भारत में ई-लर्निंग कारगर साबित नहीं हो रही है। इसके लिए छात्रों में अलग तरह की प्रतिबद्धता और ध्यान देने की क्षमता आवश्यक है। ई-लर्निंग में कोर्स के बजाय छात्रों पर फोकस होना चाहिए। हमारे वर्तमान शिक्षा तंत्र में इनमें से किसी पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। ई-लर्निंग के लिए घर में कंप्यूटर है या नहीं, हाईस्पीड फाइबर ब्रॉडबैंड कनेक्शन है या 2जी मोबाइल फोन है, आप पांचवीं क्लास में हैं या उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, आपके किसी विषय में लैब प्रैक्टिकल की आवश्यकता है अथवा नहीं, आपके लिए समस्याएं एक जैसी हैं, भले ही आप छात्र हों या फिर अध्यापक। भारत अभी ई-लर्निंग के लिए तैयार नहीं है। किसी अध्यापक ने बड़ी संख्या में वेबिनार और लेक्चर के वीडियो किसी पब्लिक पोर्टल पर डाले हैं, ऐसा दावा करने वाले तमाम बयान (मेरी नजर में असत्य) कोई मायने नहीं रखते हैं। नामी-गिरामी स्कूलों के ये दावे भी निरर्थक हैं कि उसने कोविड-19 के दौरान ई-लर्निंग के जरिए छात्रों की पढ़ाई सफलतापूर्वक जारी रखी है। उम्मीद दिखाने वाले ये दावे जमीनी स्थिति को बयान नहीं करते।
हमारे यहां के छात्रों और प्रोफेसरों की इस मामले में अक्षमता आपके लिए दुख पहुंचाने वाली होगी। हम आपको शिक्षा जगत के अंदर की स्थिति बताते हैं। दुनिया के दूसरे अंग्रेजी भाषी देशों से मिल रही अनौपचारिक रिपोर्ट भी इसी ओर संकेत देती हैं कि शिक्षण गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं, क्योंकि आज की शिक्षा प्रणाली ई-लर्निंग के लिए डिजाइन नहीं की गई है। ई-लर्निंग से शिक्षा पा रहे एक अमेरिकी बच्चे की मां ने मुझे बताया कि अगर उसकी कोविड-19 से मौत नहीं हुई, तो वह अपने बच्चों को यह समझाने के प्रयास में अवश्य दम तोड़ देगी कि उनके अध्यापक ऑनलाइन क्या पढ़ा रहे हैं।
देश में डिजिटल संसाधन लंबे समय से मौजूद हैं। सामान्य दिनों में ये पढ़ाई में कुछ हद तक पूरक का काम भी करते हैं। कुछ ई-एक्जाम भी आयोजित हुए हैं। लेकिन मार्च से मई 2020 तक के मौजूदा दौर के संदर्भ में कोई बेहतरीन झूठा ही यह दावा कर सकता है कि कोविड-19 के कारण क्लास न लग पाने से हो रहे नुकसान की भरपाई ई-लर्निंग से पूरी हो रही है- चाहे यह बात कोई छात्र, अध्यापक या फिर प्रशासक ही क्यों न बोल रहा हो। कृपया 2020 के ग्रीष्मकालीन सत्र को रद्द कर दीजिए। भारतीय छात्रों के लिए जून-जुलाई में शुरू होने वाले सत्र के बारे में वैकल्पिक शिक्षण व्यवस्था की रणनीति पर सोचिए, ताकि अगले सत्र को भी रद्द करने की आवश्यकता न पड़े।
स्कूल और कॉलेज शिक्षा के स्तर की अध्ययन सामग्री पहले से ही ऑनलाइन उपलब्ध है। भारत में सरकार और उसकी एजेंसियां जैसे यूजीसी, एनसीईआरटी, इग्नू और एनओएस जैसी डिस्टेंस एजुकेशन इंस्टीट्यूट लंबे समय से लेक्चर और किताबें ऑनलाइन सुलभ कराते रहे हैं। कुछ प्रोफेसर भी ई-लर्निंग के लिए सीमित दायरे के कोर्स ऑफर कर रहे हैं। कुछ यूनिवर्सिटी और स्कूलों ने ई-लर्निंग के लिए छात्रों का मूल्यांकन किया और उन्हें उनकी कुशलता के लिए प्रमाण-पत्र दिए। लेकिन याद रखिए, ये बेहद सीमित किस्म की लर्निंग और कौशल के लिए प्रयोग हुए हैं और छात्रों ने इन्हें अपनी इच्छा से हासिल किया है। प्रायः इनका खर्च बहुत ज्यादा होता है। इन सबमें अहम है कि यह छात्रों को क्लास में मिलने वाली सामान्य शिक्षा से अतिरिक्त है।
समस्या ई-लर्निंग के लिए संसाधनों की उपलब्धता की नहीं है। समस्या हमारी वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था के स्वरूप से जुड़ी है। मौजूदा शिक्षा का फोकस किसी एक स्थान पर बड़ी संख्या में एकत्रित छात्रों को एक तरह का ज्ञान देने पर है। छात्रों को मिलने वाली आजादी महज दिखावटी है। छात्र सीमित सूची से ही विषय का चयन कर सकते हैं। इन्हें पढ़ाने का तरीका इस बात से बेपरवाह होता है कि छात्र ने क्या सीखा। कक्षा में नआने वाला छात्र पीछे छूट जाता है। कक्षा में सक्रिय रहने वाले और अध्यापक से सवाल पूछने वाले छात्र को भी मौजूदा ढांचे में पढ़ाई के लिए काफी अध्ययनशील बनना पड़ता है। अमेरिका में स्कूल स्तर के ऐसे छात्र जो अध्ययनशील नहीं हैं, उनके लिए नया शब्द ईजाद किया गया। वहां कहा जाता है कि ये छात्र एडीएचडी से पीड़ित हैं और उन्हें एडीएचडी से छुटकारे के लिए दवाइयां भी दी जाती हैं।
ज्ञान के आदान-प्रदान की मौजूदा प्रक्रिया कठोर अनुशासन से बंधी है। इसमें छात्र की किसी खास रुचि अथवा नियोक्ता और समाज की जरूरतों का कोई स्थान नहीं होता है। पढ़ाई की एक समय सारणी होती है, भले ही कोई छात्र कुछ भी न समझ पाया हो। बेहतरीन प्रोफेसर और पाठ्यक्रम वाले सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों और स्कूलों में भी छात्रों को दैनिक जीवन के अनुभवों वाला ज्ञान कम ही मिलता है। छात्रों को सामान्य जीवन से निकालकर किसी एक स्थान पर एकत्रित करके शिक्षा दी जाती है। यही वजह है कि तमाम कामकाजी लोग वर्तमान शिक्षा प्रणाली में तब तक अध्ययन करने में कठिनाई महसूस करते हैं, जब तक कि वे अपने रोजगार की दैनिक व्यस्तता छोड़कर पूरी तरह अध्ययन में नहीं लग जाते। किसी भी व्यक्ति से पूछिए जो नौकरी कर रहा हो और साथ ही ईवनिंग क्लास में जा रहा हो। नौकरी के साथ पढ़ाई के लिए खास तरह की प्रतिबद्धता की आवश्यकता होती है। इसके लिए आत्म-अनुशासन की प्रतिबद्धता के साथ दूसरे कामों की चिंता में उलझे बगैर एक ही काम पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता जरूरी होती है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली लेक्चर सुनने, पुस्तकें पढ़ने और उन पर आधारित निबंध और लेख लिखने के लिए छात्रों को बाध्य करने पर निर्भर है। इसमें न तो छात्र को आत्म-अनुशासन की ज्यादा आवश्यकता पड़ती है, न ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की। जब तक इस स्वरूप में बदलाव नहीं होता, तब तक ई-लर्निंग स्वप्न ही रहेगी।
(लेखक पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और स्टेट हायर एजुकेशन काउंसिल के सदस्य हैं, लेख में विचार निजी हैं)
------------------------------------------------
मौजूदा व्यवस्था का फोकस एक स्थान पर एकत्रित छात्रों को एक तरह का ज्ञान देने पर है, पढ़ाने का तरीका इस बात से बेपरवाह होता है कि छात्र ने क्या सीखा