अक्टूबर में हरियाणा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर प्रदेश कांग्रेस संगठन में किए गए फेरबदल से पार्टी राज्य में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चुनौती की तैयारी दुरुस्त कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नेता प्रतिपक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने से कांग्रेस में उत्साह दिख रहा है। हालांकि भाजपा भी “अबकी बार 75 पार” के नारे के साथ पूरे जोश में है। राज्य में 90 विधानसभा सीटें हैं और यह कयास लगाया जा रहा है कि कांग्रेस करीब 50 सीटों पर भाजपा को सीधी टक्कर दे सकती है। मई के आम चुनाव में 58 फीसदी वोट के साथ भाजपा ने प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। उसे 79 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, जिसे इस बार बरकरार रखना चुनौती भरा हो सकता है। शायद इसीलिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस) का दांव खेलने का प्रयास किया। हालांकि इस पर कोई खास प्रतिक्रिया न देकर हुड्डा ने खट्टर के बयान का असर कम करने की कोशिश है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि बाहरियों को जाना होगा और उनकी पहचान करना सरकार की जिम्मेदारी है।
2014 के लोकसभा चुनाव में 22.99 फीसदी और विधानसभा चुनाव में 20.58 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका वोट शेयर बढ़कर 28.42 फीसदी हो गया, भले ही एक भी सीट पर इसे जीत न मिली हो। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के दो फाड़ होने का लाभ लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को मिल सकता है, खासकर तब जब इनेलो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक अरोड़ा और इनेलो के दो पूर्व विधायक कांग्रेस में आ गए हैं।
कांग्रेस ने 10 साल मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर विश्वास जताया है। उन्हें नेता प्रतिपक्ष और चुनाव प्रबंधन समिति की दोहरी जिम्मेदारी दी गई है। वे पार्टी के सभी नेताओं को साथ लेकर चलने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। अशोक तंवर की जगह दलित चेहरा, पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस हाइकमान ने जातिगत समीकरण साधने की कोशिश की है। उन्हें अध्यक्ष बनाने के पीछे एक कारण यह भी बताया जा रहा है कि उनके साथ काम करने में किसी नेता को गुरेज नहीं होगा। उनके साथ पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर, कुलदीप बिश्नोई, किरण चौधरी, कैप्टन अजय यादव और रणदीप सुरजेवाला भाजपा के खिलाफ एकजुट हो सकते हैं।
शैलजा के सामने पहली चुनौती पार्टी कार्यकर्ताओं का मजबूत संगठन खड़ा करने की है। पांच साल सत्ता से बाहर रहने के चलते कांग्रेस का काडर कमजोर हुआ है। पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर के कार्यकाल में ब्लॉक व जिला स्तर पर कांग्रेस का संगठन खड़ा नहीं किया गया। इसका खमियाजा लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा। साढ़े तीन साल पहले जाट आरक्षण आंदोलन के बाद से हरियाणा की सियासत जाट और गैर-जाट के जाति समीकरणों में उलझी है। कांग्रेस को हमेशा सत्ता दिलाने वाला गैर-जाट वोट बैंक काफी हद तक भाजपा के साथ जुड़ चुका है। जनवरी 2019 में जींद में हुए उपचुनाव में जाति ध्रुवीकरण के चलते तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के दिग्गज रणदीप सुरजेवाला बड़ी मुश्किल से जमानत बचा पाए। इसलिए शैलजा को गैर-जाट नेताओं को साथ लेने और इस वोट बैंक को दोबारा कांग्रेस के पाले में लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। हालांकि कांग्रेस को दिल्ली के रविदास मंदिर प्रकरण का लाभ मिल सकता है। दलित समुदाय यह मंदिर तोड़े जाने से रोष में है और भाजपा को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
आउटलुक से बातचीत में शैलजा ने दावा किया कि कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी और हरियाणा में अगली सरकार बनाएगी। पार्टी का घोषणापत्र जनता के फीडबैक के आधार पर तैयार किया जा रहा है। चुनाव के लिए गठित कमेटियों में प्रमुख नेताओं को शामिल कर जिम्मेदारियां बांटी गई हैं। हालांकि किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई और अशोक तंवर अभी तक हुड्डा और शैलजा की चुनावी बैठकों से दूरी बनाए हुए हैं। लेकिन इसका असर इन नेताओं के अपने इलाकों तक ही रहने वाला है, क्योंकि इनमें से एक भी नेता हुड्डा के बराबर कद का नहीं, जिसकी पूरे हरियाणा में पकड़ हो। 2014 के विधानसभा चुनाव के समय से ही कांग्रेस के 15 में से 11 विधायक हुड्डा के साथ हैं। कांग्रेस हाइकमान पर बगावत का दबाव बनाते वक्त भी ये 11 विधायक हुड्डा के साथ थे।
फिलहाल, कांग्रेस की समस्या बड़े चेहरों पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का दबाव है। प्लॉट आवंटन घोटाले के आरोपों में सीबीआइ और ईडी हुड्डा के खिलाफ जांच कर रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल के विधायक बेटे कुलदीप बिश्नोई की जांच आयकर विभाग कर रहा है। चुनाव से पहले इन नेताओं पर जांच एजेंसियों का शिकंजा और कस सकता है।
आउटलुक से हुड्डा ने कहा कि उनके खिलाफ जो भी कार्रवाई की जा रही है वह बेबुनियाद और बदले की राजनीति से प्रेरित है। उनका दावा है कि विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा जैसे नहीं होंगे। पार्टी में एकजुटता के लिए वह किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई से मिल चुके हैं और बाकी नेताओं से भी लगातार बातचीत कर रहे हैं। बूथ स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए वे सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं के सम्मेलनों में जा रहे हैं।
हुड्डा कहते हैं, “कांग्रेस ही भाजपा को टक्कर देकर सरकार बनाएगी। भाजपा की “बी पार्टी” के तौर पर काम करने वाले इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के ज्यादातर विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश में इनेलो और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) का कोई वजूद नहीं है, इसलिए जनता के सामने कांग्रेस ही भाजपा का विकल्प है।” लेकिन इसके लिए कांग्रेस को टिकट बंटवारे में परिवारवाद से ऊपर उठकर जीतने योग्य उम्मीदवारों को आगे लाना होगा। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के सफाए का एक बड़ा कारण परिवारों में टिकट बंटना भी था। दस में से आठ लोकसभा सीटों पर कांग्रेस नेताओं के बेटे-बेटियां ही उम्मीदवार थे।
इनेलो के सामने वजूद का संकट
सन 1974 में अस्तित्व में आई पूर्व उपप्रधानमंत्री दिवंगत देवीलाल की भारतीय लोकदल 1987 से इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) हो गई। कभी एनडीए का घटक रही और डेढ़ दशक तक हरियाणा की सियायत में छाई रहने वाली इनेलो अब संकट में है। पांच बार मुख्यमंत्री रहे इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला के 2013 के टीचर घोटाले में जेल जाने के बाद से ही पार्टी का पतन शुरू हो गया। इनकी गैर मौजूदगी में चौटाला के छोटे बेटे अभय पार्टी-परिवार को एकजुट नहीं रख सके। 2014 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीत कर विपक्ष की भूमिका में आने वाली इनेलो पारिवारिक कलह से इस कदर खत्म हुई कि मई 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका वोट शेयर घटकर 1.89 फीसदी रह गया। ओमप्रकाश चौटाला के तीनों पोते हार गए। नौ महीने पहले इनेलो से टूटकर बनी पूर्व सांसद दुष्यंत चौटाला की जेजेपी के 10 विधायक भाजपा में जा चुके हैं। फिर भी पार्टी के नेता दिग्विजय चौटाला का कहना है कि जींद उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रही जेजेपी ने साबित किया है कि यही भाजपा को टक्कर दे सकती है।