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क्रिकेट और राजनीति के पेचोखम

क्रिकेट खिलाड़ियों का ग्लैमर और लोकप्रियता राजनीति के अखाड़े में कितना काम करती है? कुछ कामयाब तो कुछ के हाथ लगती है नाकामी
नवजोत सिंह सिद्धू की सियासी पारियों के नजारे

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व सचिव अनंत वागीश कनमडीकर अपनी स्पष्टवादिता के लिए मशहूर थे। भारतीय क्रिकेट में चलती खींचतान और राजनीति को देखकर विचलित होकर उन्होंने कहा था, “जितनी राजनीति, राजनीति में नहीं है, उतनी शरीफों के खेल क्रिकेट में आ गई है।” साफ है कि क्रिकेट से राजनीति का रिश्ता उतना ही पुराना है, जितना क्रिकेट से ग्लैमर का। खेल की राजनीति से उभर कर देश की राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाले इमरान खान ऐसे पहले क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जो सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री का ताज कांटों का ताज होता है। देश की क्रिकेट टीम की कप्तानी अलग बात होती है और देश की तकदीर बदलने की जिम्मेदारी निभाना अलग बात। इसीलिए क्रिकेट के मैदान में कभी न डगमगाने वाले इमरान खान के कदम पाकिस्तान में लड़खड़ा रहे हैं।

भारत में भी कई क्रिकेट खिलाड़ियों ने राजनीति में कदम बढ़ाए। कुछ सफल रहे, तो कुछ असफल। टाइगर पटौदी, चेतन चौहान, चेतन शर्मा, मोहम्मद कैफ, मोहम्मद अजहरुद्दीन, कीर्ति आजाद और गौतम गंभीर ने भारतीय राजनीति में घुसने की कोशिश की है। हाल ही में गौतम गंभीर राजनीति की पिच पर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़े, तो यह प्रश्न फिर उठ खड़ा हुआ कि क्रिकेट खिलाड़ियों का ग्लैमर और लोकप्रियता राजनीति के अखाड़े में कितना काम करती है? फिल्मी सितारों को भी एक समय यह चस्का लग गया था। उन्हें अपनी लोकप्रियता और दर्शकों के मन में गहरी घुसपैठ का इतना भरोसा था कि जीत की सुगंध आने लगी थी। लेकिन राजनीति के समीकरण कुछ और ही होते हैं। जात-पांत, हानि-लाभ, संप्रदाय, अगड़ा-पिछड़ा होना, शिक्षा, नौकरी, विद्युत, पानी, सड़क, रोटी, कपड़ा, मकान वगैरह की समस्याओं को पुख्ता ढंग से रखने का सलीका होना चाहिए। केवल लोकप्रिय सितारे की छवि पर्याप्त नहीं है। आरंभिक सफलता भले मिल जाए, पर आप अगर निरंतर काम नहीं करेंगे तो गिरा दिए जाएंगे। सफल फिल्मी सितारों में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, हेमामालिनी, जया बच्चन, राज बब्बर और शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोग जरूर टिकने की कोशिश करते रहे, लेकिन अमिताभ बच्चन जैसे सितारे ने राजनीति के छल-कपट से घबरा कर तौबा ही कर ली। विनोद खन्ना ने आध्यात्मिकता और सेवा की भावना से काम किया, तो काफी अरसे तक सफल भी रहे।

गौतम गंभीर

टाइगर पटौदी (मंसूर अली खान) भारतीय क्रिकेट के महान कप्तानों में एक कहे जाते हैं। अपने आकर्षक क्रिकेट के बल पर करोड़ांे लोगों का दिल जीतने वाले पटौदी राजनीति में असफल रहे। राजनीति भी खेल भावना से करने वाले पटौदी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे। जब दूसरी बार चुनाव हारे, तो मैंने एक कमेंट्री के दौरान ही पूछ लिया, “आप चुनाव लड़े और हमें समर्थन के लिए बुलाया भी नहीं।” चुटीली बातों के लिए विख्यात टाइगर पटौदी ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “आप नहीं आए, तो हम हार गए। आप आते, तो जमानत जब्त हो जाती।” उनकी हाजिरजवाबी और हार के वक्त भी मजाक करने की कला का मैं कायल हो गया।

सफल राजनीतिकों में क्रिकेट खिलाड़ी चेतन चौहान, कीर्ति आजाद, नवजोत सिंह सिद्धू और मोहम्मद अजहरुद्दीन प्रमुख हैं। चेतन चौहान के खेल की कमेंट्री मैं 1977-78 से करता रहा हूं। अपनी सीमाओं में रह कर स्वाभिमान के साथ टिके रहना उनकी प्रमुख कला रही। तब भी मैंने देखा था कि साथी खिलाड़ी उनकी बड़ी इज्जत करते थे। सुनील गावस्कर जैसे विश्व विजयी बल्लेबाज के साथ जोड़ी बनाकर पारी का उद्घाटन करना आसान बात नहीं थी। टीम के हित को सर्वोपरि रखकर उन्होंने यह काम जिम्मेदारी से पूरा किया। 1979 में जीत के लिए 438 रन का पीछा करते हुए उनकी सुनील गावस्कर के साथ 213 रन की रिकॉर्ड भागीदारी आज भी भारत की उल्लेखनीय उद्घाटन भागीदारी मानी जाती है। राजनीति की ‌िपच पर उनका प्रदर्शन कभी गरम, तो कभी नरम रहा। वे अमरोहा से सांसद भी रहे और आज उत्तर प्रदेश के खेल मंत्री हैं। राजनीति में उनकी पारी बेशक लंबी चल रही है लेकिन लोकप्रियता का वह मुकाम नहीं मिला, जो क्रिकेट के मैदान में था।

मोहम्मद कैफ

एक और लोकप्रिय खिलाड़ी, छक्कों के उस्ताद, मुहावरेदार और लच्छेदार भाषा के सरताज नवजोत सिंह सिद्धू हमेशा खबरों में रहते हैं। लोग या तो उन्हें बहुत चाहते हैं या घृणा करते हैं, पर आप उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। चुनावी माहौल में उनकी बड़ी मांग रहती है। साहसी और भाषा के धनी होने के कारण दर्शकों से उनका तादात्‍म्य गहरा होता है। पहले भारतीय जनता पार्टी में थे तो कांग्रेसियों पर छक्के उड़ाते थे। आजकल कांग्रेस में हैं, तो भाजपा के डंडे उख्‍ााड़ने में लगे हैं। इमरान खान से व्यक्तिगत दोस्ती के कारण पाकिस्तान समर्थक होने का आरोप भी झेल चुके हैं। जहां भी जाते हैं, दिलचस्पी पैदा करने में सफल जरूर हो जाते हैं।

भागवत झा आजाद के वंशज कीर्ति आजाद भी चर्चा में बने रहते हैं। कीर्ति पिछले वर्ष तक भाजपा के साथ थे। अब कांग्रेस के साथ हैं। चुनावों में जीत प्राप्त करने में माहिर हैं। वे 1983 विश्वकप विजेता भारतीय टीम के सदस्य थे। बिहार से चुनाव लड़ते हैं और संघर्षशील व्यक्ति हैं। दिल्ली में रहकर अरुण जेटली के खिलाफ बोलना कोई आसान काम नहीं है। कीर्ति को क्रिकेट में कुशल ऑलराउंडर के नाते सराहा जाता रहा, लेकिन राजनीति के ऊबड़-खाबड़ विकेट पर उनकी वर्तमान यात्रा काफी कांटों भरी है। फिर भी यह अच्छी बात है कि अपनी राजनीतिक यात्रा के प्रति वे गंभीर हैं।

कीर्ति आजाद

चेतन शर्मा भारतीय क्रिकेट के उन तेज गेंदबाजों में से एक हैं, जिन्होंने विश्वकप क्रिकेट में ‘हैट ट्रिक’ लेने का जबर्दस्त काम किया। उनकी ‘हैट ट्रिक’ की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि तीनों बल्लेबाजों को न केवल बोल्ड किया बल्कि अलग-अलग स्टंप उखाड़े। लेकिन राजनीति के विकेट पर उनकी मुश्किलें बरकरार हैं। वे मायावती के साथ जाकर चुनाव भी लड़ चुके हैं और हार चुके हैं। अब वे भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता की तरह कार्य कर रहे हैं। इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला, पर भविष्य के प्रति वे आश्वस्त हैं। मोहम्मद अजहरुद्दीन कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ कर एक बार जीत भी चुके हैं और पिछली बार हार भी चुके हैं। पर राजनीति में उनकी महत्वाकांक्षा अभी भी कायम है। उन्हें लगता रहा कि क्रिकेट में उनके साथ अन्याय हुआ और मैच-फिक्सिंग मामले में उनकी तौहीन हुई। उन्हें सजा भी मिली। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि जब वे खेलते थे, तब दुनिया के सबसे आकर्षक बल्लेबाज के रूप में गिने जाते थे। लेकिन बहुत जल्दी बहुत आगे निकल जाने की तमन्ना गलत दिशा में आपके कदम ले जाती है।

मोहम्मद कैफ कांग्रेस से चुनाव लड़े थे और हार गए थे। क्रिकेट और राजनीति के बीच झूलने की कोशिश कामयाब नहीं होती है। आप क्रिकेटर हैं और उसी लोकप्रियता को राजनीति में भुनाना चाहते हैं, तो यह आपके लिए सफलता की गारंटी नहीं है। बिना आम जनता के बीच गए निस्तार नहीं है। क्रिकेट की लोकप्रियता और राजनीति अलग-अलग बिसात है। गौतम गंभीर की राजनीतिक पारी की तरफ भी लोग दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रति लोगों में सहानुभूति जरूर होती है, पर इस सहानुभूति को राजनीति के ऊबड़-खाबड़ मैदान से जोड़ने पर ही कामयाब हो सकते हैं।

(लेखक जाने-माने क्रिकेट कमेंटेटर हैं)

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