अर्थव्यवस्था के लिए वर्ष 2019 बेहद निराशाजनक रहा। देश की आर्थिक क्षमता आंकने के जो भी प्रमुख पैमाने माने जाते हैं, हर एक पर गिरावट ने रिकॉर्ड तोड़ा- कहीं वर्षों का, तो कहीं दशकों का। सुस्ती का मंजर ऐसा चला कि लाखों की तादाद में लोग बेरोजगार होने लगे। शहर हो या गांव, हर जगह मांग घटने लगी। नतीजा, सरकार का कर राजस्व कम हो गया। करों में राज्यों को जो नुकसान हो रहा है, केंद्र सरकार उसकी भरपाई भी नहीं कर पा रही है। कह पाना मुश्किल है कि यह स्थिति कब दूर होगी। कहने को तो शेयर बाजार देश की अर्थव्यवस्था का इंडिकेटर होता है, लेकिन इस बार यह बात भी गलत साबित हो गई। अर्थव्यवस्था भले डूबी, शेयर बाजार नई ऊंचाई पर पहुंच गए। एक नजर प्रमुख आर्थिक पैमानों पर...
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जीडीपी
विकास दर साढ़े छह साल में सबसे कम
भारत की आर्थिक विकास दर जुलाई-सितंबर 2019 तिमाही में सिर्फ 4.5% रह गई। विकास दर लगातार पांच तिमाही से गिरती हुई साढ़े छह साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच ने पूरे साल में सिर्फ 4.6% विकास का अनुमान जताया है। वैसे आइएमएफ ने इन आंकड़ों पर भी सवाल उठाए हैं। उसका कहना है कि आर्थिक गतिविधियों के आधार पर जीडीपी और खर्च के आधार पर जीडीपी में काफी अंतर है।
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बेरोजगारी
45 साल में सबसे ज्यादा
इस साल आम चुनाव से पहले मार्च में खबर आई कि 2017-18 में पूरे देश की बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ज्यादा 6.1% थी। तब सरकार ने इन आंकड़ों को खारिज कर दिया। कहा गया कि इस रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया है। लेकिन चुनाव के बाद सरकार ने इन आंकड़ों को ही सही माना। विशेषज्ञ इसे नोटबंदी और जीएसटी का असर मानते हैं। यह असर इतना बढ़ा कि इस साल जनवरी-मार्च तिमाही में 15-29 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर 22.5% पर पहुंच गई।
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उपभोक्ता व्यय
चार दशक में सबसे अधिक गिरावट
प्रति उपभोक्ता औसत खर्च 2017-18 में 3.7% घट गया। यह गिरावट चार दशक में सबसे ज्यादा है। इससे पहले 2011-12 के सर्वे में प्रति उपभोक्ता औसत खर्च 1,501 रुपये प्रति माह था, जो 1,446 रुपये रह गया है। गांवों की हालत ज्यादा बुरी है। वहां खर्च में 8.8% और शहरों में दो फीसदी गिरावट आई है। एनएसओ के इस सर्वे को सरकार ने अभी नकार दिया है, शायद बाद में इसे भी मान ले।
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मैन्यूफैक्चरिंग
11 साल में सबसे कम क्षमता का इस्तेमाल
मांग इतनी कम है कि मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियों ने जुलाई-सितंबर 2019 में 68.9% क्षमता का ही इस्तेमाल किया। यह 2008 के बाद सबसे कम है। इस सेक्टर की विकास दर सितंबर तिमाही में शून्य से भी नीचे, -1% रह गई।
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शेयर बाजार की अलग चाल
अर्थव्यवस्था नीचे, फिर भी बाजार रिकॉर्ड ऊंचाई पर
सेंसेक्स ने 41,000 और निफ्टी ने 12,000 का स्तर पार कर लिया। दोनों अब भी रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब हैं। इस साल क्रिसमस तक सेंसेक्स 14% और निफ्टी 12% बढ़ चुका था। पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने आइआइएम अहमदाबाद में कहा, "जब अर्थव्यवस्था नीचे जा रही हो, तब बाजार का रिकॉर्ड ऊंचाई पर जाना मेरे लिए पहेली है। वैसे यहां वित्तीय बाजार की कई बातें हैं जो मेरी समझ से परे हैं।"