सीमा पर भारतीय और चीनी सेना में हुई खूनी झड़प के बाद तनातनी में जिस तरह से देश में आत्मनिर्भरता के सुर तेज हुए हैं, उतनी तेजी से आत्मनिर्भरता पर अमल करना आसान नहीं है। 21 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत पैकेज की घोषणा और ‘वोकल फॉर लोकल’ के प्रचार के बीच रातों-रात चीन पर निर्भरता खत्म करना न तो सरकार के बस में है, न ही कारोबारी जगत के। कारण यह है कि भारत और चीन के आपसी कारोबार का संतुलन चीन के पक्ष में बहुत ज्यादा झुका हुआ है। भारत चीन से जितना आयात करता है, उसकी तुलना में उसे करीब 25 फीसदी निर्यात करता है। अप्रैल 2019 से जनवरी 2020 के बीच भारत ने चीन को 14.42 अरब डॉलर का निर्यात किया था, जबकि इस दौरान चीन से आयात 57.93 अरब डॉलर का हुआ है। कोविड-19 महामारी के चलते घटे कारोबार से चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में चीन की जीडीपी में 6.8 फीसदी गिरावट आई है, जबकि 2020 में, भारतीय अर्थव्यवस्था में आईएमएफ का अनुमान 4.5 फीसदी गिरावट का है।
अभी भारत की चीन पर निर्भरता काफी है। चीन की कंपनियों ने 225 भारतीय कंपनियों में निवेश कर रखा है। फार्मास्यूटिकल जैसे अहम औद्योगिक कलस्टर की 70 फीसदी निर्भरता चीन से आयातित एपीआइ (एक्टिव फार्मास्यूटिकल्स इनग्रेडिएंट्स) पर है। आत्मनिर्भरता पर स्वदेशी रंग चढ़ाना भी इतना आसान नहीं। अभी तक चीन से आयात पर निर्भर हिमाचल प्रदेश के बद्दी स्थित फार्मा कलस्टर, पंजाब के लुधियाना स्थित यॉर्न और साइकिल क्लस्टर और जालंधर के खेल सामान कलस्टर ने अब ताइवान, वियतनाम और यूरोपियन यूनियन के देशों का रुख कर लिया है।
सालाना 8,000 करोड़ रुपये के साइकिल उद्योग में 90 फीसदी हिस्सेदारी वाले लुधियाना के कारोबारियों का कहना है कि चरणबद्ध तरीके से आयात पर निर्भरता खत्म की जा सकती है। ऑल इंडिया साइकिल मेन्युफैक्चर्रर्स एसोसिएशन के महासचिव के.बी. ठाकुर का कहना है कि साल दर साल चीन से बढ़ता आयात पहली बार इतनी तेजी से गिरा है। पहले तो कोरोना के चलते नवंबर 2019 से ही चीन से साइकिल का आयात लगभग ठप था, अब सीमा पर तनातनी के बीच चीन के साथ कारोबार के खिलाफ माहौल बना है। फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेन शाह का कहना है, कि एकदम से भारत में चीनी वस्तुओं का बहिष्कार लगभग असंभव है। चीन से आयातित कई वस्तुओं पर डंपिंग ड्यूटी बढ़ाकर वियतनाम, थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर से आयातित वस्तुओं पर ड्यूटी घटाने से चीन पर निर्भरता कम की जा सकती है।
70 फीसदी पुर्जे चीन से आयात कर साइकिल असेंबल करने वाले लुधियाना के छोटे-मझोले कारोबारियों की आयात पर निर्भरता कम करने के लिए यहां की बड़ी कंपनियां भी तकनीकी मदद के लिए आगे आई हैं। हीरो साइकिल्स के एमडी एस.के. राय ने आउटलुक को बताया, “यहां के तमाम छोटे और मझोले उद्यमियों को तकनीकी मदद के लिए हम तैयार हैं। इसके लिए यूनाइटेड साइकिल पार्ट्स एंड मेन्युफैक्चर्रर्स एसोसिएशन (यूसीपीएमए) के सदस्यों के साथ बैठक में चीन पर निर्भरता चरणबद्ध तरीके से कम करने की रणनीति बनाई गई है।” राय का कहना है कि छोटे और मझोले कारोबारियों को चीन से आयातित पुर्जों से तैयार हुए परंपरागत काले रोडस्टर साइकिल की बजाय हाइएंड साइकिल तैयार करनी चाहिए, इसके लिए हम मदद करने को तैयार हैं।
चीन पर निर्भरता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि अनेक वस्तुएं भारत में अभी तैयार नहीं की जा रही हैं। यूसीपीएमए के पूर्व अध्यक्ष चरणजीत सिंह विश्वकर्मा ने बताया कि प्रति माह एक लाख से अधिक हाइएंड साइकिल का चीन से आयात इसलिए हो रहा था, क्योंकि यहां इनके एलॉय, फाइबर और कार्बन फ्रेम का अभी तक उत्पादन नहीं हो रहा है। साइकिल फ्रेम और इनके गियर शिफ्टर, ब्रेक और क्लिपर का घरेलू उत्पादन जरूरी है। भारत में सालाना 2.20 करोड़ साइकिलें बनती हैं, इनमें से मात्र पांच फीसदी का निर्यात होता है, जबकि चीन हर साल नौ करोड़ साइकिल उत्पादन कर उसमें से छह करोड़ का निर्यात करता है।
भारत के कई उद्योग चीन से आयात पर निर्भर हैं। इसे कम करने से पहले स्टील, ऑयल एंड गैस, फार्मा, ऑटो, कंज्यूमर ड्यूरेब्ल्स और केमिकल उद्योगों के लिए विकल्प तलाशना होगा। भारत मोबाइल हैंडसेट, टीवी सेट और कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के मामले में भी चीन पर निर्भर है। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स के सालाना 76,300 करोड़ रुपये के कारोबार में 45 फीसदी चीन से आयात होता है। भारत के 5.30 लाख करोड़ के इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार में चीन का सिर्फ छह फीसदी निर्यात होता है, जबकि आयात में 67 फीसदी निर्भरता चीन पर है। भारत के ऑटोमोबाइल पुर्जों की जरूरत का 30 फीसदी चीन से आता है। दवा बनाने के लिए 53 तरह के 70 फीसदी एपीआई के लिए भारतीय दवा कंपनियां चीन पर निर्भर हैं। इसी तरह, मेडिकल उपकरणों के आयात में भी चीन की अहम हिस्सेदारी है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, पिछले चार वर्षों के दौरान चीन से फार्मा प्रोडक्ट का आयात 28 फीसदी बढ़ा है। 2015-16 में भारत ने चीन से 947 करोड़ के एपीआई का आयात किया था जो 2019-20 में बढ़ कर 1,150 करोड़ रुपये का हो गया। आयात पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार ने नियामकीय प्रावधानों में मजबूती लाने की कवायद तेज की है। चीन से आयातित एपीआई पर मौजूदा 10 फीसदी आयात शुल्क बढ़ाया जा सकता है।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) का कहना है कि चीन से आयात पर निर्भरता कम करके भारत व्यापार घाटा कम कर सकता है। कैट के मुताबिक, चीनी सामान पर निभर्रता कम करने से दिसंबर 2021 तक करीब एक लाख करोड़ रुपये की बचत हो सकती है। चीन के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2019 में भारत और चीन का आपसी कारोबार 92.68 अरब डॉलर का रहा, जो 2018 में 95.7 अरब डॉलर का था। वित्त वर्ष 2020-21 में इसमें करीब 70 फीसदी गिरावट की संभावना है। हालांकि इसमें कोविड महामारी का बड़ा योगदान है।
चीनी साइकिल पर ब्रेक, स्टॉक का संकट
लॉकडाउन के बाद कारोबार पटरी पर लाने की सरकार और कारोबारियों की कोशिशों के बीच लुधियाना के साइकिल उद्योग ने रफ्तार पकड़ी है। एक मई से 15 जुलाई तक ढाई महीने में साइकिल की मांग में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज हुई है। लॉकडाउन खत्म होने के बावजूद जिम नहीं खुले हैं, इसलिए शहरों में साइकलिंग का रुझान तेजी से बढ़ा है। बिक्री बढ़ने और चीन से हाइएंड साइकिल का आयात लगभग ठप होने से यहां की साइकिल कंपनियों के पास इन साइकिलों के कई मॉडल्स के स्टॉक खत्म हो गए हैं। एवन साइकिल के चेयरमैन ओंकार पाहवा ने बताया, “लॉकडाउन के बाद कई वजहों से साइकिल की मांग में तेजी देखी गई है। कोरोना के डर से लोग जिम से दूर हैं। पहली बार जिम के विकल्प के रूप में साइकिल को देखा जा रहा है, जिससे मांग में भारी इजाफा हुआ है।” ऑल इंडिया साइकिल मेन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के मुताबिक, मांग में अप्रत्याशित तेजी के बीच सीमित प्रोडक्शन के चलते साइकिल निर्माता मांग पूरी करने में असमर्थ हैं। एसोसिएशन के महासचिव केबी ठाकुर ने बताया कि मई में साइकिल निर्माताओं ने 35 फीसदी श्रमिकों के साथ करीब 4.5 लाख साइकिल का उत्पादन किया, जबकि जून में 65 फीसदी उत्पादन क्षमता का उपयोग कर करीब 8.5 लाख साइकिल का उत्पादन हुआ है।