साल 2019 के 30 दिसंबर को टेलीकॉम मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बयान दिया, “हमने फैसला किया है कि 5जी ट्रायल में सभी खिलाड़ियों को मौका मिलेगा।” इस बयान ने एक साल से जारी सुरक्षा विवाद को ताजा कर दिया है। प्रसाद के बयान से साफ है कि सरकार ने चीन की कंपनी हुवावे को भी भारत में 5जी ट्रायल का मौका दे दिया, जिस पर अमेरिका पिछले एक साल से आपत्ति जता रहा है। चीनी कंपनी पर आरोप है कि वह अपने टेलीकॉम उपकरणों के जरिए दुनिया के कई देशों में साइबर जासूसी का काम करती है। इसी खतरे को देखते हुए अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और ताइवान ने हुवावे की 5जी तकनीक को अपने देश में प्रतिबंधित कर दिया है या उसके लिए नियम सख्त कर दिए हैं।
अब जब सरकार ने साफ कर दिया है कि हुवावे भी भारत में होने वाले ट्रॉयल में हिस्सा ले सकेगी, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहयोगी इकाई स्वदेशी जागरण मंच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा है कि हुवावे को लेकर दुनिया भर में जारी शंकाओं को देखते हुए, उसे 5जी ट्रायल से दूर रखना चाहिए। इसके पहले दिसंबर 2018 में टेलीकॉम इक्वीपमेंट ऐंड सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल को पत्र लिखकर हुवावे के खतरे से आगाह किया था।
ऐसी नहीं है कि दुनिया में हर जगह हुवावे का विरोध ही हो रहा है। अमेरिका के साथ उसके कुछ सहयोगी देश विरोध में हैं, लेकिन रूस, दक्षिण कोरिया, फ्रांस, नीदरलैंड जैसे देश इसके समर्थन में हैं। इसी तरह भारत में भी टेलीकॉम कंपनियों की एसोसिएशन सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने कहा है, “हुवावे पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं वे निराधार हैं। बिना जांच-पड़ताल के किसी कंपनी को बाहर करना सही नहीं है।”
आखिर 5जी तकनीक में ऐसा क्या है, जिसकी वजह से हुवावे का विरोध किया जा रहा है, जबकि हुवावे भारत में पहले से ही 2जी, 3जी, 4जी सेवाओं के लिए टेलीकॉम कंपनियों को उपकरण सप्लाई करती रही है। इस पर टेलीकॉम एक्सपर्ट और भारत संचार निगम लिमिटेड के पूर्व सीएमडी आर.के.उपाध्याय का कहना है, “5जी बेहद एडवांस तकनीक है। इसे 3जी, 4जी के नजरिए से नहीं देखा जा सकता है। यह तकनीक केवल फोन तक सीमित नहीं है। 5जी के कुछ इस्तेमाल ज्यादा संवेदनशील चीजों में भी होंगे। इसलिए दुनिया में इसकी सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। 5जी का प्रमुख इस्तेमाल रियल टाइम अनुभव के रूप में होगा। इसमें ज्यादा से ज्यादा कम्युनिकेशन मशीन-टु-मशीन के रूप में होंगे। ऐसे में, कोई भी कदम उठाने से पहले सरकार को सभी पहलुओं को देखना चाहिए। अभी टेलीकॉम इंडस्ट्री में सिक्योरिटी ऑडिट का सिस्टम सेल्फ सर्टिफिकेशन वाला है। उसे बेहतर बनाने की जरूरत है। यह भी समझना चाहिए कि किसी एक कंपनी पर उदारीकरण के दौर में प्रतिबंध लगाना आसान नहीं है। खास तौर से जब आप पहले से ही 3जी, 4जी के लिए उसी कंपनी के उपकरण का इस्तेमाल कर रहे हैं।”
इस मामले पर टेलीकॉम इक्वीपमेंट ऐंड सर्विसेज एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के डायरेक्टर जनरल आर.के. भटनागर का कहना है, “हम सरकार को आने वाले खतरे के लिए सतर्क कर रहे हैं। जहां तक 5जी ट्रायल की बात है, तो अभी इस स्तर पर कोई खतरा नहीं है। लेकिन जब स्पेक्ट्रम की नीलामी होगी और उसके लिए प्रावधान तय होंगे तो सरकार को नियम-शर्तें ऐसी बनानी चाहिए, जिससे सुरक्षा को लेकर कोई सवाल खड़ा न हो। सरकार 5जी स्पेक्ट्रम के तहत यह नियम बनाए कि कंपनियों को केवल भारत में बने उपकरणों का इस्तेमाल करना होगा। अभी भारत ऐसा करने की स्थिति में है, क्योंकि चीन के बाद भारत सबसे बड़ा बाजार है।
ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीक का कैसे इस्तेमाल होगा, इसमें हाल ही में भारत ने अपनी बात बहुत हद तक मनवाई भी है। ऐसे में, उपकरण इस्तेमाल के नियमों में भी ऐसा हम कर सकते हैं। सोचिए, अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो 5जी सेवाएं, जो ज्यादातर सॉफ्टवेयर आधारित होंगी, तो हजारों किलोमीटर दूर बैठा कोई भी व्यक्ति उसमें छेड़छाड़ कर सकेगा। साथ ही अगर भारत से बाहर बने उपकरण इस्तेमाल होंगे, तो किसी खराबी की स्थिति में उनकी रिपेयरिंग भी उसी देश में होगी, जहां उनकी मैन्युफैक्चरिंग हुई होगी। रिपेयरिंग के समय भी उसमें कोई छेड़छाड़ कर सकता है। इसलिए उपकरणों का भारत में बनना जरूरी है।” टेलीकॉम सेक्टर में सिक्योरिटी ऑडिट की कमियों को मानते हुए भटनागर कहते हैं कि अभी सिस्टम फुल प्रूफ नहीं है। हुवावे पर उठ रहे सवालों पर आउटलुक ने कंपनी से प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की लेकिन खबर लिखे जाने तक हुवावे की तरफ से कोई जवाब नहीं आया था।
इंडस्ट्री सूत्रों का कहना है कि हुवावे के खिलाफ अमेरिका की कार्रवाई को केवल सुरक्षा तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए। इसके पीछे तकनीक के क्षेत्र में पश्चिमी देशों का कम होता दबदबा भी है। 5जी तकनीक में चीन की हुवावे, जेडटीई जैसी कंपनियों ने नोकिया, एरिक्सन के दबदबे को खत्म कर दिया है। साथ ही चीन की सरकार से मिलने वाले समर्थन से चाइनीज कंपनियों ने पूरा बिजनेस मॉडल बदल दिया है। इस समय न केवल चीनी उत्पाद पश्चिमी देशों की कंपनियों के मुकाबले सस्ते हैं, बल्कि इन कंपनियों ने शून्य ब्याज दर पर कर्ज देने से लेकर लंबे समय तक सस्ते में रखरखाव करने का मॉडल खड़ा कर दिया है। इस बात की पुष्टि इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों ने आउटलुक से की।
5जी ट्रॉयल करने के समय और उसकी प्राइसिंग को लेकर भी कई तरह के सवाल खड़े हो गए हैं। असल में सरकार की जनवरी 2019 में 5जी ट्रायल कराने की योजना थी, जो अब अगले तीन-चार महीने में कराने की तैयारी है। दूसरी ओर, दुनिया के कई देश अब उसका कॉमर्शियल इस्तेमाल करने की स्थिति में आ गए हैं। इंडस्ट्री का यह भी कहना है कि सरकार मार्च-अप्रैल में 4जी-5जी स्पेक्ट्रम नीलामी की तैयारी कर रही है। इसके लिए टेलीकॉम रेग्युलेटर ‘ट्राई’ ने देश के 22 सर्किल के लिए 8,300 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की बिक्री की बात कही है। सरकार का मानना है कि रिजर्व प्राइस के आधार पर सरकार को इस नीलामी से 5.22 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।
सूत्रों का कहना है कि पहले से ही 4.5 लाख करोड़ रुपये के कर्ज में डूबी इंडस्ट्री के लिए इस रिजर्व प्राइस पर नीलामी में भाग लेना बहुत मुश्किल होगा। सरकार को स्पेक्ट्रम यूजेज चार्ज और लाइसेंस फीस में कमी करनी चाहिए। साथ ही, रिजर्व प्राइस को भी दुनिया के दूसरे देशों के स्तर पर लाना चाहिए।
कुल मिलाकर साफ है कि टेलीकॉम क्षेत्र में 5जी तकनीक की एंट्री विवादों के साथ हो रही है। अब देखना यह है कि सरकार सुरक्षा हितों की रक्षा करते हुए कैसे भारत में 5जी सेवाओं को शुरू करने का प्लेटफॉर्म तैयार करती है, क्योंकि 5जी तकनीक ने दुनिया को दो धड़ों में बांट दिया है। इसके एक छोर पर भारत का प्रमुख सहयोगी देश अमेरिका है, तो दूसरी तरफ चीन जैसा पड़ोसी देश, जिसके व्यापारिक हित भारत से कहीं ज्यादा जुड़ चुके हैं। खास तौर पर जब अकेले हुवावे ने भारत में करीब 3.5 अरब डॉलर (रिपोर्ट्स के अनुसार) का निवेश कर रखा है।
-------------------------------------------
5जी भविष्य है। सरकार इस नई तकनीक में इनोवेशन को बढ़ावा देगी
रविशंकर प्रसाद, इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री
---------------------------------------
5जी में हजारों किलोमीटर दूर से छेड़छाड़ संभव है, हम सरकार को खतरे से आगाह कर रहे हैं
आर.के.भटनागर, डायरेक्टर जनरल, टीईपीसी