हिंदी सिनेमा को ओटीटी प्लेटफॉर्म ने नया आयाम दिया है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आने से नई कहानियों को बेहतर मंच मिला है, जिससे भारतीय सिनेमा समृद्ध हुआ है। बंगाली फिल्मों में बड़ा कद रखने वाले अनिरुद्ध रॉय चौधरी ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्होंने ओटीटी प्लेटफॉर्म का शानदार लाभ उठाया है। हिंदी में उन्होंने पिंक और लॉस्ट जैसी फिल्मों से अपनी प्रतिभा को साबित किया है। हाल ही में अनिरुद्ध की ओटीटी प्लेटफॉर्म जी5 पर नई फिल्म कड़क सिंह आ रही है। इसमें मुख्य भूमिका पंकज त्रिपाठी और संजना सांघी ने निभाई है। अनिरुद्ध रॉय चौधरी से उनके फिल्मी सफर और फिल्म कड़क सिंह के बारे में आउटलुक के गिरिधर झा ने बातचीत की। संपादित अंश :
कड़क सिंह गोवा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की गई। दर्शकों का रुझान कैसा रहा?
दर्शकों की प्रतिक्रिया असाधारण रही। फिल्म प्रदर्शन के दौरान पूरा हॉल ऊर्जा से भर उठा। मैं दर्शकों की आंखों से फिल्म देखता हूं। हॉल में मैंने दर्शकों की नम आंखें देखीं। इससे मुझे विश्वास हो गया कि फिल्म असरदार साबित हुई है। इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया एक बड़ा मंच है, जहां देश दुनिया के बड़े सिनेमा प्रेमी मौजूद रहते हैं। उनकी मौजूदगी में फिल्म का प्रदर्शित होना और उसे सराहना मिलना बड़ी उपलब्धि है। यह मेरी पूरी टीम की जीत है।
फिल्म की कहानी 'रेट्रोग्रेड एम्नेसिया' पर आधारित है।'रेट्रोग्रेड एम्नेसिया' के कॉन्सेप्ट को फिल्म में किस तरह शामिल किया गया?
फिल्म के किरदार कड़क सिंह की डिमांड है कि वह कुछ चीजें भूल जाता है। मगर उसकी याददाश्त किस तरह जाती है, यह दर्शाना चुनौती थी। इस सीक्वेंस को फिल्माने के लिए हमारी टीम ने बहुत सोच-विचार किया। जब हम स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे, तब हमने मनोचिकित्सक से भी सलाह ली। हम चाहते थे कि घटनाक्रम असलियत के करीब लगे। कुछ भी अलग या असत्य न लगे। इसलिए हमने काफी रिसर्च के बाद, कहानी में 'रेट्रोग्रेड एम्नेसिया' का एंगल जोड़ा। इससे फिल्म की कहानी और रोचक हो गई और कहानी रियलिस्टिक भी लगने लगी।
आपकी फिल्मों से ऐसा लगता है कि आप अभिनेता को ध्यान में रखकर ही फिल्म के किरदार गढ़ते हैं। जैसे, कड़क सिंह को देखकर लगता है कि यह विशेष रूप से पंकज त्रिपाठी को जेहन में रखकर लिखी गई हो। यह बात कितनी ठीक है?
दोनों ही बातें सही हैं। कई बार स्क्रिप्ट लिखने के बाद, कहानी की जरूरत के हिसाब से अभिनेता का चयन किया जाता है। इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि हम किसी अभिनेता से इतने प्रभावित होते हैं कि उसे ध्यान में रखकर ही किरदार गढ़ते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में कास्टिंग डायरेक्टर का बड़ा योगदान रहता है। कास्टिंग डायरेक्टर इतनी खूबसूरती से कलाकारों का चयन करते हैं कि दर्शकों को यह यकीन हो जाता है कि यह किरदार अमुक अभिनेता के लिए ही लिखा गया है। जब ऐसा होता है तो यह लेखक, अभिनेता और कास्टिंग डायरेक्टर तीनों की ही जीत होती है।
फिल्म में पिता और पुत्री का संबंध बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है। इस बारे में बताइए?
जब इस फिल्म की कहानी बुनी गई, तो शुरुआत में यह एक पिता और पुत्री के संबंध पर आधारित कहानी थी। बाद में स्क्रिप्ट में कई बदलाव किए गए। इसमें ' रेट्रोग्रेड एम्नेसिया' का एंगल जोड़ा गया। फिल्म की कहानी में कई परतें जुड़ती गईं, जिससे रहस्य और रोमांच बढ़ा। यह एक पारिवारिक फिल्म है। इसमें बहुत सरल ढंग से पिता और पुत्री के रिश्ते को दिखाया गया है। मुझे विश्वास है कि दर्शक फिल्म से भावनात्मक जुड़ाव महसूस करेंगे।
आपकी पिछली फिल्म लॉस्ट ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई थी। आपकी आगामी फिल्म कड़क सिंह भी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही रिलीज हुई। एक फिल्मकार के तौर पर बताइए कि क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्म रिलीज करने में कोई विशेष लाभ है?
हर माध्यम के साथ हानि-लाभ जुड़े होते हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म के साथ भी ऐसा ही है। सिनेमाघर में फिल्म देखने का अपना ही मजा है। उसकी जगह कोई नहीं ले सकता। लेकिन कोविड के दौरान सिनेमाघर में फिल्म रिलीज करना संभव नहीं था। इसलिए ओटीटी प्लेटफॉर्म का बाजार फैला। आज ओटीटी प्लेटफॉर्म के मंच से भारतीय फिल्में बहुत बड़ी ऑडियंस तक पहुंच रही हैं। दुनियाभर के दर्शक भारतीय कहानियों का रस ले रहे हैं। यही तो हर फिल्मकार की चाहत होती है। ओटीटी प्लेटफॉर्म ने छोटे बजट की फिल्मों को अवसर दिया है। उन्हें अब दर्शक मिल रहे हैं। यह खुशी की बात है। तय है कि इससे सिनेमा आगे बढ़ेगा और फिल्मकारों को मजबूती मिलेगी।
फिल्म कड़क सिंह के मुख्य कलाकारों के प्रदर्शन को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
सभी ने शानदार काम किया है। मैं सभी कलाकारों के प्रदर्शन से संतुष्ट हूं। फिल्म की तैयारी के दौरान जब वर्कशॉप की जाती थी, तो हम फिल्म से इतर जीवन पर बातचीत करते थे। हम एक दूसरे को जानने समझने का प्रयास करते थे। मेरा मानना है कि यदि एक टीम के रूप में आपका संबंध मजबूत होगा, आप एक दूसरे को बेहतर ढंग से जानेंगे तो आपका काम उत्कृष्ट होगा। फिल्म कड़क सिंह के कलाकार एक दूसरे से इस तरह घुल मिल गए कि उनकी केमेस्ट्री स्क्रीन पर अच्छी तरह दिखाई दी। पार्वती से लेकर जया ने अपना अनुभव निचोड़ दिया। संजना को लेकर फिक्रमंद था। लेकिन उसने इतनी कम उम्र में जिस तरह की परिपक्वता दिखाई है, वह असाधारण है।
फिल्मकार के तौर पर आप हिंदी और बांग्ला सिनेमा में क्या अंतर पाते हैं?
सिनेमा की भाषा अलग होती है। चाहे फिर वह हिंदी हो या बांग्ला। मैं मानता हूं कि सिनेमा केवल सिनेमा होता है। इसलिए एक फिल्मकार के तौर पर मुझे भाषा को लेकर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। मैं जिस शिद्दत और मेहनत, सोच और विचार से बांग्ला सिनेमा बनाता हूं, वही मानसिकता हिंदी सिनेमा बनाते हुए भी रहती है। मेरी कोशिश होती है कि प्रभावशाली ढंग से ऐसी कहानी कह सकूं, जिसे दर्शक सराहें और बिना ऊब के देख सकें। इतना जरूर है कि बांग्ला भाषा पर पकड़ होने के कारण मेरा काम उस भाषा में आसान हो जाता है। मैं धीरे-धीरे हिंदी भी सीख रहा हूं। एक बात है, जो बांग्ला सिनेमा और हिंदी सिनेमा को अलग करती है। यह बात कलाकारों की है। हिंदी में कलाकारों की विविधता है। एक तरफ जहां बांग्ला सिनेमा में अधिकांश कलाकार बंगाली होते हैं, वहीं दूसरी तरफ हिंदी सिनेमा में यूपी, बिहार, मुंबई, दिल्ली के कलाकार होते हैं। इस कारण किरदारों में भी विविधता नजर आती है।