कभी आतंकियों का पीछा करने वाले पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी अब उसी पुलिस से बचने के लिए फरार हैं। कभी खाकी का खौफ दिखाने वाले आज खुद खौफजदा हैं। 1982 बैच के आइपीएस सैनी 29 साल पुराने अपहरण और हत्या के मामले में पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट से जमानत न मिलने के बाद से भूमिगत हैं। करीब 20 दिन पहले अपने चंडीगढ़ निवास से जेड प्लस सुरक्षा अमले को छोड़कर भागे सैनी को पंजाब पुलिस तलाश रही है। मोहाली की एक अदालत ने पुलिस को 25 सितंबर तक उन्हें गिरफ्तार करके पेश करने का आदेश दिया है। हालांकि 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट से उन्हें गिरफ्तारी पर चार हफ्ते की थोड़ी मोहलत मिल गई है। सैनी पर 1991 में सिटको के जेई रहे बलवंत सिंह मुल्तानी के अपहरण और पुलिस हिरासत में हत्या का आरोप है, तब सैनी चंडीगढ़ के एसएसपी थे।
2018 में सेवानिवृत्त हुए सैनी देश के पहले सबसे कम उम्र (54 वर्ष) में डीजीपी बनने वालों में हैं। मार्च 2012 में तत्कालीन शिरोमणी अकाली दल-भाजपा गठबंधन सरकार में उप-मुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने उन्हें तब के 6 वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को पीछे छोड़ते हुए डीजीपी बनाया था। सुखबीर बादल से अच्छे रसूख के चलते तीन साल तक पंजाब पुलिस प्रशासन में सुमेध सैनी का सिक्का खूब चला। 2016 में धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के मामले में बहबलकलां में धरने पर बैठे तीन सिख युवकों की पुलिस गोलीबारी में हुई मौत के बाद जल उठे पंजाब की आग को शांत करने के लिए सरकार को मजबूरन सैनी को पद से हटाना पड़ा। 2018 तक सैनी भले ही नेपथ्य में चले गए पर सियासी रसूखदारों से उनके रिश्ते प्रगाढ़ बने रहे।
1984 के बाद से नब्बे के दशक तक पंजाब में आतंकवाद के उफान के दौर में डीजीपी केपीएस गिल ने आंतकियों के खिलाफ ऑपरेशन के लिए टॉस्क फोर्स बनाई, तो उसकी कमान सैनी के हाथों रही। सैनी को सुपर कॉप गिल का चेहता पुलिस अफसर माना जाता था। सैनी का इतना खौफ था कि उन्होंने अलगाववाद के मामले में अपने सीनियर रहे आइपीएस सिमरनजीत सिंह मान को भी नहीं बख्शा था। उन्होंने मान के खिलाफ भी मामला दर्ज कर उनकी गिरफ्तारी की। आतंकवाद के दौर में लड़ाई लड़ने वाले चेहरों में केपीएस गिल के बाद सबसे बड़ा नाम उन्हीं का था। सैनी के निशाने पर कई नेता भी रहे। 2002 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में उन्हें आइजी इंटेलिजेंस बनाया गया। उन्होंने पंजाब लोकसेवा आयोग के चेयरमैन रवि सिद्धू को रिश्वत मामले में गिरफ्तार किया। 2007 में प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने सैनी को विजिलेंस जैसा अहम महकमा दिया, तो सैनी ने लुधियाना के बहुचर्चित सिटी सेंटर घोटाले में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ ही केस दर्ज कर दिया। बादल परिवार से नजदीकी बढ़ी तो दूसरी बार मार्च 2012 में अकाली दल-भाजपा सरकार के बनते ही 6 वरिष्ठ अफसरों को पीछे करते हुए, तमाम विरोधों के बावजूद सैनी को डीजीपी बना दिया गया। 36 साल के लंबे पुलिस करिअर में पंजाब के 6 प्रमुख जिलों और चंडीगढ़ में एसएसपी रहते हुए सैनी पर जबरन अपहरण करने, हिरासत में यातना और हत्या के कई आरोप लगते रहे हैं।
मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप में संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार परिषद ने भी 2013 में सैनी को नोटिस दिया था। एक वरिष्ठ आइपीएस होने के नाते अपने रसूख और पहुंच के बल पर वे हमेशा बचते रहे हैं। 2018 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद न्याय के लिए सक्रिय हुए बलवंत सिंह मुल्तानी के परिवार के प्रयासों से सैनी पर शिकंजा कसा जा सका। 15 साल से भी ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद बलवंत की गुमशुदगी और सैनी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराने के लिए मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपा गया लेकिन पंजाब पुलिस ने सैनी का बचाव किया और तकनीकी आधार पर सीबीआइ की जांच खारिज करवा दी गई। पीड़ित परिवार के वकील प्रदीप सिंह विर्क ने बताया कि जब, 11 दिसंबर 1991 को चंडीगढ़ पुलिस ने बलवंत सिंह मुल्तानी को उठाया था, तो उसके आइएएस पिता ने उसे छुड़ाने का हर संभव प्रयास किया था। मुल्तानी को एसएसपी सुमेध सैनी और उनके मातहत पुलिसवालों ने अवैध रूप से अपहृत किया था और तीन दिन तक अवैध रूप से हिरासत में रखा था जहां, अमानवीय यातना के चलते उसकी मौत हो गई थी।