आपका फोन घनघनाता है और दूसरी तरफ से आवाज आती है, “सर आपको कोई लोन की जरूरत है, प्लीज ले लीजिए, बहुत प्रेशर है। हम जानते हैं कि कोरोना में सब कुछ ठप है लेकिन फिर भी कुछ लोन ले लीजिए।” कोविड-19 के दौर की यह बैंकिंग दुनिया है, जिसमें ठप पड़ी अर्थव्यवस्था में ज्यादा से ज्यादा बिजनेस लाने का कर्मचारियों पर दबाव भारी है। यह दबाव निजी ही नहीं, सरकारी क्षेत्र के बैंक कर्मचारियों पर भी ऐसा भारी है कि वे इस चक्कर में कोरोना संकट की चपेट में आ रहे हैं और कुछ जान भी गंवा रहे हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के मुताबिक देश भर में 2,000 से ज्यादा बैंक कर्मचारी कोरोना संक्रमण लगा बैठे हैं और 57 मौत के शिकार हो चुके हैं। बढ़ते खतरे और दबाव का असर है कि कर्मचारियों में डर और गुस्से का माहौल है।
दरअसल, गिरता बिजनेस संभालने के लिए बैंक कर्मचारियों पर ज्यादा से ज्यादा डिपॉजिट लाने और ज्यादा कर्ज देने का दबाव बना रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “इस समय कोविड की वजह से न केवल बैंक में लोगों का आना कम है, बल्कि सारी गतिविधियां ठप हैं। फिर भी कर्मचारियों को सामान्य दिनों जैसे ही टारगेट दिए जा रहे हैं। ऐसे माहौल में कैसे कोई टारगेट पूरा कर सकता है। इस दौर में बिजनेस में 20-25 फीसदी की ग्रोथ बहुत मुश्किल है। इसके अलावा क्रॉस सेलिंग का भी दबाव है। यानी आपको केवल अपने ग्राहकों से डिपॉजिट लेने और उन्हें कर्ज देने का काम नहीं करना है, बल्कि बीमा और म्यूचुअल फंड सहित दूसरे उत्पादों की भी बिक्री कराने का दबाव है।” शिकायत यह भी है कि कोरोना पॉजिटिव होने पर केवल 20 हजार रुपये का इलाज खर्च मिल रहा है और मौत होने पर 20 लाख रुपये का बीमा कवर है। हालांकि कोरोना योद्धा के लिए केंद्र सरकार की तरफ से 50 लाख रुपये का बीमा कवर दिया जा रहा है। वे पूछते हैं, “सवाल है कि कोविड-19 के दौर में लगातार काम कर रहे बैंक कर्मचारी क्या कोरोना योद्धा नहीं हैं? यह सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है?”
नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स के पूर्व महासचिव अश्विनी राणा का कहना है कि बैंक कर्मचारियों पर भारी दबाव डाला जा रहा है, जिससे वे संक्रमण और मौत तक को गले लगा ले रहे हैं। सबसे ज्यादा बैंक कर्मचारी महाराष्ट्र में संक्रमित हैं। उसके बाद गुजरात, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कर्मचारी संक्रमित हुए हैं। मौत के आंकड़े भी इसी क्रम में हैं। जब भी कोई संकट का समय आता है तो बैंक कर्मचारी खड़े रहते हैं। लेकिन जब सहूलियत देने की बात आती है तो उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। अगर पुलिसवाले, स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले कर्मचारी कोरोना योद्धा हैं तो बैंक कर्मचारी को कोरोना योद्धा क्यों नहीं माना जा रहा है? एक निजी क्षेत्र के बैंक कर्मचारी का कहना था कि कोविड-19 से पहले जो टारगेट तय किए गए थे, उसी को इस समय भी रखा गया है। यही नहीं, रेपो रेट में हुई कमी के नाम पर रेवेन्यू मार्जिन को घटा दिया गया है। दूसरे शब्दों में, हमारा टारगेट परोक्ष रूप से बढ़ा दिया गया है। इसको ऐसे समझा जा सकता है कि अगर पहले हमें होम लोन कराने पर तीन फीसदी का रेवेन्यू मिलता था तो वह घटकर दो फीसदी रह गया है। यानी आपका रेवेन्यू घट गया। ऐसी स्थिति में हमारा टारगेट बढ़ गया है।
ऐसा ही दबाव डिपॉजिट को लेकर है। इस समय बार-बार कस्टमर से ज्यादा से ज्यादा डिपॉजिट लेने को कहा जा रहा है। लेकिन जब कस्टमर से बात करते हैं, तो वे कहते हैं कि कोरोना में पैसे की बात मत कीजिए। यही नहीं, अगर कोई ग्राहक बड़ी राशि बैंक से निकाल रहा है, तो उसका दबाव भी कर्मचारियों पर डाला जा रहा है कि उससे एफडी करवाओ, या कुछ नहीं तो पर्सलन लोन ही दिलवाओ।
बैंक कर्मचारियों का कहना है कि लोगों की सेवा करते हुए वे कोरोना वायरस के प्रकोप से गंभीर चुनौतियों और जोखिम का सामना कर रहे हैं। इस दौरान, 57 बैंक कर्मचारियों को कोविड-19 के कारण जान से हाथ धोना पड़ा है। इन कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों को आर्थिक मदद के साथ मुआवजा दिया जाना चाहिए और उनके आश्रितों को नौकरी दी जानी चाहिए। इसके अलावा बैंक, कर्मचारियों से जुड़े कई नियमों की अनदेखी भी कर रहे हैं।
मसलन, इंडियन बैंक्स एसोसिएशन ने सलाह दी थी कि सार्वजनिक बैंकों के गर्भवती, विकलांग, होम क्वारंटीन और अधिक जोखिम वाले कर्मचारियों के लिए लॉकडाउन अवधि के दौरान विशेष छूट दी जाए। उनको विशेष अवकाश बिना वेतन कटौती के दिए जाएं। लेकिन उस सलाह को दरकिनार कर कई बैंकों ने ऐसे कर्मचारियों को भी शाखाओं में ड्यूटी पर आने को मजबूर किया। लॉकडाउन अवधि के दौरान कई बैंकों ने बड़ी संख्या में अंतरराज्यीय स्थानांतरण आदेश जारी किए हैं, जिन्हें रद्द किया जाना चाहिए। यही नहीं, एक प्रमुख निजी बैंक के अधिकारी के अनुसार कई ऐसे निर्देश दिए जा रहे हैं, जो जमीनी हकीकत से एकदम अलग हैं। लखनऊ में काम करने वाले एक अधिकारी के अनुसार कोरोना संक्रमण की वजह से कई बड़ी शाखाएं बंद कर दी गई हैं, ऐसे में उन शाखाओं में कर्मचारी नहीं पहुंच रहे हैं। इसके बावजूद शीर्ष प्रबंधन से ऐसे आदेश दिए जा रहे हैं, जो बिना शाखा गए संभव नहीं है। ऐसे में कर्मचारियों पर ही दबाव पड़ेगा।
पंजाब नेशनल बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि असल में कोविड-19 का दौर काफी संकट भरा है। ऐसे दौर का कभी किसी ने सामना नहीं किया था। अर्थव्यवस्था में सुस्ती का असर बैंकों के बिजनेस पर पड़ना लाजिमी है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार कोविड-19 की वजह से चालू वित्त वर्ष में बैंकों के कर्ज की दर तेजी से गिरने वाली है। पिछले वर्ष क्रेडिट ग्रोथ 6.14 फीसदी थी, जो इस साल केवल एक फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि कोविड के पहले इसके 8-9 फीसदी रहने का अनुमान था। इसी तरह डूबत खाते के कर्ज (एनपीए) 1.9 फीसदी बढ़ने की आशंका है।
जाहिर है, न केवल बैंक कर्मचारी बल्कि बैंकिंग बिजनेस भी संकट से गुजर रहा है। ऐसे में जरूरत तालमेल बैठाने की है क्योंकि अर्थव्यवस्था का बड़ा दारोमदार बैंकिंग व्यवस्था पर टिका हुआ और वह डगमगायी तो असर पूरी अर्थव्यवस्था पर होगा।