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संगीत/इंटरव्यू/अनुष्का शंकर ‘मै लौट रही हूं, मेरे पिता की विरासत बेहद खास है’

महामारी के कारण लंबे अंतराल के बाद इस वापसी को लेकर मैं बेहद उत्साहित हूं
अनुष्का शंकर

यह महज संयोग नहीं है कि तीन साल बाद इस दिसंबर में भारत में छह शो करने आ रहीं अनुष्का के पिता महान सितारवादक रविशंकर की इसी दौरान दसवीं बरसी पड़ रही है। महामारी के बाद अपने मूल देश में प्रदर्शन करने के लिए इस 41 वर्षीय ग्रैमी-अवार्ड नामांकित संगीतकार और सितारवादक का दौरा 11 दिसंबर को बेंगलूरू के गुड शेफर्ड ऑडिटोरियम से शुरू होगा। फिर 16 दिसंबर को मुंबई के षणमुखानंद ऑडिटोरियम में एक संगीत कार्यक्रम होगा। दौरे का समापन 18 दिसंबर को दिल्ली में सिरीफोर्ट ऑडिटोरियम में प्रस्तुति के साथ होगा। उन्होंने आउटलुक के लिए निवेदिता के साथ बातचीत में अपने दौरे की योजनाओं, अपने नए एल्बम ‘बिटवीन अस’ और यकीनन अपने पिता के बारे में बातचीत की। संपादित अंश:

दिसंबर में आपकी भारत में वापसी को लेकर काफी उत्सुकता है। इस यात्रा के मकसद और तैयारी के बारे में बताना चाहेंगी?

जाहिर है, मेरी यात्रा का मकसद परफॉर्म करना और निजी भी है। महामारी के कारण लंबे अंतराल के बाद इस वापसी को लेकर मैं बेहद उत्साहित हूं और कई साल बाद मैं अपने बच्चों को भी यहां लाऊंगी, इसे लेकर भी मैं उत्साहित हूं। भारत में परफॉर्म करना मुझे पसंद है। घर (भारत) में बजाना हमेशा से मेरे लिए पसंदीदा अनुभव रहा है। इस बार भारत में अपना नया संगीत लेकर आते हुए मैं बहुत आनंदित हूं।

तीन साल के बाद इस दिसंबर में पिता की दसवीं बरसी के दौरान भारत में छह शो करना कई मायनों में भावनात्मक होगा। इस बारे में कुछ बताएंगी? साथ ही भारत आने की अपनी आखिरी यादों के बारे में भी?

मैं पहले से ही कल्पना किए बैठी हूं कि कई मायनों में यह यात्रा मेरे लिए बहुत भावुकतापूर्ण होगी। मैं लंबे समय बाद लौट रही हूं। यह मेरे पिता की दसवीं बरसी तो है ही, साथ ही उसी हफ्ते ज्योति सिंह पांडेय (निर्भया) पर हमले की भी दसवीं बरसी पड़ रही है, जब मैं अपना शो करने वाली हूं। यह अजीब विडंबना है कि मैं उन दो घटनाओं की एक साथ पड़ रही बरसी के दौरान वापस आ रही हूं जिन्होंने मुझे बहुत गहरे तक प्रभावित किया था। इसके बावजूद, अब समय बदल चुका है और मेरे लिए यह सब कुछ नया होगा। बड़ी बात यह है कि वापस आना, अपने तमाम प्रियजनों से मिलना और परफॉर्म करना मेरे लिए एक सकारात्मक अनुभव साबित होगा।

बिटवीन अस...को शानदार प्रतिक्रिया मिल रही है। भारत में इसे परफॉर्म करना आपके लिए एक अलग एहसास होगा चूंकि यह आपका देश है। आपकी क्या उम्मीदें हैं इस दौरे से?

इस दौरे पर मैं ‘बिटवीन अस’ परफॉर्म नहीं कर रही हूं क्योंकि यह एक आर्केस्ट्रा शो है और आजकल मैं इसी में व्यस्त हूं। हां, एक दिन जरूर इसे मैं भारत में बजाऊंगी। इस शो पर मुझे गर्व है। इसे करते हुए मुझे 30 साल हो रहे हैं लेकिन आज तक भारत में मैं अपना कोई भी आर्केस्ट्रा शो नहीं ला पाई हूं। यह तो प्रायोजकों पर निर्भर करता है कि किस दिन वे मुझे ऑर्केस्ट्रा के साथ लाने को तैयार हो जाएं। मुझे अच्छा ही लगेगा। फिलहाल यहां मैं एक अलग शो करने जा रही हूं।

इस शो के दो हिस्से होंगे। पहला हिस्सा बेहतरीन इलेक्ट्रॉनिक संगीतकार ‘गोल्ड पांडा’ के साथ जुगलबंदी का होगा जिसमें आपको मेरे पिता के संगीत की एक झलक दिखलाई देगी। हम कुछ साल पहले भी साथ काम कर चुके हैं। यह दरअसल अपने पिता की यादों और उनके काम के साथ जुड़ने का मेरा एक खास तरीका है और मुझे लगता है कि श्रोता वास्तव में इसका आनंद ले सकेंगे। दूसरा हिस्सा मैं कुछ असाधारण संगीतकारों के साथ पेश करूंगी, जैसे अरुण घोष, सारथी कोरवार, टॉम फार्मर और प्रसन्ना थेवराजा। इन संगीतकारों के एकल वादन के अलावा मैं अपने क्रॉस एल्बम से भी कुछ बजा रही हूं, लेकिन उसकी व्यवस्था बिलकुल अलग होगी। इसमें बहुत सारे नए और रोमांचक सोलो भी हैं।

बिटवीन असके पीछे क्या विचार था? इसकी अवधारणा, योजना से लेकर अंतिम चरण तक इसे पहुंचाने के बारे में बताना चाहेंगी?

‘बिटवीन अस’ मेरे संगीत की एक सामूहिक प्रस्तुति है जिसमें कुछ ऐसी बंदिशें हैं जो अब तक सामने नहीं आई हैं जबकि कुछ और पुरानी बंदिशों के नए संस्करण शामिल हैं। कई साल से लाइव शो में मुझे इसे बजाना पसंद है और मैं वास्तव में लोगों के साथ इसे साझा करना चाहती हूं। महामारी के दौरान लाइव शो का न हो पाना मुझे अखर रहा था। उसी दौरान मैं अपनी कुछ लाइव रिकॉर्डिंग देख रही थी और वहीं से इसका विचार आया। वह 2018 में नीदरलैंड में किए एक लाइव शो की एक खूबसूरत रिकॉर्डिंग थी। तब मैंने सोचा कि लाइव शो न कर पाने की स्थिति में लोगों के साथ इसे साझा करना अच्छा होगा। वास्तव में मैं बहुत खुश और गौरवान्वित महसूस करती हूं कि ऐसा हो पाया क्योंकि यह बहुत अच्छा विचार था और इसे अच्छी तरह से रिकॉर्ड किया गया था। मैंने कंप्यूटर पर बैठे-बैठे ही यह कर डाला था, इसलिए भी इसे सामने लाना वास्तव में बहुत शानदार एहसास है।

इस नए एल्बम में आपके नियमित सहयोगी और हैंग (हैंडपैन) वादन के उस्ताद मनु डेलागो के साथ हॉलैंड का ऑर्केस्ट्रा मेट्रोपोल ऑर्केस्ट भी शामिल है, जिसे जूलेस बकली ने निर्देशित किया है। इस सामूहिक उद्यम के बारे में कुछ बताएं।

हां, मनु डेलागो मेरे करियर के सबसे खास सहयोगियों में से एक हैं। हमने पहली बार 2011 में साथ काम करना शुरू किया था। हमारा पहला साझा काम ‘लास्य’ के नाम से आया था और यह साथ मेरे एल्बम ‘ट्रेसेज ऑफ यू’ तक कायम रहा। हमने मिलकर ‘माया’ के नाम से भी एक बंदिश तैयार की थी। इसके बाद ‘ट्रेसेज ऑफ यू’ के प्रदर्शन दौरे पर वे मेरे साथ ड्रमर और परकशनिस्ट के रूप में जुड़े। दो साल से ज्यादा समय तक हमने दुनिया भर में एक साथ दौरा किया। लगातार साथ बजाने के चलते हमारा पेशेवर सहयोग और मजबूत हुआ। दौरे से फुर्सत पाकर जब नया एल्बम लिखने का समय मुझे मिला, तो सबसे पहले वही मुझे याद आए। मुझे उनके और उनके वाद्ययंत्रों के साथ बजाना इतना पसंद आया था क्योंकि मैंने महसूस किया कि सितार के साथ हैंग की जुगलबंदी बहुत खास होती है, जो जादुई प्रभाव पैदा करती है। इसीलिए हमने एक साथ ‘लैंड ऑफ गोल्ड’ तैयार किया। कई साल की मेहनत के बाद हमारे पास एक साझा संगीत आज तैयार है जिसमें हमारे अपने-अपने यंत्र भी शामिल हैं। इसे जब आर्केस्ट्रा में ढालने का समय आया, तो मैंने सोचा कि समूह वादन के माध्यम से अपनी जुगलबंदी को प्रदर्शित करना बेहतर होगा।

इसलिए मेरे और जूलेस बकली के साथ इस एल्बम के केंद्र में वे हैं। बेशक, जूलेस इस समूह के निर्देशक हैं। ऑर्केस्ट्रा संगीत को आधुनिक बनाने और सबकी समझ तक पहुंचाने के मामले में न केवल वे जीनियस हैं बल्कि वे बेहद उच्चस्तरीय कलाकार भी हैं। इसलिए उनका साथ पाकर मैं रोमांचित और सम्मानित हूं।

नए एलपी के साथ आप अपने संगीत को कहां पाती हैं?

मैं हर प्रोजेक्ट से रोज सीख रही हूं। अभी तो बहुत कुछ करना बाकी है।