाकर श्रीकृष्ण रथ पर सवार होकर कुंडिनपुर रवाना हो गए। बलराम यह सोचकर चिंतित हो उठे कि श्रीकृष्ण अकेले कुंडिनपुर गए हैं। अतः वे भी यादवों की सेना के साथ कुंडिनपुर निकल पड़े।
उधर, शिशुपाल निश्चित तिथि पर बारात लेकर कुंडिनपुर पहुंच गया। बारात में जरासंध, पौण्ड्रक, शाल्व और वक्रनेत्र आदि राजा भी अपनी-अपनी सेना के साथ थे। ये सब श्रीकृष्ण से शत्रुता रखते थे। विवाह का दिन था। सारा नगर बंदनवारों और तोरणों से सज्जित था। मंगल वाद्य बज रहे थे। नगरवासियों को पता चला कि श्रीकृष्ण और बलराम भी नगर में आए हुए हैं, तो वे बड़े प्रसन्न हुए। मन-ही मन सोचने लगे, कितना अच्छा होता यदि रुक्मणि का विवाह श्रीकृष्ण के साथ होता, क्योंकि वे ही उसके लिए योग्य वर हैं।
रुक्मणि ने गिरिजा की पूजा करते हुए प्रार्थना की, “हे मां, तुम सारे जगत की मां हो! मेरी अभिलाषा पूर्ण करो। मैं श्रीकृष्ण को छोड़कर किसी अन्य पुरुष के साथ विवाह नहीं करना चाहती।” रुक्मणि मंदिर से बाहर निकलीं तो उन्हें संशय नहीं रहा कि श्रीकृष्ण ने उनके समर्पण को स्वीकार कर लिया है। रुक्मणि अपने रथ पर बैठना ही चाहती थीं कि श्रीकृष्ण ने विद्युत तरंग की भांति पहुंचकर उनका हाथ पकड़ा और खींचकर अपने रथ पर बिठा लिया और तीव्र गति से द्वारका की ओर चल पड़े। क्षण भर में ही पूरे कुण्डिनपुर में खबर फैल गई कि श्रीकृष्ण रुक्मणि का अपहरण कर द्वारकापुरी ले गए। क्रुद्ध शिशुपाल ने अपने मित्र राजाओं और उनकी सेनाओं के साथ श्रीकृष्ण का पीछा किया, किंतु बीच में ही बलराम ने उन्हें रोक लिया। भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें बलराम ने शिशुपाल और उनके मित्रों की सेना को परास्त कर दिया।
शिशुपाल निराश होकर कुंडिनपुर से चला गया, लेकिन रुक्मी ने सेना लेकर श्रीकृष्ण का पीछा किया। उसने प्रतिज्ञा की कि या तो श्रीकृष्ण को बंदी बनाकर लौटेगा या कुंडिनपुर में मुंह नहीं दिखाएगा। रुक्मी और श्रीकृष्ण का भीषण युद्ध हुआ। श्रीकृष्ण ने उसे हराकर रथ से बांध दिया, किंतु बलराम ने उसे छुड़ा दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा, “रुक्मी अब अपना संबंधी हो गया है, किसी संबंधी को इस तरह दंड देना उचित नहीं।” रुक्मी अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार लौटकर कुंडिनपुर नहीं गया। वह एक नया नगर बसाकर वहीं रहने लगा। कहते हैं कि रुक्मी के वंशज आज भी उस नगर में रहते हैं।
माधवपुर घेड में आज भी श्रीकृष्ण और रुक्मणि का विवाह बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गुजरात सरकार इस स्थान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना चाहती है। सरकार का इरादा द्वारका-पोरबंदर-माधवपुर घेड-सासण गीर-सोमनाथ को टूरिस्ट सर्किट के रूप में विकसित करने का है। माधवपुर घेड का समुद्र तट भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है। यहां कच्छ के रण की तरह टेंट सिटी बनाने की भी योजना है।
(लेखिका सांस्कृतिक विषयों पर लिखती रही हैं, उन्होंने 25 से अधिक पुस्तकों का अनुवाद किया है)
-------------
माधवपुर घेड समुद्र तट भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बन सकता है। यहां कच्छ के रण की तरह टेंट सिटी की
भी योजना है
---------
आस्था के रंगः माधवपुर मेला की शान देखते ही बनती है, यहां लाखों भक्त इकट्ठा होते हैं