लगभग डेढ़ महीने बाद भी कश्मीर घाटी में पाबंदियां जारी रहने और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी की सुनवाई के ऐन पहले नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला की सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी से साफ होने लगा कि स्थितियां केंद्र के काबू में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट भी जल्द हालात सामान्य करने की हिदायत दे चुका है। कोर्ट के ही आदेश के तहत दिल्ली के एम्स में इलाज कराने के बाद माकपा नेता यूसुफ तरीगामी ने घाटी में हालात को बेहद चिंताजनक बताया। लेकिन दिल्ली की इन घटनाओं से अलग घाटी में कुछ सुगबुगाहटें और सरगर्मियां हैं। श्रीनगर से एक घंटे की ड्राइव पर खूबसूरत पर्यटन स्थल गुलमर्ग और लद्दाख में पांगोंग झील की ताजा घटनाएं कौतुहल पैदा कर रही हैं।
गुलमर्ग इस सैलानी मौसम में भी वीरान है। होटल बंद हैं। घोड़े वाले अपने गांव जा चुके हैं। सेना की मौजूदगी और गश्त बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने पिछले पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा हटाने और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांटने के फैसले से करीब एक सप्ताह पहले ही सभी पर्यटकों को घाटी से वापस जाने को कह दिया था। लिहाजा, इस साल तो पर्यटन उद्योग ठप ही हो गया। पुलिस वाले हर होटल में गए, ताकि घाटी में एक भी पर्यटक न रह जाए। पांच अगस्त तक घाटी पर्यटकों और अमरनाथ यात्रियों से पूरी तरह खाली हो गई।
विशेष दर्जा हटाने के ऐलान के दो सप्ताह बाद जम्मू-कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में खबरें गहमागहमी पैदा करने लगीं कि गुलमर्ग की पहाड़ियों पर सेना की गतिविधियां बेहद बढ़ गई हैं। संचार माध्यमों पर प्रतिबंध होने के कारण घाटी में अफवाहें तैरने लगीं कि गुलमर्ग क्षेत्र में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हो चुकी है।
चार सितंबर को श्रीनगर स्थित सेना की 15 कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल जे.एस. ढिल्लों ने श्रीनगर में संवाददाताओं को बताया कि पाकिस्तान कश्मीर में शांति और सौहार्द बिगाड़ने पर तुला है और घुसपैठ कराने में लगा है। हालांकि उन्होंने कहा कि सेना ने पांच अगस्त के बाद घुसपैठ के सभी प्रयासों को नाकाम कर दिया। उन्होंने बताया कि गुलमर्ग सेक्टर के आसपास 350 से ज्यादा तलाशी अभियान चलाए गए। सेना ने गुलमर्ग के होटलों में भी तलाशी अभियान चलाया। सेना के तलाशी अभियानों ने गुलमर्ग क्षेत्र की हलचलों को और रहस्यमयी बना दिया। वजह यह कि जानकारों के मुताबिक पिछले दो दशकों में गुलमर्ग सबसे शांत रहा और वहां कोई आतंकी घटना नहीं हुई।
जानकारों के मुताबिक, गुलमर्ग क्षेत्र में 1996 से लगातार पर्यटकों का आवागमन बना रहा है और आतंकी घटना की कोई खबर नहीं आई। एक जानकार ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा, “आखिर गुलमर्ग में एक महीने से भी कम वक्त में 350 से ज्यादा तलाशी अभियान की जरूरत क्यों पड़ गई?” कई लोग यह कयास लगाने की कोशिश करते हैं कि आखिर जीओसी की बातों का मतलब क्या है। सूत्रों के मुताबिक गुलमर्ग क्षेत्र में तीन संभावनाएं हो सकती हैं। एक सूत्र ने कहा, “भारतीय सेना इस इलाके में बढ़त की स्थिति में है, इसलिए संभव है कि सेना यहां हथियार डिपो बना रही है। इससे पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) को लेकर अगर पाकिस्तान के साथ संक्षिप्त युद्ध होता है तो सेना को मदद मिलेगी।” लेकिन इसके लिए सेना को इतने बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाने की कोई आवश्यकता नहीं है।
दूसरी संभावना है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई है और विदेशी आतंकी घुस आए हैं। तीसरी और विरली संभावना यह है कि पांच अगस्त के तुरंत बाद पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में भारत की कुछ चौकियों पर कब्जा कर लिया हो और उसके बाद सेना ने उन्हें खदेड़ दिया हो। इस कारण क्षेत्र में सेना की गतिविधियां तेज हो गईं। अफवाहों को विराम देने के लिए सेना पत्रकारों को गुलमर्ग ले गई। हालांकि, दौरे पर गए पत्रकारों ने बाद में शिकायत की कि सेना उन्हें नियंत्रण रेखा के निकट नहीं ले गई, लेकिन गुलमर्ग पर्यटन स्थल से महज 10 किलोमीटर दूर दो गांव नगीन-1 और नगीन-2 में ले गई।
कश्मीर के पुलिस महानिरीक्षक एस.पी. पाणि ने कहा कि पुलिस को घुसपैठ के प्रयासों की खबरें मिली हैं। वे कहते हैं, “हमारा मानना है कि कुछ आतंकी घाटी में घुस आए हैं। लेकिन उनकी संख्या बहुत ज्यादा नहीं है। सीमा के उस पार लांच पैडों के निकट बड़ी संख्या में आतंकी एकत्रित हो गए हैं। वे घाटी क्षेत्र में घुसने का प्रयास कर सकते हैं।”
घाटी में गुलमर्ग चर्चा के केंद्र में तो बना हुआ है। उधर, लद्दाख में पांगोंग झील के उत्तरी किनारे पर भारत और चीन की सेना के बीच नई तनातनी की खबरों ने भी गहमागहमी पैदा की है।
सूत्रों के अनुसार चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने पांगोंग झील में एक भारतीय नाव पर आपत्ति जताई और अपनी अत्याधुनिक मिलिट्री बोट को आगे करके उसे पीछे आने पर मजबूर किया। तनाव बढ़ने के साथ दोनों ओर से अतिरिक्त टुकड़ियां बुला ली गईं। गतिरोध देर शाम तक बना रहा। फिर, दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझाने के लिए वार्ता शुरू हुई।
यह घटना 11 सितंबर की है। सेना का कहना है कि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) अपनी-अपनी समझ पर आधारित है। नाम न छापने की शर्त पर सेना के एक अधिकारी ने बताया, “एलएसी के बारे में उनकी समझ अलग है और हमारी समझ अलग। इस घटना का हाल के राजनैतिक फैसलों से कोई लेना-देना नही है।”
हालांकि, दोनों देशों की सेना के आमने-सामने आने से घाटी में माना जा रहा है कि कश्मीर मुद्दा नया रूप ले रहा है और एलओसी और एलएसी पर सैन्य टकराव तेजी से बढ़ रहा है। श्रीनगर के एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा, “यथास्थिति खत्म करके भारत ने न सिर्फ कश्मीरियों को नाराज कर दिया, बल्कि उसने चीन और पाकिस्तान को भी चुनौती दे दी। गुलमर्ग और पांगोंग में जो हो रहा है, वह भविष्य की घटनाओं का संक्षिप्त संकेत भर है।”
भारत और चीन के बीच रिश्तों में पिछले एक महीने के दौरान कड़वाहट पैदा हुई है। चीन की सरकार ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के बारे में भारत के फैसले पर वह चिंतित है। जम्मू-कश्मीर पर फैसले के तुरंत बाद भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की। ग्लोबल टाइम्स की खबर के मुताबिक वांग ने जयशंकर से कहा कि लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाने की भारत सरकार की घोषणा से चीन की संप्रभुता के लिए चुनौती पैदा हो गई है और यह कदम सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच हुए समझौते का उल्लंघन करता है।
कई लोगों को लगता है कि लद्दाखियों के बजाय चीन को संदेश देने के लिए ही सरकार लद्दाख को आदिवासी क्षेत्र घोषित कर सकती है। अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा हटाने और लद्दाख को केंद्रशासित क्षेत्र बनाने के बाद से लेह से मांग उठ रही है कि जनसंख्या के स्वरूप, पहचान और संस्कृति को सुरक्षित रखने के लिए इसे आदिवासी क्षेत्र का दर्जा दिया जाए। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार यह मांग मानती है तो वह लद्दाखियों के बजाय चीन को खुश करने के लिए ऐसा कर सकती है कि इससे क्षेत्र में एलएसी प्रभावित नहीं होगी।