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पहली किस्त तो नाकाफी

प्रधानमंत्री के 20 लाख करोड़ के पैकेज के ऐलान के बाद िवत्त मंत्री के छह लाख करोड़ के पैकेज में मजदूर वर्ग को राहत नहीं
कितना कारगरः पैकेज की घोषणा करतीं निर्मला सीतारमण और अनुराग ठाकुर

आखिरकार जिसका इंतजार था, वह समय आ ही गया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को राष्ट्र को संबोधित करते हुए आत्मनिर्भर भारत का एक रोडमैप पेश कर दिया, जिसमें आत्मनिर्भर भारत का फार्मूला भी है। मोदी ने अपने संबोधन में आत्मनिर्भर भारत के पांच स्तंभ बताए। ये स्तंभ हैं इकोनॉमी जो मात्रात्मक के बजाय गुणात्मक वृद्धि की क्षमता रखती है, आधुनिक भारत की पहचान बन चुका इन्फ्रास्ट्रक्चर, 21वीं सदी के सपनों को पूरा करने वाला तकनीकी आधारित सिस्टम, आत्मनिर्भर भारत के सपने को पूरा करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाली डेमोग्राफी और मांग और आपूर्ति का चक्र। 'आत्मनिर्भर भारत' अभियान के लक्ष्य को पूरा करने के लिए लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ को केंद्र में रखते हुए पैकेज तैयार किया गया जिसका आकार बीस लाख करोड़ रुपये है। उन्होंने बीस लाख करोड़ रुपये के पैकेज को 2020 के साथ जोड़ते हुए कहा कि इसकी विस्तृत जानकारी वित्त मंत्री देंगी। जाहिर सी बात है कि इसका इंतजार सभी को था और 13 मई की दोपहर बाद वित्त मत्री निर्मला सीतारमण ने इस पैकेज के छह लाख करोड़ रुपये के पहले चरण की जानकारी देश के सामने रखी, जिसमें लिक्विडिटी को फोकस किया गया। हालांकि पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने और 13 मई को वित्त मंत्री ने सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी के चलते लॉकडाउन के दौरान लोगों की मदद के लिए जारी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लिक्विडिटी बढ़ाने और कर्ज पर स्थगन जैसे कदमों को भी इस पैकेज का ही हिस्सा माना है। जहां तक पूरे 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की विस्तृत जानकारी की बात है, तो आउटलुक के प्रेस में जाने तक केवल लिक्विडिटी वाले पक्ष की ताजा जानकारी मिल सकी थी, और जैसा वित्त मंत्री ने कहा, आने वाले दिनों में पैकेज की जानकारी का यह चरण जारी रहेगा। इस पैकेज में लघु, छोटे और मझोले यानी एमएसएमई सेक्टर, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के जरिए लागू प्रावधान, बिजली वितरण कंपनियों, रियल एस्टेट, कांट्रैक्टर्स और प्रत्यक्ष कर से जुड़े प्रावधानों में रियायतें शामिल हैं। हालांकि ईपीएफओ के तहत छोटी कंपनियों में नियोक्ताओं और कर्मचारियों के स्थान पर अंशदान को सरकार द्वारा देने के प्रावधान को तीन माह और बढ़ाए जाने वाले कदम को प्रत्यक्ष वित्तीय मदद माना जा सकता है। बाकी प्रावधानों में कर्ज देने की शर्तों को लचीला बनाने, रिफंड देने, कर्ज देने के लिए क्षमता बढ़ाने समेत कई नियामक प्रावधानों में छूट ही मुख्य हैं।

पैकेज के तहत एमएसएमई कंपनियों के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के कोलैटरल-फ्री लोन की घोषणा की गई है। उद्यमी चार साल के लिए यह कर्ज ले सकते हैं। इस पर उन्हें एक साल का मोरेटोरियम मिलेगा, यानी उद्यमी चाहें तो 12 महीने बाद कर्ज लौटाना शुरू कर सकते हैं। शर्त यह है कि 29 फरवरी 2020 को उन पर जितना कर्ज बकाया होगा, उसके 20 फीसदी तक ही कर्ज मिलेगा। उनका बकाया कर्ज 25 करोड़ और सालाना टर्नओवर 100 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए। इस स्कीम के तहत उद्यमी 31 अक्टूबर 2020 तक कर्ज ले सकते हैं। कर्ज देने वाले बैंकों और एनबीएफसी को सरकार 100 फीसदी गारंटी देगी। सरकार का दावा है कि इससे 45 लाख इकाइयों को लाभ मिलेगा।

एमएसएमई को इक्विटी के रूप में भी 20,000 करोड़ रुपये की मदद दी जाएगी। ऐसी इकाइयां जिनके खाते एनपीए घोषित नहीं हुए हैं, वे इसके लिए आवेदन कर सकती हैं। इस स्कीम के तहत बैंक प्रमोटर को कर्ज देंगे, प्रमोटर इस रकम को इक्विटी के रूप में निवेश करेगा। इस कर्ज पर भी सरकार गारंटी देगी। इस स्कीम से उन इकाइयों को मदद मिलेगी जिन्होंने कर्ज लौटाने में डिफॉल्ट किया है। एमएसएमई के लिए 10,000 करोड़ रुपये का फंड ऑफ फंड्स भी बनाया जाएगा। इस फंड के तहत कई छोटे फंड होंगे, जिनके जरिए उद्यमों को इक्विटी फंडिंग की जाएगी। इस फंड से विकास की संभावना वाली इकाइयों को मदद मिलेगी।

एमएसएमई की परिभाषा भी बदली गई है। अभी तक 25 लाख रुपये तक निवेश वाली मैन्युफैक्चरिंग इकाइयां लघु, पांच करोड़ रुपये तक निवेश वाली छोटी और 10 करोड़ रुपये तक निवेश वाली इकाइयां मझोली कहलाती थीं। सर्विस सेक्टर की इकाइयों के लिए यह सीमा क्रमशः 10 लाख, दो करोड़ रुपये और पांच करोड़ रुपये थी। नई परिभाषा में निवेश सीमा बढ़ाने के साथ सालाना टर्नओवर को भी जोड़ा गया है। एक करोड़ रुपये तक निवेश और पांच करोड़ रुपये टर्नओवर वाली इकाइयां लघु, 10 करोड़ तक निवेश और 50 करोड़ तक टर्नओवर वाली छोटी और 20 करोड़ रुपये तक निवेश और 100 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाली कंपनियां मझोली कहलाएंगी। मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर, दोनों के लिए यही मानदंड होगा।

एमएसएमई की मदद के लिए एक और निर्णय यह लिया गया है कि 200 करोड़ रुपये तक के सरकारी खरीद के टेंडर ग्लोबल नहीं होंगे। इनमें सिर्फ घरेलू कंपनियां भाग ले सकेंगी। सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर एमएसएमई का जो भी बकाया है, वह अगले 45 दिनों में भुगतान कर दिया जाएगा। यह बकाया करीब एक लाख करोड़ रुपये का है।

सरकार ने मार्च में घोषणा की थी कि जिन इकाइयों में कर्मचारियों की संख्या 100 तक है और 90 फीसदी कर्मचारियों का वेतन 15,000 रुपये तक है, उनके लिए मार्च, अप्रैल और मई का कर्मचारियों और नियोक्ता दोनों का 12-12  फीसदी पीएफ योगदान सरकार देगी। इसे अगस्त तक बढ़ा दिया गया है। इसका लाभ 3.67 लाख इकाइयों में काम करने वाले 72.22 लाख कर्मचारियों को मिलेगा। इस मद में सरकार के 2,500 करोड़ रुपये खर्च होंगे। ईपीएफओ में जितनी कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, उनमें नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के लिए पीएफ में अंशदान की सीमा तीन महीने के लिए 12 फीसदी से घटाकर 10 फीसदी की गई है। हालांकि यह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के लिए नहीं होगा। ईपीएफओ में इस समय करीब 6.5 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं और इनमें 4.3 करोड़ कर्मचारी हैं। इस निर्णय से कंपनियों और कर्मचारियों के हाथ में खर्च करने के लिए 6,750 करोड़ रुपये उपलब्ध होंगे।

नॉन-बैंकिंग फाइनेंस कंपनियों (एनबीएफसी), हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों और माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के लिए 30,000 करोड़ रुपये की विशेष लिक्विडिटी स्कीम की घोषणा की गई है। स्कीम के तहत इनके बांड में निवेश किया जाएगा। कम क्रेडिट रेटिंग वाली एनबीएफसी के लिए 45,000 करोड़ रुपये की आंशिक क्रेडिट गारंटी स्कीम घोषित की गई है। इसमें सरकार 20 फीसदी कर्ज की गारंटी लेगी।

बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों पर राज्यों के डिस्कॉम की देनदारी अभी 94,000 करोड़ रुपये है। पीएफसी और आरईसी डिस्कॉम को 90,000 करोड़ रुपये की लिक्विडिटी उपलब्ध कराएंगी। इस रकम का इस्तेमाल बिजली उत्पादन कंपनियों के कर्ज चुकाने में ही किया जाएगा। रेलवे, सड़क परिवहन और सीपीडब्लूडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों के लिए काम करने वॉले कॉन्ट्रैक्टर को काम पूरा करने के लिए छह महीने अतिरिक्त मिलेंगे। कॉन्ट्रैक्टर ने जितना काम पूरा किया है, उस अनुपात में केंद्रीय एजेंसियां बैंक गारंटी भी रिलीज करेंगी, इससे कॉन्ट्रैक्टर की नकदी की समस्या कुछ हद तक दूर होगी।

 

मिडिल क्लास को बड़ी राहत नहीं

वित्त मंत्री से राहत पैकेज में मिडिल क्लास को टैक्स छूट से लेकर कई बड़े ऐलान की उम्मीद थी, लेकिन पहली कड़ी में उसे निराशा ही हाथ लगी है। राहत के नाम पर करदाताओं को अब इनकम टैक्स रिटर्न 31 जुलाई और 31 अक्टूबर 2020 की जगह 30 नवंबर 2020 तक भरनी होगी। इसी तरह टैक्स ऑडिट की तिथि भी 30 सितंबर 2020 से बढ़ाकर 31 अक्टूबर 2020 कर दी गई है। इसके अलावा टीडीएस और टीसीएस की दरों में 25 फीसदी कटौती की गई है। वित्त मंत्री का दावा है कि इस कदम से 50 हजार करोड़ रुपये की नकदी बढ़ेगी। चैरिटेबल ट्रस्ट, प्रोपराइटरशिप, पार्टनरशिप फर्म, एलएलपी और को-ऑपरेटिव आदि के लंबित रिफंड तुरंत जारी किए जाएंगे। 

रियल एस्टेट के लिए राहत

रेरा के तहत रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट को छह महीने की राहत सरकार ने दी है। इसके तहत 25 मार्च 2020 तक पूरे होने और रजिस्टर्ड होने वाले प्रोजेक्ट के लिए छह महीने की मोहलत मिल गई है। इसके लिए डेवलपर्स को कोई आवेदन नहीं करना होगा। यही नहीं, जरूरत पड़ने पर नियामक इस मोहलत में तीन महीने का इजाफा भी कर सकेंगे। इसके अलावा सरकार ने रेरा के तहत कोविड-19 संकट को फोर्स मेज्योर कैटेगरी में डाल दिया है। इससे रियल एस्टेट डेवलपर्स को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए जहां समय मिल गया है, वहीं प्रोजेक्ट में हो रही देरी की वजह से लगने वाली पेनल्टी से भी राहत मिल गई है।

पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने इस पैकेज पर टिप्पणी की, “एमएसएमई के लिए तीन लाख करोड़ रुपये का पैकेज तो ठीक है, लेकिन बाकी 16.4 लाख करोड़ रुपये कहां हैं। इस पैकेज में उन लाखों गरीबों और भूखे प्रवासी मजदूरों के लिए कुछ नहीं है जो अपने घर लौट रहे हैं। सरकार को सबसे निचले तबके के 13 करोड़ परिवारों में प्रत्येक को पांच हजार रुपये देने चाहिए। इस पर सरकार के सिर्फ 65,000 करोड़ रुपये खर्च होंगे।”

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कथित आत्मनिर्भर भारत और स्वावलंबन के प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प के पांच स्तंभों और चार मंत्रों में एक लिक्विडिटी के लिए पहली किस्त में ऐलान हुआ

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