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18 मार्च 2023 · MAR 18 , 2024

किसान आंदोलन: न्यूनतम की लड़ाई

एमएसपी और दूसरी मांगों पर कोई सकारात्मक पहल न होने और सख्त पुलिसिया कार्रवाई से किसान संगठनों में एकजुटता बढ़ी
आमना-सामनाः शंभू बॉर्डर पर आंसू गैस के गुबार के बीच आंदोलनकारी किसान

हरियाणा और पंजाब के शंभू और खन्नौरी बॉर्डर जैसे युद्घ-क्षेत्र में बदल गए। आंसू गैस के गोले दागते ड्रोन और पैलेट गन के छर्रों से घायल किसानों, कई के आंखों की रोशनी जाने की शिकायतें तो थीं, लेकिन 21 फरवरी को खन्नौरी बॉर्डर पर 21 साल के शुभकरण की सिर में गोली लगने से मौत ने स्थितियां बेहद गंभीर कर दीं। हालांकि आंदोलन में सीधे टकराव के 10 दिनों में तीन मौतें हो चुकी हैं और 500 से अधिक किसान जख्मी हो  चुके हैं। इसका असर यह हुआ कि आंदोलन की अगुआई कर रही पंजाब की दो किसान यूनियनों  किसान मजदूर संघर्ष समिति (स्वर्ण सिंह पंधेर) और जगजीत सिंह डल्लेवाल की भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर)के समर्थन में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से जुड़े देशभर के 100 से अधिक किसान संगठन भी खुलकर सामने आ गए। एसकेएम की 22 फरवरी चंडीगढ़ की बैठक में कई कार्यक्रम का ऐलान किया गया। 26 फरवरी को देशभर में किसानों ने ट्रैक्टर मार्च निकाला  गया और 14 मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान महापंचायत की घोषणा की गई।

चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, पीयूष गोयल, अर्जून मुंडा और मुख्यमंत्री मान

चंडीगढ़ में केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और मुख्यमंत्री मान

इस तरह एक तरफ किसान यूनियनें सरकार को अपनी एकजुटता का संदेश दे रही हैं। दूसरी तरफ पंजाब और हरियाणा सरकारें एक दूसरे से ‌भिड़ रही हैं। किसानों के मसले सुलझाने की बजाय केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकार की पंजाब की ‘आप’ सरकार से सियासी जंग सुलग रही है। पंजाब में किसान भाजपा नेताओं को घरों में घेर रहे हैं। किसानों और सरकार के बीच गतिरोध के चलते समाधान के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं।

केंद्र और हरियाणा सरकार की पूरी कोशिश है कि किसानों को दिल्ली की ओर खिसकने न दिया जाए। हरियाणा के किसान संगठनों को भी आंदोलन से दूर रखने के लिए अंबाला, कुरूक्षेत्र, करनाल, कैथल और जींद के कई गांवों की घेराबंदी कर दी  गई है। आंदोलन में शामिल न होने के लिए गुरुद्वारों से ऐलान कराए जा रहे हैं। हरियाणा के किसानों को खन्नौरी और शंभू बॉर्डरों की ओर जाने से रोकने के लिए हर तरह की पुलिस कार्रवाई की जा रही है।

दरअसल केंद्रीय मंत्रियों से चंडीगढ़ में चार दौर की बेनतीजा बातचीत के बाद अंबाला से सटे शंभू बॉर्डर पर सीआरपीएफ,  बीएसएफ और हरियाणा पुलिस की सात परतों की घेराबंदी में घिरे किसानों के सुरक्षाबलों से टकराव बढ़ता ही गया था। यह 21 फरवरी को शुभकरण की मौत से थोड़ा थमा जरूर है मगर शायद किसान संगठनों की एकजुटता से आगे और तीखा हो सकता है। बॉर्डर पर किसानों की किलेबंदी को लेकर पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट ने पहले भी हरियाणा सरकार को फटकार लगाई थी कि किसानों को दिल्ली जाने से क्यों रोका जा रहा है पर सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

हालांकि, अब सरकारें एक-दूसरे से भीड़ रही हैं। केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकारों की पंजाब की ‘आप’ सरकार से ठन गई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब को कानून-व्यवस्‍था संभालने के बारे में चिट्ठी लिखी है। लेकिन मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा, “केंद्र सरकार उन्हें पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाने की धमकी न दे। हम अपने किसानों के साथ खड़े हैं। केंद्र चाहे तो एक बार नहीं, सौ बार पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगा दे,ऐसी धमकी से डरने वाले नहीं हैं। धमकियां देने की बजाय किसानों की मांगों पर विचार करे। दो साल के इंतजार के बाद किसान मांगों को लेकर दिल्ली जाना चाहते हैं मगर उन्हें बॉर्डर पर बंधक बना लिया गया।”

चोटिल किसान

आंदोलन का हासिल चोट, जख्म

पंजाब सरकार किसानों को मोर्चे पर मदद पहुंचाने की कोशिश कर रही है। हालांकि किसानों की पंजाब सरकार से भी नाखुशी जाहिर हो रही है। युवा किसान शुभकरण का अंतिम संस्कार 27 फरवरी तक नहीं हो सका। पंजाब के मुख्यमंत्री ने भले ही पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपए राहत राशि और शुभकरण की बहन को सरकारी नौकरी की घोषणा की है लेकिन आंदोलनकारी किसान नेता हरियाणा पुलिस और गृह मंत्री अनिल विज के खिलाफ पंजाब में एफआइआर दर्ज करने की मांग पर अड़े रहे।

 उधर, केंद्र और हरियाणा सरकार ने कानून-व्यवस्था बिगड़ने की दलील के साथ 21 फरवरी को पंजाब सरकार के खिलाफ अपनी अर्जी पर पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट से फौरन सुनवाई की अपील की। लेकिन हाइकोर्ट ने इनकार कर दिया और कहा, “सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने की बजाय अदालत का इस्तेमाल करने में जुटी है।” पंजाब सरकार को भी फटकार लगाते हुए हाइकोर्ट ने कहा, “प्रदर्शनकारियों को इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित होने की अनुमति कैसे दी गई।” केंद्रीय गृह मंत्रालय के पत्र के जवाब में पंजाब सरकार ने कहा, “शंभू और खनौरी बॉर्डर पर किसान इसलिए जमा हुए कि उन्हें दिल्ली जाने से हरियाणा ने रोका है। इसी वजह से हालात बेकाबू हुए।”

शंभू और खन्‍नौरी बॉर्डर पर हरियाणा की ओर से किसानों पर आंसू गैस के गोले, पैलेट गन दागी गईं तो मौके पर घायलों के इलाज के लिए पंजाब के मंत्रियों और विधायकों ने कैंप लगाए हैं। एंबुलेस से लैस पंजाब सड़क सुरक्षा फोर्स घायलों को अस्पताल पहुंचाने के लिए तैनात है। आंसू गैस के गोलों से चोटिल हुई किसानों की आंखों के इलाज के लिए स्वास्थ्य मंत्री बलबीर सिंह पटियाला, मंत्री बलजीत कौर ने पातड़ा और खन्‍नौरी में तथा विधायक चरणजीत सिंह ने राजपुरा अस्पताल में मोर्चा संभाला है।

चंडीगढ़ में 18 फरवरी को चौथे दौर की वार्ता में केंद्रीय वाणिज्‍य मंत्री पीयुष गोयल, कृषि राज्‍यमंत्री अर्जुन मुंडा और गृह राज्‍यमंत्री नित्यानंद राय ने किसानों को पांच फसलों कपास, मक्का, उड़द, मसूर और तुर पर पांच साल के लिए एमएसपी पर सरकारी खरीद के समझौते की पेशकश की थी जिसे सिरे से खारिज कर किसान आंदोलन के लिए दिल्ली जाने पर अड़े हैं। किसानों की प्रमुख मांगो में 23 फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्जमाफी, पेंशन, नकली खाद तथा बीज बेचने वालों पर कड़ी कार्रवाई और लखीमपुर खीरी के पीड़ित किसानों को इंसाफ और विश्‍व व्‍यापार संगठन (डब्‍लूटीओ) से कृषि को हटाने जैसी मांगें हैं। लेकिन सबसे बड़ी मांग एमएसपी की कानूनी गारंटी है। जिन पांच फसलों को पांच साल के लिए एमएसपी पर सरकारी खरीद की पेशकश सरकार ने की है, दरअसल उनमें अधिकतर फसलों के बाजार भाव पहले ही एमएसपी से अधिक रहते हैं। सरकार पहले ही एमएसपी से अधिक भाव पर दलहनों का आयात कर रही है। आंदोलनरत पंजाब, हरियाणा में इन पांच फसलों की उपज भी बहुत कम होती है।

सितंबर 2020 में लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में नवंबर 2021 तक 378 दिनों तक चले आंदोलन के बाद एमएसपी का मामला सुप्रीम कोट की दखल से बनी तब के कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में कमेटी के हवाले कर दिया गया था। सवा दो साल में यह कमेटी अभी तक अंतरिम रिपोर्ट भी पेश नहीं कर पाई है।

पुलिसिया गोला-बारूद

पुलिसिया गोला-बारूद

इस दौरान संयुक्त किसान मोर्चा के घटक भी बिखर गए। अब नए सिरे से दूसरे दौर के किसान आंदोलन की अगुआई किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव स्वर्ण सिंह पंधेर और भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के प्रमुख जगजीत सिंह डल्लेवाल कर रहे हैं। 2007 में किसान संघर्ष समिति के नेता रहे सतनाम सिंह पन्नू ने अपना अलग संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति खड़ा किया था, जिसकी बागडोर अब पंधेर के हाथ में है। इन दोनों संगठनों ने संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) के बैनर तले आंदोलन को आगे बढ़ाया। लेकिन अब संयुक्‍त किसान मोर्चा भी खुलकर मैदान में आ गया। चंडीगढ़ में 22 फरवरी को हुई देशभर के 100 से अधिक किसान संगठन नेताओं की बैठक में के दौरान किसान नेता राकेश टिकैत ने आउटलुक से कहा, “किसानों की एकजुटता कमजोर होने का फायदा केंद्र सरकार उठा रही है। आंदोलन के लिए अब सभी किसान संगठनों को एकजुट होना होगा। क्या पंजाब के किसान पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के हैं जो उन्हें हरियाणा में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा। किसानों और सिख समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।”

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, “हरियाणा पुलिस ने खन्नौरी बॉडर्र पर शांतिपूवर्क प्रदर्शन कर रहे किसानों पर गोलियां चलाईं, जिससे 21 साल के युवा किसान शुभकरण के सिर में गोली लगने से मौत हुई। इसकी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में न्यायिक जांच कराई जाए। हरियाणा पुलिस के साथ-साथ गृह मंत्री अनिल विज पर हत्या का केस दर्ज हो।” संयुक्‍त किसान मोर्चा ने हरियाणा के मुख्‍यमंत्री खट्टर और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस्‍तीफे की भी मांग की है। अब देखना होगा कि किसान आंदोलन क्या शक्ल लेता है और लोकसभा चुनावों के पहले उसके सियासी मायने कैसे सामने आते हैं?

एमएसपी की कानूनी गारंटी क्यों?

आंदोलन की बातें ः किसान नेता पंधेर और डल्लेवाल (दाएं)

आंदोलन की बातें ः किसान नेता पंधेर और डल्लेवाल (दाएं) 

देश में खाद्यान्न के संकट से उबरने और खाद्य सुरक्षा बढ़ाने के लिए 1966-67 में हरित क्रांति की शुरुआत के साथ गेहूं और धान की खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली लागू की गई। बाद में उसका दायरा बढ़ाकर 23 फसलों पर एमएसपी का ऐलान किया जाने लगा। लेकिन यह कभी प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो सका। नीति आयोग के आंकड़ों मुताबिक एमएसपी से देश के 9.20 करोड़ किसानों में केवल 6 प्रतिशत को ही लाभ होता है और कुल कृषि उपज की सिर्फ 11 प्रतिशत खरीदारी होती।”

गेहूं और धान पर एमएसपी का लाभ पाने वालों में 80 प्रतिशत किसान पंजाब और हरियाणा के ही हैं। पंजाब से लगभग 97 प्रतिशत धान और 75-80 फीसदी गेहूं सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर खरीदती हैं जबकि बिहार में 1 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश में 7 फीसदी से कम धान और गेहूं की सरकारी खरीद होती है। इन राज्यों में 90 प्रतिशत से अधिक फसलें के खुले बाजार में घोषित एमएसपी से 20-30 प्रतिशत कम दाम पर बेची जाती हैं, जिससे किसानों को प्रति एकड़ औसतन 20,000 रुपये और सालाना लगभग 10 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। भारतीय अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद और आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन ने एक अध्ययन में पाया कि किसानों को फसलों की कम कीमत की वजह से 2000-2017 के दौरान 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

कृषि अर्थशास्त्री रणजीत सिंह घुम्मन कहते हैं, “पांच दशकों से अधिक समय से एमएसपी अस्तित्व में है। लेकिन एमएसपी को कानूनी गारंटी के लिए व्यापक राजनैतिक समर्थन के बावजूद किसी भी सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। केवल गुमराह किया गया कि इससे सरकारी खजाने पर सालाना 17 लाख करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा जबकि यह हकीकत नहीं हैं। एमएसपी को कानूनी गारंटी से केंद्र किसानों से खरीद के लिए बाध्य नहीं होगा, बल्कि मंडियों में एमएसपी से कम पर खरीद गैर-कानूनी हो जाएगी तो खरीददार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन सरकार खाद्य प्रंसस्करण से जुड़े बड़े औद्योगिक घरानों को बचाने के लिए कानूनी दर्जा नहीं देना चाहती है।”

क्‍या है किसानों की फिक्र

प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद नरेंद्र मोदी ने फरवरी 2016 में वादा किया था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी हो जाएगी। 2012-13 के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के अनुमानों के आधार पर 2015-16 में देश में किसान परिवारों की औसत सालाना आमदनी 96,703 रुपए (8,058 रुपए प्रति महीने) थी और मौजूदा कीमतों पर उसे 2.71 लाख रुपए (22,610 रुपए प्रति महीने) तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया था। लेकिन 2020 में जब मोदी सरकार तीन कृषि कानून ले आई तो उसे किसान संगठनों को लगा कि सरकार वादे के उलट कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट के हवाले करने का इंतजाम कर रही है तो उनकी आमदनी और घट जाएगी। आंदोलन चला और सरकार कानूनों को वापस लेने पर मजबूर हुई।

इसी वजह से एमएसपी की गारंटी इतना संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है, खासकर पंजाब और हरियाणा में जहां बाजार में आने वाली 85 फीसद उपज सरकारी एजेंसियां इन कीमतों पर खरीद करती हैं। दूसरे राज्यों के किसान भी यही मांग कर रहे हैं। किसान पहले ही मानते हैं कि एमएसपी की गणना वास्तविक इनपुट लागत के हिसाब से नहीं की जाती है। 2018 में, केंद्र ने एमएसपी की गणना के लिए एम.एस. स्वामीनाथन समिति के दूसरे फार्मूले- ए2+एफएल (बीज, खाद, कीटनाशक और सिंचाई के खर्च और पारिवारिक श्रम के अनुमानित मूल्य के योग से 50 फीसद अधिक) का इस्‍तेमाल किया। किसान इस गणना को मुनासिब नहीं मानते हैं।

किसान यूनियनें स्वामीनाथन समीति के तीसरे फॉर्मूले सी2+50% (यानी ए2+एफएल के ऊपर खेत और अचल संपत्तियों के किराये और ब्याज के योग के अलावा पचास फीसदी) के आधार पर एमएसपी की गणना पर जोर दे रही हैं। मसलन, अगर आज एमएसपी की गणना 'सी2+50%' के हिसाब से करें, तो धान की कीमत 2,866 रुपये प्रति क्विंटल होगा, जबकि आज एमएसपी 2,183 रुपए प्रति क्विंटल है।

दरअसल 2021 में किसान परिवारों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण के 77वें दौर में कृषक परिवारों की मासिक आय 2018-19 में 10,218 रुपए ही पाई गई। फिर, फरवरी 2023 में लोकसभा में कहा गया कि हर किसान परिवार पर औसत कर्ज 74,121 रुपए था। जाहिर है, कृषि क्षेत्र में गंभीर संकट है।

 

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