पिछले दिनों सोशल मीडिया पर बिहार की एक तस्वीर वायरल हुई। उसमें सैकड़ों छात्र पटना में गंगा के घाट की सीढ़ियों पर कतारबद्ध बैठे प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी में लीन थे। यह मंजर कुछ वैसा ही था जैसा कुछ महीनों पूर्व प्रदेश के ही सासाराम जिले से आई एक दूसरी तस्वीर में दिखा था। उसमें आसपास के दर्जनों विद्यार्थी रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म की रोशनी में पढ़ाई कर रहे थे। दोनों तस्वीरें वही पुरानी कहानी बयां कर रही थीं कि तमाम मुश्किलों और बाधाओं के बाजवूद जीवन की हर चुनौती का सामना कर अपनी मेधा और मेहनत की बदौलत जीवन संवारा जा सकता है। शायद इसलिए प्रतियोगिता परीक्षाओं, विशेषकर सरकारी नौकरियों के लिए होने वाले इम्तिहानों के दौरान ऐसी तस्वीरें अक्सर वहां देखने को मिलती हैं। उस दौरान छोटे शहरों से गुजरने वाली हर ट्रेन और बस परीक्षार्थियों से ही भरी रहती है।
बिहार को जानने-समझने वालों के लिए ऐसे दृश्य हतप्रभ करने वाले नहीं होते। उस प्रदेश के लिए, जहां आजादी के 75वें वर्ष में भी बड़े उद्योग का अभाव है, बाढ़ और सुखाड़ की विभीषिका समय-असमय मुंह बाए दस्तक देती है और जहां रोजगार सृजन के अवसर नगण्य होने के कारण हजारों युवा हर साल आजीविका की तलाश में दूसरे प्रदेशों के लिए कूच करते हैं, यह बतलाने की जरूरत नहीं कि नौकरियों के लिए आयोजित होने वाली इन प्रतियोगिता परीक्षाओं की एक युवा बेरोजगार की जिंदगी में क्या अहमियत है। कॉलेज से डिग्री लेने के बाद वे साल दर साल सिर्फ इन परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं, बस इस उद्देश्य के साथ कि उन्हें कोई ना कोई ऐसी परीक्षा “निकाल लेनी है।” यह सपना एक अदद नौकरी की तलाश में जद्दोजहद करने वाले नौजवान का ही नहीं होता, बल्कि उसके पूरे परिवार का होता है जो अक्सर अपनी जरूरतों को दरकिनार कर उसके सपनों को साकार करने के लिए हर आवश्यक सुविधा मुहैया कराता है।
यही कारण है कि बिहार के किसी भी गांव-शहर से निकल कर आइएएस/आइपीएस बनने वाला अभ्यर्थी उनके लिए सुपरमैन से कम नहीं होता। इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षा में सफल होने वाले की सालों तक मिसाल दी जाती है। यहां तक कि आनंद कुमार और खान सर जैसे कोचिंग देने वाले शिक्षकों की लोकप्रियता 15.25 करोड़ रुपये में खरीदे गए बिहार के युवा आइपीएल स्टार ईशान किशन से अधिक होती है।
ऐसी स्थिति में हाल में बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की प्रारंभिक (पीटी) परीक्षा प्रश्नपत्र लीक हो जाने के कारण रद्द हो जाने से कितनी हताशा और निराशा परीक्षार्थियों के दिल में घर कर सकती है, यह आसानी से समझा जा सकता है। यह निराशा सिर्फ इसलिए नहीं होती कि उनकी महीनों की मेहनत पर पानी फिर जाता है, बल्कि इसलिए भी कि इतनी महत्वपूर्ण प्रतियोगिता परीक्षा में भी इतने सालों के बाद खामियां मौजूद हैं। इससे उनका यह भरोसा भी टूटता है कि इन परीक्षाओं में सिर्फ मेधा ही सफलता का पैमाना होता है। ऐसी घटनाओं के कारण प्रदेश के बाहर पूरी व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लगने लगते हैं, जिसका खामियाजा उन अभ्यर्थियों को भुगतना पड़ता है जिन्होंने अपनी योग्यता और कड़ी मेहनत के बल पर सफलता पाई है।
ऐसा नहीं कि पेपर लीक सिर्फ बिहार की समस्या है। विगत में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई प्रदेशों में ऐसी घटनाएं हुई हैं, लेकिन बिहार में यह नियमित अंतराल पर होता रहा है। कुछ वर्ष पूर्व, अनियमितताओं के आरोप में राज्य कर्मचारी चयन आयोग के आइएएस अध्यक्ष की गिरफ्तारी हुई। उससे पूर्व बीपीएससी के दो अध्यक्ष भी जेल जा चुके हैं। प्रदेश के पूरे परीक्षा तंत्र पर राष्ट्रीय स्तर पर तब दाग लग गए जब एक छात्रा जालसाजी के कारण बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में टॉपर बन गई। इस मामले का खुलासा तब हुआ जब एक टेलीविजन इंटरव्यू के दौरान वह यह नहीं बता सकी कि राजनीति विज्ञान में किस विषय की पढ़ाई होती है। बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के तत्कालीन अध्यक्ष के साथ उसे भी जेल की हवा खानी पड़ी।
जाहिर है, ऐसे कारनामे नए नहीं हैं। वर्ष 2003 में सबसे पहले एम्स जैसे संस्थानों में दाखिले के लिए हो रही परीक्षा में बड़े पैमाने पर फर्जी परीक्षार्थियों की मदद से चलने वाला देशव्यापी ‘मुन्नाभाई’ घोटाला सामने आया था। उसका सरगना भी बिहार का रंजीत डॉन निकला। उसके बाद से परीक्षाओं में प्रश्नपत्र लीक और फर्जी परीक्षार्थी जैसी समस्याओं के निराकरण के लिए उच्च स्तर पर कई कदम उठाए गए, लेकिन परीक्षा तंत्र में होने वाली लीक को अभी तक बंद नहीं किया जा सका है।
इसमें शक नहीं कि तकनीक की दिनोंदिन प्रगति, ब्लूटूथ, कैमरा से लैस फोन और सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के कारण इन परीक्षाओं के बेदाग आयोजन करने की चुनौती आज पहले से कहीं ज्यादा है। आज मिनटों में कहीं से किसी भी प्रश्नपत्र की तस्वीर लेकर वायरल की जा सकती है। इन्हें रोकने का हरसंभव उच्चस्तरीय प्रयास करना होगा ताकि न सिर्फ इन परीक्षाओं की विश्वसनीयता बनी रहे, बल्कि वहां के युवाओं के मन में अपने और परिवार के सपनों को साकार करने की इच्छाशक्ति बरकरार रहे।