गोवा में 14 फरवरी को मतदान हो गए, लेकिन इस बार यहां भी चुनाव मुद्दों पर कम चेहरों पर ज्यादा हुए। यही कारण है कि अगली सरकार का सारा दारोमदार दलबदल के खेल पर आकर टिक गया है। मतदान से दो दिन पहले चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद कांग्रेस और तृणमूल ने चुनाव आयोग से एक न्यूज चैनल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। चैनल ने खबर दिखाई थी कि इन दलों के कुछ प्रत्याशियों ने चुनाव जीतने के बाद भाजपा में जाने के लिए पैसे लिए हैं। इससे करीब एक हफ्ता पहले कांग्रेस के 37 प्रत्याशियों ने संविधान की शपथ ली थी कि चुने जाने के बाद वे दलबदल नहीं करेंगे। यह वाकया बताता है कि 40 विधानसभा सीटों वाले इस छोटे से प्रदेश में दलबदल का कितना जोर है। इस बार 79 फीसदी वोट डले, यह 2017 के 82 फीसदी की तुलना में कम है।
एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार गोवा के 60 फीसदी विधायकों ने 2017 के बाद दलबदल किया है। यानी 24 विधायक किसी दूसरी पार्टी या निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। सर्वाधिक नुकसान कांग्रेस को हुआ जिसके 17 विधायकों में से 16 पार्टी छोड़ गए। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर ने ठीक ही कहा कि भाजपा, तृणमूल कांग्रेस या आम आदमी पार्टी कांग्रेस के ही पुराने नेताओं की पार्टियां हैं। आज की गोवा कांग्रेस नई कांग्रेस है। पार्टी ने 80 फीसदी टिकट नए लोगों को दिए हैं।
गोवा फॉरवर्ड पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस को 26 सीटें जीतने का भरोसा है। सत्तारूढ़ भाजपा को 2017 में 13 सीटें मिली थीं। मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत और गोवा भाजपा अध्यक्ष सदानंद तनवडे ने इस बार 22 सीटें जीतने की बात कही है। पार्टी ने हिंदू छवि तोड़ते हुए नौ कैथोलिक ईसाइयों को टिकट दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर के समय पार्टी ने 2012 में छह कैथोलिक और 2017 में आठ को टिकट दिए थे।
पर्रीकर की लीगेसी आगे ले जाने की बात कहने वाली भाजपा ने उनके बेटे उत्पल को पणजी से टिकट नहीं दिया, वे निर्दलीय लड़े। पणजी में पार्टी ने कांग्रेस से आए मौजूदा विधायक अतानासियो मोनसेरेट को टिकट दिया। मोनसेरेट 2019 में नौ अन्य कांग्रेस विधायकों को लेकर भाजपा में आए थे। पर्रीकर के निधन के बाद मुख्यमंत्री बने सावंत के लिए यह परीक्षा की घड़ी है, जिनके नेतृत्व में पहली बार पार्टी चुनाव लड़ रही है। चुनाव से पहले मंत्री माइकल लोबो समेत चार विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी।
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कांग्रेस के सत्ता में लौटने पर उसके नेता दिगंबर कामत फिर मुख्यमंत्री बन सकते हैं। 2017 के कांग्रेस विधायकों में वे एकमात्र हैं जो इस बार भी पार्टी के टिकट पर लड़ रहे हैं। भाजपा की तरफ से प्रमोद सावंत ने खुद कहा कि चुनाव मेरे नेतृत्व में लड़ा जा रहा है, इसलिए मैं ही मुख्यमंत्री बनूंगा। आम आदमी पार्टी ने भंडारी समुदाय के अमित पालेकर को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है। इस समुदाय की यहां बड़ी आबादी है। हालांकि पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल यह भी कह चुके हैं कि चुनाव के बाद वे गैर-भाजपा दलों के साथ गठबंधन के लिए तैयार हैं।
चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा लगा कि भाजपा अभी तक नेहरू की छाया से निकल नहीं पाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि “नेहरू की वजह से गोवा को आजादी मिलने में 15 साल की देरी हुई। वे चाहते तो 15 अगस्त 1947 को ही गोवा आजाद हो गया होता।” इस पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री को दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की परिस्थितियां नहीं मालूम। वे रोजगार जैसे असली मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाना चाहते हैं।
भाजपा ने पेट्रोल-डीजल पर तीन साल तक वैट न बढ़ाने और साल में तीन रसोई गैस सिलेंडर मुफ्त देने का वादा किया है। कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, “पार्टी यहां 10 वर्षों से है, इसके बावजूद उसने पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं घटाए। सिलेंडर की कीमत 1000 रुपये हो गई तो उन्होंने मुफ्त सिलेंडर क्यों नहीं दिए?” कांग्रेस ने पेट्रोल और डीजल की अधिकतम कीमत 80 रुपये प्रति लीटर रखने का वादा किया है। केजरीवाल ने मुफ्त बिजली और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने का वादा करते हुए कहा कि अगर भाजपा या कांग्रेस की सरकार बनी तो राज्य में लूट जारी रहेगी। केजरीवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद भाजपा सरकार ने खनन शुरू नहीं किया है। उनकी पार्टी की सरकार छह महीने के भीतर खनन शुरू कर देगी। एक समय खनन उद्योग गोवा के राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत था। सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद 2012 में खनन पर रोक लगा दी थी। प्रतिबंध 2015 में हट गया लेकिन मार्च 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने 88 खनन लीज रद्द कर दिए। तब से खनन शुरू नहीं हो पाया है। अब देखना है कि प्रदेश के मतदाताओं ने किसके वादों पर ज्यादा भरोसा जताया है।