पांच नदियों की धरती पंजाब में शायद पहली बार चुनाव भी पंचकोणीय होंगे। वैसे तो चुनाव आयोग ने रविदास जयंती को देखते हुए राजनीतिक दलों के आग्रह पर मतदान की तारीख करीब एक हफ्ते आगे बढ़ाकर 20 फरवरी कर दी है, लेकिन यह तारीख करीब आने के साथ चुनावी सरगर्मियां बढ़ती जा रही हैं- पार्टियों के बीच भी और पार्टियों के भीतर भी। शिरोमणि अकाली दल तथा बहुजन समाज पार्टी गठबंधन, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने ज्यादातर सीटों के लिए उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। भाजपा, पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा के शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के गठबंधन ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किए हैं। पांचवें मोर्चे के रूप में 22 किसान संगठनों के संयुक्त समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी के गठबंधन की तरफ से भी उम्मीदवारों का ऐलान बाकी है। मोर्चा का नेतृत्व बलवीर सिंह राजेवाल कर रहे हैं तो संयुक्त संघर्ष पार्टी की अगुवाई हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी कर रहे हैं।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण चुनाव आयोग ने 22 जनवरी तक रैलियों पर प्रतिबंध लगाया, पर उससे पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस, अकाली दल और आप ने ताबड़तोड़ रैलियां कीं और लोकलुभावन वादे किए। भाजपा गठबंधन को अभी तक एक भी रैली न करने का मलाल है। 5 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक के आरोप में चरणजीत सिंह चन्नी सरकार को घेरने वाली भाजपा की इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश भी नाकाम हो गई है।
भाजपा, पंजाब लोक कांग्रेस और शिअद (संयुक्त) में उम्मीदवारों के चयन पर पेंच फंसा है। तीन दशक तक अकाली दल की पिछलग्गू के रूप में विधानसभा की 117 में से 23 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा पहली बार बड़े दल के रूप में 80 से 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। बार-बार खालिस्तान का मुद्दा उठाने वाली भाजपा चुनावी जीत के लिए दमदमी टकसाल के पंथक नेताओं को भी साथ लेने से गुरेज नहीं कर रही है। कैप्टन अमरिंदर और ढींढसा की पार्टी को भाजपा के बाद बाकी बची सीटों से ही संतोष करना होगा। नए मोर्चे में कैप्टन अमरिंदर मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे या नहीं, यह भी भाजपा ने साफ नहीं किया है।
राजेवाल के मोर्चा ने हरियाणा के चढ़ूनी की पार्टी को 10 सीटें दी हैं
संयुक्त समाज मोर्चा और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की भी बात चली थी, लेकिन नाकाम रही। उसके बाद चढ़ूनी की पार्टी के साथ भी मोर्चा की सीट बंटवारे पर बड़ी मुश्किल से सहमति बन पाई है। चढ़ूनी 25 सीटें मांग रहे थे, आखिरकार 10 सीटों पर सहमति हुई। संयुक्त समाज मोर्चा ने पहली सूची में 10 उम्मीदवारों का ऐलान किया है। राजेवाल लुधियाना के समराला से चुनाव लड़ेंगे जहां कांग्रेस का कब्जा है।
2017 के चुनाव में 20 सीटों के साथ मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आई आम आदमी पार्टी के नौ विधायकों के पार्टी से खिसकने के बावजूद उसे इस बार सत्ता की दहलीज तक पहुंचने की आस है। पार्टी ने सांसद भगवंत मान को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाया है, जिनकी तुलना चन्नी, सुखबीर बादल और अमरिंदर जैसे दिग्गजों से होना लाजिमी है।
2017 में कैप्टन अमरिंदर की अगुवाई में कांग्रेस ने 77 सीटें जीत कर सरकार बनाई थी। अकाली दल और भाजपा गठबंधन 10 साल लगातार सत्ता में रहने के बाद मात्र 18 सीटें जीत कर तीसरे नंबर पर रहा था। हार के बावजूद अकाली दल का वोट शेयर 25.24 प्रतिशत था जबकि 20 सीटें जीत कर आम आदमी पार्टी ने 23.72 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।
बगावत रोकने की कोशिश
कांग्रेस ने 86 उम्मीदवारों की जो पहली सूची जारी की उसमें 60 विधायकों पर फिर से भरोसा जताया है। मुख्यमंत्री चन्नी अपनी पुरानी सीट चमकौर साहिब से और पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू अमृतसर पूर्वी से चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस हाइकमान के दलित मास्टर स्ट्रोक चन्नी के आगे सीएम बनने से चूके बड़े जाट चेहरे सुनील जाखड़ ने खुद को चुनावी अखाड़े से ही दूर कर लिया है। अबोहर से उनकी जगह उनके भतीजे संदीप जाखड़ मैदान में हैं।
जिन चार मौजूदा विधायकों की उम्मीद टूटी है उनमें मलोट से तीन बार के विधायक और विधानसभा के डिप्टी स्पीकर अजायब सिंह भट्टी, बलुआना से दो बार के विधायक नाथू राम, श्री हरगोबिंदपुर से बलविंदर सिंह लाडी और मोगा से हरजोत कमल हैं। कांग्रेस में शामिल होने के हफ्ते भर बाद ही टिकट पाने में सफल रहीं एक्टर सोनू सूद की बहन मालविका सूद मोगा से लड़ेंगी। हरजोत कमल अब भाजपा की तरफ से मालविका को टक्कर देंगे। राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा कादियां से अपने छोट भाई विधायक फतेहजंग बाजवा की जगह सूची में हैं। भाजपा का दामन थाम चुके फतेहजंग की बड़े भाई प्रताप के बीच टक्कर हो सकती है।
बस्सी पठाना से चुनावी मैदान में उतरने के लिए स्वास्थ्य विभाग से इस्तीफा देने वाले डॉ. मनोहर सिंह को उनके मुख्यमंत्री भाई चन्नी टिकट नहीं दिला पाए। कैप्टन अमरिंदर के करीबी रहे पटियाला ग्रामीण से पांच बार के विधायक कैबिनेट मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा की जगह उनके बेटे मोहित मोहिंद्रा ने ली है। देखना दिलचस्प होगा कि अमृतसर पूर्वी सीट से नवजोत सिद्धू की टक्कर में कैप्टन अमरिंदर किसे उतारते हैं। कांग्रेस की तरफ से भी अभी पटियाला से अमरिंदर के खिलाफ उम्मीदवार का एलान बाकी है, पर कांग्रेस ने कैप्टन के करीबी सभी विधायकों को उम्मीदवार बना बगावत की आशंका को खत्म कर दिया है।
चन्नी का फायदा कितना
पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के राजनीति शास्त्र के प्रो. आशुतोष कुमार मानते हैं कि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने से कांग्रेस को फायदा होगा, क्योंकि प्रदेश में 32 फीसदी दलित मतदाता हैं। वे कहते हैं, “कांग्रेस ने 2017 में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 34 सीटों में 21 सीटें जीती थीं। इस बार यह आंकड़ा 25 के पार जा सकता है। खासकर दोआबा में कांग्रेस को फायदा हो सकता है।” दलितों के अलावा प्रदेश में 40-42 फीसदी ओबीसी और 19 फीसदी जाट सिख हैं। जाट सिखों का प्रभाव 55-60 सीटों पर है। इनके अलावा 45 सीटें शहरी क्षेत्र में हैं जहां अगड़ी जाति के हिंदू निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।
इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन के निदेशक और राजनीतिक विश्लेषक डॉ. प्रमोद कुमार की राय कुछ अलग है। उनका मानना है कि भले ही चन्नी को आखिरी कुछ महीनों के लिए मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दांव खेला है, लेकिन साढ़े चार साल में सरकार का प्रदर्शन पार्टी पर भारी पड़ सकता है। वे कहते हैं, “राजनीतिक रणनीतिकार पार्टियों से बड़े-बड़े वादे करवा लेते हैं, लेकिन वे वादे पूरे नहीं होते। सरकार बनने के चार हफ्तों के भीतर ड्रग्स की समस्या खत्म करने का कांग्रेस का वादा पूरा नहीं हुआ। हर घर में नौकरी का वादा भी वादा ही रहा।”
मुख्यमंत्री बनने और आचार संहिता लगने के बीच 111 दिन के कार्यकाल को चन्नी, कैप्टन सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल की तुलना में बेहतर बताते हैं। उन्होंने तीन रुपये यूनिट बिजली, हर साल एक लाख युवाओं को नौकरियां और ब्याज-मुक्त कर्ज देने जैसे वादे किए हैं। दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू खुद को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करते हुए गृहिणियों को हर महीने दो हजार रुपये, साल में आठ मुफ्त गैस सिलिंडर, कॉलेज छात्राओं को स्कूटी, 12वीं कक्षा पास करने वाली लड़कियों को 20 हजार रुपये,10वीं पास करने वाली लड़कियों को 15 हजार रुपये और पांचवीं पास करने वाली लड़कियों को 5 हजार रुपये सालाना भत्ते की पेशकश कर रहे हैं। सिद्धू भले ऊंची मंशा पाले बैठे हों, पार्टी आलाकमान ने संकेत दे दिए हैं। पंजाब कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से 17 जनवरी को एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें अभिनेता सोनू सूद चरणजीत सिंह चन्नी को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहे हैं। माना जा रहा है कि आलाकमान की शह पर ही आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इसे जारी किया गया है।
‘आप’ का मुफ्त मॉडल
आप सीएम प्रत्याशी मान संग केजरीवाल
आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर ढेर सारे चुनावी वादों के साथ पंजाब के लोगों को लुभाने की कोशिश कर रही है। किसान संगठनों के साथ गठबंधन सिरे न चढ़ने पर उसने सभी 117 सीटों के लिए उम्मीदवारों का ऐलान किया है। आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि मोर्चा 60 सीटें मांग रहा था, इसलिए गठबंधन नहीं हो सका। केजरीवाल 300 यूनिट मुफ्त बिजली और सभी महिला मतदाताओं को हर महीने एक हज़ार रुपये देने का वादा कर रहे हैं।
आप के चुनावी वादों पर डॉ. प्रमोद कुमार कहते हैं, “राज्य के विकास के लिए लंबी अवधि का रोडमैप पेश करने के बजाय आप ने जो चलन शुरू किया है, उसका अनुसरण कांग्रेस और अकाली जैसी पुरानी पार्टियां भी कर रही हैं। आप का यह मैनिफेस्टो (घोषणापत्र) नहीं, बल्कि मेन्यू-फेस्टो है। रेस्तरां की तर्ज पर मेन्यु कार्ड में 300 यूनिट मुफ्त बिजली, महिलाओं को 1000 रुपये भत्ता, किसान कर्ज माफी, नौकरी की गारंटी के बदले वोट की गारंटी मांग रहे हैं। आप ने संगठन बनाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया, बस दिल्ली मॉडल बेचकर लोगों को लुभा रही है।”
अकाली से नाराज किसान
शिरोमणि अकाली दल-बसपा गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा सुखबीर सिंह बादल हैं। अकाली दल गठबंधन के तहत मिली 97 में से ज्यादातर पर उम्मीदवार घोषित कर चुका है। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल जलालाबाद से चुनाव लड़ेंगे। सूची में पांच बार मुख्यमंत्री रहे और पार्टी सरंक्षक 94 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल का नाम नहीं है। आउटलुक से बातचीत में सुखबीर बादल ने कहा, “लंबी हलके से बादल साहब के लिए चुनाव उनके कार्यकर्ता लड़ेंगे।”
विवादित कृषि कानूनों की वजह से भाजपा से तीन दशक का गठबंधन तोड़ने वाले अकाली दल की चुनौतियां भी कम नहीं हैं। उससे किनारा करने वाले सुखदेव सिंह ढींढसा के पुत्र और पूर्व कैबिनेट मंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा कहते हैं, “परिवारवाद की राजनीति में फंसा अकाली दल गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और ड्रग्स मामले में बिक्रम सिंह मजीठिया पर दर्ज मामले की वजह से धूमिल हुई छवि से उबर नहीं पाया है। कृषि कानूनों पर एनडीए से नाता तोड़ने का लाभ भी उसे नहीं मिलेगा क्योंकि 22 किसान संगठन चुनाव मैदान में हैं।” ढींढसा के अनुसार अकाली दल को बड़े नुकसान की आशंका है, क्योंकि पारम्परिक तौर पर उन्हें ग्रामीण इलाकों और जमींदार किसानों से समर्थन मिलता था। लोग यह नहीं भूले हैं कि वे केंद्र सरकार में शामिल थे और संसद में उन्होंने कृषि कानूनों का समर्थन किया था।
अकाली दल को बसपा के साथ गठबंधन पर भी चिंता है। आशंका है कि कहीं 40 फीसदी शहरी हिन्दू मतदाता उससे मुंह न मोड़ लें। शायद इसी वजह से सुखबीर बादल ने ऐलान किया है कि अगर शिअद-बसपा सरकार बनी तो उसमें दो उप-मुख्यमंत्री होंगे, उनमें एक दलित और दूसरा पंजाबी हिन्दू होगा।
भाजपा, कैप्टन, ढींढसा की तिकड़ी
भाजपा की रैली में अमरिंदर
विश्लेषकों का मानना है कि कैप्टन अमरिंदर की नई कांग्रेस भले कोई करिश्मा न दिखा पाए, लेकिन दूसरों के लिए सिरदर्द बन सकती है। प्रो. आशुतोष कहते हैं, “यह कहना मुश्किल है कि अमरिंदर किसका नुकसान करेंगे, लेकिन वे कांग्रेसी उनके साथ जा सकते हैं जिन्हें टिकट नहीं मिला।” प्रो. आशुतोष के अनुसार पंजाब में कथित बेअदबी की घटनाओं के बाद पंजाबी हिंदू, जिन्होंने पहले अमरिंदर पर विश्वास जताया था, अब भाजपा को ऐसी पार्टी के रूप में देख रहे हैं जो उनके हितों की रक्षा कर सकती है। भाजपा और अमरिंदर का साथ आना हिंदू अल्पसंख्यकों के पक्ष में तालमेल बिठाता नजर आ रहा है।
किसानों का सियासी मोर्चा
पंजाब के ग्रामीण इलाकों की 76 विधानसभा सीटों पर किसानों का प्रभाव रहा है। राजेवाल की अध्यक्षता में संयुक्त समाज मोर्चा पारंपरिक पार्टियों को कितनी टक्कर दे पाएगा, इस पर पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के कृषि अर्थशास्त्री रणजीत सिंह घुम्मण कहते हैं, “किसान संगठन सिर्फ राजनीतिक पार्टी बना कर नहीं जीत सकते। वे ऐसी पार्टी बना लें जिसमें हर वर्ग का प्रतिनिधित्व हो, तभी वे सफल हो सकते हैं।” जवाब में राजेवाल आउटलुक से कहते हैं, “117 सीटों के लिए आवेदन करने वाले 1273 उम्मीदवारों में अर्जुन अवार्ड पाने वाले खिलाड़ी से लेकर डॉक्टर तक हैं। मोर्चा के उम्मीदवारों में हर वर्ग का प्रतिनिधित्व होगा। इसमें किसान, कारोबारी, व्यवसायी और पूर्व नौकरशाह भी शामिल हैं।” राजेवाल के अनुसार, हम जनता से लुभावने वादे करने की बजाय पंजाब की समस्याओं को दूर करने और राज्य के दूरगामी विकास की बात अपने घोषणापत्र में करेंगे।
चन्नी सरकार करीब 100 छोटे-बड़े ऐलान को अपनी सफलता बताकर मैदान में उतरी है। बेअदबी और नशे के मामले में अमरिंदर के बाद चन्नी सरकार भी ठोस कार्रवाई करने में विफल रही है। वह अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया पर एफआइआर को ही बड़ी कार्रवाई बता रही है। बेरोजगारी और किसानों की पूर्ण कर्ज माफी का मसला कांग्रेस के गले की फांस बना हुई है। हाल ही राज्य में हुई श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की कथित घटनाएं भी मुद्दा हैं। बड़े मुद्दों से इतर हरेक दल लोकलुभावन वादे करके सत्ता तक पहुंचना चाह रहा है। ऐसे में देखना है कि मतदाता किसके वादों पर अधिक भरोसा करते हैं।