वह जो हुआ, क्या कानून के मुताबिक था!” देश के प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की यह झुंझलाहट भरी टिप्पणी ही समूची व्यवस्था के टूटने-बिखरने की दिल दहला देने वाली हकीकत की ओर इशारा कर रही है। प्रधान न्यायाधीश की यह झुंझलाहट सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उन्नाव के पीडि़त परिवार को फौरन 25,00,000 रुपये मुआवजा देने के आदेश पर इस सवाल के जवाब में सामने आई कि किस नियम के तहत मुआवजा दिया जाएगा। दरअसल, उन्नाव बलात्कार और हत्याकांड (कहने को इसे तथाकथित भी कह सकते हैं क्योंकि अभी ये साबित नहीं है, बल्कि पड़ताल भी पूरी नहीं हुई है) ऐसा है जिसमें सरकार, पुलिस तथा कानूनी एजेंसियां, मीडिया, अदालत सब हमाम में नंगे पकड़े गए हैं। शायद प्रधान न्यायाधीश को यह एहसास भी साल रहा होगा कि काश! पीडि़ता की 12 जुलाई की चिट्ठी का संज्ञान ले लिया गया होता तो आज पीडि़ता, उसका वकील अस्पताल में जीवन-मरण के बीच संघर्ष नहीं कर रहे होते और पीडि़ता की चाची और मौसी को जान नहीं गंवानी पड़ती, जो पीडि़ता के बलात्कार की गवाह थीं।
यह राजनैतिक दबदबे की अवाक कर देने वाली ऐसी दास्तां है, जो हकीकत नहीं, फसाना-सी लगती है, किसी फिल्मी कहानी-सी लगती है, जैसा कई लोग कह भी चुके हैं। हालांकि यह मुंबइया फिल्मी कहानी अभी नहीं कहलाएगी क्योंकि उसका अंत कुछ सुखद होना अभी बाकी है। लेकिन यह सबको शर्मसार करने को काफी है। शर्मसार तो सबसे ज्यादा ‘कानून का राज’ स्थापित करने का दंभ भरने वाली उत्तर प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार को होना चाहिए, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा चलाने लायक भी नहीं माना, न उसकी पुलिस पर भरोसा जताया, उल्टे मुआवजा देने को कहा। यानी एक तरह से दंड लगा दिया। लेकिन पता नहीं इससे कितना फर्क पड़ेगा। खैर! पहले इस घटनाक्रम को मौजूदा हालात से जानें।
पीडि़ता, 28 जुलाई को रायबरेली जेल में बंद चाचा से मिलने के लिए उन्नाव से एक कार से अपने वकील, चाची और मौसी के साथ रवाना हुई, लेकिन रायबरेली जिले के गुरुबख्शगंज थाना क्षेत्र में भारी बरसात में उल्टी दिशा से आ रही ट्रक सीधे कार से आ भिड़ा। नतीजा: दो मौतें और दो गंभीर जख्मी। पीडि़ता की चाची और मौसी की मौके पर मौत। पीडि़ता और उसका वकील गंभीर हालत में अस्पताल में। ट्रक के ड्राइवर और खलासी रफूचक्कर और ट्रक का नंबर प्लेट काले ग्रीस से पुता हुआ।
अभी और देखिए, हादसे के दौरान पीडि़ता को सुरक्षा के लिए मिले पुलिसवाले नदारद थे। वे कहां थे? पुलिस के आला अधिकारियों का जवाब: पीडि़ता ने कार में जगह न होने से खुद ही सुरक्षाकर्मियों को ले जाने से मना कर दिया था। मगर पुलिसवालों ने स्थानीय थाने में इसकी इत्तला नहीं दी? फिर भी राज्य के डीजीपी ओपी सिंह के मुताबिक यह पहली नजर में हादसा ही था। पीडि़ता की मां ने आउटलुक को बताया कि उनके परिवार पर भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर लगातार मुकदमा वापस लेने का दबाव बना रहे थे। 15 दिन पहले भी विधायक पक्ष के लोगों ने पीडि़ता के परिवार पर दबाव बनाया था।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के 30 जुलाई के आदेश के बाद सीबीआइ ने इस मामले में भी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और दूसरों को आरोपी बनाया। यही कुलदीप सिंह सेंगर पीडि़ता से 2017 में बलात्कार के आरोप में जेल में बंद है, जब पीडि़ता नाबालिग थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले से जुड़े सभी पांचों मुकदमों की सुनवाई यूपी से हटाकर दिल्ली की अदालत में कराने, दुष्कर्म मामले की सुनवाई 45 दिन में पूरी करने, 15 दिन में हादसे की जांच पूरी करने, मामले की रोजाना सुनवाई, पीडि़ता, उसके परिवार, वकील को सीआरपीएफ सुरक्षा और पीडि़ता के परिवार को 25 लाख की आर्थिक मदद देने का आदेश दिया।
ट्रक की टक्कर के बाद पीडि़ता के परिवार में मां, तीन छोटी बहनें और एक छोटा भाई ही बचे हैं, जिन्हें खुद देखभाल की जरूरत है। इससे पहले इन बच्चों के सिर से पिता का साया तो उठा ही था, चाचा को भी एक फर्जी मुकदमे में सजा करा दी गई थी। परिवार में अब तो मुकदमों की पैरवी के लिए भी कोई नहीं बचा। पिता की, सेंगर के भाई द्वारा सरेआम पिटाई के बाद जेल में बंदी के दौरान मौत हो चुकी है। पिता की मौत, फिर पिछले साल 18 अगस्त को मुकदमे के मुख्य गवाह यूनुस की मौत और अब संदिग्ध हादसे में दो की मौत कई सवाल खड़े कर रही है। इससे आप कुलदीप सिंह सेंगर के दबदबे का भी अंदाजा लगा सकते हैं।
पीडि़ता ने 22 फरवरी 2018 को उन्नाव जिला अदालत में याचिका दायर की थी, कि पीडि़ता के साथ विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने दुष्कर्म किया है। इससे पहले प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में पीडि़ता ने विधायक पर रेप का आरोप लगाया था। सुलह और समझौते के लिए दबाव के बावजूद हल नहीं निकलने पर तीन अप्रैल को विधायक के भाई अतुल सिंह और उसके साथियों ने पीडि़ता के पिता को बुरी तरह से पीटा था। इतना ही नहीं, मामले में विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के रसूख के कारण चार अप्रैल को पुलिस ने पीडि़ता के पिता को ही अवैध हथियार रखने के आरोप में जेल भेज दिया। पीडि़ता के परिवार का आरोप है कि यह सब विधायक के ईशारे पर हो रहा था।
जब कहीं सुनवाई नहीं होती दिखी तो पीडि़त परिवार ने पिछले साल आठ अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्मदाह की कोशिश की और अगले ही दिन गंभीर रूप से घायल होने के कारण जेल में बंद पीडि़ता के पिता की संदिग्ध रूप से मौत हो गई। मामला सुर्खियों में आने के बाद दबाव में पुलिस ने विधायक के भाई को गिरफ्तार कर लिया। साथ ही सरकार की ओर से जांच के लिए एसआइटी गठित की गई। इसी दौरान हाइकोर्ट ने मामले का संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब तलब कर लिया। चौतरफा दबाव के कारण सरकार की ओर से मामले को सीबीआइ को सौंपने का निर्णय लिया गया।
रायबरेली ट्रक टक्कर के बाद पीडि़ता के चाचा की तहरीर पर मामले में विधायक कुलदीप सिंह सहित 10 लोगों के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया गया। मामले को लेकर सदन से सड़क तक हंगामा शुरू हो गया। कांग्रेस और सपा ने पीडि़ता के पक्ष में आंदोलन शुरू कर दिया। मामले में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी और सपा मुखिया अखिलेश यादव ने सरकार की खिंचाई करने में कोई कमी नहीं की। दबाव बढ़ने के कारण सरकार ने संदिग्ध हादसे की जांच सीबीआइ से कराने की सिफारिश कर दी। जब दबाव बढ़ा तो भाजपा कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से निकालने पर मजबूर हुई। हालांकि 30 जुलाई तक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह यही कहते रहे कि सेंगर निलंबित हैं। उन्होंने आउटलुक सेे कहा कि मैंने इस बारे में अध्यक्ष जी (अमित शाह) और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय से भी बात की है। आखिरकार एक अगस्त को सेंगर को पार्टी से निकालने की घोषणा की गई।
पीडि़त परिवार इसके पहले करीब 33 पत्र आला अधिकारियों को भेज चुका था। इसमें 12 जुलाई को एक पत्र सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी भेजा गया था, जो रजिस्ट्री में पड़ा रहा। जब एक वकील ने प्रधान न्यायाधीश के संज्ञान में लाया तो वे दंग रह गए और जांच बैठा दी। दूसरे अधिकारियों को लिखे पत्रों का क्या हुआ? आइजी लॉ एेंड आर्डर प्रवीण कुमार का कहना है कि पीडि़ता की ओर से जितने भी पत्र पुलिस को भेजे गए थे, उन सभी मामलों की बारीकी से जांच की गई है। यहां तक कि हर मामले में लोगों के बयान भी दर्ज किए गए हैं। रही बात कार्रवाई की तो जांच में आरोपों की पुष्टि नहीं होने के कारण कार्रवाई नहीं की गई।
रिटायर्ड डीजीपी विक्रम सिंह का कहना है कि इस केस में शृंखलाबद्ध तरीके से गलतियां हुई हैं। अपराध का समय से पंजीकृत न होना, समय से विधायक कुलदीप सेंगर और अन्य आरोपियों, जिनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य थे, उनकी गिरफ्तारी न होना। पीडि़ता को पर्याप्त सुरक्षा न देना, जिन पुलिस कर्मियों ने अपना कर्तव्य भलीभांति नहीं निभाया, उनके खिलाफ कार्रवाई ही न होना, पीडि़ता के 33 पत्रों पर कार्रवाई न होना। इसके अलावा आरोप है कि पीडि़ता के पिता और चाचा पर फर्जी मुकदमे दर्ज कराए गए, इसकी जांच वरिष्ठ अधिकारियों से होनी चाहिए थी, एसआइटी गठित कर जांच की जानी चाहिए थी।
इलाहाबाद हाइकोर्ट के लखनऊ बेंच के वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद दुबे कहते हैं कि इस मामले में पहले दिन से ही सरकार आरोपी विधायक को बचाने में लगी थी। सरकार का इरादा पीडि़ता को न्याय दिलाने का नहीं था। पीडि़ता अगर बिना सुरक्षा के रायबरेली गई थी, तो पुलिसकर्मियों को थाने पर तुरंत सूचना देनी चाहिए थी, ताकि उसे सुरक्षा मिल सके। कानून का खौफ किसी में नहीं है, जो व्यक्ति ताकतवर है, वह अपनी मनमानी कर रहा है। यह सरकार, सिस्टम और न्यायपालिका का भी फेल्योर है।
उन्नाव निवासी अधिवक्ता अजेंद्र अवस्थी पीडि़ता के परिवार के कानूनी मामलों की 1999 से पैरवी कर रहे हैं। वे बताते हैं कि किस प्रकार से आरोपी विधायक ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर पीडि़ता के परिवार का उत्पीड़न किया। वे बताते हैं कि पीडि़ता के चाचा महेश सिंह और उसके पिता कुलदीप सिंह के लिए ही काम करते थे। उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं जागृत हो गईं। दोनों अलग-अलग हो गए, चुनाव लड़ने लगे। इसमें कुलदीप सफल हो गया। इसके बाद कुलदीप ने पीडि़ता के परिवार पर इतने राजनीतिक मुकदमे लिखवाए, जिसका कोई जवाब नहीं। 2004 में कुलदीप के भाई पर तत्कालीन एएसपी रामलाल वर्मा, वर्तमान में डीआइजी पीएसी गोरखपुर को गोली मारने का आरोप लगा था। मामले में चार्जशीट लगी थी, लेकिन वह कुछ नहीं कर पाए। इससे कुलदीप खेमे का जिले में रसूख कायम हो गया। वे कहते हैं कि चार जून 2017 को विधायक कुलदीप ने रात आठ बजे पीडि़ता का रेप किया था। इसके बाद 11 जून को पीडि़ता को अगवा किया गया था। ये दोनों घटनाएं अलग-अलग हैं। कुलदीप चार जून की बात नहीं करते हैं, वह कहते हैं कि 11 जून की कॉल डिटेल निकाल लो, वे (कुलदीप) बाहर हैं। जबकि हम कहते हैं कि चार जून की कॉल डिटेल निकालो, कुलदीप द्वारा शारीरिक शोषण का पता चल जाएगा। 22 जून को पीडि़ता ने मजिस्ट्रेट को दिए बयान में डर के कारण कुलदीप का नाम नहीं लिया। पिछले साल नवंबर माह की चर्चा करते हुए वे बताते हैं कि पीडि़ता के चाचा को विधायक पक्ष ने दबाव बनाकर एक पुराने मामले में बंद करा दिया। इसके बाद छह-सात और मुकदमे चाचा पर करा दिए गए। एक अन्य मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने आरोप लगाया कि जिले में 125 करोड़ के खनन घोटाले में लोकायुक्त की संस्तुति के बाद भी शासन स्तर से कार्रवाई नहीं की गई।