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जनादेश -2019/विदर्भः बेरोजगारी, कृषि संकट से मुकाबला

जिन वादों को पूरा करने के नाम पर भाजपा सत्ता में आई थी, वही मुद्दे इस बार चुनाव में उसके लिए चुनौती बनकर सामने खड़े
मजबूत पकड़ः नागपुर में पर्चा भरने जाते नितिन गडकरी के साथ मुख्यमंत्री फडनवीस

दोपहर के 12 बजे हैं और भद्रावती के भारतीय जनता पार्टी कार्यालय पर चंद्रपुर के सांसद और केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर का कार्यकर्ता इंतजार कर रहे हैं। उसके पास ही फलों का बिजनेस करने वाले बाबू खान की दुकान है। पार्टी कार्यालय और सड़क पर जमा भीड़ को देखते हुए खान कहते हैं कि मोदी सरकार ने गरीबों को तबाह कर दिया है। नौकरी नहीं है, नोटबंदी और जीएसटी ने हाल बिगाड़ दिया है। मंत्री जी भी तीन बार से चुनाव जीत रहे हैं लेकिन विकास के नाम पर कुछ नहीं किया है। भाजपा के इस गढ़ में कमोबेश छोटे कारोबारी से लेकर किसान तक में नाराजगी का यही आलम है। चंद्रपुर सीट न केवल भाजपा के लिए अहम है बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत का गृहनगर होने से भी यह प्रतिष्ठा का विषय बन गई है। भाजपा को भी एंटी-इनकंबेंसी और स्थानीय मुद्दे पर लोगों की नाराजगी का एहसास है। इसीलिए 11 अप्रैल को होने वाले मतदान से पहले हंसराज अहीर की कोशिश है कि पार्टी के बड़े नेताओं की ज्यादा से ज्यादा रैली यहां हो जाएं। इसी कड़ी में भाजपा के वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज, सतपाल महाराज की रैलियों के साथ पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को भी लाने की कोशिशे हैं। अहीर के अनुसार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस तो 11 अप्रैल तक चार बार उनके क्षेत्र में आ रहे हैं।

दरअसल, इस बार अंतिम समय में कांग्रेस ने शिवसेना के नेता सुरेश धानोकर को टिकट देकर पूरा समीकरण बदल दिया है। सुरेश धानोकर की स्थानीय स्तर पर एक तेजतर्रार और काम करने वाले नेता की छवि है। कांग्रेस ने चंद्रपुर सीट से पहले विनायक बनगड़े को मैदान में उतारा था। लेकिन पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण की नाराजगी का ऑडियो टेप लीक होने के बाद बढ़ी नाराजगी को देखते हुए धानोकर को टिकट दे दिया है। पार्टी के इस फैसले का असर स्थानीय मातोश्री अकादमी में धानोकर के कार्यक्रम में भी दिखा। कार्यकर्ता मोहन बांगड़े पूरे जोश में कहते हैं कि पार्टी ने सुरेश भाई उर्फ बाबू को टिकट देकर अपनी गलती सुधार ली है। अकादमी में कांग्रेस कार्यकर्ता प्रचार के दौरान बेरोजगारी और नरेंद्र मोदी पर हमले करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। वे राहुल गांधी के ‘चौकीदार चोर है’ नारे को बार-बार दोहराते हैं। 

चंद्रपुर सीट में चंद्रपुर और यवतमाल जिले के क्षेत्र आते हैं। इसके तहत छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इनमें पांच विधानसभा सीट भाजपा के कब्जे में हैं। इसी आत्मविश्वास पर भाजपा उम्मीदवार हंसराज अहीर कहते हैं, “हमारे कामों का ही नतीजा है कि मैं यहां से चार बार सांसद रह चुका हूं। लगातार तीन बार से सांसद हूं। मोदी जी और राज्य सरकार के कामों का नतीजा है कि इस बार भी मैं बड़े वोट मार्जिन से जीतूंगा।” हालांकि अहीर के लिए स्थानीय समीकरण कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं। पिछली बार यहां आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार वामनराव सदाशिव छतप के उतरने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। अहीर को जहां 45.78 फीसदी वोट मिले थे, वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार को 24.49 फीसदी और आप उम्मीदवार को 18.42 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन इस बार मुकाबला सीधा होने से क्या जीत मुश्किल है? इस पर अहीर का कहना है, “ऐसा कभी नहीं होता है कि पुराने प्रत्याशी का वोट किसी एक प्रत्याशी को पूरी तरह से शिफ्ट हो जाए। मैं अपने कामों की वजह से ही फिर जीतूंगा।” हालांकि अहीर के दावों से किसान अंगुल इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है, “मेरे पास 2.25 एकड़ जमीन है, मोदी ने कहा था कि खाते में 2000 रुपये आएंगे, वह तो अभी तक नहीं आए। पूरे इलाके में सिंचाई की समस्या है, बेरोजगारी बढ़ गई है। ऊपर से शराबबंदी से कालाबाजारी बढ़ गई है।” किसानों की समस्या पर अहीर कहते हैं, “मैंने जमीन अधिग्रहण के समय 7000 किसान परिवारों के सदस्यों को नौकरी दिलवाई, साथ ही प्रति एकड़ आठ लाख रुपये का मुआवजा दिलाया। इसके अलावा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में दोगुना तक बढ़ोतरी हुई है। साथ ही यवतमाल जिले में सिंचिंत क्षेत्र 87 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 1.40 लाख हेक्टेयर हुआ है। इसकी वजह से किसानों की आत्महत्याएं कम हुई हैं। साथ ही किसान सम्मान निधि के 2000 रुपये और कर्जमाफी का भी फायदा पहुंचाया गया है।” हालांकि, खंबाड़ा क्षेत्र के किसान सुधाकर मेसराम कुछ और ही तस्वीर पेश करते हैं। उनके पास अपनी 5.25 एकड़ जमीन है, जबकि पांच एकड़ उन्होंने ठेके पर ले रखी है। मेसराम का कहना है कि पांच एकड़ वालों को तो मोदी 2000 रुपये देंगे, जबकि 5.25 एकड़ वालों को पैसे नहीं देंगे। देना है तो सबको दो। मेसराम का कहना है कि इस बार कपास में कीड़ा लग गया, जिसकी वजह से फसल बर्बाद हो गई है। दस एकड़ खेत में केवल 30 क्विंटल कपास हुई है। जबकि पिछली बार 80 क्विंटल कपास हुई थी। ऐसे में कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। मेसराम के ऊपर 1.65 लाख रुपये का कर्ज है। उन्होंने कहा कि बैंक वाले पैसा लेने आते हैं लेकिन कहां से चुकाएं जब लागत ही नहीं निकल पाई। वहीं, यवतमाल जिले में आने वाले वानी क्षेत्र के सुरेश ढोटे का कहना है कि हंसराज अहीर की ‘सबसे अच्छी खासियत यह है कि वह सबको आसानी से मिल जाते हैं। जरूरत पड़ने पर काम आते हैं, इसीलिए तीन बार से लगातार जीत रहे हैं। साथ ही एयरस्ट्राइक के कदम से नरेंद्र मोदी जी ने पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखाया है।” वहीं, भद्रावती में रेस्तरां चलाने वाले परवेज अहमद का कहना है, ‘भद्रावती, वानी जैसे इलाकों में कोई काम नहीं हुआ है। कई सारी कोयला खदानें यहां बंद हो गई है। हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। लोगों का पुनर्वास अभी तक नहीं हुआ।” बेरोजगारी बढ़ने के सवाल पर अहीर का कहना है कि “चंद्रपुर में मेडिकल कॉलेज, आइसीएमआर रिसर्च संस्थान, पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री, प्लास्टिक इंजीनियरिंग सेंटर जैसे अहम कदम उठाए हैं। इससे निश्चित तौर पर रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।” तेली और कुनबी समाज के प्रभाव वाले इस क्षेत्र में 11 अप्रैल को जनता किसकी बातों पर भरोसा कर वोट देगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन यह बात साफ है कि इस बार की लड़ाई भाजपा के लिए आसान नहीं है।

चंद्रपुर से 150 किलोमीटर दूर नागपुर एक हाइप्रोफाइल सीट है। जहां से भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी दोबारा अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। पिछली बार वह यहां से 2.86 लाख वोटों से जीते थे। इस बार उन्हें प्रमुख रूप से चुनौती उनके ही साथी रह चुके भाजपा के पूर्व सांसद और अब कांग्रेस में शामिल नाना पटोले से है। नागपुर में कहीं भी जाइए आपको हर वर्ग के लोग इस बात को स्वीकार करते मिलते हैं कि गडकरी ने नागपुर में सड़कों और मेट्रो का जाल बिछाने में अच्छा काम किया है। टैक्सी का बिजनेस कर रहे रविंद्र भोंगड़े का कहना है, ‘गडकरी ने सड़कें बनवाई हैं, मेट्रो चला दी, गरीबों को घर मिले हैं। साथ ही प्रधानमंत्री भी मोदी जैसा ही होना चाहिए, जो पूरी दुनिया में नाम ऊंचा कर सके। एक बात जरूर है कि भाजपा सरकार में गरीबों-किसानों को फायदा नहीं मिलता है।”

रविनगर स्थित नितिन गडकरी के आवास पर भी चुनावी फिजा दिखती है। मुस्लिम समाज से लेकर पार्टी के महिला कार्यकर्ता सब उनसे मिलने के लिए पहुंचे हैं। घर के हॉल में गडकरी सभी से मिलते हैं। उन्हें मराठी में बोलते हुए कहते हैं कि इस बार पिछले बार से ज्यादा वोटों से जीतना है। आउटलुक के सवाल पर कि आप केंद्र में व्यस्त होने की वजह से नागपुर की जनता को क्या पर्याप्त समय दे पाते हैं? उनका कहना है, ‘मैं यहां जमीन से जुड़ा हुआ हूं, लोगों को वन-टू-वन जानता हूं। इस बार कहीं ज्यादा मतों से जीतूंगा। मेरे 10 हजार मजबूत कार्यकर्ता हैं, जो रोज सुबह प्रचार के लिए निकलते हैं। जहां तक काम की बात है तो पिछले पांच साल में मैंने 70 हजार करोड़ रुपये के काम नागपुर में किए हैं। जाति और संप्रदाय के आधार पर काम नहीं किया है। सभी लोगों का समर्थन मिल रहा है।” चुनाव में दलित वोट कितना बड़ा फैक्टर है और उसकी नाराजगी क्या भारी पड़ेगी, इस सवाल पर गडकरी का कहना है कि कोई नाराजगी नहीं है। दस हजार करोड़ रुपये का बुद्ध सर्किट शुरू किया है, जो बहुत बड़ा काम है। हालांकि उनकी इस बात से वंचित बहुजन अघाड़ी के सह अध्यक्ष रवि शिंदे इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना है कि ‘गडकरी अच्छी खासी सड़कों को उखाड़कर उसे सीमेंट का बना रहे है, उसकी जरूरत क्या थी।” इसी तरह उनका दावा है कि मेट्रो से रोजगार आया है, अभी तक तो चौकीदार की ही नौकरी मिली है। हमारी बस्तियों का बुरा हाल है। बेरोजागरी सबसे बड़ा मुद्दा है। नागपुर से वंचित बहुजन अघाड़ी समाज ने सागरजी डबरासे को मैदान में उतारा है।

इबादतः नागपुर के ताजबाग दरगाह पर चादर चढ़ाते कांग्रेस के नाना पटोले (सबसे दाएं)

दरअसल, नागुपर संसदीय क्षेत्र में करीब 21 लाख मतदाता हैं। उसमें से 50 फीसदी पिछड़ा वर्ग के मतदाता हैं। जबकि 15-20 फीसदी दलित और 12 फीसदी मुसलमान मतदाता हैं। इसी समीकरण की वजह से नागपुर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का मुख्यालय होने के बावजूद  भाजपा 2014 में जाकर 20 साल के कांग्रेस के राज को खत्म कर पाई थी। कांग्रेस ने इस बार कुनबी समाज के नाना पटोले को मैदान में उतारकर गडकरी को चुनौती दी है। पटोले कहते हैं कि गडकरी ने वादे पूरा करने की जगह विकास के नाम पर अपना एजेंडा चलाया है। सीमेंट की सड़क बनाने के चक्कर में लोगों के घरों में पानी घुस रहा है। जीएसटी, नोटबंदी के बाद बेरोजगारी बढ़ गई है। रियल एस्टेट बिजनेस पूरी तरह से खत्म हो गया है। गडकरी की संपत्ति 140 गुना और उनकी पत्नी की 127 गुना बढ़ गई है। बेटे का बिजनेस 5,000 करोड़ रुपये का टर्नओवर पार चुका है। कौन-सा जादू है? उन्होंने रोजगार बढ़ाने का वादा किया था, एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का और कार्गो फ्लाइट का प्लान था। कुछ नहीं किया है। नागपुर को टॉप-10 से पिछाड़कर 58वें नंबर पर ला दिया है। ताजबाग क्षेत्र के सलमान का कहना है कि ‘मैं तो वोट नहीं देता हूं। सारे नेता एक जैसे हैं। लेकिन एक बात जरूर है, नागपुर से गडकरी ही जीतेंगे। सबसे बड़ी बात जो हुई है, वह यह है कि यहां पर गुंडागर्दी कम हो गई है।”

वहीं, सिताबर्डी इलाके के मोहित चौहान का कहना है, ‘हम तो मोदी जी के नाम पर वोट देंगे। उन्होंने जो पाकिस्तान को सबक सिखाया है, वह बहुत जरूरी था। जहां तक बेरोजगारी की बात है तो एक बात समझिए जो काम करना चाहता है, उसे काम की कमी नही है। हर आदमी को नौकरी तो नहीं मिल सकती है।’ नागपुर में सरसरी तौर पर तस्वीर जितनी साफ दिखाई दे रही है, उतनी जमीनी स्तर पर नहीं है। सूत्रों के अनुसार, नाना पटोले की तेज-तर्रार छवि और इसके अलावा कांग्रेस में गुटबाजी कम होने के आसार को लेकर आरएसएस में एक बेचैनी है। संघ ने खासतौर से दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए सेवाकार्य भी दलित बस्तियों में शुरू कर दिया है। हलबास समुदाय भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिलने से नाराज है। जबकि 2014 में हलबास और कुनबी समुदाय को भाजपा का पूरा समर्थन मिला था। बदलते समीकरण पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विदर्भ क्षेत्र के अध्यक्ष डॉ. सी.के.रगिट का कहना है कि ‘गडकरी ने क्षेत्र में काफी काम किया है। नाना पटोले बाहरी नेता हैं। ऐसे में उन्हें ज्यादा सपोर्ट नहीं मिलेगा।” नागपुर से करीब 80 किलोमीटर दूर वर्धा संसदीय क्षेत्र में लड़ाई घरेलू बनाम बाहरी की बन गई है। वर्तमान भाजपा सांसद रामदास तड़स और कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रभाराव की बेटी चारुलता टोकस आमने-सामने हैं। रामदास तड़स पूरी लड़ाई को बाहरी बनाम घर बनाने की स्ट्रैटेजी पर फोकस कर रहे हैं। दरअसल, चारुलता पिछले कई वर्षों से गुड़गांव में रहती हैं। इसकी वजह से स्थानीय लोग भी यह मानते हैं कि बाहरी होने का मुद्दा चुनाव में जरूर बनेगा। जनरल स्टोर चलाने वाले प्रमोद मुंगसे का कहना है कि ‘रामदास तड़स यहां के निवासी हैं, उनसे जब चाहो काम के लिए मिला जा सकता है। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी टोकस दिल्ली में रहती हैं, वह चुनाव के समय में भी कम दिख रही हैं। पांच साल में जितना काम किया है, उतना पहले कभी नहीं हुआ।” लेकिन जब वर्धा के गांवों में जाएंगे तो तस्वीर कुछ अलग नजर आती है। किसान परेशान हैं, उनकी समस्या सिंचाई के साधन नहीं होना, मंडी में उपज के दाम नहीं मिलना है। वर्धा के नांदोरी गांव में सुरेश शंकर राव पिठाड़े, विनोद गुलाब राव ढोटे और प्रवीण ढोटे तीन ही छोटे किसान हैं। उनका कहना है कि मोदी केवल सपने दिखाते हैं, काम कुछ नहीं करते हैं। पिछली बार हमने बड़ी उम्मीदों से उन्हें वोट दिया था, लेकिन इस बार वोट नहीं देंगे। वर्धा के ही किसान फलके का कहना है कि ‘उनके पास 42 एकड़ जमीन है। जिसमें वह कपास, सब्जियों से लेकर गेहूं आदि सबकी खेती करते हैं। समस्या यह है कि सरकार फसलों का जो दाम तय करती है, वह भी नहीं मिलता है।” फलके से जब वोट किसे देंगे इस पर बात हुई, तो कहा कि देखिए हमारे क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी रामदास तड़स ने अच्छा काम किया है। ऐसे में भले ही वे पिछले बार जैसे वोट से नहीं जीत पाएं, लेकिन जीत तो उन्हें मिलेगी। ऊपर से मोदी जी ने जो पाकिस्तान को सबक सिखाया है, उसका बहुत असर हुआ है।

शेड़गांव के किसान वसंत रामदास महाजन का कहना है कि किसान बहुत परेशान है। इस बार कपास की फसल अच्छी नहीं हुई है। मोदी जी ने कहा था कि खाते में 2000 रुपये आएंगे, वह भी नहीं आया। भाजपा प्रत्याशी रामदास तड़स का कहना है कि ‘कांग्रेस प्रत्याशी गुड़गांव में रहती हैं, वह लोगों के क्या काम आएंगी। वर्धा में एक राष्ट्रीय राजमार्ग था, आज नौ राष्ट्रीय राजमार्ग बना दिए गए हैं। पासपोर्ट ऑफिस खोला, ड्राई पोर्ट का काम शुरू किया, सांसद निधि खर्च करने में मेरा पूरे देश में पहला नंबर है। आवास योजना, शौचालय, बिजली, गैस, रोजगार ड्राई पोर्ट और दूसरे काम कर रहे हैं, सबको फायदा मिल रहा है।” वर्धा में हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मेदी ने एक अप्रैल में जो रैली की है, उसमें किसान और रोजगार जैसे मुद्दों पर फोकस कम रहा। उन्होंने अपने भाषण में ज्यादा समय राष्ट्रवाद, हिंदुत्व कार्ड, कांग्रेस पर हमला करने पर फोकस रहा। 2014 में जब वे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे तो किसान, रोजगार जैसे मुद्दे वर्धा के भाषण में हावी थे। अब देखना यह है कि जनता 11 अप्रैल को 2014 जैसा ही जनादेश देगी या फिर कुछ बदली हवा नजर आएगी।

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