वर्तमान दौर में हुमा कुरैशी सशक्त अदाकारी के लिए चर्चित चुनिंदा अभिनेत्रियों में हैं। प्रयोगधर्मी काम के लिए जानी जाने वाली हुमा अब शेफ तरला दलाल के जीवन पर आधारित फिल्म तरला में मुख्य भूमिका निभा रही हैं। जी5 ऐप पर 7 जुलाई को रिलीज होने जा रही इस बायोपिक में हुमा ने अपनी अभिनय प्रतिभा का विस्तार किया है। हुमा से उनके अभिनय के सफर और तरला के बारे में आउटलुक के मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। मुख्य अंश:
आपने विविध फिल्मों में अभिनय किया है। शेफ तरला दलाल की बायोपिक में मुख्य भूमिका निभाने के लिए आपको किस बात ने प्रेरित किया?
मेरी कोशिश रहती है कि अच्छे से अच्छा काम कर सकूं। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती हूं। यह तभी संभव है जब काम में विविधता हो। जब भी महिलाओं पर केंद्रित कोई रोचक प्रोजेक्ट दिखता है तो मेरी दिलचस्पी उसमें जाग जाती है। जब प्रोजेक्ट शेफ तरला दलाल जैसे महत्वपूर्ण और बहुआयामी व्यक्तित्व पर आधारित हो तो यह दिलचस्पी कुछ अधिक होती है। जब मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी और जाना कि शेफ तरला दलाल ने किस तरह अपनी हिम्मत और संघर्ष से महिला सशक्तीकरण का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया, तो मेरे भीतर उनके किरदार को जीने की ललक पैदा हो गई।
बायोपिक देखते हुए दर्शक अक्सर अपने मन में एक तुलनात्मक दृष्टि रखता है। इस कारण बायोपिक के किरदार को निभाना हमेशा ही चुनौतीपूर्ण होता है। हमें बताइए कि शेफ तरला दलाल का किरदार निभाने से पहले आपने क्या विशेष तैयारियां कीं?
यह पहला मौका था जब किसी शेफ की जिंदगी पर बायोपिक बन रही थी। मैं इसे लेकर बेहद उत्साहित थी। उत्साह में अक्सर हम बड़ी चुनौतियों को पार कर लेते हैं। इस फिल्म के मामले में मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही रहा। शेफ तरला दलाल और मेरी कद-काठी में अंतर है। इसके अलावा चेहरे और दांत की बनावट में भी फर्क है। इस फर्क को कम करने और अपने व्यक्तित्व को शेफ तरला दलाल के नजदीक दर्शाने के लिए मैंने काफी मेहनत की। मैंने बाकायदा एक शिक्षक से गुजराती भाषा का उच्चारण सीखा। मुझे स्पष्ट था कि मुझे तरला दलाल के चरित्र को जीवंत करना है, न कि स्क्रीन पर उनकी मिमिक्री करनी है। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया है। मेरी कोशिश कितनी कामयाब रही, यह तो फिल्म रिलीज होने पर दर्शक ही बताएंगे।
हिंदी सिनेमा में महिलाओं पर केंद्रित फिल्में बनती रही हैं। तरला किस मायने में विशेष है?
मेरी नजर में समानताओं के बावजूद हर कहानी खास होती है, अलग होती है। तरला उस सोच को मजबूत जवाब है, जो यह कहती है कि औरतों का जन्म केवल चूल्हे-चौके के लिए होता है और उनकी दुनिया रसोई में ही खत्म हो जाती है। तरला देखकर दर्शक यह जान पाएंगे कि कैसे एक सामान्य भारतीय महिला ने अपनी रसोई और पाक कला से विश्व भर में अपनी पहचान बनाई, पद्मश्री सम्मान हासिल किया। शेफ तरला दलाल का जीवन स्त्रियों और पुरुषों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। उन्होंने भी कुछ अलग करने, कुछ अपना जीने का सपना देखा, उनके लिए तरला का जीवन एक प्रकाश पुंज है। मुझे यकीन है कि दर्शक जब तरला देखेंगे तो समर्पण और निष्ठा की ताकत पर उनका भरोसा बढ़ जाएगा।

तरला दलाल की भूमिका में हुमा कुरैशी
आज तरला जैसी फिल्मों को बड़ा दर्शक वर्ग मिल रहा है, तो इसमें ओटीटी प्लेटफॉर्म का बड़ा योगदान है। इस योगदान को कैसे देखती हैं आप?
मैं इस बदलाव से खुश हूं। जब मैंने बॉलीवुड में अपनी शुरुआत की थी, तभी से मेरी चाहत थी कि हिंदी सिनेमा में नए और अलग विषयों पर फिल्म बने, लेकिन हर बदलाव की अपनी प्रक्रिया होती है और उसमें समय लगता है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण दर्शकों के पास विकल्प की कमी नहीं है। इस कारण नई कहानियों को भी मंच मिलने लगा है। इस परिवर्तन का श्रेय तो ओटीटी प्लेटफॉर्म को जाता है। कोरोना के बाद से यह देखा जा रहा है कि महिलाओं पर केंद्रित फिल्मों को अब अच्छा स्पेस मिल रहा है। इसके अलावा प्रायोगिक सिनेमा को दर्शक पसंद कर रहे हैं। मेरी बस यही ख्वाहिश है कि यूं ही अच्छी और सार्थक फिल्मों को दर्शक मिलें और हिंदी सिनेमा कारोबार और गुणवत्ता के पैमाने पर नित नई उपलब्धियां हासिल करे।
गैंग्स ऑफ वासेपुर से शुरू हुआ सफर तरला तक पहुंच गया है। एक दशक से अधिक के फिल्मी करियर में आपने भी काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जब मेहनत के मुताबिक नतीजे नहीं मिलते तो धैर्य छूटने लगता है। आपने करियर के उतार-चढ़ाव में खुद को किस तरह संतुलित रखा है?
काम हो या जीवन, मेरा एक ही सूत्र है कि मैं केवल खुद पर ध्यान देती हूं। मेरे प्रयास में कोई कमी नहीं है तो फिर मैं अन्य बातों को सोचकर परेशान नहीं होती। मेरे अंदर दूसरों से तुलना करने की आदत भी नहीं है। कोई तरक्की करता है तो मुझे खुशी होती है, मगर किसी की कामयाबी से जलन हो, ऐसा मेरा किरदार नहीं है। मैं हर तरह की गॉसिप, कंट्रोवर्सी से दूर रहती हूं। मैं अखबार नहीं पढ़ती और न ही गॉसिप कंटेंट को फॉलो करती हूं। मेरी कोशिश हमेशा यही रहती है कि किसी भी तरह रोचक, नए, क्रिएटिव प्रोजेक्ट तक पहुंच सकूं और उसका हिस्सा बनूं। यह आदत ही मुझे संतुलित रहने में मदद करती है।
 
                                                 
                                                                     
			 
                     
                    