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आवरण कथा: बीसेक में कुबेर

संपत्ति निर्माण अब समावेशी, हर वर्ग से नए उद्यमी, प्रोफेशनल और महिलाएं आगे आ रहीं, निकट भविष्य में भी यही ट्रेंड रहने की उम्मीद
हर वर्ग से आ रहे नए उद्यमी

अरबपति बनने के लिए उम्र की सीमा साल-दर-साल घटती जा रही है। पिछले दिनों जारी ‘आइआइएफएल वेल्थ हुरून इंडिया रिच लिस्ट 2021’ में भारतपे के सह-संस्थापक, महज 23 साल के शाश्वत नकरानी ने सबसे कम उम्र के अरबपति के रूप में जगह बनाई है। दस साल पहले हुरून की पहली सूची में सबसे कम उम्र के उद्यमी 37 साल के और 2014 में 29 साल के थे। पिछले साल ओयो रूम्स के 26 वर्षीय रितेश अग्रवाल सबसे कम उम्र के थे। इस सूची में 13 उद्यमी ऐसे हैं जिनका जन्म 1990 के दशक में यानी उदारीकरण के बाद हुआ। (आगे पढ़ें इंटरव्यू और प्रोफाइल)

दरअसल, नए जमाने के युवा, नए जमाने की कंपनियां लेकर आ रहे हैं। डिजिटल युग के इन उद्यमियों की हैसियत इतनी तेजी से बढ़ रही है कि कुछ वर्षों पहले तक इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था। अब वे दिन गए जब लोग ढलती उम्र में दूसरों के लिए प्रेरणा बनते थे। अब तो 20 साल का होने से पहले युवा सफलता की गाथा लिखना शुरू कर देते हैं और 25 साल से भी कम उम्र में दूसरों के लिए प्रेरणा बन जाते हैं। ‘आइडिया ही कुबेर का खजाना है’ सिद्धांत पर चलने वाले ये युवा नए तरह के बिजनेस मॉडल लाकर दुनिया फतह कर रहे हैं। हुरून की सूची के अनुसार 1007 भारतीयों की संपत्ति कम से कम 1,000 करोड़ रुपये है। इनमें 659 उद्यमी यानी 66 फीसदी सेल्फमेड हैं।

ये बड़े जीवट वाले हैं। तमाम बाधाएं पार कर शिखर तक पहुंचने का जज्बा है इनमें। ये नाकामियों से घबराते नहीं, उनका मुकाबला करते हैं। कानपुर आइआइटी के ‘थ्री इडियट्स’ अंकुश सचदेवा, फरीद एहसान और भानु प्रताप सिंह ने 13 बार नाकामी का स्वाद चखने के बाद चौदहवें प्रयास में शेयरचैट की स्थापना की। विफलता इनके लिए सफलता की एक सीढ़ी मात्र है।

भारत में 1991 में उदारीकरण की शुरुआत हुई तो उसके बाद उद्यमियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। उससे पहले नीतियां सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाने वाली होती थीं। ज्यादातर इंडस्ट्री पर सरकार का नियंत्रण था। उदारीकरण से माहौल बदला और अब डिजिटल ने इसकी रफ्तार तेज कर दी है। पारंपरिक बिजनेस की तरह इन्हें अपना ‘घराना’ खड़ा करने के लिए बड़ी पूंजी की दरकार नहीं। आगे बढ़ने के लिए इनके पास प्राइवेट इक्विटी फर्म, एंजेल इनवेस्टर, वेंचर कैपिटल और क्राउड फंडिंग जैसे विकल्प हैं। इनके लिए विदेशी मदद जुटाना भी आसान हो गया है। बल्कि यूं कहें कि विदेशी निवेशक ज्यादा रिटर्न के लालच में खुद आगे आ रहे हैं।

आजादी के बाद दशकों तक बिजनेस चुनिंदा घरानों तक सीमित था, ज्यादातर लोग नौकरी पर ही फोकस करते थे। लेकिन अब वह परंपरा भी टूट गई है। हर वर्ग और समुदाय के युवा जोखिम उठाने को तैयार हैं। उन्हें इनका प्रतिफल भी मिल रहा है।

निजी कंपनियों की वैल्युएशन पर नजर रखने वाली फर्म वेंचर इंटेलिजेंस के अनुसार भारत में 70 यूनिकॉर्न (एक अरब डॉलर वैल्युएशन) हैं, जिनमें 33 ने 2021 में ही यह दर्जा हासिल किया है। इससे यह भी पता चलता है कि देसी-विदेशी निवेशकों को भारतीय स्टार्टअप पर भरोसा हो रहा है और वे इनमें पैसा लगा रहे हैं। इस साल यूनिकॉर्न बनने वालों में शेयरचैट, अर्बन कंपनी, भारतपे और कॉइनडीसीएक्स भी हैं जिनके संस्थापकों को हुरून की 13 लोगों की विशेष सूची में शुमार किया गया है। पिछले साल यूनिकॉर्न बनने वाले अनअकादमी और रेजरपे के संस्थापक भी इस सूची में हैं।

अरबपति बनने के साथ ये युवा लोगों का जीवन भी बेहतर बना रहे हैं। ओयोरूम्स के संस्थापक रितेश अग्रवाल ने सस्ते होटलों का हुलिया बदल दिया। महामारी के कारण लॉकडाउन लगा तो बाइजूज और अनअकादमी जैसे स्टार्टअप ने ऑनलाइन पढ़ाई के नए रास्ते खोल दिए। भारतपे के सॉल्यूशन से दुकानदारों को अलग-अलग पेमेंट ऐप के लिए अलग क्यूआर कोड की जरूरत नहीं रह गई। रेजरपे छोटे कारोबारियों के लिए ‘ऑल इन वन’ पेमेंट सॉल्यूशन लेकर आई।

ये अपनी सफलता में दूसरों को भी शरीक कर रहे हैं। हुरून इंडिया के एमडी और मुख्य रिसर्चर अनस रहमान जुनैद आउटलुक से कहते हैं, “सफल उद्यमी नए स्टार्टअप की मदद कर रहे हैं। जैसे सीआरईडी के संस्थापक कुणाल शाह, फ्लिपकार्ट के सह-संस्थापक बिन्नी बंसल भारतीयों के स्टार्टअप में निवेश करते हैं। कुछ समय पहले चीन में ऐसा हुआ था। अब भारत में भी इसका बहुआयामी असर दिखेगा। इनकी मदद का दूसरा तरीका है परोपकार। जीरोधा के कामथ बंधु तीन वर्षों में 10 करोड़ डॉलर से अधिक दान कर रह हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से ऐसे कई युवा उद्यमियों को जानता हूं।”

हुरून की सूची से एक और रोचक तथ्य निकलता है। एशिया के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी की नंबर 1 पोजीशन खतरे में है। उन्हें खतरा है गौतम अडाणी से। रिलायंस समूह के चेयरमैन, अंबानी की नेटवर्थ 7.18 लाख करोड़ रुपये है। रोजाना 163 करोड़ के हिसाब से यह साल भर में 59,600 करोड़ रुपये बढ़ी है। अडाणी समूह के प्रमुख गौतम अडाणी की नेटवर्थ एक साल में 261 फीसदी से बढ़कर 5.05 लाख करोड़ रुपये हो गई। रोजाना 1002 करोड़ के हिसाब से सालभर में इसमें 3.65 लाख करोड़ का इजाफा हुआ। रफ्तार यही रही तो एक साल बाद अंबानी की नेटवर्थ 7.77 लाख करोड़ होगी और अडाणी की आठ लाख करोड़ को पार कर जाएगी।

लेकिन भविष्य युवा उद्यमियों का ही है। जुनैद के अनुसार, “यही नए भारत के विकास की कहानी है। अगले दशक में स्टार्टअप ही संपत्ति निर्माण की अगुवाई करेंगे। सबसे अच्छी बात है कि यह संपत्ति निर्माण समावेशी होगा। आपको ‘रिच लिस्ट’ में नए उद्यमी, महिलाएं और प्रोफेशनल देखने को मिलेंगे।”

देश के 1007 अरबपतियों में 659 सेल्फमेड हैं, नए भारत के ये प्रतिनिधि नए तरह के बिजनेस मॉडल लाकर दुनिया फतह कर रहे हैं

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