नौ बरस पहले हरियाणा की सियासत में भाजपाई रंग नहीं था। 1990 के दशक की राम मंदिर लहर से जब पूरा उत्तर भारत भाजपामय था, तब भी हरियाणा इसके असर से परे था। 2014 की मोदी लहर के बावजूद भाजपा को विधानसभा की सभी 90 सीटों पर जिताऊ उम्मीदवारों का टोटा था। खैर, लहर में 47 सीटें जीतकर पहली बार बहुमत में आई भाजपा में सरकार बनाने को लेकर भारी उत्साह था। पहली बार सरकार बनने की गहमागहमी के बीच 19 अक्टूबर 2014 की गुनगुनी दोपहरी में पहली बार का एक विधायक अपने चंद समर्थकों के साथ एक झोला और सूटकेस लिए चंडीगढ़ के सेक्टर तीन स्थित हरियाणा निवास की पहली मंजिल के एक कमरे में डेरा डालता है। दो दिन बाद 21 अक्टूबर को यूटी गेस्ट हाउस में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री पद के लिए कई सारे नामों की चर्चा थी, लेकिन खुद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल तब के प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा ने मनोहर लाल खट्टर के नाम प्रस्ताव रखा। प्रभारी वेंकैया नायडू ने घोषणा की, “मनोहर लाल जी विधायक दल के नेता होंगे।” घोषणा के बाद कुछ देर के लिए पसरे सन्नाटे में सबकी निगाहें मनोहर लाल पर टिकी थीं।
मुख्यमंत्री पद के दावेदार तमाम धुरंधरों को पछाड़ कर 26 अक्टूबर 2014 को मनोहर लाल ने दसवें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। 1980 से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के प्रचारक रहे ये लाल पहले के ‘लालों’ (बंसी लाल,भजन लाल, देवी लाल) से जुदा हैं। कई अनाथ बच्चों का नाथ बनकर मनोहर लाल ने न केवल उन्हें सरकारी नौकरियां दीं, बल्कि ‘हरियाणा एक हरियाणवी एक’ की सोच को सार्थक करते हुए उनकी पहली प्राथमिकता गांव-कस्बाई इलाकों के लाखों लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने की रही है।
रोहतक जिले के गांव निंदाना में जन्मे मनोहर लाल की जड़ें गांव से जुड़ी हैं। जब कभी गांव जाना होता है, तो ठिकाना खेत-खलिहान होते हैं और परिधान किसान का। चंडीगढ़ सचिवालय में हों या मुख्यमंत्री आवास में, आइपैड पर गड़ी उनकी नजरें पूरे तंत्र पर पैनी निगाह रखती हैं। टेक्नोलॉजी प्रेमी होने के नाते सुशासन में वह इसका भरपूर सदुपयोग करते हैं। भ्रष्टाचारियों और मुफ्तखोरों पर नकेल कस कर इन्होंने जरूरतमंदों तक अपनी पहुंच बढ़ाई। टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग विभाग के जो अधिकारी बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों की परियोजनाओं की फाइलें पहले मुख्यमंत्रियों को भेजा करते थे, वह परिपाटी 1 नवंबर 2016 से बंद है। विभाग के अधिकारी अब खुद ही ये फाइलें निपटाते हैं, मुख्यमंत्री कार्यालय का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं रहता।
लिखित परीक्षाएं और साक्षात्कार पास करने के बाद एचसीएस अफसर बनने के लंबे इंतजार में पथराई आंखों में तब खुशी चमक उठती है जब आखिरी साक्षात्कार के कुछ घंटे के भीतर ही नतीजे हरियाणा लोक सेवा आयोग (एचपीएससी) के पोर्टल पर होते हैं। एचसीएस बनाने के लिए मुख्यमंत्रियों की मुहर के दिन लद गए। एचसीएस से आइएएस में प्रमोशन का अधिकार मुख्यमंत्रियों के अधिकार क्षेत्र में था, इस प्रमोशन के लिए यूपीएससी मुख्यमंत्रियों की सिफारिश को वरीयता देता था, लेकिन मनोहर लाल ने यह परंपरा बंद की।
शिक्षकों के तबादलों के सीजन में शिक्षा मंत्री आवास के बाहर हुजूम नहीं उमड़ता। बदली के लिए पर्चियों से परे सरकारी तबादलों की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन हो गई है। ‘पोर्टल सरकार’ कहकर विपक्ष ने निशाना साधा मगर मनोहर लाल ‘पोर्टल पुरुष’ के रूप में सधते चले गए। हरियाणा देश का पहला प्रदेश बना जिसने किसान, जवान, पहलवान से लेकर आम व्यक्ति से जुड़ी 600 से अधिक सरकारी सेवाएं ऑनलाइन कर भ्रष्टाचार पर काफी हद तक लगाम लगाई।
27 अक्टूबर को नौ साल का कार्यकाल पूरा कर दसवें में प्रवेश करने वाले हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अब तक की चुनौतियों और प्राप्तियों के बीच प्राथमिकताएं जानने के लिए आउटलुक के सीनियर असिस्टेंट एडिटर हरीश मानव ने चंडीगढ़ स्थित उनके सरकारी आवास ‘संत कबीर कुटीर’ में लंबी चर्चा की। देर रात तक हुई इस चर्चा में मुख्यमंत्री ने तमाम सवालों का बड़ी बेबाकी से जवाब दिया। प्रमुख अंश:
नौ साल पहले करनाल से आप एक अजनबी के रूप में चुनावी मैदान में थे। 21 अक्टूबर 2014 से पहले कुछ भी तय नहीं था कि कौन मुख्यमंत्री होगा? कई दिग्गजों को पछाड़कर पहली बार का विधायक मुख्यमंत्री बना। क्या कभी सोचा था कि मुख्यमंत्री बनेंगे?
कभी नहीं। इससे पहले चुनाव लड़ने के बारे में भी कभी सोचा नहीं था। 1996 से 2001 तक मैं पंचकूला में नरेंद्र मोदी जी के साथ रहा। वह हरियाणा के प्रभारी थे और मैं सह-प्रभारी था। मई 2014 में मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के चार महीने बाद अक्टूबर में हरियाणा के विधानसभा चुनाव से कुछ ही समय पहले हमारे तत्कालीन अध्यक्ष अमित शाह जी ने चुनाव लड़ने के बारे में मुझसे पांच हलकों यमुनानगर, गुरुग्राम, फरीदाबाद, रोहतक और करनाल की चर्चा की। हफ्ते भर बाद ही उन्होंने मुझसे करनाल से चुनाव लड़ने को कहा। पहली बार करनाल गया तो मेरी ताजा पहचान केवल इतनी थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मैं पार्टी की हरियाणा चुनाव अभियान कमेटी का चेयरमैन था। करनाल के एक कार्यकर्ता के साथ उनके 10-12 रिश्तेदारों और करीबी दोस्तों के परिवारों से मिला। तब तक मेरे चुनाव लड़ने की किसी को भनक तक नहीं थी। जब दूसरी बार गया तो मेरे चुनाव लड़ने की चर्चा के बीच वहां के एक स्थानीय टिकट दावेदार, जो पहले भी चुनाव लड़ चुके थे, ने मेरे विरोध में हस्ताक्षर अभियान चलाकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बाहरी की बजाय करनाल के स्थानीय व्यक्ति को उम्मीदवार बनाए जाने की मांग रखी, मगर करनाल से मेरी उम्मीदवारी घोषित हुई। समर्थकों का कारवां बढ़ता गया और 63,736 मतों से मैंने रिकॉर्ड जीत दर्ज की।
मुख्यमंत्री न होते तो आज क्या होते?
मुझे संघ से समाज सेवा के संस्कार मिले हैं। मुख्यमंत्री न होता, तो भी आज भी समाज सेवा की दिशा में आगे बढ़ रहा होता। डॉक्टर बनने की इच्छा थी मगर 1972 में रोहतक मेडिकल कॉलेज, एम्स दिल्ली और आर्म्ड फोर्सेज मेडिकल कॉलेज (एएफएमसी) पुणे की प्रवेश परीक्षा में सफल नहीं हुआ। गोवा मेडिकल कॉलेज में दाखिले की उम्मीद थी लेकिन वहां की पाश्चात्य संस्कृति को देखते हुए परिजनों ने अनुमति नहीं दी। आगे दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के अलावा चांदनी चौक में भाई के साथ कपड़े का कारोबार भी किया। 1977 में आरएसएस से जुड़ा और 1980 में प्रचारक बना। पहली बार 1996 में नरेंद्र मोदी जी के संपर्क में आया तब वे हरियाणा के प्रभारी थे और मैं सह-प्रभारी। पांच साल पंचकूला में साथ रहे।
27 अक्टूबर को सरकार के नौ साल। ये नौ साल बेमिसाल या कोई मलाल जिसे बचे साल में पूरा करना चाहेंगे?
ऐसा कोई काम नहीं जिसे कहें कि झट से अगले एक साल में पूरा होगा। समाज के आखिरी छोर, आखिरी व्यक्ति तक सरकार की बहुत सी कल्याणकारी योजनाएं हमने शुरू की हैं। शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही लाने के लिए बड़े पैमाने पर टेक्नोलॉजी का सहारा लिया। 600 से अधिक नागरिक सेवाएं ऑनलाइन कीं। लंबे समय से सुशासन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों को आगे भी जारी रखेंगे, हालांकि अभी बहुत कुछ करना बाकी है।
कौन सा ड्रीम प्रोजेक्ट बाकी है, जो अगले एक साल में पूरा कर सकेंगे?
कोई एक ऐसा विशेष प्रोजेक्ट नहीं है। हमने व्यक्ति विशेष की पहचान के लिए ‘आधार’ से आगे परिवार के सशक्तीकरण और पहचान को वरीयता दी। तीन साल पहले कोविड की चुनौतियों में हमने ‘परिवार पहचान पत्र’ की पहल की, जिसे शुरू करने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य है। 1.80 लाख रुपये तक की सालाना आय वाले गरीब परिवार को शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सेवाओं से आगे कई सारी कल्याणकारी योजनाओं की मदद से उनकी जिंदगी में सुधार लाने के तमाम प्रयास जारी हैं।
विपक्ष कहता है कि जमीनी हकीकत से दूर आपकी सरकार ‘पोर्टल की सरकार’ है?
यह पब्लिक है, सब जानती है। विपक्ष का धन्यवाद करता हूं कि जितना हमारे पोर्टल का प्रचार वह कर रहे हैं, उतना ही हमारे लिए अच्छा है। विपक्ष हमारे पोर्टल को नकारता है जबकि जनता स्वीकारती है कि पोर्टल ने उनकी जिंदगी को कितना सहज और सुखद किया है। देश की आबादी जनगणना के हर दस साल बाद पता चलती है लेकिन हमारे पास हरियाणा का हर दिन का पूरा ब्यौरा है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्रियों ‘लाल तिकड़ी’ में भजन लाल का 11 साल 10 महीने का रिकॉर्ड कार्यकाल रहा। उनके बाद आप चौथे ‘लाल’ होंगे जिनका कार्यकाल सबसे लंबा रहेगा। इसका श्रेय किसे देंगे?
इसका श्रेय हरियाणा की जनता और पूरी व्यवस्था को है। भले ही 2019 के विधानसभा चुनाव में हम बहुमत से दूर 40 सीटें जीते पर ‘हरियाणा एक हरियाणवी एक’ की भावना से हमने समाज के हर वर्ग के लिए कार्य किया है। जनता की भावनाओं का सम्मान सर्वोपरि है और श्रेय भी उसे ही जाता है।
दो दशक से अधिक समय तक आप आरएसएस में सक्रिय रहे। संगठन में काम करना सहज था या सियासत आसान है?
संगठन से संस्कार, संयम, श्रम की शक्ति मिली। सेवा भाव से दोनों ही जगह सहज हैं।
बतौर मुख्यमंत्री क्या कभी कोई ऐसा पल आया जब इस सियासी पचड़े से संन्यास लेने का खयाल आया हो?
ऐसा कभी नहीं हुआ।
मिशन 2024 की तैयारियां जोरों पर हैं। जनता के बीच जाकर चार कौन-सी बड़ी उपलब्धियां गिना रहे हैं?
सिर्फ चार ही क्यों, ये गिनती से परे हैं। सबसे बड़ा प्रयास ऐसे लोगों की जिंदगी में बदलाव लाने का है जो समाज में कहीं पीछे छूट गए, उपेक्षित रहे, मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ गए। एक कार्यक्रम के दौरान मैं रेस्ट हाउस में बैठा था तभी मेरे सिक्योरिटी स्टाफ ने आकर बताया कि मुझसे मिलने की जिद पर अड़ा एक नौजवान बाहर खड़ा काफी देर से रो रहा है। मैंने मिलने के लिए उसे बुलाया। उसने मुझे बताया कि वह 27 बरस का हो गया है पर उसे आज तक यह पता नहीं कि उसके माता-पिता कौन हैं? 18 साल की उम्र तक बाल आश्रम में पला-बढ़ा। 18 वर्ष की उम्र के बाद वहां से निकाल दिया गया। कई जगह नौकरी की तलाश की मगर हर कोई पहचान पर सवाल खड़े करता। उसकी बात से मेरे मन में भी सवाल खड़ा हुआ कि हरियाणा में ऐसे कितने बेबस अनाथों की जिंदगी में अंधकार है? इनका पता लगाया जाए और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। अभी तक ऐसे करीब 40 लोगों के बारे में पता चला। ऐसे बच्चों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हमने ‘हरिहर’ योजना बनाई। इस योजना के तहत 18 साल की उम्र पूरी करने वाले 11 बच्चों को बगैर किसी परीक्षा, इंटरव्यू के उनकी शिक्षा व योग्यता के आधार पर दो महीने पहले ही सरकारी नौकरियां दी हैं। आज भी मैं उनके संपर्क में हूं। 25 साल की उम्र तक उनका वेतन बैंक में जमा होगा और उसके बाद उन्हें सस्ते मकान भी दिलाए जाएंगे, फिर अगली जिम्मेदारी उनकी शादियों की है। ऐसी पहल हरियाणा के अलावा देश के किसी अन्य राज्य में नहीं हुई कि सरकार किसी अनाथ की अभिभावक बने।
कांग्रेस के ‘विपक्ष आपके समक्ष’ के जवाब में आपके ‘जन संवाद कार्यक्रम’ में लोग किस तरह की समस्याएं रख रहे हैं?
शहरों में स्थानीय निकाय से जुड़ी समस्याएं अधिक हैं। ग्रामीण इलाकों में ग्रामीण विकास से जुड़ी समस्याएं हैं। उनके समाधान के लिए हमने एक अलग ‘जनसंवाद पोर्टल’ शुरू किया है। मैं प्रतिदिन खुद इस पोर्टल का निरीक्षण करता हूं। अभी तक इस पोर्टल पर 51 विभागों की 28,000 से अधिक समस्याएं दर्ज हुई हैं जिनमें से अधिकतर का समाधान हुआ है।
सरकारी नौकरियों की भर्ती में पारदर्शिता के लिए ‘बिन पर्ची-बिन खर्ची’ भर्ती परीक्षाओं के पर्चे लीक होने के कारण पिछले विधानसभा चुनाव में करिश्मा नहीं दिखा पाई? पर्चे लीक न हों इसके लिए क्या ठोस कदम उठाए गए हैं?
पिछली सरकारों में सरकारी नौकरियों की भर्ती के घोटाले किसी से छुपे नहीं हैं। शिक्षक भर्ती घोटाले में एक पूर्व मुख्यमंत्री को तो 10 साल जेल काटनी पड़ी। भर्ती परीक्षाओं में घोटाले पिछली सरकारों में भी बहुत हुए पर उन्होंने उसे उजागर करने के बजाय दबाए रखा। पिछली सरकारों के भर्ती घोटालों पर न्यायालय ने संज्ञान लिया पर हमने पर्चे लीक होने के मामले खुद उजागर किए। इसके पीछे के गिरोह को तहस-नहस करने के लिए उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात से लेकर जम्मू-कश्मीर में छापेमारी से 700 से अधिक लोग गिरफ्तार हुए, 300 से अधिक एफआइआर दर्ज हुई और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए कॉमन परीक्षा प्रणाली (सीईटी) लागू की।
विपक्ष का आरोप है कि अब भी दो लाख से अधिक सरकारी नौकरियों के पद खाली हैं। अगले एक साल में कितनी भर्तियों का लक्ष्य है?
दो लाख पद खाली नहीं हैं। नौ साल में हमने 1.10 लाख सरकारी पदों में भर्तियां की हैं। दिसंबर 2023 तक 60,000 नई भर्तियों में 42,000 ‘ग्रुप सी’ की और 14,000 ‘ग्रुप डी’ की हो जाएंगी।
हर बार चुनावों के दौरान सतलुज यमुना लिंक (एसवाइएल) नहर पानी के बंटवारे का मुद्दा गरमा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हरियाणा को पंजाब पानी देने को राजी नहीं। कैसे सुलझेगी यह गुत्थी?
लोंगोवाल समझौते के मुताबिक हरियाणा के लिए अलग नहर बनने से ही यह गुत्थी सुलझेगी। भाखड़ा मेन लाइन भी करीब 70 साल पुरानी है। इसके भी नवीनीकरण की जरूरत है। हरियाणा के हक में फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे लागू कराने का इंतजार है।
केंद्रीय टैक्स पूल में हरियाणा का योगदान चार फीसदी है, बदले में इस पूल से हरियाणा को सिर्फ एक फीसदी मिलता है। क्या कभी केंद्र से यह हिस्सा बढ़ाने की मांग की?
हरियाणा का प्रति व्यक्ति जीएसटी योगदान देश में सर्वाधिक है। केंद्रीय टैक्स पूल में अधिक योगदान के लिए हरियाणा सक्षम है जिसका उपयोग देश के आर्थिक रूप से कमजोर और अधिक आबादी वाले राज्यों को उनकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर दिया जा रहा है। नए गठित होने वाले 16वें वित्त आयोग से हम अब सेंट्रल टैक्स पूल में हरियाणा का हिस्सा बढ़ाने की मांग रखेंगे।
आपकी सरकार से पहले 2014-15 में हरियाणा के सिर 70,931 हजार करोड़ रुपये का कर्ज 2022-23 में ढाई लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। नौ साल में कर्ज करीब चार गुना बढ़ा है। विपक्ष का आरोप है कि आपकी सरकार ने राज्य को कर्ज में डुबो दिया है?
कांग्रेस के राज में 2014-15 में हरियाणा की जीडीपी 4.37 लाख करोड़ रुपये थी जो 2022-23 में बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपये हो गई है और चालू वित्त वर्ष में यह 13 लाख करोड़ रुपये के पार जाने की संभावना है। चार गुना बढ़ी विकास दर के लिए कर्ज उठाना कोई बुरी बात नहीं। इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए कर्ज उठाया जा रहा है। पूंजी निवेश आधारित विकास कार्य नहीं होंगे तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था कैसे बढ़ेगी? हरियाणा ने जीडीपी के अनुपात में 25 फीसदी कर्ज लिया है जबकि हमारी सीमा 33 फीसदी है। पड़ोसी राज्य पंजाब ने जीडीपी के अनुपात में 47 फीसदी कर्ज लिया है।
आपकी पार्टी के वरिष्ठ नेता बीरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि अगले जल्द ही भाजपा-जजपा का गठबंधन टूट जाएगा?
भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार अपने कार्यकाल के पांच साल सफलतापूर्वक पूरे करेगी।
चार साल पहले जजपा से गठबंधन मजबूरी थी, क्या अगले चुनाव के लिए यह जरूरी है?
अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। 2019 के विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन नतीजों के बाद ही हुआ था। 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों से तस्वीर साफ होगी कि विधानसभा चुनाव से पहले यह गठबंधन जरूरी है या नहीं। इसलिए लोकसभा नतीजों के बाद ही विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर विचार हो सकेगा।