महामारी कोविड-19 से जिंदगी और अर्थव्यवस्था तो तबाह है ही, लेकिन इस दौर में जिन दो मूलभूत क्षेत्रों पर सबसे अधिक आमूलचूल बदलाव की जरूरत का एहसास गहराया है, वे हैं स्वास्थ्य और शिक्षा। जानकारों की राय में इन दो क्षेत्रों के ढांचे जहां जितने मजबूत हैं या होंगे, महामारी की मार झेलने में उतनी ही आसानी होगी। हमारे देश में इन दोनों की उपेक्षा का आलम कोई नई बात नहीं है। स्वास्थ्य ढांचे की कुछ मजबूती के लिए मोहलत की आस में जो लंबा लॉकडाउन जारी किया गया, वह कैसी तबाही का आलम ले आया, उसकी तसवीरें हर जगह बिखरी पड़ी हैं। उसकी चर्चाएं भी हर जगह हैं लेकिन शिक्षा पर चर्चाएं लगभग गुम हैं, जैसे इस दौर में उसका तो बिस्तर ही गोल हो गया। ऐसे में, यह जानना जरूरी है कि इस बुनियादी क्षेत्र की हालत क्या है और सरकार या तमाम शैक्षणिक संस्थाओं के पास इसे फिर पटरी पर लाने की क्या योजनाएं हैं? आइए पहले तो देखें कि इसका हाल क्या है।
पहली बार ऐसा है, जब प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक देश के लगभग 33 करोड़ छात्र परीक्षा, रिजल्ट या दाखिले को लेकर चिंतित हैं। सभी स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय 16 मार्च से बंद हैं। जिन कक्षाओं की परीक्षाएं नहीं हुई हैं उनके छात्र इस असमंजस में हैं कि आखिरकार परीक्षा होगी भी या नहीं, जिनकी परीक्षाएं हो गई हैं उन्हें रिजल्ट का इंतजार है। नियामक संस्थाओं ने परीक्षा और अगला सत्र शुरू करने की नई तारीखों की घोषणा कर दी है, लेकिन सवाल है कि कोरोनावायरस का प्रकोप और बढ़ा या कम नहीं हुआ, तो क्या होगा।
सीबीएसई ने पहली से आठवीं तक के छात्र-छात्राओं को अगली कक्षा में प्रमोट करने का निर्देश स्कूलों को दिया है। नौवीं और 11वीं के छात्रों की परीक्षाएं जहां नहीं हुई हैं, वहां वे स्कूल-असेसमेंट के आधार पर प्रमोट किए जाएंगे। इस वर्ष 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाएं जल्दी शुरू हो गई थीं, लेकिन महामारी के चलते सीबीएसई और आइसीएसई बोर्ड की 19 मार्च से 31 मार्च तक होने वाली परीक्षाएं रुक गईं। सीबीएसई बोर्ड की 10वीं के मुख्य विषयों की परीक्षाएं हो चुकी हैं (उत्तर-पूर्वी दिल्ली को छोड़ कर, जहां फरवरी में हुए दंगों के कारण स्कूल तब से ही बंद हैं), लेकिन 12वीं की मुख्य विषयों की भी परीक्षाएं बाकी हैं। ये परीक्षाएं 1 से 15 जुलाई तक होंगी। यानी 31 मार्च को खत्म होने वाली परीक्षाएं साढ़े तीन महीने बाद 15 जुलाई को खत्म होंगी। सीबीएसई के तहत इस साल 18 लाख छात्र 10वीं बोर्ड और 12 लाख छात्र 12वीं बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं। पिछले साल सीबीएसई ने मई के पहले हफ्ते में रिजल्ट घोषित किए थे, लेकिन इस बार ये अगस्त के अंत में आएंगे। आइसीएसई बोर्ड के तहत 10वीं के छह और 12वीं के आठ मुख्य विषयों की परीक्षाएं बाकी हैं। करीब दो लाख छात्र 10वीं और 87 हजार 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं।
देरी के कारण असमंजस तो है ही, छात्र-छात्राओं के सामने नई समस्याएं भी हैं। इस साल कुछ अतिरिक्त विषयों की परीक्षा नहीं होगी। इसका असर रिजल्ट के साथ-साथ स्ट्रीम चुनने में भी दिख सकता है। 10वीं से 11वीं में दाखिला लेते समय छात्र स्ट्रीम चुनते हैं, यह 10वीं बोर्ड में मिले नंबर पर निर्भर करता है। कई बार अतिरिक्त विषय में नंबर ज्यादा होने पर उसे ‘बेस्ट 5’ में शामिल कर लिया जाता है और छात्र के कुल नंबर का प्रतिशत बढ़ जाता है। जिन छात्रों के अतिरिक्त विषय की परीक्षा नहीं होगी उन्हें यह विकल्प नहीं मिलेगा। 12वीं के अनेक छात्र-छात्राएं मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा जेईई में बैठते हैं। ये परीक्षाएं मई के अंत में होनी थीं। अब जेईई मेन परीक्षा 18 से 23 जुलाई तक और नीट परीक्षा 26 जुलाई को होगी। जेईई एडवांस के लिए 23 अगस्त की तारीख तय की गई है। नीट के लिए करीब 15 लाख और जेईई मेन के लिए नौ लाख छात्रों ने आवेदन किया है। जेईई मेन के टॉप 2.5 लाख छात्र ही एडवांस परीक्षा में बैठते हैं।
सोशल डिस्टेंसिंग मानकों के चलते 12वीं की बाकी बची परीक्षाओं और नीट-जेईई प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन भी चुनौतीपूर्ण होगा। नीट और जेईई नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) आयोजित करती है। नीट में देश भर के छात्रों को एक साथ बैठना पड़ता है। इसके विपरीत जेईई परीक्षा कई शिफ्टों में होती है। पिछले साल करीब 3,000 सेंटर पर छात्रों ने नीट परीक्षा दी थी। सोशल डिस्टेंसिंग मानकों को देखते हुए इस साल लगभग 6,000 सेंटर की जरूरत पड़ेगी। जेईई के लिए 600 सेंटर की योजना थी, इसमें 150 से 200 सेंटर और जोड़े जा सकते हैं।
देरी के चलते स्कूलों में नए सत्र का सिलेबस भी घट सकता है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय और राज्य सरकारों के बोर्ड से इस पर विचार करने के लिए कहा है। सीबीएसई की कोर्स कमेटी इस पर विचार कर भी रही है। हालांकि अभी तक स्कूलों को इस बारे में कोई निर्देश नहीं दिया गया है। यह चर्चा भी है कि 2021 में परीक्षा थोड़ा आगे खिसका दी जाए, ताकि सिलेबस ज्यादा न घटाना पड़े। सिलेबस कम हुआ तो 2021 में जेईई और नीट की परीक्षाएं भी घटे हुए सिलेबस के आधार पर होंगी।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र स्थित एक प्रतिष्ठित स्कूल चेन की शाखा की प्रिंसिपल ने बताया कि ज्यादातर स्कूलों में नौवीं कक्षा तक की परीक्षाएं फरवरी तक हो चुकी थीं और उनके रिजल्ट भी आ गए। यह जरूर है कि अभी रिजल्ट की सॉफ्ट कॉपी ही दी गई है, लेकिन उसके आधार पर बच्चों का प्रमोशन हो गया और ऑनलाइन कक्षाएं भी शुरू हो गई हैं। नौवीं और 10वीं में ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बोर्ड ने 2 मई को अल्टरनेटिव अकादमिक कैलेंडर जारी किया। अभी यह चार हफ्ते के लिए है, जिसे जरूरत पड़ने पर बढ़ाया जा सकता है। हालांकि ऑनलाइन क्लास की अपनी सीमाएं हैं। दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी स्कूलों में 7 अप्रैल से 12वीं कक्षा के छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लास शुरू की थी, लेकिन तीन हफ्ते तक इनमें 25 से 30 फीसदी छात्र ही आए। प्राइवेट स्कूलों में जरूर छात्रों की अटेंडेंस पर गौर किया जा रहा है। एक शिक्षक ने बताया कि लगातार तीन दिन तक ऑनलाइन क्लास में कोई छात्र नहीं आया तो उसके घर माता-पिता से बात की जाती है। शिक्षकों की शिकायत है कि ऑनलाइन क्लास में उन्हें ज्यादा समय देना पड़ रहा है। एक शिक्षक ने बताया कि स्कूल ने उन्हें रात आठ बजे बच्चों को ऐप पर स्टोरी टेलिंग के लिए कहा है।
वैसे, पढ़ाई के विकल्प के तौर पर अभी तक ई-लर्निंग का ही उपाय बताया जा रहा है, लेकिन इससे क्या होगा, कुछ स्पष्ट नहीं है। कुछ जानकारों के मुताबिक, ई-लर्निंग ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों को इसलिए मुफीद लग रहा है कि इसके बहाने वे फीस की मांग कर सकें। अगले पन्नों पर ई-लर्निंग की कामयाबी, नाकामी के ब्यौरों पर विशेषज्ञों की राय भी यही बता रही है कि यह मुफीद नहीं है। लेकिन लगता है कि सरकार को भी फिलहाल इसका कोई विकल्प नहीं सूझ रहा है। इसलिए सवाल गंभीर हो गए हैं।
उच्च शिक्षा संस्थानों की तैयारियां
आम तौर पर जून में नया सत्र शुरू करने वाले आइआइएम फिलहाल इस साल अगस्त से नए सत्र की शुरुआत करने की बात कह रहे हैं। इसके लिए वे छात्रों का वर्चुअल इंटरव्यू कर रहे हैं। यही स्थिति इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों की भी है। हालांकि एआइसीटीई चेयरमैन प्रो. अनिल दत्तात्रेय सहस्रबुद्धे इस देरी से निपटने का तरीका भी बताते हैं। आउटलुक से बातचीत में उन्होंने कहा, “हमें इस बात को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए। इस साल सत्र भले देर से शुरू हो, लेकिन दिसंबर की छुट्टियां और अगले साल गर्मी की छुट्टियों को थोड़ा कम करके इसे एडजस्ट किया जा सकता है। अभी हम डेढ़ महीना पीछे हैं तो एक साल बाद हो सकता है हम सिर्फ 15 दिन पीछे रहें। उसके बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी।” विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों में विश्वविद्यालयों से कॉलेज की परीक्षाएं 1 जुलाई से शुरू करने और उसी महीने रिजल्ट घोषित करने को कहा गया है। पुराने छात्रों के लिए अगला सत्र अगस्त से और नए छात्रों के लिए 1 सितंबर से शुरू होगा। अगर जुलाई-अगस्त तक महामारी में व्यापक सुधार नहीं आया तो क्या होगा, यह पूछने पर यूजीसी चेयरमैन प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह ने आउटलुक से कहा, हमारी गाइडलाइन काफी लचीली हैं। सोशल डिस्टेंसिंग की जरूरत लंबे समय तक रह सकती है, इसलिए हमने जून तक कोई एक्टिविटी करने का सुझाव नहीं दिया है। यूजीसी जून में भी स्थिति की समीक्षा करेगी और तब के हालात को देखते हुए उचित फैसला लिया जाएगा। उन्होंने बताया, “हमने फाइनल सेमेस्टर के लिए विश्वविद्यालयों से परीक्षाएं करवाने को कहा है, बाकी सेमेस्टर के लिए कई विकल्प दिए हैं। जहां परीक्षाएं करवाना संभव न हो, वहां एक विकल्प यह भी है कि छात्रों को 50 फीसदी अंक पिछले सेमेस्टर के आधार पर और बाकी अंक इंटरनल असेसमेंट के आधार पर दिए जा सकते हैं। पीएचडी और एमफिल के लिए भी छह माह का एक्सटेंशन दिया गया है। विश्वविद्यालय वाइवा और प्रैक्टिकल परीक्षाएं ऑनलाइन आयोजित कर सकते हैं।” आयोग के दिशानिर्देशों के मुताबिक परीक्षा का समय भी तीन घंटे से घटाकर दो घंटे किया जा सकता है।
विश्वविद्यालयों ने भी इसके मुताबिक तैयारियां शुरू कर दी हैं। जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने कहा है कि अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाएं पहली जुलाई से शुरू की जाएंगी। नोएडा स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी की प्रो. निपुणिका ने बताया कि ऑनलाइन परीक्षा की तैयारियां चल रही हैं। इस बीच ऑनलाइन दाखिले की प्रक्रिया भी जारी है। छात्र दाखिले के लिए अपने वीडियो भेज रहे हैं। उनका मूल्यांकन करके नाम तय किए जा रहे हैं। हरियाणा के सोनीपत स्थित ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी भी ऑनलाइन दाखिले कर रही है।
कोविड का असर
दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व डिप्टी डीन और एसजीटी यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो-वाइस चांसलर गुरप्रीत सिंह टुटेजा कहते हैं कि महामारी जल्दी खत्म होने वाली नहीं लगती। इसलिए सबसे ज्यादा प्रभाव असेसमेंट यानी परीक्षा पर होगा। विकसित देशों में ऑनलाइन प्रॉक्टर्ड असेसमेंट की सुविधा उपलब्ध है। इसमें कैमरे की मदद से दूर से बैठा व्यक्ति आपको देखता रहता है कि आप नकल तो नहीं कर रहे हैं। भारत में मोबाइल फोन की पहुंच तो काफी लोगों तक हो गई है, लेकिन लैपटॉप या डेस्कटॉप कम लोगों के पास है। शहरों में लैपटॉप या डेस्कटॉप बहुत से घरों में मिल जाएंगे लेकिन अर्ध शहरी और ग्रामीण इलाकों में बहुत कम घरों में मिलेंगे। इसलिए यहां प्रॉक्टर्ड असेसमेंट फिलहाल मुमकिन नहीं लगता। टुटेजा के अनुसार प्रवेश परीक्षाएं भी प्रभावित होंगी। हमारे यहां ऐसा कोई मानक नहीं जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि अमुक छात्र में प्रतिभा है और वह अमुक विषय में आगे पढ़ाई कर सकता है। यहां एक मात्र मानक यही है कि उसे परीक्षा में कितने अंक मिले हैं।
स्कूलों को लर्निंग ऐप उपलब्ध कराने वाली कंपनी कार्वनीश टेक्नोलॉजीज की संस्थापक और सीईओ अवनीत मक्कर कहती हैं, कोविड के कारण टेक्नोलॉजी की स्वीकार्यता काफी बढ़ गई है। माता-पिता पहले सोचते थे कि जब टीचर पास में है तो ऑनलाइन पढ़ाई का क्या मतलब। अब वे इसका महत्व समझने लगे हैं। सामान्य दिनों में हम शिक्षकों को पीपीटी या वीडियो बनाने के लिए कहते, तो वे बहुत मुश्किल से राजी होते थे। कोविड के बाद उन्हें लगा कि अब कोई चारा नहीं है। सरकारी कॉलेजों में भी कभी पीपीटी या वीडियो का इस्तेमाल नहीं करने वाले प्रोफेसर अब इनके जरिए पढ़ा रहे हैं। उन्हें भी लगने लगा है कि एक बार प्रेजेंटेशन बना लिया तो उसका इस्तेमाल बाद में अनेक बार किया जा सकता है। अवनीत ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान उनके प्रोडक्ट की डिमांड दोगुनी हो गई है।
आगे क्या
यूजीसी चेयरमैन प्रो. सिंह कहते हैं, “ऑनलाइन, ई-लर्निंग वगैरह का चलन बढ़ेगा। अच्छे वीडियो लेक्चर ऑनलाइन उपलब्ध होंगे, लेकिन ये इंटरएक्टिव होने चाहिए। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने के लिए टीचर्स को भी अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। हालांकि एक शिक्षाविद् होने के नाते मैं कहूंगा कि आमने-सामने बैठकर पढ़ने-पढ़ाने का तरीका तो श्रेष्ठ है ही, परंतु बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षिक तंत्र को प्रभावी बनना भी जरूरी है।” टुटेजा मानते हैं कि कोविड-19 में लोगों को अलग तरह का अनुभव हुआ है, जिसका फायदा आगे मिल सकता है। लोगों ने खुद को ऑनलाइन शिक्षा के लिए काफी हद तक तैयार कर लिया है। संकट के समय में हमने जो सीखा है, उससे अगर हम तैयारी करें तो आगे चलकर किसी समस्या का तत्काल समाधान निकाला जा सकता है।
ऑनलाइन असेसमेंट के लिए प्रॉक्टोरल प्लेटफॉर्म जरूरी है। एआइसीटीई चेयरमैन प्रो. सहस्रबुद्धे के अनुसार, भारत में घरेलू स्तर पर बने कई प्लेटफार्म हैं। डेढ़ साल पहले महाराष्ट्र नॉलेज कमीशन लिमिटेड पुणे (महाराष्ट्र सरकार का साझा उद्यम) ने ऐसा प्रॉक्टोरल प्लेटफॉर्म तैयार किया था, जिसमें छात्र अपने घर बैठ कर परीक्षा दे सकते हैं। जिस तरह परीक्षा हॉल में आइडेंटिटी कार्ड और एडमिट कार्ड देखे जाते हैं, उसी तरह इसमें छात्र की रेटिना जांच करके उनकी पहचान की जाती है। उसके बाद ही प्रश्नपत्र मिलता है। कैमरे के जरिए उनकी गतिविधियों पर पूरी नजर रखी जाती है। अगर कैमरा बंद हो गया या कोई संदिग्ध गतिविधि नजर आई तो 15 सेकंड में परीक्षा बंद हो जाएगी। प्रो. सहस्रबुद्धे के अनुसार, ऐसे और भी प्लेटफॉर्म हैं। डेढ़ महीने में कई कंपनियों ने संपर्क किया है। अभी इनका ज्यादा प्रयोग नहीं हुआ है, इसलिए इनमें कुछ छोटी-मोटी गलतियां हो सकती हैं। इस्तेमाल करने पर खामियों का पता चलेगा और उन्हें दूर किया जा सकेगा। अभी तक सामान्य तरीके से परीक्षाएं होती थीं तो कोई इनमें रुचि नहीं दिखाता था, अब इनकी मांग बढ़ेगी।
संस्थान इस तरह की टेक्नोलॉजी को तेजी से अपना रहे हैं। दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (डीटीयू) ने सभी थ्योरी विषयों की परीक्षाएं ऑनलाइन कराने का फैसला किया है। ये परीक्षाएं एआइ प्रॉक्टर्ड प्लेटफॉर्म के जरिए होंगी। इसी तरह, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग ने ऑनलाइन परीक्षाएं आयोजित करने के लिए एमयूएनआइ कैंपस नाम की एजुटेक कंपनी के साथ समझौता किया है। यह कंपनी परीक्षा के दौरान छात्रों की लाइव प्रॉक्टरिंग करेगी। छात्र चाहें तो टेक्स्ट बॉक्स में अपना उत्तर लिख सकते हैं या कागज पर उत्तर लिखकर उसे स्कैन करके अपलोड कर सकते हैं।
अवनीत कहती हैं, “शिक्षा के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी क्रांति आएगी। पहले हम टेक्नॉलोजी सॉल्यूशन लेकर जाते थे, तो स्कूल उसे मंजूरी देने में छह से सात महीने लगाते थे। पहली बार ऐसा देखने को मिल रहा है कि स्कूल खुद टेक्नोलॉजी मांग रहे हैं। छोटे-छोटे शहरों से भी स्कूलों की डिमांड आ रही है। इससे नई तरह की नौकरियों के अवसर भी पैदा हो रहे हैं। जिसके पास जिस विषय की जानकारी है, वह उस विषय में ऑनलाइन क्लास ले सकता है। यह एजुटेक क्रांति की शुरुआत है।” लेकिन फिलहाल समस्या पढ़ाई शुरू करने की है।
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आमने-सामने बैठकर पढ़ना-पढ़ाना श्रेष्ठ, लेकिन बदली परिस्थितियों के अनुरूप शैक्षिक तंत्र को प्रभावी बनाना जरूरी
प्रो. धीरेंद्र पाल सिंह
चेयरमैन, यूजीसी
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सत्र को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए। अभी सत्र भले देर से शुरू हो, छुट्टियां कम करके इसे एडजस्ट करना संभव
प्रो. अनिल डी. सहस्रबुद्धे
चेयरमैन, एआइसीटीई
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अर्धशहरी और ग्रामीण इलाकों में लैपटॉप-डेस्कटॉप कम, इसलिए प्रॉक्टर्ड असेसमेंट फिलहाल मुमकिन नहीं
गुरप्रीत सिंह टुटेजा
पूर्व डिप्टी डीन, डीयू