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झारखंड : खतियान नीति से पटकनी

कुशल खिलाड़ी की तरह हेमन्त सोरेन ने केंद्र सरकार के पाले में डाल दी हैं दो गेंदे
हेमन्त सोरेनः 1932 के खतियान और ओबीसी आरक्षण का दोहरा निशाना केंद्र पर

सियासी दांव में केंद्र सरकार को पटकनी देते हुए हेमन्त सोरेन ने वे काम पूरे कर लिए, जिनके पांच साल में पूरा होने में संदेह था। झारखंड के मुख्यमंत्री ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण से संबंधित विधेयक विधानसभा से पारित करा लिया। विधेयक पारित कर सदन से बाहर निकलते हुए उन्होंने विजेता के अंदाज में कहा, “राज्य के ज्वलंत विषय पर सरकार ने लगभग सारे निर्णय ले लिए हैं।” इस विधेयक के अनुसार अब वे लोग झारखंड के स्थानीय या मूल निवासी कहे जाएंगे जिनका या जिनके पूर्वजों का नाम 1932 या उससे पहले के खतियान में दर्ज होगा। वहीं अब ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दी गई है। चुनाव आयोग के हवाले से हेमन्त को मिली चेतावनी के बाद से ही वे अलर्ट मोड में आ गए थे। खुद और सरकार के वजूद पर मंडराते खतरों के बीच बैकफुट पर खड़े हेमन्त ने ऐसा फैसला ले लिया जिसके कारण वे इस कदर मजबूत होकर उभरे कि राज्यपाल हों या चुनाव आयोग या ईडी या केंद्र सरकार, सब शांत हो गए हैं।

अवैध खनन मामले में ईडी की जांच का नतीजा क्या निकलता है यह बाद की बात है। हाल ही में हेमन्त से ईडी ने अवैध खनन मामले में करीब नौ घंटे लंबी पूछताछ की थी। किसी राज्य के मुख्यमंत्री को समन कर के इतनी लंबी पूछताछ करने का यह संभवतः पहला मामला है, लेकिन हेमन्त ने भी संयम बनाए रखा। उनका यह सियासी दांव ही इशारा कर रहा है कि तीन साल के शासन में उन्होंने अगले चुनाव की तैयारी पूरी कर ली है। अगर बीच में भी चुनाव होते हैं, तो वे मैदान में उतरने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। पुरानी पेंशन योजना, सर्वजन पेंशन योजना, 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति, ओबीसी को 14 के बदले 27 प्रतिशत आरक्षण, ‘आपके अधिकार आपकी सरकार आपके द्वार’ के माध्यम से 55 लाख लोगों की समस्याओं की सुनवाई और 35 लाख आवेदनों का निपटारा, वोटरों के बड़े वर्ग को प्रभावित करने वाले मसले हैं।

1932 के खतियान से आदिवासी समाज में बहुत अच्छा संदेश गया है, हालांकि इससे कुड़मी-महतो ज्यादा प्रभावित होंगे क्योंकि बड़ी संख्या में गरीब आदिवासियों के पास जमीन ही नहीं थी, जबकि कुड़मी-महतो की पहचान जमीन को लेकर ही है।

इसके अलावा सरकार संभालने के एक साल के भीतर ही आदिवासियों के वजूद की पहचान से जुड़े अलग सरना कोड प्रस्ताव को हेमन्त विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर केंद्र को भेज चुके हैं मगर दो साल बाद भी न इसे केंद्र से मंजूरी मिली है, न ही केंद्र सरकार इसकी काट खोज पाई है। इसकी मंजूरी न मिलने पर आए दिन हेमन्त इसे लेकर केंद्र पर हमला करते रहते हैं। इसी तरह 1932 के खतियान और ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण विधेयक को भी नौवीं अनुसूची में डालकर हेमन्त ने चालाकी से गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। आरक्षण की सीमा और तकनीकी पेंच को लेकर दोनों विधेयकों को केंद्र से पास कराना आसान नहीं है। सरना कोड की तरह ये दोनों विधेयक केंद्र के लिए जितने जटिल होंगे हेमन्त के लिए उतना ही बेहतर होगा। केंद्र क्या फैसला क्या करेगा यह बाद की बात है, लेकिन इसके सहारे हेमन्त ने वोटरों को उनका हिमायती होने का संदेश दे दिया है। और जब तक केंद्र से इन्हें मंजूरी नहीं मिलती, हेमन्त के लिए केंद्र पर हमले के ये हथियार बने ही रहेंगे। इधर अवैध तरीके से बने मकानों को नियमित करने का फैसला कर हेमन्त ने उन शहरी वोटरों को भी प्रभावित करने का फैसला किया है जिन पर भाजपा का प्रभाव था। दरअसल जनजातीय जमीन और दूसरी तकनीकी अड़चनों के कारण राजधानी रांची में ही आधे से अधिक भवन बिना नक्शा के अनियमित तरीके से निर्मित हैं।

हेमन्त हमलावर, राजभवन बैकफुट पर

माइनिंग लीज और विधानसभा सदस्यता समाप्त करने को लेकर बैकफुट पर रहे हेमन्त अब राज्यपाल पर हमलावर हैं। वे कहते हैं कि 25 अगस्त को आयोग का मंतव्य राजभवन आया। बंद लिफाफा आज तक नहीं खुला। दो माह बाद रायपुर में राज्यपाल कहते हैं कि चुनाव आयोग से सेकेंड ओपिनियन की मांग की है, एकाध बम फट सकता है। हालांकि चुनाव आयोग का हेमन्त के पूछने पर यह कहना है कि सेकेंड ओपिनियन को लेकर राज्यपाल का कोई पत्र नहीं आया है। हां, बम फटने की बात कहे जाने के बाद ईडी का समन जरूर आया है। कुछ यूपीए विधायकों के यहां ईडी, आयकर की रेड पड़ गई।

इसका असर यह हुआ कि इस साल बिरसा मुंडा के जन्मादिन को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया था। इसी के तहत 15 नवंबर को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू बिरसा के गांव खूंटी जिला के उलिहातू पहुंची थीं। हेमन्त ने उन्हें राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में भी आमंत्रित किया था। राष्ट्रपति ने इसे स्वीकार भी कर लिया मगर अंतिम समय में उनका कार्यक्रम बदल गया। चर्चा रही कि हेमन्त को ईडी के समन के कारण यह बदलाव हुआ, हालांकि हेमन्त एयरपोर्ट पर स्वागत से लेकर बिरसा के गांव और राजभवन तक राष्ट्रपति के साथ रहे। राजभवन में उन्होंने राज्यपाल से भी स्थापना दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने का आमंत्रण दिया था मगर वे भी नहीं आए। राज्य स्थापना दिवस समारोह में हेमन्त संयत दिखे और भाषण में राजनीतिक टिप्पणियों से परहेज किया।

हां, ईडी के सामने 17 नवंबर को पेशी के पहले और राज्य स्थापना दिवस की पूर्व संध्या पर उन्होंने भाजपा को घेरने वाला निर्णय किया। भाजपा की रघुवर सरकार के पांच मंत्रियों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति को लेकर निगरानी जांच का आदेश दे दिया। इनमें रघुवर शासन के कई मंत्री थे। उसी दिन कांग्रेस को साधने के लिए अपने पिता और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की अध्यक्षता में सरकार के संचालन के लिए उन्होंने समन्वय समिति के गठन का औपचारिक आदेश जारी किया।

हेमन्त लगातार केंद्र पर आक्रमण करते रहते हैं कि राज्य का 1.36 लाख करोड़ बकाया मांगा तो ईडी और सीबीआई को भेज दिया। हेमन्त 17 नवंबर को रोड शो करते हुए ईडी कार्यालय तो नहीं पहुंचे मगर हजारों की संख्या में जिलों से पहुंचे झामुमो कार्यकर्ता सीएम आवास से गुजरने वाली सड़कों पर रोड शो करते रहे। पेशी पर जाने के पूर्व ईडी को पत्र लिखकर हेमन्त ने दो साल में साहिबगंज में एक हजार करोड़ रुपये के खनन घोटाले के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि इतने संसाधन ही नहीं हैं कि उतनी मात्रा में खनन या ढुलाई हो सके। पत्रकारों से बात करते हुए राज्यापाल पर भी सरकार के खिलाफ षडयंत्र में शामिल होने का आरोप उन्होंने लगाया। सरकार गिराने की साजिश के मामले में कोलकाता कैश कांड में कांग्रेस ने जिन तीन विधायकों इरफान अंसारी, राजेश कच्छप और नमन विक्सल कोंगाड़ी को निलंबित कर दिया है, वे सीएम आवास में प्रेस कांफ्रेंस में हेमन्त के साथ खड़े थे। इसके भी अलग मायने हैं। पूछताछ के दौरान ईडी ने हेमन्त से कहा यह घोटाला सिर्फ दो साल का नहीं है। बाद में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए हेमन्त ने कहा कि ईडी को कह दिया है कि अगर निष्पक्षता से जांच करेंगे तो सरकार सहयोग करेगी वरना हम विरोध की ताकत रखते हैं। बहरहाल, ईडी के कई तीखे सवालों का उत्तर आना अभी शेष है। इसके बावजूद हेमन्त सोरेन ने चुनौती मिलने के बाद से अपने बचाव में जो तैयारी की है और लगातार जवाबी पलटवार से जैसा सियासी समां बांध दिया है, ऐसे में भाजपा द्वारा उनकी सरकार को पलटने के लिए कोई ऑपरेशन उतना आसान तो नहीं लगता। गुजरात और हिमाचल के चुनाव परिणाम आने तक तो कम से कम राहत रहेगी ही।

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