बचपन में गांव-गांव रुई बेचने से लेकर फिल्मी दुनिया की सबसे बड़ी महफिलों में से एक कान फिल्म फेस्टिवल तक का सफर तय करना अशोक पाठक के लिए आसान नहीं रहा है। 30 फिल्मों में काम करने के बाद भी अशोक को पहचान की तलाश थी। लेकिन पंचायत सीरीज में ‘देख रहा है न विनोद’ जैसे छोटे से सीन ने उन्हें रातोरात स्टार बना दिया। उनसे खास बातचीत के संपादित अंश:
पंचायत की वजह से अब सभी आपको पहचानने लगे हैं, लेकिन इससे पहले भी आपने कई फिल्मों में काम किया है, उसके बारे में बताएं?
मैं 2011 में मुंबई पहुंचा था। सपनों की नगरी में आए मुझे करीब 13 साल हो गए हैं। इस दौरान मैंने करीब 30 फिल्मों में काम किया। मेरी पहली फिल्म शूद्र-द राइज थी, जिसमें मुझे 4 मिनट का रोल मिला था। इसके बाद मैंने बिट्टू बॉस, फुकरे-2 आदि फिल्मों में भी काम किया। फिल्म समीक्षक मेरे अभिनय की सराहना करते थे, लेकिन फिर भी मुझे बड़े रोल नहीं मिले। पंचायत के बाद मैं लोगों की नजरों में आया और मेरी जिंदगी बदल गई।
क्या आप शुरू से ही सिनेमा में करियर बनाना चाहते थे?
मेरा जन्म हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ। मेरे पिता वहां हेल्पर का काम करते थे। हालत ऐसी थी कि अगर मेरे पिता रोजाना दो-चार सौ रुपये नहीं कमाते थे, तो घर में खाने की किल्लत हो जाती थी। मैंने खुद अपने चाचा के साथ रुई बेचा करता था। बाद में जब मेरे पिता फरीदाबाद छोड़कर हिसार आ गए तो परिवार की हालत थोड़ी सुधरी। शुरू में मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता था। किसी तरह मैंने कॉलेज में एडमिशन लिया और वहीं से मेरी जिंदगी बदल गई। मैंने कॉलेज में थिएटर सीखा और आज मैं जो कुछ भी हूं, उसमें उसका बहुत योगदान है।
क्या आपको लगता था कि पंचायत में आपने जो किरदार निभाया है, उससे एक झटके में आप लोकप्रिय बन जाएंगे?
पंचायत ने मेरी जिंदगी बदल दी, लेकिन इसमें अभिनय करते हुए मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसके जरिए मुझे इतना प्यार मिलेगा। शुरू में मुझे लगा कि मैं सिर्फ असिस्टेंट के तौर पर काम कर रहा हूं। लेकिन जब आप अपने काम के प्रति ईमानदार होते हैं तो एक दिन आपको सराहना जरूर मिलती है।
आपको परिवार से कितना सहयोग मिला?
असफलता में कोई आपके साथ नहीं होता और सफलता में भीड़ आपके साथ होती है। जिसने भी यह कहा है, वह सही है। मुझे भी ऐसा अनुभव हुआ है, लेकिन मेरे परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया है। मेरे पिता को पता था कि अभिनय के अलावा मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। आज अभिनय की वजह से ही मैंने मुंबई में घर खरीदा है। हिसार में मैंने अपने कच्चे घर को पक्का और बड़ा बनाया है। घर में खाने-पीने और अच्छे कपड़ों की कोई कमी नहीं है।
आपकी और राधिका आप्टे की फिल्म सिस्टर मिडनाइट कान के लिए चुनी गई। बचपन में रुई बेचना और जवानी में कान में रेड कार्पेट पर चलना, कैसा अनुभव रहा?
पूरा अनुभव जादुई और सपने जैसा था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं वहां पहुंच पाऊंगा। जब मुझे फोन आया कि आपकी फिल्म का चयन हो गया है, तो मेरी आश्चर्य की सीमा नहीं ही। सबसे बड़ी बात यह है कि हमारी फिल्म के लिए कई मिनट तक तालियां बजती रहीं। समारोह के बाद जब हम डिनर पर गए, तो दुनिया के कई बड़े निर्देशकों ने व्यक्तिगत रूप से अभिनय की तारीफ की।
बॉलीवुड से पहले आपने पंजाबी फिल्मों में काम किया है। वहां आप किन बड़े अभिनेताओं से मिले और क्या सीखा?
मैंने पंजाबी फिल्मों में बहुत कुछ सीखा और मुझे वहां बहुत सम्मान भी मिला। वेख बारात चलें में मेरा एक सीन टिकटॉक पर खूब वायरल हुआ था। मैंने वहां लगभग सभी बड़े सितारों के साथ काम किया है। मैंने सबसे ज्यादा बीनू ढिल्लों, रंजीत बावा, राजिंदर गिल, तरसेम जस्सर, शैरी मान के साथ काम किया है। पंजाबी इंडस्ट्री की सबसे अच्छी बात यह है कि आपको दो महीने पहले स्क्रिप्ट याद करने की जरूरत नहीं पड़ती। ज्यादातर स्क्रिप्ट सेट पर ही बदली और बनाई जाती हैं। मैंने पंजाबी इंडस्ट्री में ही ऑन-डिमांड एक्टिंग की कला सीखी।
सिनेमा में आपके आदर्श कौन हैं?
इरफान खान सर मेरे दिल के बहुत करीब हैं। मैं उनके साथ काम करना चाहता था। मुझे उनके साथ एक फिल्म में काम करने का मौका भी मिला, लेकिन दुर्भाग्य से उनका निधन हो गया। फिलहाल, पंकज त्रिपाठी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी सर की एक्टिंग मुझे बहुत पसंद है।
अपनी जिंदगी की कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में बताइए, जिन्हें देखकर आपने बहुत कुछ सीखा हो?
पहले हम सिर्फ बॉलीवुड की फिल्में ही देखते थे। मुझे इरफान खान की फिल्में बहुत पसंद थीं। लेकिन जब मैं एफटीआई में फिल्म ओरिएंटेशन कोर्स कर रहा था, तब मैंने द बाइसिकल थीफ नाम की एक फिल्म देखी, जिसने मुझे काफी प्रभावित किया। मुझे माजिद मजीदी की फिल्में सबसे ज्यादा पसंद हैं। उन्हें देखने के बाद लगता है कि बड़ा चेहरा नहीं, बल्कि दमदार कहानियां लोगों को बांधे रखती हैं और गहरा असर छोड़ती हैं।
आप उन नए कलाकारों से क्या कहना चाहेंगे जो अभी भी इस इंडस्ट्री में अपना नाम बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं?
नए लड़कों को अपने काम के प्रति ईमानदार होना चाहिए। कब और कैसे सफलता मिलेगी ये नहीं सोचना है। आप मेहनत से काम करते जाइए, निश्चित रूप से आप एक दिन सफल होंगे।