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हालात सुधरना दूर की कौड़ी

जीडीपी में 40 फीसदी योगदान करने और 23 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाले कंस्ट्रक्शन, रिटेल, टेक्सटाइल, होटल सेक्टर ज्यादा प्रभावित
चक्का बंदः 3.5 करोड़ लोगों को रोजगार देने वाला टेक्सटाइल सेक्टर पूरी तरह ठप

विजय जिंदल की फरीदाबाद में एसपीएल इंडस्ट्रीज नाम से गारमेंट एक्सपोर्ट यूनिट है, लेकिन लॉकडाउन के चलते यह पूरी तरह बंद है। उनके निर्यात के कई ऑर्डर रद्द हो गए हैं, जो माल भेजा था उसका भुगतान नहीं मिला है। वह कहते हैं, “हमारा 30 से 35 फीसदी खर्च कर्मचारियों पर होता है। इसमें सरकार को मदद करनी पड़ेगी। सरकार इंडस्ट्री को ब्याज मुक्त वर्किंग कैपिटल मुहैया करवाए और उस पर एक साल का मोरेटोरियम हो। मदद नहीं मिली तो गारमेंट एक्सपोर्ट में लगी 60 से 70 फीसदी इकाइयां बंद हो जाएंगी। सरकार को कम से कम छह महीने तक मदद करनी पड़ेगी, तब तक शायद विदेशी बाजार भी पटरी पर आ जाए।”

विजय जिंदल या गारमेंट इंडस्ट्री अकेली नहीं, कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था के कई सेक्टर के स्वरूप को बदल दिया है। भारत की जीडीपी में 40 फीसदी से ज्यादा योगदान करने और 23 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाले कंस्ट्रक्शन, रिटेल, टेक्सटाइल, पर्यटन और होटल एवं रेस्तरां इंडस्ट्री जैसे सेक्टर पर इस संकट का असर गहरा है। आने वाले दिनों में इन सेक्टर में आमूल-चूल बदलाव दिख सकते हैं। संभव है कि कुछ इकाइयां हमेशा के लिए बंद हो जाएं तो कहीं बिजनेस की शर्तें पूरी तरह बदल जाएं। क्रिसिल के अनुसार भारत में एक चौथाई ठेका मजदूर हैं। कंस्ट्रक्शन, खनन, मैन्युफैक्चरिंग और ट्रांसपोर्ट जैसे सेक्टर में सबसे पहले इन्हीं की छंटनी होगी। इस संकट का जल्दी कोई समाधान भी नहीं दिख रहा। ग्लोबल एडवाइजरी फर्म विलिस टावर्स वाटसन के एक सर्वे में 57 फीसदी कंपनियों ने कहा कि अगले छह महीने के दौरान उनका बिजनेस काफी ज्यादा प्रभावित होगा। 46 फीसदी कंपनियों को महामारी का असर एक साल और 19 फीसदी दो साल तक रहने का अंदेशा है। दूसरी ओर, रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की तरफ से करीब 1,500 रिटेलर्स के सर्वे में पता चला कि लॉकडाउन तीन महीने तक खिंचा तो 25 फीसदी रिटेलर्स की दुकानें बंद हो जाएंगी।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अर्थव्यवस्था का रिवाइवल कैसे और कब होगा, यह कई जाने-अनजाने कारकों पर निर्भर करता है। मसलन, कोविड-19 की दवा कब बनती है, देश-दुनिया में लॉकडाउन पूरी तरह कब खत्म होता है और कोविड से कितनी मौतें होती हैं। ज्यादातर बड़े देशों ने उद्योग जगत के लिए राहत पैकेज की कई चरणों की घोषणा कर दी है, जबकि भारत में अभी इसका इंतजार है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार मांग बढ़ाने के उपाय करे। ऐसा न हो कि सरकार तब इलाज लेकर आए जब आदमी की मौत हो चुकी हो। दूसरे देशों ने जीडीपी के पांच से बीस फीसदी तक का पैकेज दिया है। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि अभी सवाल घाटे का नहीं, अर्थव्यवस्था बचाने का है।

कैसे सुधरें हालात

आम राय यह है कि सरकार अर्थव्यवस्था के हर सेक्टर में मांग बढ़ाने के उपाय करे। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के प्रेसिडेंट डॉ. डी.के. अग्रवाल ने आउटलुक से कहा, “अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में हम जितनी देर करेंगे रिवाइवल की लागत उतनी ज्यादा होगी। सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का प्रस्ताव बनाया था। इसमें निजी क्षेत्र का निवेश 30 फीसदी मान लें तो सरकार को 14 लाख करोड़ रुपये अभी खर्च करने चाहिए। सरकार मनरेगा पर खर्च करे, किसान सम्मान निधि का पैसा एडवांस में दे।”

कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (सीआइटीआइ) उपाध्यक्ष और वर्धमान यार्न्स एंड थ्रेड्स लिमिटेड के एमडी डीएल शर्मा कहते हैं, “सरकार ने कुछ कदम उठाए जरूर हैं लेकिन इंडस्ट्री के सर्वाइवल के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।” अग्रवाल कहते हैं, “सरकार को खासकर एमएसएमई के लिए जल्दी और बड़ा पैकेज लाना चाहिए। हमारा आकलन है कि एमएसएमई को बंदी से बचाने के लिए कम से कम चार फीसदी जीडीपी ग्रोथ जरूरी है। इतनी ग्रोथ रेट के लिए 16 लाख करोड़ रुपये का पैकेज चाहिए जो हमारी जीडीपी के सात फीसदी के बराबर होगा। इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, लेकिन महंगाई ज्यादा नहीं बढ़ेगी क्योंकि अभी महामारी के चलते मांग बहुत कम है।”

शर्मा कहते हैं कि निर्यात के लिए लेटर ऑफ क्रेडिट चाहिए। अभी विदेशी खरीदार भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि हम माल सप्लाई कर पाएंगे या नहीं क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग बंद है। कोई खरीदार एडवांस देने को तैयार नहीं। पहले टेक्सटाइल एक्सपोर्ट पर ब्याज में पांच फीसदी तक छूट मिल जाती थी। अगर वही फिर मिलने लगे तो काफी राहत मिल जाएगी। गारमेंट एक्सपोर्टर्स एंड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (जीईएमए) के प्रेसिडेंट विजय जिंदल का मानना है कि रिवाइवल एकदम से नहीं होगा। इंडस्ट्री अभी आईसीयू में है, सरकार को कम से कम छह महीने तक मदद करनी पड़ेगी।

इस संकट का सबसे ज्यादा असर एमएसएमई पर दिख रहा है। अग्रवाल कहते हैं कि इन्हें कर्ज पर ब्याज में पांच फीसदी छूट मिलनी चाहिए। आज वे इस स्थिति में नहीं कि ज्यादा ब्याज चुका कर धंधा चला सकें। इनकी सबसे बड़ी समस्या फंड की है। सरकार को उनके 50 से 75 फीसदी कर्ज पर गारंटी देनी पड़ेगी, 25-30 फीसदी की गारंटी से कुछ नहीं होगा। कर्ज पर कम से कम एक साल का मोरेटोरियम भी होना चाहिए, उनके लिए तीन महीने का मोरेटोरियम कुछ भी नहीं है। इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का भी सुझाव है कि सरकार छोटे कारोबारियों के नए कर्ज की गारंटी दे। शर्मा तो एमएसएमई के लिए कर्ज पर ब्याज फिलहाल माफ करने की बात भी कहते हैं। सिंहभूम चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (एसीसीआइ) के प्रेसिडेंट अशोक भालोटिया के मुताबिक जिन्होंने बैंक से कर्ज ले रखा है, उनकी स्थिति ज्यादा खराब है। लोग अपनी यूनिट तक बेचने को तैयार हैं लेकिन माहौल ऐसा है कि कोई खरीदार नहीं मिल रहा। अगर यही स्थिति रही तो किसानों की तरह उद्यमी भी आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाएंगे।

सरकार ने उद्योग से सभी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कहा है। लेकिन अग्रवाल के अनुसार ज्यादातर इकाइयां इस स्थिति में नहीं हैं। सरकार को वेतन में 75 फीसदी मदद देनी चाहिए। भालोटिया कहते हैं कि अप्रैल में एक दिन भी फैक्ट्री नहीं चली तो वेतन कहां से दें। ईएसआई फंड में 75 से 80 हजार करोड़ रुपये हैं, सरकार को इस फंड का इस्तेमाल करना चाहिए। वैसे, श्रम पर संसदीय समिति ने हाल ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए इंडस्ट्री पर दबाव नहीं डाला जा सकता।

फेडरेशन ऑफ इंडियन माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के प्रेसिडेंट अनिमेष सक्सेना के अनुसार एमएसएमई के लिए स्थितियां ज्यादा चुनौतीपूर्ण इसलिए हैं क्योंकि उनमें ऑटोमेशन कम है और उनमें प्रवासी मजदूर काफी होते हैं। अभी लोगों को यही साफ नहीं है कि लॉकडाउन कब खुलेगा, खुलेगा तो कहीं फिर दोबारा तो नहीं लग जाएगा। राजनीतिक लीडरशिप को पहले यह डर दूर करना पड़ेगा। उन्हें बताना पड़ेगा कि हम लॉकडाउन खोलने की तरफ बढ़ रहे हैं, तभी मजदूर काम पर लौटने की सोचेंगे।

उद्योग के सामने नकदी की बड़ी समस्या है। नेशनल रेस्तरां एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एनआरएआई) के प्रेसिडेंट अनुराग कटरियार ने बताया, “बिजनेस जब भी दोबारा शुरू होगा, हर कंपनी कंगाल हो चुकी होगी। उसके पास कैश नहीं होगा। हमारे सामने बहुत से नए खर्चे होंगे। सबसे पहले स्टॉक के लिए पैसा चाहिए क्योंकि रेस्तरां इंडस्ट्री में स्टॉक नहीं रख सकते, वह नष्ट हो जाता है। साफ-सफाई के नए नियम बनेंगे, उनके मुताबिक खुद को तैयार करना पड़ेगा। रेस्तरां इतने दिनों से बंद है तो उसे दोबारा शुरू करने से पहले थोड़ा रंग-रोगन भी करना पड़ेगा। इन सबके लिए नए वर्किंग कैपिटल की जरूरत पड़ेगी। आज के माहौल में प्राइवेट इक्विटी तो मिलेगी नहीं, बैंक से पैसे लेने पर अभी कर्ज लौटाना मुश्किल होगा। एक उपाय यह हो सकता है कि आरबीआइ सॉफ्ट लोन देने की अनुमति बैंकों को दे। इस कर्ज पर ब्याज दर कम और छह महीने का मोरेटोरियम हो।” कटरियार के अनुसार रेस्तरां, कर्मचारी, प्रॉपर्टी ओनर, फूड एग्रीगेटर, सरकार सबको नई शर्तों के साथ शुरुआत करनी पड़ेगी। अगर लोग यह बात नहीं समझेंगे तो बिजनेस कभी खड़ा नहीं हो पाएगा। कर्मचारियों को मल्टीटास्किंग करनी पड़ेगी। प्रॉपर्टी मालिक अगर उम्मीद करता है कि उसे पहले जितना किराया मिलेगा, तो यह मुश्किल है। जब तक समस्या है तब तक रेवेन्यू शेयरिंग मॉडल पर काम हो सकता है। कुछ चीजें सरकार भी ठीक कर सकती है। रेस्तरां बिजनेस में जीएसटी पर इनपुट टैक्स क्रेडिट नहीं मिलता। अगर सरकार क्रेडिट दे तो काफी राहत मिलेगी।

रियल्टी डेवलपर्स की संस्था क्रेडाई के चेयरमैन जक्षय शाह मानते हैं कि अभी वित्तीय के साथ दूसरे उपायों की भी जरूरत है। जैसे लोन की रिस्ट्रक्चरिंग हो, जो प्रोजेक्ट तैयार हैं या तैयार होने के करीब हैं उनमें एफडीआइ की अनुमति मिले, केंद्र सरकार राज्यों को कुछ महीने तक स्टांप ड्यूटी आधी करने का निर्देश दे और अफोर्डेबल हाउसिंग की कीमत की सीमा 45 लाख से बढ़ाकर 75 लाख रुपये की जाए। सरकार रियल एस्टेट को केंद्र में रखकर उपायों की घोषणा करे तो उसका असर अर्थव्यवस्था की दूसरे सेक्टर पर भी दिखेगा, क्योंकि करीब 250 एंसिलरी इंडस्ट्री इससे जुड़ी होती हैं। प्रॉपर्टी कंसल्टेंसी फर्म सीबीआरई के भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य-पूर्व और अफ्रीका के चेयरमैन और सीईओ अंशुमान मैगजीन के अनुसार स्थिति को देखते हुए कंपनियां बिजनेस प्लान पर नए सिरे से विचार कर रही हैं। रियल एस्टेट कंपनियां अगले 12 महीने को ध्यान में रखकर रणनीति बनाएं तो सेक्टर जल्दी रिवाइव हो सकेगा। घर खरीदारों को प्रॉपर्टी ब्रोकरेज फर्म एनारॉक की सलाह है कि अगर वे मोल-भाव करें तो खासा डिस्काउंट मिल सकता है। दिल्ली-एनसीआर और मुंबई समेत देश के सात बड़े शहरों में 66,000 करोड़ रुपये के 78,000 फ्लैट बनकर तैयार हैं। डेवलपर्स पर इन्हें बेचने का दबाव रहेगा।

वापसी की चुनौतियां

फिस्मे के सक्सेना कहते हैं, जैसे ही बसें-ट्रेनें चलना शुरू होंगी, मजदूर पहले अपने घर जाना चाहेंगे। वे कब आएंगे यह किसी को नहीं मालूम। कामकाज दोबारा शुरू करने में यह बहुत बड़ी चुनौती है। टेक्सटाइल, अपैरल और हैंडीक्राफ्ट निर्यात सेक्टर के लिए मुश्किलें ज्यादा हैं। ये सेक्टर श्रम आधारित ज्यादा हैं, इनमें प्रवासी मजदूरों की संख्या काफी है। लोगों के निर्यात ऑर्डर भी काफी रद्द हुए हैं। घरेलू बाजार में भी कपड़ों की बिक्री का एक सीजन होता है। मौजूदा सीजन की आखिरी शिपमेंट अप्रैल-मई तक होती है। अगला सीजन अक्टूबर-नवंबर में शुरू होगा। यानी जब स्थिति सामान्य होगी, हम लीन सीजन में होंगे। अगले सीजन तक कंपनियों के लिए बिना ज्यादा काम के टिके रहना मुश्किल होगा। सीआइटीआइ के शर्मा ने कहा, “टेक्सटाइल बहुत ही कम मार्जिन और ज्यादा मजदूरों वाली इंडस्ट्री है। मार्च में मिलों ने सैलरी दे दी, लेकिन अप्रैल का पैसा कहां से देंगे। लोगों की आमदनी घट रही है तो इसका असर खपत पर दिखेगा, चाहे वह खाने-पीने की चीजें हो या पहनने की।”

एनआरएआइ के कटरियार के अनुसार कुछ बिजनेस तो हमेशा के लिए बंद हो गए हैं। बिजनेस जब भी खुले, पहले की तुलना में 30-40 फीसदी से ज्यादा कारोबार नहीं होगा। चीन में बिजनेस दोबारा शुरू हुए हैं लेकिन वहां होटल और रेस्तरां में ऑक्युपेंसी रेट 30 से 35 फीसदी है, वह भी तब जब चीन में हर व्यक्ति महीने में औसतन 28 बार बाहर खाना खाता है। भारत में तो यह औसत सिर्फ 4.1 है। जब बिजनेस के खर्चे वही रहेंगे, लेकिन कारोबार आधा रह जाएगा तो बिजनेस बंद ही करना पड़ेगा। जीईएमए के जिंदल ने बताया, “कोरोना की बीमारी पहले विदेश में शुरू हुई। वहां खरीदारों ने ऑर्डर रद्द या होल्ड कर दिए। हमने जो माल भेजा, उसका भुगतान रुक गया। इस सेक्टर में 95 फीसदी उद्यमी एमएसएमई हैं। उनके पास नगद नहीं के बराबर है।” छंटनी और वेतन कटौती के माहौल में लोग घर खरीदने का फैसला तो टाल ही सकते हैं, बुकिंग करवा चुके ग्राहक भी भुगतान में डिफॉल्ट कर सकते हैं। इसलिए क्रेडाइ के जक्षय शाह को लगता है कि नई लॉन्चिंग में देरी होगी। पुराने प्रोजेक्ट में खरीदारों के डिफॉल्ट करने से डेवलपर्स को नकदी की काफी समस्या आएगी। हालांकि उन्हें कुछ उम्मीद भी है। वह कहते हैं, “कोविड-19 संकट ने लोगों को एहसास कराया है कि घर सबसे सुरक्षित जगह है, इसलिए मेरा मानना है कि लोग आने वाले दिनों में घर खरीदने में ज्यादा निवेश करेंगे।”

कुछ दिक्कतें सरकारी आदेशों से भी पैदा हुई हैं। 15 अप्रैल से लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू हुआ तो गृह मंत्रालय ने दिशानिर्देश जारी किए, लेकिन राज्यों ने उन्हें अपने तरीके से लागू किया। सक्सेना के मुताबिक हरियाणा सरकार ने 19 अप्रैल की शाम को कहा कि यूनिट खोलने के लिए उद्योगों को एक पोर्टल पर आवेदन करना पड़ेगा। 19 तारीख की रात आप पोर्टल पर आवेदन के लिए कह रहे हैं, फिर तो 20 से काम शुरू हो ही नहीं सकता। एक और उदाहरण पीएफ और ईएसआई का है। कंपनियों को 15 तारीख तक पीएफ का पैसा जमा करना पड़ता है। ईएसआई ने बहुत पहले कह दिया कि कंपनियां मई तक पैसे जमा कर सकती हैं, लेकिन पीएफ विभाग ने तारीख बढ़ाने की सूचना 15 तारीख की सुबह दी। सक्सेना कहते हैं, क्या यह जानबूझकर किया गया ताकि जितने लोग पैसे जमा कर रहे हैं उन्हें करने दिया जाए। कामकाज बंद होने के बावजूद कई राज्य बिजली का फिक्स्ड चार्ज वसूल रहे हैं। सक्सेना के अनुसार जब उत्पादन नहीं हो रहा, बिजली खर्च नहीं हो रही है तो फिक्स्ड चार्ज का बोझ क्यों लाद रहे हैं।

अब तक के उपाय

सरकार ने 20 अप्रैल से कुछ शर्तों के साथ औद्योगिक गतिविधियों की अनुमति दी, लेकिन एक जिले से दूसरे जिले या एक राज्य से दूसरे राज्य में आने-जाने की इजाजत नहीं दी। कर्मचारियों की संख्या भी कम रखने की हिदायत दी गई। भालोटिया के अनुसार हमें सिर्फ 25 फीसदी कर्मचारियों के साथ काम करने को कहा गया। यूनिट चलाने के लिए ज्यादा कर्मचारी चाहिए और नियम बना दिया जाए कि इतने लोग ही काम कर सकेंगे, तो यूनिट चलाना मुमकिन नहीं होगा। अग्रवाल ने कहा, “सरकार को किसी भी इंडस्ट्री में मैन्युफैक्चरिंग से लेकर सर्विस प्रोवाइडर तक, पूरे ईकोसिस्टम को शुरू करने की अनुमति देनी पड़ेगी। अगर कोई उद्यमी सामान बनाता है और उसकी बिक्री नहीं होती, तो वह क्यों बनाएगा।” फिस्मे के सक्सेना भी कहते हैं, किसी इंडस्ट्री की सप्लाई चेन एक जिले में नहीं है। कोई भी इकाई पूरी वैल्यू चेन का हिस्सा मात्र होती है। भले ही कम क्षमता के साथ काम हो, सरकार को किसी इंडस्ट्री की पूरी वैल्यू चेन शुरू करने की अनुमति देनी चाहिए थी।

(साथ में चंडीगढ़ से हरीश मानव, दिल्ली से के.के. कुलश्रेष्ठ)

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जीएसटी रिफंड में तेजी और ब्याज में सब्सिडी की दरकार

एससी रल्हन, इंजीनियरिंग गुड्स एक्सपोर्टर और फियो के पूर्व अध्यक्ष

हमारा एक्सपोर्ट कारोबार मार्च में 35 फीसदी और अप्रैल में शून्य रह गया है। एमएसएमई निर्यातकों का कारोबार पटरी पर लाने के लिए विदेश व्यापार नीति की अवधि 31 मार्च 2020 के बाद एक वर्ष और बढ़ाई जाए। पहली तिमाही में बैंक कर्ज ब्याज मुक्त किया जाए, इसके बाद जुलाई 2020 से मार्च 2025 तक ब्याज पर सब्सिडी मिले। आयात शुल्क पर जुर्माना और ब्याज न लगे। वास्तविक खपत पर ही बिजली बिल जारी हों और न्यूनतम देय शुल्क माफ हो। छोटे निर्यातकों को सरकार तुरंत आइजीएसटी रिफंड करे। श्रमिकों को मार्च का वेतन दिया है पर अप्रैल का भुगतान नहीं कर पाएंगे। लॉकडाउन में बगैर उत्पादन के श्रमिकों को पूरा वेतन देने के केंद्रीय गृह मंत्रालय के निर्देश को हमने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। ईएसआई फंड में उद्यमियों के अंशदान की भारी राशि पड़ी है, मेरे विचार से सरकार को इस फंड से श्रमिकों को पूरा वेतन देना चाहिए।

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ईएसआइ फंड से श्रमिकों को दिया जाए वेतन

कमल ओसवाल, वाइस चैयरमैन, नाहर ग्रुप ऑफ कंपनीज

मुझे लगता है, लॉकडाउन के बाद भी टेक्सटाइल और गारमेंट्स सेक्टर को बाजार में मांग के लिए कम से कम छह महीने तक इंतजार करना होगा। कुछ दिनों तक उपभोक्ताओं की प्राथमिकता जरूरी वस्तुएं ही रहेंगी, गारमेंट्स का नंबर बाद में आता है। नियम है कि बीमारी की हालत में श्रमिकों को काम से छुट्टी की अवधि में ईएसआइ फंड से वेतन जारी होता है। इसी तर्ज पर आपातकाल में औद्योगिक उत्पादन ठप होने की सूरत में श्रमिकों को पूरा वेतन भुगतान करने के लिए केंद्र सरकार फंड बनाए। उद्यमियों पर बिजली का न्यूनतम शुल्क, बैंकों का ब्याज, किराया और अन्य तय खर्च उठाने का भार रहता है ऐसे में श्रमिकों को अप्रैल का वेतन ईएसआई फंड से जारी किया जाना चाहिए।

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इन्वेस्टमेंट एलाउंस से बढ़ेगा मैन्युफैक्चरिंग में निवेश

पूरन डावर, चेयरमैन, डावर फुटवियर इंडस्ट्रीज

लेदर फुटवियर और अन्य उत्पादों के निर्यातक गर्मियों के सीजन के ऑर्डर पूरे कर रहे थे, लेकिन अनायास लॉकडाउन होने से अनेक ऑर्डर रद्द हुए हैं। जो माल भेजे गए, वे भी खरीदारों को मिल नहीं पाए। मेरा मानना है कि इस साल 30 फीसदी निर्यात भारी डिस्काउंट पर भी नहीं हो पाएगा। निर्यातकों के सामने लिक्विडिटी सबसे बड़ी समस्या है। मेरा मानना है कि निर्यातकों को पांच साल तक के लिए मौजूदा सीसी लिमिट में 50 फीसदी बढ़ोतरी की जाए। लॉकडाउन के बाद अवसरों का फायदा उठाने के लिए मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लिबॉर रेट पर कर्ज और हेजिंग की सुविधा मिले। इससे उद्योगों की फंड जुटाने की लागत कम होगी। इन्वेस्टमेंट एलाउंस से मैन्युफैक्चरिंग में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा। आयकर की दर घटाने के बजाय इसकी दस फीसदी राशि से करदाताओं को पेंशन, स्वास्थ्य और जीवन बीमा सुरक्षा दी जानी चाहिए।

 

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आने वाले दिनों में बिजनेस की शर्तें भी बदलेंगी, लोग यह नहीं समझे तो बिजनेस कभी खड़ा नहीं हो सकेगा

अनुराग कटरियार, प्रेसिडेंट, एनआरएआई

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कोई खरीदार एडवांस नहीं दे रहा, ब्याज में पांच फीसदी छूट फिर मिलने लगे तो काफी राहत होगी

डी.एल. शर्मा, उपाध्यक्ष, सीआइटीआइ

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