आमिर खान मुत्तकी भारत पहुंचे और भारत सरकार ने स्वागत में गर्मजोशी से बांहें फैला दी तो राजनयिक बिरादरी भी हैरान रह गई। आखिर यह गजब कूटनीतिक विडंबना जो थी। वर्षों से, नई दिल्ली तालिबान को क्रूर, कट्टरपंथी ताकत मानकर उससे दूर रहा है। उसे अफगानिस्तान में भारतीय हितों पर कई हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया है, जिसमें काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हुए दो घातक हमले भी शामिल हैं, जिनमें भारत के रक्षा अताशे युवा आइएफएस अधिकारी की भी मौत हो गई थी। फिर भी, 9 अक्टूबर को मुत्तकी के विमान से उतरते ही वर्षों की खामोशी और खटास की जगह नई दिल्ली की अफगान नीति में एक नया अध्याय जुड़ गया।
मुत्तकी ने दोपहर में विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर से मुलाकात की और संबंधों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया। बाकी दुनिया की तरह भारत भी तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं देता। दरअसल, मुत्तकी पर भी संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध हैं। नई दिल्ली को उनके एक सप्ताह के भारत दौरे के लिए विशेष प्रयास करके संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंध समिति से अनुमति लेनी पड़ी।
अफगान विदेश मंत्री की यात्रा के साथ ही भारत ने काबुल में अपने "तकनीकी मिशन" को पूर्ण दूतावास में बदल दिया है। यह इस बात का संकेत है कि नई दिल्ली उस देश में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए तैयार है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत ने तालिबान सरकार को मान्यता दे दी है।
तालिबान के महिला विरोधी रवैया, अल्पसंख्यकों के प्रति उसकी उपेक्षा और दोनों का प्रतिनिधित्व न होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। हालांकि, इन सबका अफगानिस्तान पर कब्जे वाले कट्टरपंथी रूढ़िवादी मौलवियों पर कोई असर नहीं पड़ा है। उस देश में महिलाओं की स्थिति दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है। महिलाओं को पढ़ाई-लिखाई से वंचित रखा जाता है, वे बिना पुरुष साथ के घर से बाहर नहीं निकल सकतीं, पुरुषों के साथ कार्यस्थलों पर नहीं जा सकतीं, सार्वजनिक स्थानों पर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और अब वे स्वास्थ्य क्षेत्र में भी काम नहीं कर सकतीं, जहां पहले नर्स, डॉक्टर और दूसरे कामों में बड़ी संख्या में हुआ करती थीं।

देवबंध में मुत्तकी
यह स्त्री-विरोधी रवैया दिल्ली में भी खुलकर सामने आ गया, जब भारतीय महिला पत्रकारों को अफगान दूतावास में मुत्तकी की भारतीय मीडिया के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं बुलाया गया। लेकिन इसका विरोध बढ़ा तो बाद में एक और प्रेस ब्रीफिंग में उन्हें बुलाया गया।
फिर भी, ऐसा लगता है कि लोकतांत्रिक भारत अब तालिबान को लुभाने के लिए हर संभव कोशिश में लगा है और विकास के लिए उदार पैकेज की घोषणा भी की गई है।
मुत्तकी के साथ द्विपक्षीय बैठक में अपने उद्घाटन भाषण में जयशंकर ने कहा, "आपकी यात्रा हमारे संबंधों को आगे बढ़ाने और भारत तथा अफगानिस्तान के बीच स्थायी दोस्ती की पुष्टि करने में एक अहम कदम है।" दोनों ने पहले फोन पर बात की थी, लेकिन जैसा कि जयशंकर ने जोर देकर कहा, "हमारे बीच होने वाली मुलाकात का विशेष महत्व है क्योंकि उससे हमें विचारों का आदान-प्रदान करने, साझा हितों की पहचान करने और घनिष्ठ सहयोग बनाने का अवसर मिलता है।"
भारत ने अफगानिस्तान में छह नई स्वास्थ्य परियोजनाओं की घोषणा की। इसके अलावा, "20 एंबुलेंस का उपहार सद्भावना का एक और संकेत है और मैं प्रतीकात्मक कदम के रूप में उनमें पांच आपको खुद सौंपना चाहूंगा। भारत अफगान अस्पतालों को एमआरआइ और सीटी स्कैन मशीनें भी प्रदान करेगा और टीकाकरण तथा कैंसर की दवाइयां भी पहुंचाएगा। हमने यूएनओडीसी के जरिए दवा सामग्री भी प्रदान की है और आगे भी ऐसा करने के लिए तैयार हैं।"
तालिबान ने अफगानिस्तान में खनन के अवसरों का पता लगाने के लिए भारतीय कंपनियों को आमंत्रित करके भारत की उदारता का बदला चुकाया। जयशंकर ने कहा कि इस कदम की "बहुत सराहना" की जाती है। कहा जाता है कि अफगानिस्तान में तांबा, लोहा, सोना, लिथियम और रेयर अर्थ जैसे खनिजों का विशाल भंडार है, जिनकी अनुमानित कीमत खरबों डॉलर है। उनमें से अधिकांश का अभी तक दोहन नहीं हुआ है। चीन के पास जरूर पहले से ही एक बड़ी तांबा खनन परियोजना है।
हालांकि अफगान छात्रों के लिए अच्छी खबर यह है कि नई दिल्ली अब उन्हें और वीजा देने को तैयार है। तालिबान के सत्ता में आने के फौरन बाद, भारत ने नए वीजा जारी करना बंद कर दिया था और छात्रों को पुराने वीजा का विस्तार कराने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। भारतीय विश्वविद्यालयों में अफगान छात्रों के लिए ज्यादा अवसर उपलब्ध होंगे, साथ ही व्यवसायियों और चिकित्सा सहायता चाहने वालों को भी भारतीय वीजा आसानी से मिल सकेगा।
तालिबान सरकार ने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की, तो नई दिल्ली ने काबुल का आभार व्यक्त करने का अवसर नहीं गंवाया। जयशंकर ने पहली बार मुत्तकी से फोन पर बात की। हाल ही में आए विनाशकारी भूकंप के बाद भारत ने तालिबान को मानवीय सहायता का प्रवाह जारी करने का भी ध्यान रखा है।
साउथ ब्लॉक में पुनर्विचार का कारण यह तथ्य बना कि अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से भारत के धुर विरोधी पाकिस्तान के साथ उसके संबंध तेजी से बिगड़े हैं। व्यावहारिक राजनीति की तलाश में तालिबान के महिलाओं को उनके अधिकार देने से इनकार करने के रवैए को अनदेखा कर दिया गया है।
नई दिल्ली के तालिबान से पेंग बढ़ाने में रणनीतिक गणनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन और पाकिस्तान की "दोस्ती" काफी हद तक इसकी वजह है।
यह भी तथ्य है कि पिछले 20 वर्षों के दौरान हामिद करजई और बाद में अशरफ गनी, दोनों सरकारों के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे रहे। असल में, काबुल और दिल्ली ने दोनों देशों में पाकिस्तान के आतंकवाद को शह देने के खिलाफ नियमित रूप से एकजुट होकर आवाज उठाई। जयशंकर ने मुत्तकी से बातचीत के दौरान कहा, "हमें आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों का मुकाबला करने के प्रयासों में समन्वय करना चाहिए। हम भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति आपकी संवेदनशीलता की सराहना करते हैं। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद हमारे साथ आपकी एकजुटता उल्लेखनीय थी।"
लंबे समय तक, यहां तक कि 2019 में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता होने और कई देशों के दोहा में अपने प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने के बाद भी, भारत ने संयम बनाए रखा और मान्यता देने से बचता रहा। पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के साथ अच्छे संबंध होने के कारण, भारत उनके खिलाफ नहीं जाना चाहता था। यहां तक कि अपने घनिष्ठ मित्र रूस के भारत से तालिबान के साथ बातचीत शुरू करने के अनुरोध के बावजूद नई दिल्ली उससे दूर रहा। हालांकि, अब यह सब अतीत की बात हो गई है। अब तो अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ संबंध प्रगाढ़ करने पर जोर है।