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6 मार्च 2023 · MAR 06 , 2023

हिमाचल प्रदेश: सुक्खू की परीक्षा शुरू

चुनाव पूर्व कांग्रेस की 10 गारंटी और ‘व्यवस्था परिवर्तन’ के वादे पर मुख्यमंत्री राज्य की माली हालत की वजह से मुश्किल में
हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू

उत्साह धीरे-धीरे ही सही ठंडा पड़ रहा है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि सत्ता में महज 50-55 दिन के कामकाज को इससे ही नहीं आंका जाना चाहिए कि वे कांग्रेस के चुनावी वादों ‘10 गारंटी’ को कैसे पूरा करते हैं, बल्कि ‘व्यवस्था परिवर्तन’ की कसौटी पर कसा जाना चाहिए। ‘व्यवस्था परिवर्तन’ से उनका मतलब राजकाज में आमूल-चूल परिवर्तन, लालफीताशाही खत्म करके कामकाज में देरी को कम करना और सार्वजनिक सेवाओं की समयबद्ध डिलीवरी आश्वस्त करना है। उनके लिए वाकई यह बड़ी चुनौती होगी जिसे वे राज्य में पूर्ववर्ती सरकारों से अलग दिखा सकेंगे। मुख्यमंत्री सुक्खू ने आउटलुक से कहा, “हमने पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को बहाल करके एक गारंटी पूरी की है। हम जानते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार हर तरह का अड़ंगा लगाएगी। उसने राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) में कर्मचारी के योगदान के रूप में जमा किए गए 8,000 करोड़ रुपये वापस करने से इनकार कर दिया है। भाजपा ने कहा कि ओपीएस लागू नहीं की जा सकती। फिर भी, हमने इसकी वित्तीय संभावना आंक कर ओपीएस की ओर रुख किया है। हमारे लिए, यह सामाजिक सुरक्षा का और मानवीय मुद्दा है।”

लेकिन हकीकत में अभी तक कर्मचारियों के हाथ कुछ नहीं लगा है। सरकार अभी भी अंधेरे में तीर चला रही है। यह स्पष्ट नहीं है कि वह पुरानी पेंशन योजना के लिए किस मॉडल को अपनाएगी, क्योंकि एनपीएस के मद में कर्मचारियों का जनवरी 2023 का मासिक योगदान उनके वेतन से काट लिया गया है। लेकिन मुख्यमंत्री कहते हैं, “पुरानी पेंशन योजना की घोषणा करने से पहले आवश्यक बजटीय प्रावधान कर लिए गए हैं, इसलिए कर्मचारियों को चिंता करने की बात नहीं है। इसी तरह, कांग्रेस के प्रतिज्ञा पत्र में वादा की गईं सभी गारंटियों को पर्याप्त वित्तीय प्रावधान के बाद चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा।”

दरअसल, मुख्यमंत्री के सामने चुनौती बड़े-बड़े वादों और राज्य में विकास तथा इन्फ्रास्ट्रक्चर की प्रगति की रफ्तार के बीच संतुलन बनाए रखने की है। खुद सुक्खू कहते हैं कि राज्य 75,000 करोड़ रुपये के भारी कर्ज से गंभीर संकट में है। वे पिछली भाजपा सरकार पर कर्ज के बोझ से दबे राज्य के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाते हैं। संसाधन जुटाने के मामले में वह अभी कुछ नहीं कर पाए हैं। वे कहते हैं, “भाजपा खजाना खाली छोड़ गई है। 75,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। हमें विरासत में कर्मचारियों के 11,000 करोड़ रुपये के बकाये की देनदारी भी मिली है। इसमें 4,430 करोड़ रुपये के संशोधित वेतन का बकाया और 5,226 करोड़ रुपये की पेंशनधारियों की देनदारी शामिल है। फिर, छठे वेतन आयोग को लागू करने के बाद डीए के मद में 1,000 करोड़ रुपये भी देने हैं।”

कांग्रेस ने लोगों से झूठे वादे किए और अब वादे पूरे न कर पाने पर भाजपा पर दोषारोपण शुरू कर दिया है  जयराम ठाकुर, भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री

कांग्रेस ने लोगों से झूठे वादे किए और अब वादे पूरे न कर पाने पर भाजपा पर दोषारोपण शुरू कर दिया है : जयराम ठाकुर, भाजपा नेता, पूर्व मुख्यमंत्री

यही नहीं, भाजपा ने ठीक चुनावों के पहले 900 संस्थान खोले। इन सभी संस्थानों को चालू करने के लिए सरकार को कम से कम 3000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले हफ्ते अपने गृह शहर नादौं पहुंचे सुक्खु ने एक रैली में कहा, “राज्य की माली हालत बहुत खराब है। सेहत बिगड़ी हुई है। जब मैं विधानसभा के अगले सत्र में वर्ष 2023-24 का पहला बजट पेश करूंगा, तो लोगों को कुछ कड़े फैसलों के लिए तैयार रहना चाहिए। कुछ कड़े फैसले नहीं किए गए तो हालात कमोबेश श्रीलंका जैसे हो जाएंगे।” उनका इशारा था कि राज्य की वित्तीय सेहत दुरुस्त करने में कम से कम चार साल लगेंगे।

उधर, विपक्षी भाजपा खामोश नहीं बैठी है। उसका कहना है कि कांग्रेस ने चुनावों के दौरान जो 10 गारंटियां दीं, वे सरकारी खजाने को पूरी तरह से खाली कर देंगी। भाजपा ने सरकार के खिलाफ जनमत तैयार करने के लिए हस्ताक्षर अभियान शुरू करने का फैसला किया है। सिर्फ ओपीएस लागू करने पर ही 800 करोड़ रुपये खर्च होंगे और महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये देने के दूसरे वादे को पूरा करने के लिए 1,895 करोड़ रुपये के अतिरिक्त रकम की जरूरत होगी। इसके तहत राज्य में 10.53 लाख से अधिक महिलाएं हैं। पार्टी के वादे के मुताबिक राज्य में 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने में भी राजस्व घटेगा।

कांग्रेस सरकार के खिलाफ अभी से तलवारें खिंच गई हैं। नेता प्रतिपक्ष, पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का कहना है कि कांग्रेस ने सत्ता हासिल करने के लिए लोगों से झूठे वादे किए और अब यह देखकर कि वादों को पूरा करना आसान नहीं होगा, मुख्यमंत्री ने भाजपा पर दोषारोपण शुरू कर दिया है। वे कहते हैं, “मुख्यमंत्री ऐसा बता रहे हैं जैसे पिछली सरकार ने 75,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया था। दरअसल, हमने 69,476 करोड़ रुपये का कर्ज छोड़ा था। हमें 2017 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार से 50,773 करोड़ रुपये का कर्ज विरासत में मिला था।”

उनके मुताबिक, 2007 से 2012 के बीच प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तो भाजपा सरकार ने 6,700 करोड़ रुपये का ऋण लिया था। फिर, 2012 से 2017 तक कांग्रेस की सरकार ने 13,000 करोड़ रुपये का ऋण लिया। कांग्रेस की नई सरकार ने तो 15 दिनों के भीतर ही 1,000 करोड़ रुपया का ऋण उठा लिया। उसके बाद जनवरी में 1,500 करोड़ रुपये का एक और ऋण लिया और अब यह सरकार 100 करोड़ रुपये का एक और ऋण लेने जा रही है। फरवरी 2023 में भी 1,500 करोड़ रुपये कर्ज लेने की योजना है। वे कहते हैं, “इस सरकार की कर्ज लेने की रफ्तार तेज है।”

अगर सरकार 10 गारंटियों को पूरा करती है, तो विकास के लिए शायद ही पैसा बचे। हो सकता है, सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कर्ज उठाना पड़े। पांच लाख नौकरियों का वादा आने वाले महीनों में सरकार की सबसे बड़ी परीक्षा होने वाली है।

जो भी हो, सुक्खु ‘व्यवस्था परिवर्तन’ और निवेशकों के लिए दरवाजे खोलने, फिजूलखर्ची कम करने और चुनावी वादों को पूरा करने के लिए संसाधन जुटाने की बात करते हैं। पिछले महीने सरकार ने डीजल पर 3 फीसदी जीएसटी लगाया और सभी विधायकों को नई दिल्ली के हिमाचल भवन और हिमाचल सदन सहित सरकारी गेस्ट हाउसों में ठहरने के लिए पूरा शुल्क देने को कहा गया।

मुख्यमंत्री ने 4 फरवरी को 19 इलेक्ट्रिक वाहनों को हरी झंडी दिखाई। यह सरकारी विभागों के सभी डीजल और पेट्रोल वाहनों को ‘इलेक्ट्रिक वाहनों’ में बदलने की प्रक्रिया की शुरुआत है। उनका कहना है कि इससे खर्च में कमी आएगी और उनके ‘हरित एजेंडे’ को बढ़ावा मिलेगा।

हालांकि यहां भी यह सवाल उठता है कि जब खजाना ही खाली होगा तो सरकार वाहन बदलने का खर्च कैसे उठाएगी। मुख्यमंत्री ने आउटलुक से कहा, “हमने 2025 तक हिमाचल को हरित राज्य बनाने का फैसला किया है। अगले तीन वर्षों में सभी सार्वजनिक परिवहन वाहन इलेक्ट्रिक होंगे। पहले चरण में हम कम से कम तीन ग्रीन कॉरिडोर के साथ शिमला, मंडी और कांगड़ा जिलों में 300 इलेक्ट्रिक बसें चलाई जाएंगी।”

फिलहाल कांग्रेस सरकार पिछले भाजपा राज में खोले गए 900 संस्थानों को बंद करने को लेकर भी निशाने पर है। इनमें अस्पताल, शिक्षण संस्थान व पशु चिकित्सा केंद्र तथा लोक निर्माण विभाग व जल शक्ति के दर्जनों प्रशासनिक कार्यालय शामिल हैं। सुक्खू सरकार की दूसरी परीक्षा का मुद्दा अदाणी समूह के दरलाघाट और बरमाना में दो मेगा सीमेंट संयंत्रों का बंद होना और ट्रक चालकों का आंदोलन भी बना हुआ है। ट्रक संचालक मालभाड़ा दरों में इजाफे की मांग कर रहे हैं, जिसे कंपनी ने न सिर्फ ठुकरा कर दिया, बल्कि संयंत्रों को बंद कर दिया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कई दौर की सुलह वार्ता 60 दिनों से अधिक समय से चल रहे गतिरोध को समाप्त करने में विफल रही है। 6000 से अधिक ट्रक सड़कों से गायब हैं। इससे 2500 से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है और जीएसटी संग्रह और बिजली बिलों के मद में राज्य के खजाने को 200 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। नई सरकार ने कंपनी को राज्य में सीमेंट की दरें कम करने को कहा तो कुछ दिनों के भीतर संयंत्र बंद कर दिए गए।

उधर, कांग्रेस के भीतर असंतोष यह भी है कि मुख्यमंत्री ने तराई के जिले कांगड़ा के साथ सौतेला व्यवहार किया है, जहां से 10 कांग्रेस विधायक चुने गए हैं। कांगड़ा में 15 विधानसभा सीटें हैं और इनमें जीत राज्य में सरकार बनाने के लिए अहम होती है। दरअसल कांगड़ा से सिर्फ एक मंत्री बनाया गया है, जबकि शिमला को सात में से तीन विधायक मंत्री बनाए गए हैं। तीन कैबिनेट पद अभी भी खाली हैं।

लेकिन सुक्खू ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं कि अगला विस्तार कब करेंगे या उनकी पसंद कौन हो सकता है। इस मामले में कुछ संभावित विधायकों पर नजर रहेगी। मसलन, कांगड़ा से आने वाले पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, संजय रतन, यादविंदर गोमा, राजेंद्र राणा (2017 में भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को हराने वाले), विनय सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौर। गौरतलब यह भी है कि कौल सिंह ठाकुर, आशा कुमारी और राम लाल ठाकुर जैसे कुछ दिग्गज चुनाव हार गए और मुकेश अग्निहोत्री उपमुख्यमंत्री के रूप में काम करने के लिए तैयार हो गए। इस छोटे राज्य में पहली बार यह पद बनाया गया। तो, सुक्खू के लिए पार्टी के भीतर और बाहर चुनौतियां कई हैं।

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