कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने खालिस्तान मसले पर जो आग लगाई, उसकी आंच ब्रिटेन तक महसूस की गई। ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त विक्रम दोराईस्वामी को स्कॉटलैंड के एक गुरुद्वारे में जाने से रोका गया, उनके साथ बदतमीजी की गई और उनकी कार पर हमले की कोशिश हुई। यह सब ब्रिटेन में तब हुआ, जब कुछ समय पहले ही ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने साफ-साफ कहा था कि वह अपनी धरती से किसी भी किस्म का आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करेंगे।
हाइ कमिश्नर के स्कॉटलैंड दौरे पर आखिर चूक कैसे हुई? सवाल है कि विदेशी जमीन का खालिस्तान और भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए कौन और कैसे इस्तेमाल कर रहा है? कौन हैं जो इस संगठन को खाद पानी दे रहे हैं और भारत की एजेंसियां बार-बार चूक क्यों रही हैं?
भारत में जी-20 सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद वापस कनाडा पहुंचे जस्टिन ट्रुडो ने अचानक नया राग छेड़ दिया और ब्रिटिश कोलंबिया में हुई खालिस्तानी आतंकी की हत्या में भारत को घसीटने की कोशिश की। ट्रुडो की सियासी मजबूरी यह है कि उनकी सरकार अल्पमत में है। जिस दूसरे दल के सहारे उनकी नैया चल रही है, उसे न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के 25 सांसदों का समर्थन है। इस पार्टी के प्रमुख जगमीत सिंह खालिस्तान समर्थक हैं। इसके अलावा, ट्रुडो की लोकप्रियता की रेटिंग ऐसी है कि अगर आज चुनाव हो जाएं तो वह किसी भी स्थिति में चुनाव नहीं जीत सकते। ऐसे में उन्हें अगले चुनाव के लिए भी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन की दरकार रहेगी। लिहाजा, ट्रुडो की वोट बैंक पॉलिटिक्स के लिहाज से यह विवाद कारगर हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की दृष्टि से निस्संदेह उनके ये कदम निराशाजनक रहे हैं। भारत ने जब ‘जैसे को तैसा’ वाला जवाब दिया तब पंद्रह दिन के भीतर ही ट्रुडो बेहतर संबंधों की दुहाई देने लगे। ट्रूडो की तरह ब्रिटेन सरकार की ऐसी कोई चुनावी मजबूरी नहीं है, फिर खालिस्तान समर्थक बीच-बीच में अपनी प्रतिक्रिया वहां क्यों दे रहे हैं? ब्रिटेन में पिछले दिनों जिस खालिस्तानी अवतार सिंह खंडा ने लंदन के भारतीय हाइ कमीशन भारत भवन से तिरंगा उतार दिया था, उसकी अचानक तबीयत खराब होने से हुई मौत में भी उसके करीबियों ने साजिश तलाश ली है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ब्रिटेन में खालिस्तानी गतिविधियां सुनक की सख्ती के बावजूद बढ़ रही हैं। खास तौर से इंग्लैड और स्कॉटलैंड के कुछ इलाके जहां दशकों से सिखों की आबादी ज्यादा है उन इलाकों में ऐसी गतिविधियां साफ दिखने लगी हैं। वर्तमान स्थिति ऐसी नहीं है कि भारत में खालिस्तान को लेकर ज्यादा चिंतित हुआ जाए, लेकिन हालात ऐसे जरूर हैं कि इन आतंकी गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र फिर से ब्रिटेन हो सकता है। खालिस्तान के उदय के वक्त ही जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे दबाने के हरसंभव प्रयास किए, उस वक्त भी खालिस्तान की गतिविधियों का केंद्र ब्रिटेन ही बना था। उग्र खालिस्तानी नेता और पंजाब के वित्त मंत्री रहे जगजीत सिंह चौहान को भागकर ब्रिटेन में शरण लेनी पड़ी। चौहान ने उस दौर में भारत का दौरा किया और खालिस्तान को स्थापित तो किया ही, साथ ही ब्रिटेन में उसके बीज बो दिए। आज हालात ये हैं कि खालिस्तान समर्थक अपने एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए बलपूर्वक रणनीति अपनाने से भी गुरेज नहीं करते। ब्रिटेन में सिख समुदायों को उनसे जबरदस्ती और धमकी का सामना करना पड़ रहा है।
ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त दोराईस्वामी
ग्लासगो में विक्रम दोराईस्वामी के साथ हुई बदसलूकी के बाद वहां के कई गुरुद्वारों के प्रबंधन ने इस घटना की निंदा की है। साथ ही कुछ लोगों ने पंजाब की मौजूदा आम आदमी पार्टी सरकार पर भी आरोप मढ़े हैं। इसके अलावा, खालिस्तानियों को हमेशा से पाकिस्तान का समर्थन मिलता रहा है। गौरतलब है कि लंदन के मेयर पाकिस्तानी मूल के हैं, स्कॉटलैंड के फर्स्ट मिनिस्टर हमजा युसूफ भी पाकिस्तानी मूल के हैं। खालिस्तान के समर्थन में सिख समुदाय जब यहां की सड़कों पर उतरता है तो उसमें कश्मीर के बैनर भी नजर आते हैं। इन दिनों तो कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के खिलाफ आवाज उठाते अलगाववादी भी खालिस्तानियों का साथ यूरोप से लेकर कनाडा तक दे रहे हैं, भले ही उनको कश्मीर की धरती पर पांव धरे एक दशक से ज्यादा बीत गए हों और वहां की जमीनी हकीकत से वे वाकिफ भी न हों।
इस घटनाक्रम को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। मामला सिर्फ खालिस्तान की मांग को लेकर भारत को परेशान करने की कोशिश तक सीमित नहीं है। जब इस मामले की तह में जाएंगे तो कश्मीर में आइएसआइ की हरकतें और मणिपुर में कुछ महीनों से चल रहे विवाद में चीन की भूमिका के तार आपस में जुड़ते नजर आएंगे। परदे के पीछे की कहानी का एक सिरा यह भी है कि कनाडा की जमीन से कुकी विद्रोहियों को हवा दिए जाने के संकेत हैं। कनाडा के एक महत्वपूर्ण गुरुद्वारे में खालिस्तानियों के साथ कुछ कुकी नेताओं के भारत विरोधी वीडियो सामने आए हैं।
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार निश्चित तौर पर पिछली कुछ सरकारों की तुलना में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात मजबूती से रखते हुए दिखती है और समय-समय पर जरूरी कूटनीतिक कार्रवाई भी करती है। इसके बावजूद यह भी सच है कि निर्दोष भारतीय समुदाय खालिस्तान लॉबी के एजेंडे का जाने-अनजाने हिस्सा बन जा रहा है। जिस तरह से ब्रिटेन में मुख्यधारा के मीडिया से लेकर डिजिटल माध्यमों में खालिस्तानियों का दखल स्पष्ट नजर आता है, इस समस्या को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
(लेखक इन दिनों इंग्लैंड में रहते हुए भारत-यूरोप संबंधों पर शोधरत हैं)