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6 मार्च 2023 · MAR 06 , 2023

झारखंड: पहचान पर खींचतान

राज्यपाल ने 1932 के भूमि सर्वे के मुताबिक डोमिसाइल नीति तय करने जैसे कई विधेयक लौटाए तो हेमंत सरकार से टकराव चरम पर
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

इस दौर में राज्यपाल और विपक्षी पार्टियों की सरकारों के बीच छत्तीस का रिश्ता आम हो गया है। मगर झारखंड के मुख्यमंत्री खम ठोक कर कहें कि “राज्यपाल जो चाहेंगे वह नहीं होगा, राज्य सरकार जो चाहेगी वही होगा” तो रिश्तों की तल्खी का अंदाजा लगाया जा सकता है। तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस (अब सीपी राधाकृष्णन नए राज्यपाल हैं) ने 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति विधेयक वापस किया तो मुख्यमंत्री सोरेन बिफर गए। दरअसल राज्यपाल वित्त विधेयक सहित विधानसभा से पारित आठ विधेयकों को आपत्ति के साथ लौटा चुके हैं। इनमें अधिकांश विधेयक आदिवासी हितों से जुड़े हैं, जो सोरेन का वोट बैंक है। स्थानीयता नीति विधेयक 1932 के भूमि सर्वे के आधार पर ही आदिवासी-मूलवासी तय करता है। इस तरह वही खतियानी पहचान रखने वाला वर्ग तीन और चार के सरकारी पदों पर नियुक्ति का पात्र होगा, जो स्थानीयता नीति विधेयक 1932 के भूमि सर्वे में आएगा। यह मामला नया नहीं है। 2000 में राज्य के गठन के समय से ही विभिन्न सरकारों के लिए यह गंभीर सवाल रहा है। पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने वर्ग तीन के पदों पर स्थानीय लोगों की नियुक्ति के लिए 1932 के खतियान से संबंधित लोगों को स्थानीय घोषित करने का आदेश जारी किया था। लेकिन हाइकोर्ट ने उसे रद्द कर दिया था। भाजपा की अर्जुन मुंडा सरकार को इसी 1932 के खतियान के सवाल पर जाना पड़ा था।

आदिवासियों में गहरी पैठ वाली पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में इसका वादा किया था। माइनिंग घोटाले में हेमंत सोरेन की विधायकी पर संकट गहराने से वे धड़ाधड़ फैसले लेने लगे हैं। इसी क्रम में नवंबर 2022 में उन्होंने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता नीति विधेयक (झारखंड स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार विधेयक, 2022) को पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए राज्यापाल को भेजा था। इसी के साथ इसे नौवीं अनुसूची में शामिल करने की सिफारिश भी कर दी ताकि कोई अदालती अड़चन न आए। यह कदम उठाकर हेमंत ने एक तरह से गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। यही नहीं, इसके लिए जनमत तैयार करने के लिए हेमंत सोरेन ने ‘खतियानी जोहर यात्रा’ शुरू कर दी। पहला चरण आठ से 16 दिसंबर तक चला तो दूसरा चरण 17 जनवरी से शुरू हुआ।

आगामी चुनावों को देखते हुए खतियान आधारित स्थानीय नीति का मुद्दा अभी और गरमाएगा

आगामी चुनावों को देखते हुए खतियान आधारित स्थानीय नीति का मुद्दा अभी और गरमाएगा

प्रदेश में अगले साल विधानसभा के साथ लोकसभा का भी चुनाव है। इन यात्राओं के जरिए मुख्यमंत्री जिलों में जाकर अपनी सरकार के नीतिगत निर्णयों, कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी लोगों दे रहे हैं, कार्यक्रमों की आधारशिला रख रहे हैं, उद्घाटन कर रहे हैं, परिसंपत्ति का वितरण कर रहे हैं। राज्यपाल ने जब खतियानी विधेयक वापस किया तब हेमंत खतियानी यात्रा में सरायकेला में थे। उन्होंने कहा, “गैर-भाजपा सरकारों को राज्यपाल के माध्यम से भाजपा पिछले दरवाजे से परेशान कर रही है। मगर झारखंड अंडमान-निकोबार और दिल्ली नहीं है। यहां सरकार जो चाहेगी वही होगा, राज्यपाल चाहेंगे वह नहीं। हम संविधान की धज्जियां नहीं उड़ने देंगे। लड़ कर राज्य लिया है, लड़ कर खतियान लेंगे।” अगले दिन जमशेदपुर में उन्होंने कहा कि वह राज्यपाल की शंकाओं को दूर करेंगे और यहां के लोगों को नौकरी दिलानी है, तो 1932 का खतियान लागू करना ही होगा।

उधर, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने कहा, “भाजपा ने 1932 के खतियान का कभी विरोध नहीं किया। हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा की सरकार को 1932 के खतियान आधारित स्थानीय और नियोजन नीति के नाम पर समर्थन वापस लेकर गिराया था। तब हेमंत उपमुख्यमंत्री थे। वह जवाब दें कि पहली बार जब वे 18 महीने मुख्यमंत्री थे, तो स्थानीय और नियोजन नीति क्यों नहीं बनाई। उस समय तो यूपीए का केंद्र और राज्य दोनों में राज था, मनमोहन सिंह जी प्रधानमंत्री थे। तब उन्हें 9वीं अनुसूची की बात क्यों याद नहीं आई?”

हेमंत सोरेन की नजर में यदि आदिवासी वोट बैंक है, तो राजभवन की तिरछी चाल भी जगजाहिर है। रमेश बैस ने राज्यपाल की कुर्सी संभाली, तभी से ट्राइबल एडवाजरी परिषद की नियमावली पर जारी विवाद गाढ़ा हो गया। विश्वविद्यालय से जुड़े काम पर भी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला शुरू हो गया। आए दिन राज्यपाल प्रशासनिक मामलों में हस्तक्षेप करते रहे हैं। कृषि ओर पशुधन विपणन (संवर्धन व सुविधा) विधेयक राज्यपाल एक बार लौटा चुके थे, उसे फिर विधानसभा से पारित कर राजभवन भेजा गया। इस पर राज्यपाल ने फरवरी के प्रारंभ में विभाग के मंत्री और अधिकारियों को ही बुला लिया। ऐसा पहला मौका होगा जब किसी विधेयक के मसले पर मंत्री और विभागीय अधिकारी को तलब किया गया हो। बातचीत के बाद राज्यपाल ने कुछ हिदायतों के साथ उसे मंजूरी दे दी।

राज्यपाल मॉब लिंचिंग, ट्राइबल यूनिवर्सिटी, कृषि विपणन उपज, कोर्ट फीस, उत्पाद संशोधन, वित्त विधेयक को आपत्तियों के साथ वापस कर चुके हैं। इनमें तीन विधेयकों को विधानसभा से दोबारा पास कराया गया। सरना कोड का मामला भी केंद्र के पास लटका हुआ है। जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का मामला आदिवासियों की पहचान से जुड़ा है। दो साल से अधिक से यह केंद्र के पास पड़ा है। हाल ही में सम्मेद शिखर पारसनाथ का विवाद उठा था। हेमंत ने गिरिडीह में कहा कि जैनियों को अलग धर्म कोड मिल सकता है, तो आदिवासियों को क्यों नहीं। झारखंड में आदिवासियों के लिए विधानसभा में आरक्षित 28 में सिर्फ दो सीटों पर कब्जा करने वाली भाजपा को दोनों मसलों का काट नहीं मिल रहा। आदिवासियों की नाराजगी के डर से भाजपा खुलकर बोल नहीं पा रही है।

अगले साल विधानसभा और लोकसभा का चुनाव है। जाहिर है, खतियान आधारित स्थानीय नीति या सरना कोड का मुद्दा अभी और गरमाएगा। हकीकत यह है कि नियोजन नीति को बदलने, हाइकोर्ट की रोक और खतियानी विधेयक के फंसने का नतीजा है नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकल रहे हैं, रद्द हो रहे हैं और बेरोजगार युवा खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

टकराहट के विधेयक: क्या है खतियानी विधेयक में

स्थानीय का अर्थ झारखंड का डोमिसाइल होगा जो भारत का नागरिक है और झारखंड में रहता है। साथ ही उसका या उसके पूर्वज का नाम 1932 या उसके पहले के सर्वे/खतियान में दर्ज हो। इस अधिनियम के तहत आने वाले लोग ही राज्य में वर्ग तीन और चार के पदों पर नियुक्ति के पात्र होंगे।

राजभवन ने क्या कहा

तत्कालीन राज्यपाल रमेश बैस ने विधेयक वापस करते हुए कहा कि राज्य सरकार इस विधेयक की वैधानिकता की समीक्षा करे कि यह संविधान के अनुरूप और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व निर्देशों के अनुरूप हो। मौजूदा विधेयक में उल्लेख है कि इस अधिनियम के तहत पहचाने गए स्थानीय व्यक्ति ही राज्य के वर्ग-3 और 4 के तहत नियुक्ति के लिए पात्र होंगे। उक्त विधेयक की समीक्षा के क्रम में स्पष्ट पाया गया है कि संविधान की धारा 16 में सभी नागरिकों को नियोजन के मामले में समान अधिकार प्राप्त है। संविधान की धारा- 16(3) के अनुसार मात्र संसद को यह शक्तियां प्रदत्त हैं कि विशेष प्रावधान के तहत धारा 35 (ए) के अंतर्गत नियोजन के मामले में किसी भी प्रकार की शर्तें लगाए। राज्य विधानमंडल को यह शक्ति प्राप्त नहीं है।

राज्यपाल जिन विधेयकों को वापस लौटा चुके हैं

1. वित्त विधेयक

2. 1932 का खतियान आधारित स्थानीयता नीति विधेयक

3.   पंडित रघुनाथ मुर्मू जनजातीय विवि विधेयक

4.   झारखंड राज्य कृषि उपज और पशुधन विपणन (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2022

5.   कोर्ट फीस (झारखंड संशोधन) विधेयक, 2021

6.   झारखंड कराधन अधिनियमों की बकाया राशि का समाधान विधेयक 2022

7.   भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) निवारण विधेयक

8.   झारखंड उत्पाद संशोधन विधेयक

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