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13 जून 2022 · JUN 13 , 2022

अर्थव्यवस्थाः महंगाई से गांव, किसान बेहाल

किसानों के लिए संकट दोतरफा क्योंकि खेती की लागत तो काफी बढ़ गई लेकिन उपज के दाम उस अनुपात में नहीं बढ़े
तपिश के कारण उत्पादन का नुकसान झेलने वाले किसानों के लिए राहत का रास्ता सरकार ने बंद कर दिया है

राष्ट्र निर्माण के नाम पर कमरतोड़ महंगाई अनेक लोगों के लिए असहनीय होती जा रही है। वैसे तो महंगाई हर वर्ग को प्रभावित करती है, लेकिन जिनकी कमाई का बड़ा हिस्सा खाने-पीने पर खर्च हो जाता है उन पर इसकी मार सबसे अधिक है। कारण यह है कि ईंधन के बाद खाने-पीने की चीजों के दाम ही सबसे ज्यादा बढ़ रहे हैं। सरकार का रवैया रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान से पता चलता है। पुणे में भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “अमेरिका जो सबसे धनी देश है, वहां मुद्रास्फीति पिछले 40 वर्षों में अपने चरम पर है। इसलिए हमें अपराधबोध नहीं महसूस करना चाहिए।” हालांकि जिस दिन उन्होंने यह कहा, उसी शाम वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी कटौती की घोषणा कर दी। पेट्रोल पर ड्यूटी आठ रुपये और डीजल पर छह रुपये घटाई गई है। हालांकि इससे पहले दोनों के दाम दो महीने में 10-10 रुपये बढ़े भी थे। इससे पहले रिजर्व बैंक ने भी अचानक कर्ज 0.40 फीसदी महंगा कर दिया था ताकि महंगाई पर अंकुश लगाया जा सके। हालांकि अभी यह कहना मुश्किल है कि इन कदमों से महंगाई कितनी काबू में आएगी।

सरकारी आंकड़ों पर ही गौर कीजिए। अप्रैल में खुदरा महंगाई आठ साल में सबसे ज्यादा 7.79 फीसदी पर पहुंच गई। खाद्य महंगाई 8.38 फीसदी हो गई। यह मार्च में 7.68 फीसदी थी और एक साल पहले यह सिर्फ 1.96 फीसदी थी। फूड बास्केट में शामिल लगभग सभी चीजों की कीमतों में इजाफा हुआ है। पिछले महीने थोक महंगाई तो 15.08 फीसदी पर पहुंच गई और यह लगातार 13 महीने से 10 फीसदी से ज्यादा है।

इस महंगाई की खास बात है कि यह शहरियों की तुलना में ग्रामीणों को अधिक परेशान कर रही है। शहरों में खुदरा महंगाई दर 7.09 फीसदी तो ग्रामीण इलाकों में यह 8.38 फीसदी हो गई। किसान भले ही खाने की चीजें उपजाते हों, लेकिन उन्हें खाद्य सामग्री अधिक दाम पर खरीदनी पड़ रही है। गांवों में खाद्य मुद्रास्फीति दर 8.50 फीसदी और शहरों में 8.09 फीसदी है। अप्रैल 2021 में गांवों में खाद्य महंगाई 1.31 फीसदी और शहरों में 3.15 फीसदी थी।

किसानों पर महंगाई की मार दोतरफा है, क्योंकि उनके लिए खेती की लागत तो बढ़ गई लेकिन उपज के दाम उस अनुपात में नहीं बढ़े। बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट बताती है, “भारत में खेती की लागत वित्त वर्ष 2020-21 के मुकाबले 2021-22 में 20 फीसदी तक बढ़ गई। पिछले पांच सालों में कृषि लागत में काफी अंतर आया है। ट्रैक्टर की कीमत पांच साल में 50 फीसदी से अधिक बढ़ गई है। डीजल, खाद और बीज के दाम तथा मजदूरी भी काफी बढ़ी है, लेकिन बढ़ी लागत के अनुपात में फसलों के मूल्य नहीं बढ़े हैं।” रिपोर्ट के मुताबिक, सामान्य मानसून की उम्मीद और खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी के कारण 2022-23 में ग्रामीणों की आय बढ़ेगी, लेकिन कृषि लागत अधिक बढ़ने के कारण यहां की आबादी पर संकट और गहरा सकता है।

महंगाई से पस्त किसान

आसमान छूते दाम

रूस-यूक्रेन जंग से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम बढ़े तो किसानों की आमदनी बढ़ने की भी उम्मीद जगी। लेकिन यह उम्मीद तब काफूर हो गई जब सरकार ने देश में गेहूं की उपलब्धता के संकट का हवाला देते हुए निर्यात पर पाबंदी लगी दी। हरियाणा प्रोग्रेसिव किसान संगठन के अध्यक्ष साहब सिंह ने आउटलुक से कहा, “निर्यात के कारण किसानों को पहली बार गेहूं के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (2015 रुपये प्रति क्विंटल) से 300 रुपये तक अधि क मिल रहे थे। लेकिन निर्यात पर प्रतिबंध के बाद दाम एमएसपी से नीचे आ गए हैं। इस तरह मौसम की तपिश के कारण उत्पादन का नुकसान झेलने वाले किसानों के लिए राहत का रास्ता सरकार ने बंद कर दिया है।”

महंगाई से पूरा विश्व परेशान है। अमेरिका और यूरोप चार दशकों की रिकॉर्ड महंगाई का सामना कर रहे हैं। यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते खाद्यान्न, खाद्य तेल और ईंधन की महंगाई से फिलहाल राहत की संभावना नहीं है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने सुरक्षा परिषद में कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के 60 फीसदी अल्पपोषित लोग प्रभावित हुए हैं। अनेक देशों में बड़ी संख्या में लोग अकाल की तरफ बढ़ रहे हैं।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा स्थापित इंटरगवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) ने भविष्यवाणी की है कि भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्यान्न उत्पादन घटने से महंगाई और बढ़ेगी। मार्च और अप्रैल में भीषण गर्मी से गेहूं और अन्य रबी फसलों की उपज 25 प्रतिशत तक कम हुई है। इससे ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए संकट बढ़ गया है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय बिजनेस स्कूल, लुधियाना के डायरेक्टर डॉ. संदीप कपूर के मुताबिक, “पंजाब और हरियाणा के ज्यादातर गेहूं और चावल उत्पादक किसान परिवार खाद्य तेल, दालें, फल, सब्जियां और अन्य आवश्यक चीजों के लिए शहरी आपूर्ति पर निर्भर हैं। यही हाल अन्य राज्यों के ग्रामीणों का भी है जो दो या तीन फसलों के अलावा डेयरी या मुर्गी पालन से जुड़े हैं। शहरों से होने वाली आपूर्ति पर उनकी निर्भरता काफी है। मालभाड़ा और स्थानीय दुकानदारों का मार्जिन मिलाकर शहरों की तुलना में उन्हें चीजें 10 से 15 फीसदी तक अधिक महंगी पड़ती हैं।” गांवों में रहने वाली भारत की 70 फीसदी आबादी में से अधिकांश को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत गेहूं और चावल रियायती दरों पर मिलते हैं जबकि दालें, खाद्य तेल और अन्य आवश्यक खाद्य वस्तुएं उन्हें खुले बाजार से खरीदनी पड़ती हैं। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद में पंजाब से सदस्य रहे पूर्व खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री भारतभूषण आशु ने कहा, “जनवितरण वितरण प्रणाली (पीडीएस) की अपनी सीमाएं और कमियां हैं। इससे जरूरतमंद लोगों की सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती हैं। यही कारण है कि खाद्य सुरक्षा गरीब ग्रामीणों को महंगाई की मार से नहीं बचा पाती। खाद्य तेल और दालें उनकी पहुंच से बाहर हो जाती हैं।”

भारतीय किसान यूनियन उगरांह के महासचिव सुखदेव सिंह कोकरीकलां शासन व्यवस्था से भी खफा हैं। वे कहते हैं, “रसोई गैस सिलिंडर के दाम 1000 रुपये के पार हो गए। दो महीने पहले पंजाब में चुनाव के दौरान कई दलों ने एक साल में आठ सिलिंडर मुफ्त देने का ऐलान किया था, पर 70 फीसदी आबादी बढ़ती महंगाई का मुकाबला कैसे करे इसका कोई स्थायी समाधान उनके पास नहीं है। आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और मूल्य की निगरानी के लिए कोई ठोस तंत्र नहीं है।”

महंगाई से निपटने के प्रयासों में गंभीरता लाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था विशेषज्ञ एवं पंजाब योजना बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष अमृत सागर मित्तल कहते हैं, “गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाने जैसे फैसले से महंगाई कम करने में खास मदद नहीं मिलेगी, क्योंकि ज्यादातर खाद्य पदार्थों के दाम 25 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। पीडीएस के दायरे में आने वाली 80 करोड़ आबादी को महंगाई से राहत देने के लिए राशन व्यवस्था का मुद्रास्फीति के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है। केरोसिन मुक्त अभियान के तहत चंडीगढ़ समेत देश के कई इलाकों की गरीबी रेखा से नीचे की आबादी सस्ते ईंधन से वंचित कर दी गई, लेकिन इसकी जगह पीडीएस में रियायती रसोई गैस सिलिंडर को शामिल नहीं किया गया।”

कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव कम करने लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत खाद्य तेल, दालें और अन्य आवश्यक खाद्य पदार्थों को शामिल करने की दलील दी जा रही है। कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर शोध कर रहे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के छात्र निर्मल सिंह का कहना है, “मांग और आपूर्ति के बीच अंतर पाटने और खाद्य पदार्थों के सतत विकास को बनाए रखने के लिए ‘क्लाइमेट स्मार्ट’ फसलों को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। महंगाई पर काबू पाने के लिए आवश्यक खाद्य पदार्थों की सप्लाई चेन मजबूत बनाने और उनके अति भंडारण तथा मूल्य निर्धारण की निगरानी के लिए एक पारदर्शी तंत्र बनाने की जरूरत है।”

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