रांची के मोरहाबादी मैदान में 28 नवंबर को हजारों की भीड़ के सामने हेमंत सोरेन ने चौथी बार झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। शपथ लेने के पहले हेमंत के साथ उनकी पत्नी कल्पना ने पिता शिबू सोरेन का चरण स्पर्श किया। बेटे की कामयाबी का जश्न देखने मैदान में शिबू और उनकी पत्नी रूपी सोरेन भी मंच पर थे। उनके अलावा, मंच पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से लेकर भाकपा-माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य सहित देश भर से इंडिया ब्लॉक के बड़े नेता मौजूद थे। 81 सदस्यीय विधानसभा में इंडिया ब्लॉक के 56 विधायकों की जीत के साथ हेमंत प्रदेश के 14वें मुख्यमंत्री बने। सन 2000 में राज्य के गठन के बाद 24 साल में अब तक किसी गठबंधन ने इतनी बड़ी जीत नहीं हासिल की है। इस जीत ने इंडिया गठबंधन में हेमंत का कद बढ़ाया है। दूसरी तरफ पराजय ने भाजपा और आजसू को अपनी जमीन तलाशने पर मजबूर कर दिया है जबकि जयराम महतो की नई पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम) के लिए संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं।
जीत के बाद धन्यवाद ज्ञापन, सभा में हेमंत
हेमंत के सामने इस बड़ी जीत के साथ पहाड़ जैसी चुनौतियां खड़ी हैं। मंइयां सम्मान योजना, 450 रुपये में गैस सिलेंडर, बिजली बिल माफी, किसान कर्ज माफी, अबुआ आवास जैसी योजनाओं को आगे ले जाना है जिन पर सालाना करीब 30 हजार करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान है। सवाल यह है कि करीब 90 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबे झारखंड के लिए ये फैसले आधारभूत संरचना निर्माण और विकास के लिए कितनी जगह छोड़ेंगे। इसीलिए शपथ लेने के तत्काल बाद कैबिनेट की बैठक कर हेमंत सोरेन ने केंद्र के पास बकाया 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये के दावे की वसूली के लिए कानूनी कार्रवाई और आय के अन्य स्रोतों पर विचार करने का निर्णय किया।
शपथ ग्रहण में इंडिया गठबंधन के नेता
मजबूत होकर उभरे हेमंत
विपक्ष की तमाम घेराबंदी के बीच ताजा चुनाव में चुनौतियों से मुकाबला कर हेमंत सोरेन और मजबूत होकर निखरे हैं। आदिवासी, ईसाई और अल्पसंख्यकों पर अपनी पकड़ रखने वाले इंडिया गठबंधन का संथाल परगना, कोल्हान, पलामू और दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल में उनकी पताका जोर से लहराई। बस उत्तरी छोटानागपुर इलाके में एनडीए का जोर चला। पिछड़ों के वोटों में भी अच्छी पैठ दिखी। महिला और ग्रामीण वोटर भी इंडिया गठबंधन की ओर झुके रहे। एक दर्जन से अधिक जिलों में एनडीए का खाता तक नहीं खुला। 34 सीटों के साथ झामुमो सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। स्टार प्रचारक हेमंत और उनकी पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन की जोड़ी ने कांग्रेस को भी मदद की। कांग्रेस पिछले चुनाव की तरह 16 सीटों पर कायम रही।
हेमंत सरकार को शुरू से ही केंद्र के असहयोग और केंद्रीय एजेंसियों की चुनौती का सामना करना पड़ा था। इस घेराबंदी के बीच एक कथित घोटाले के सिलसिले में हेमंत को जेल जाना पड़ा और मुख्यमंत्री की कुर्सी झामुमो के वरिष्ठ मंत्री चंपाई सोरेन को सौंपी गई। लोकसभा चुनाव सिर पर था। उसी दौर में कल्पना सोरेन ने राजनीति में प्रवेश किया और अकेले स्टार प्रचारक की भूमिका निभाई और लोकसभा चुनाव में सुरक्षित सीटों पर इंडिया गठबंधन ने जीत हासिल की। जेल से निकलकर हेमंत दोबारा मुख्यमंत्री बने तो चंपाई सोरेन ने भाजपा को अपना लिया। उसके बाद हेमंत और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने चुनाव अभियान को संचालित किया। कल्पना सोरेन ने ही करीब सौ सभाएं कीं।
शिबू सोरेन उम्रजनित बीमारियों से ग्रस्त हैं मगर झारखंडी जनता में अब भी उनके चेहरे का प्रभाव है। झामुमो के झंडे, बैनर, मंच पर उनका चेहरा लहराता रहा। शोध संस्थान सीएसडीएस के अध्ययन के अनुसार गरीब, निम्न आय वर्ग और मध्यम वर्ग ने इंडिया गठबंधन को पसंद किया। हेमंत कैबिनेट के सदस्य रहे बन्ना गुप्ता, मिथिलेश ठाकुर, बैजनाथ राम और बेबी देवी को हालांकि पराजय का मुंह देखना पड़ा।
ढह गया एनडीए
सत्ता में वापसी की उम्मीद पाले भाजपा के दिग्गजों को भी भान नहीं रहा होगा कि झारखंड की जनता उन्हें इस तरह खारिज कर देगी। हेमंत सरकार के कथित भ्रष्टाचार, बांग्लादेशी घुसपैठ, 'रोटी बेटी माटी' से लेकर 'बंटेंगे तो कटेंगे' तक के नारे काम नहीं आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, झारखंड के सह चुनाव प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम नेताओं के माहौल बनाने की कोशिशें नाकाम रहीं। हिमंता ने तो लंबा कैंप कर के चुनावी रणनीति का ताना-बाना बुना। टिकट से वंचित नेताओं के मनाने से लेकर झामुमो के नाराज नेताओं को पटाने तक के ऑपरेशन में वे लगे रहे। अंतिम चरण के चुनाव के दिन 20 नवंबर को स्थानीय अखबारों में पहले पन्ने का कवर 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे' वाला प्रधानमंत्री की अपील का विज्ञापन छपा, मगर सब बेअसर साबित हुआ।
मोदी के साथ हेमंत सोरेन
दस सीटों पर लड़ने वाली भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू 2019 के चुनाव में अकेले लड़ी थी। इस बार गठबंधन में दो सीटों के साथ जदयू भी था। चिराग पासवान की पार्टी लोजपा को भी एक टिकट मिल गया था। राकांपा के कमलेश सिंह भी भाजपा में थे मगर जनता को गठबंधन रास नहीं आया। आदिवासी वोटों पर डोरे डालने के लिए चुनाव की शुरुआत से अंत तक संथाल में बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठ से डेमोग्राफी बदलने का मुद्दा भाजपा उछालती रही। चुनाव नतीजों में उसे चार सीटों के नुकसान के साथ 21 सीटों पर जीत से ही संतोष करना पड़ा। प्रदेश में आदिवासियों के लिए सुरक्षित 28 सीटों में 2014 में 11 सीटें जीतने वाली भाजपा को सिर्फ एक सीट हासिल हुई, वह भी उधार के उम्मीदवार चंपाई सोरेन के कारण। 2019 में भी सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा था। रिजर्व 28 सीटों में भाजपा 25 सीटों पर लड़ी थी जिसमें इस बार 19 सीटों पर नए चेहरे को उसने मौका दिया था। पिछले विधानसभा चुनाव में खूंटी से हासिल दो सीटें भी भाजपा ने गंवा दीं। कोल्हान में चंपाई सोरेन, बाबूलाल सोरेन, शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन, पूर्व सीएम मधु कोड़ा, उनकी पत्नी गीता कोड़ा, झामुमो के वरिष्ठ विधायक लोबिन हेंब्रम को लाना कारगर साबित नहीं हुआ। भाजपा के आदिवासी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी आदिवासी वोटों पर प्रभाव डालते नहीं दिखे। विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद बाबूलाल मरांडी ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेकर प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ने की पेशकश भी कर दी। बाबूलाल मरांडी का भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद हुए विधानसभा उपचुनावों, संसदीय चुनाव और विधानसभा चुनाव में उनका कोई असर नहीं दिखा। चुनाव के दौरान हेमंत सरकार पर यहां के आदिवासी नेता आक्रामक नहीं दिखे। गौर करने की बात यह भी रही कि चुनाव के दौरान केंद्रीय नेताओं की टोली ही हावी रही। करारी हार के बाद भाजपा नेतृत्व ने पार्टी और कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखने के लिए आगे की रणनीति पर मंथन शुरू कर दिया है।
मंईयां का झटका
जानकार मानते हैं कि मंईयां सम्मान योजना और बिजली माफी जैसी योजनाओं ने आदिवासियों के साथ आम ग्रामीणों को प्रभावित किया। मंईयां सम्मान योजना के तहत चुनाव के दो-तीन माह पूर्व से एक हजार रुपये की राशि दी जा रही थी। भाजपा ने गोगो दीदी योजना के रूप में 2100 रुपये देने का वादा किया तो हेमंत सोरेन ने आचार संहिता लागू होने के दिन कैबिनेट की बैठक कर इसे 2500 रुपये मासिक कर दिया। शपथ ग्रहण के दिन ही कैबिनेट की बैठक कर दिसंबर से महिलाओं के खाते में 2500 रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया। एक घर में एक से अधिक महिला के होने और मासिक करीब 1100 रुपये बिजली बिल माफी का किसी गरीब परिवार पर पड़ने वाले असर का आकलन किया जा सकता है। चुनाव में महिला और ग्रामीण वोटरों की उमड़ी भीड़ को उसी से जोड़कर देखा जा रहा है। पुरुषों की तुलना में पांच प्रतिशत अधिक महिलाओं ने मतदान में हिस्सा लिया। कुल 65.06 प्रतिशत पुरुषों ने तो 70.46 प्रतिशत महिलाओं ने वोट डाले। सीएसडीएस के आकलन के अनुसार 45 प्रतिशत महिलाओं ने इंडिया को पसंद किया तो 38 प्रतिशत ने एनडीए को। ग्रामीण महिलाओं का अनुपात 48 प्रतिशत और शहरी का 37 प्रतिशत था। वहीं 60 प्रतिशत आदिवासी महिलाओं ने इंडिया को पसंद किया जबकि 31 प्रतिशत ने एनडीए को।
भारी पड़ा जयराम को हल्के में लेना
जयराम महतो की जेएलकेएम ने करीब एक दर्जन सीटों पर चुनाव नतीजों को सीधे प्रभावित किया
धनबाद के मानतंड गांव में जन्मे खतियानी भाषा और कुर्मी-कुड़मी आंदोलन से हाल में उभरे 30 साल के टाइगर जयराम महतो ने 15 प्रतिशत आबादी वाले कुर्मी-कुड़मी वोटरों और युवाओं में गहरी पैठ बनाई है। विधानसभा चुनाव से करीब तीन माह पहले ही उसकी नवगठित पार्टी जेएलकेएम को चुनाव आयोग ने पंजीकृत किया। लोकसभा चुनाव में भी तीन संसदीय क्षेत्रों में अपनी अच्छी उपस्थिति दिखाई थी। जयराम की पार्टी को हलके में लेना लोगों को भारी पड़ गया। करीब एक दर्जन सीटों पर जेएलकेएम ने चुनाव नतीजों को सीधे तौर पर प्रभावित कर दिया। यानी जीतने और हारने वाले उम्मीदवार के अंतर से ज्यादा वोट जेएलकेएम ने ले लिए। सबसे बड़ा झटका 10 सीटों पर चुनाव लड़ रही भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू को लगा। यह पहला मौका होगा जब आजसू का विधानसभा में सिर्फ एक विधायक होगा। आजसू सिर्फ मांडू से एक सीट बचा सकी। निर्मल महतो यहां से महज 231 वोटों से जीत दर्ज कर सके। आजसू के तीन विधायक अपनी सीट नहीं बचा सके। कुड़मी वोटों पर मजबूत प्रभाव रखने वाले आजसू प्रमुख सुदेश महतो को भी सिल्ली से पराजय का मुंह देखना पड़ा। सुदेश यहां से 23,879 वोटों से पराजित हुए जबकि जेएलकेएम के देवेंद्र नाथ महतो 41129 वोट लाकर तीसरे पायदान पर रहे। रामगढ़ व गोमिया आजसू की सीट थी। आजसू रामगढ़ में 6790 वोटों से हारी जबकि यहां जेएलकेएम के उम्मीदवार को 70979 वोट मिले। गोमिया में तो आजसू उम्मीदवार को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। 34 वर्षों से लगातार कब्जे वाली सीट कांके से भाजपा को 968 वोटों से हार का सामना करना पडा जबकि यहां जेएलकेएम उम्मीदवार ने 25965 वोट जुटा लिए। आजसू जिन कुर्मी बहुल सीटों पर हारी उसमें अधिसंख्य पर जेएलकेएम तीसरे नंबर पर रहा। चंदन कियारी में तो जेएलकेएम ने नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी से ज्यादा वोट लाकर उन्हें तीसरे स्थान पर ला दिया। जेएलकेएम ने 65 सीटों पर उम्मीदवार दिएउ थे मगर सिर्फ एक डुमरी सीट पर पार्टी प्रमुख जयराम महतो को जीत हासिल हुई। ईचागढ़, तमाड़, सिल्ली, बेरमो, चंदनकियारी, मांडू, बाघमारा, खिजरी, बड़कागांव, टुंडी सीट पर जेएलकेएम ने हार-जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल कर उम्मीदवारों का खेल खराब कर दिया। बेरमो और चंदनकियारी में तो इसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे। जाहिर है आजसू कुड़मी वोटों पर एनडीए की ओर नहीं मोड़ पाई। जयराम महतो की इस नई नवेली पार्टी में काफी संभावनाएं हैं। इसने अपनी हैसियत बना ली है। वहीं आजसू के सामने अस्तित्व बचाने की चुनौती है। जेएलकेएम के किसी गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने पर नतीजे और भी अलग हो सकते हैं।
टूटे रिकार्ड
ताजा विधानसभा चुनाव में 81 सदस्यीय विधानसभा में इंडिया गठबंधन ने 56 सीटों पर जीत दर्ज की। झामुमो ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। कई रिकार्ड बनते और टूटते रहे। राज्य के 24 साल के इतिहास में पहली बार किसी दल की दोबारा सरकार बनी है। किसी गठबंधन को पहली बार 56 सीटें हासिल हुईं और 34 सीटें जीतकर झामुमो ने इतिहास रच दिया। 2019 के चुनाव में भी झामुमो ने 30 सीटें जीतकर अपना रिकार्ड बनाया था। हेमंत सोरेन ने खुद झारखंड का चौथी बार मुख्यमंत्री बनकर रिकार्ड बनाया और अपने पिता झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के तीन बार मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड पीछे छोड़ दिया। कांग्रेस भी 16 सीटों के अपने पिछले रिकार्ड पर कायम रही। हां, पिछले चुनाव में एक सीट जीतने वाले राजद ने सात सीटों पर लड़ चार सीटों पर कब्जा किया। वहीं झारखंड से पहली मुस्लिम महिला विधायक के रूप में पूर्व मंत्री आलमगीर आलम की पत्नी निशात आलम कांग्रेस के टिकट पर पाकुड़ से विधानसभा पहुंची हैं। इस बार सर्वाधिक 12 महिलाओं ने चुनाव जीत कर उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछले चुनाव में यह संख्या दस थी। बागियों के भरोसे चुनाव लड़ने वाली सपा और बसपा का खाता तक नहीं खुला। पहली बार चतरा से लोजपा का खाता खुला।
योजनाओं पर खर्च और आमदनी
चुनाव के दौरान झारखंड की मंईयां सम्मान योजना की बड़ी चर्चा रही। किसानों को दी जाने वाली 50 हजार रुपये तक की कर्ज माफी को बढ़ाकर दो लाख तक कर दिया गया। 25 लाख लोगों को तीन कमरे का अबुआ आवास, पुरानी पेंशन योजना आम जनता को प्रभावित करने वाले फैसले हैं। सिर्फ मंईयां सम्मान योजना (56 लाख लोगों को दिया जाना है) का ही सालाना करीब 20 हजार करोड़ का बोझ राज्य के खजाने पर पड़ेगा। अर्थशास्त्री अयोध्यानाथ मिश्र का मानना है कि जनता को राहत देने वाली ऐसी चालू और प्रक्रियाधीन योजनाओं पर करीब 30 हजार करोड़ का खर्च आएगा। टैक्स रेशनलाइजेशन, प्रशासनिक खर्च में मितव्ययिता कर के लंबित वादों के त्वरित निबटारे, उत्पाद और ट्रांसपोर्ट पर नियंत्रण, उत्पादक संस्कृति की स्थापना जैसे कदम उठाकर तत्काल खर्च को एक हद तक पाटा जा सकता है।
राज्य के खजाने पर पड़ने वाले असर का मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भान है। कैबिनेट की बैठक में खनन क्षेत्रों में पुराने करों की समीक्षा कर उसमें वृदि्ध एवं न्यायिक मामलों में लंबित वसूली में तेजी लाने के लिए उन्होंने विशेष सेल गठित करने का निर्णय किया है।
बीते 25 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने खदानों और खनिज भूमि पर रॉयल्टी और कर वसूली के मामले में फैसला सुनाया था कि खदानों और खनिज भूमि पर दी जाने वाली रॉयल्टी कर नहीं है। खनिजों पर कर लगाने के अधिकार राज्यों के पास हैं। बकाया राशि 12 साल में अदायगी का निर्देश दिया था। इसी आधार पर हेमंत सोरेन केंद्र से 1 लाख 36 हजार करोड़ रुपये बकाये का दावा कर रहे हैं।