कोविड-19 के संकट के कारण सरकार की कमाई पर सीधा असर पड़ा है। मार्च से जून तक चार महीने में उसे करीब आठ लाख करोड़ रुपये राजस्व का नुकसान होगा। इस दौरान वह राहत पैकेज पर भी खर्च करेगी, जबकि पूरे वित्तीय वर्ष में उसने करीब 20 लाख करोड़ रुपये राजस्व का अनुमान लगाया था। राज्य सरकारों के राजस्व पर भी बुरा असर हुआ है। जाहिर है, हर तरफ से कमाई ठप हो गई है। इस संकट से सबसे ज्यादा नुकसान ऐसे वर्ग को होने वाला है, जो निजी क्षेत्र पर निर्भर है। सरकारी कर्मचारियों की नौकरी पर कोई संकट नहीं है। हमारे देश में केंद्र और राज्य सरकार के लगभग 2.25 करोड़ कर्मचारी हैं, जिनके वेतन पर सरकारें लगभग 12 लाख करोड़ रुपये प्रतिवर्ष खर्च करती हैं। गरीब तबके के लिए भी सरकार की तरफ से लाभकारी योजनाएं चलती रहेंगी, ऐसे में उस पर बहुत ज्यादा चोट नहीं पड़ेगी। निजी क्षेत्र पर निर्भर रहने वाले मध्यम वर्ग के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया है। भले ही सरकार कह रही है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों की सैलरी में कटौती और उनकी छंटनी न करें, लेकिन खुद केंद्र और राज्य सरकारें कर्मचारियों के महंगाई-भत्ते रोक रही हैं, कई राज्यों में वेतन में भी कटौती की गई है। ऐसे में, यह दोहरा मापदंड है। सरकार समझ रही है कि संकट गंभीर है और लंबा चलने वाला है। जब सरकारें वेतन नहीं दे पा रही हैं तो बिजनेस जगत से उम्मीद करना बेमानी है।
हमें बिजनेस क्लास के काम करने के तरीके को भी समझना होगा। व्यापारी अपने पूंजी के साथ-साथ बैंक में अपनी संपत्तियां गिरवी रखकर कर्ज लेकर कारोबार शुरू करता है। व्यापार से हुए लाभ को वह व्यापार बढ़ाने में ही पुनः निवेश करता है। आज की परिस्थिति में कारोबार ठप है, उसके सिर पर कर्ज है और उसकी संपत्तियां बैंकों के पास गिरवी हैं। जब कमाई ही नहीं होगी, तो वह क्या करेगा, कितने दिन कर्मचारियों को सैलरी देगा। एक बात और समझनी होगी कि लॉकडाउन के कारण जो लाखों मजदूर पलायन कर रहे हैं, वे अब आसानी से वापस नहीं आएंगे। ऐसे में, बिजनेस क्लास के सामने एक नया संकट भी खड़ा होने वाला है।
इन परिस्थितियों में लोगों की जमा पूंजी भी घट रही है। लॉकडाउन में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) से लगभग 2,400 करोड़ रुपये लोगों ने निकाले हैं। इसी तरह म्यूचुअल फंड निवेशक भी नुकसान सह कर पैसे निकाल रहे हैं। हाल ही में सरकार ने म्यूचुअल फंड के लिए 50 हजार करोड़ रुपये दिए हैं। संकट बढ़ने पर लोग सोना और रियल एस्टेट में किए गए निवेश को भी सस्ते में बेचने पर मजबूर होंगे।
सरकार को तुरंत छोटे और मझोले उद्योगों और किसानों को राहत देनी चाहिए। सस्ता कर्ज और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर फोकस करना चाहिए। कोविड-19 की लड़ाई बहुत लंबी चलने वाली है। हमें अब मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, सेनेटाइजर जैसी चीजों को जीवन का हिस्सा मानना होगा। यदि इसकी वैक्सीन आ जाए तब भी उसका बड़े पैमाने पर उत्पादन और 130 करोड़ की आबादी को वैक्सीन लगाने में वर्षों लग जाएंगे। हमें अपने सीमित संसाधनों पर भी गौर करना होगा, क्योंकि दुनिया की लभग 20 प्रतिशत आबादी के लिए नीतियां बनाना काफी चुनौतीपूर्ण है, खासतौर पर तब जब करदाताओं की संख्या आबादी के परिप्रेक्ष्य में बहुत सीमित है। सरकार को सभी पहलुओं पर ध्यान देना होगा। चीन से आयात होने वाले लघु उद्योगों के सामान का उत्पादन भारत में करने के लिए नीतियां बनानी चाहिए। मध्यम और लघु उद्योगों का क्लस्टर बनाकर विकास करना चाहिए। प्रत्येक जिले में एक ही प्रकार की वस्तुओं की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की स्थापना करनी चाहिए। इसके लिए सरकार को मध्यम और लघु उद्योगों के लिए दी जाने वाली सभी प्रकार की सब्सिडी को समाप्त करके उद्योग लगाने के लिए कम से कम दो वर्ष के लिए बिना ब्याज का ऋण देना चाहिए। इससे शहरों से पलायन करके ग्रामीण क्षेत्रों में लौटे लोगों को भी रोजगार मिलेगा।
उदाहरण के तौर पर देश में होली के दौरान प्रतिवर्ष लगभग 50 करोड़ पिचकारियों की बिक्री होती है, जो अधिकतर चीन से आयात की जाती हैं। यदि देश के एक जिले में सिर्फ पिचकारियों के निर्माण से संबंधित लघु उद्योग स्थापित किए जाएं, तो उसकी खपत हमारे देश में ही संभव है। हमें यह समझना होगा कि यदि हम दुनिया के लिए सबसे बड़े बाजार हैं तो अपने लिए क्यों नहीं। हमारे देश की नीतियां इस तरह की होनी चाहिए, जिसमें हमें दूसरे देशों से आयात पर कम से कम निर्भर होना पड़े।
दो अहम बातें और हैं जिन पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। 2008 का वैश्विक आर्थिक संकट हम इसलिए झेल पाए, क्योंकि सदैव से हमारी अर्थव्यवस्था बचत आधारित रही है। लेकिन पिछले दो-तीन दशकों में एक बड़ा मध्यम वर्ग ऐसा खड़ा हो गया है जो क्रेडिट आधारित जीवनशैली जीता है। इस बार उसके सामने ज्यादा बड़ा संकट खड़ा होगा। इसीलिए सरकार को अपनी क्रेडिट पॉलिसी में भी सुधार करना चाहिए, जिसमें कर्ज व्यापार बढ़ाने के लिए दिया जाए न, कि कर्ज लेकर खर्च करने के लिए।
जिस प्रकार राजस्व के लिए सरकारों ने शराब की दुकानें खोली हैं, उस पर भी चिंता करने की आवश्यकता है। एक ओर तो सरकार राशन मुफ्त में दे रही है और महिलाओं के खातों में पैसे डाल रही है, वहीं पुरुषों की लंबी कतारें शराब की दुकानों पर लगी हैं। सरकार को शराब की प्रत्येक दुकान को आधार से लिंक करना चाहिए और जो व्यक्ति शराब खरीदता है उसे मुफ्त राशन और पैसों की सुविधा न दी जाए। इससे एक ओर तो गरीब वर्ग में महिलाओं का उत्पीड़न रुकेगा और साथ ही ये सुविधाएं उनको मिल पाएंगी जिन्हें वास्तव में जरूरत है। इससे गरीब तबका सरकार से मिलने वाली सहायता राशि को शराब में बर्बाद नहीं कर पाएगा। कुल मिलाकर आज का संकट बहुत बड़ा है। जरूरत समग्र रूप से जल्द नीतियां बनाने की है।
(लेखक टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत के अध्यक्ष हैं)
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पिछले दो-तीन दशकों में एक बड़ा मध्यम वर्ग ऐसा खड़ा हो गया है जो क्रेडिट आधारित जीवनशैली जीता है, इस बार उसके सामने ज्यादा बड़ा संकट खड़ा होगा