पीवी सिंधु के लिए बीते कुछ दिन असामान्य गुजरे। बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन ने कोविड-19 महामारी के कारण इंडिया, मलेशिया और सिंगापुर ओपन टूर्नामेंट रद्द कर दिए, तो सिंधु के दक्षिण कोरियाई कोच पार्क ताई सांग ने भी उन्हें एक हफ्ते की छुट्टी दे दी। 41 साल के पार्क 2002 में एशियन गेम्स के चैंपियन रह चुके हैं। वे सितंबर 2019 में उस समय सिंधु के कोच बने, जब एक और कोरियाई कोच किम जी ह्यून ने अचानक भारतीय बैडमिंटन को छोड़ दिया। किम की कोचिंग के समय ही सिंधु ने 25 अगस्त 2019 को स्विट्जरलैंड में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी। सिंधु एकमात्र भारतीय हैं जिन्होंने जुलाई-अगस्त में होने वाले टोक्यो ओलंपिक के लिए वुमेंस सिंगल्स इवेंट में क्वालिफाइ किया है। उन्होंने रियो 2016 ओलंपिक में रजत पदक जीता था, जहां फाइनल में वे स्पेन की कैरोलिना मारिन से हार गई थीं। सिंधु 5 जुलाई को 26 साल की हो जाएंगी। अभी दुनिया में उनकी रैंकिंग सातवीं है। सौमित्र बोस के साथ उनके साक्षात्कार के मुख्य अंशः-
महामारी ने खेल का अंतरराष्ट्रीय कैलेंडर तहस-नहस कर दिया है। ऐसे में ओलंपिक के लिए तैयारियों पर फोकस करना कितना मुश्किल है?
टूर्नामेंट रद्द होने पर हम कुछ नहीं कर सकते। इसने पूरी दुनिया के खिलाड़ियों को प्रभावित किया है। हालात वास्तव में काफी भयावह हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि टूर्नामेंट रद्द होने से प्रशिक्षण पर कोई असर होगा। 2015-16 के विपरीत 2020-21 में महामारी के चलते हमें लंबा ब्रेक मिला। रियो गेम्स से पहले मैंने 22 टूर्नामेंट खेले थे, तब परिस्थितियां अलग थीं। फ्रैक्चर के कारण छह महीने खेल से दूर रही थी और मुझे ओलंपिक के लिए क्वालिफाइ करना था। लेकिन जनवरी 2020 से मार्च 2021 तक मैंने सिर्फ आठ टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है। पर ठीक है... हालात किसी के भी काबू में नहीं है।
अगर ओलंपिक खेल भी रद्द होते हैं तो आपको निराशा होगी?
हम सब ओलंपिक का इंतजार कर रहे हैं। पिछले साल ओलंपिक शुरू होने से दो महीने पहले स्थगित किया गया। यह चार साल में एक बार होता है। हम टोक्यो ओलंपिक के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। यह रद्द हुआ तो हमें बहुत दुख होगा। लेकिन खिलाड़ियों और खेल से जुड़े दूसरे लोगों की सुरक्षा भी जरूरी है। भारत में भी स्थिति खराब है। जापान को भी अपने नागरिकों की सुरक्षा की चिंता है। मेरे लिए जीवन सर्वोपरि है। अगर जीवन ही न रहा तो खेल कैसे होगा? फिलहाल जोखिम बहुत ज्यादा है।
क्या ओलंपिक स्थगित होने से आपको तैयारी में मदद मिली? 2020-21 में आपने आठ टूर्नामेंट खेले, लेकिन जीत नहीं मिली।
मैं 2020 में ओलंपिक के लिए 100 फीसदी तैयार थी। हां, 2020-21 मेरे लिए कुछ अलग रहा है। लेकिन मैं उससे परेशान नहीं हूं। जनवरी में थाईलैंड ओपन मेरे लिए अच्छा नहीं रहा (पहले राउंड में ही हार गईं), मार्च में स्विस ओपन बेहतर था और मैं फाइनल तक पहुंची। दुर्भाग्यवश ऑल इंग्लैंड ओपन के सेमीफाइनल में हार गई। मुझे लगता है कि गेम और स्किल, दोनों लिहाज से बेहतर हुई हूं, कई गलतियां सुधारी हैं और कोच के साथ भी सहज महसूस कर रही हूं।
कैरोलिना मानसिक रूप से मजबूत हैं, वे काफी आक्रामक खेल खेलती हैं और बहुत चीखती भी हैं। इससे दूसरा खिलाड़ी परेशान होता है
टोक्यो ओलंपिक में अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों की पहचान कर ली है?
शीर्ष 10 खिलाड़ियों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं होता है। फिर भी ताइ झू, कैरोलिना मारिन, नोजोमी ओकुहारा और राचानोक इंतानोन ऐसी खिलाड़ी हैं जिनके खिलाफ आपको बहुत मेहनत करनी पड़ती है। ये सभी खिलाड़ी मजबूत रणनीति के साथ आती हैं। माइंड गेम में भी वे काफी स्मार्ट होती हैं। उदाहरण के लिए, कैरोलिना मानसिक रूप से बहुत मजबूत हैं, वे काफी आक्रामक खेल खेलती हैं और बहुत चीखती भी हैं। इससे दूसरा खिलाड़ी परेशान होता है। राचानोक आपकी लय बिगाड़ने के लिए ब्रेक ले लेती हैं। ये खिलाड़ी किसी भी कीमत पर जीतने की सोच के साथ आती हैं। ऐसा नहीं कि मैं माइंड गेम नहीं खेलती, पर मेरे पिता कहते हैं कि कोर्ट में मेरा व्यवहार काफी सधा हुआ रहता है। आखिरकार मुझे शांत रहकर पॉइंट जीतने होते हैं।
रियो में रजत पदक जीतने से अब तक तीन कोच हो गए। क्या यह बहुत ज्यादा है?
दो कोच, मूल्यो हांड्यो और किम ने महत्वपूर्ण मौके पर छोड़ा। भारतीय बैडमिंटन को छोड़ने के उनके निजी कारण थे, लेकिन खिलाड़ी होने के नाते हमें ऐसी बातों के लिए तैयार रहना चाहिए। मूल्यो (इंडोनेशियाई मूल के इस खिलाड़ी की कोचिंग में ही तौफीक हिदायत ने 2004 में एथेंस ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था) ने मेरे अलावा एच.एस. प्रणय और किदांबी श्रीनाथ जैसे खिलाड़ियों पर गहरा असर डाला। 2018 वर्ल्ड चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने में मूल्यो का काफी योगदान मानती हूं। वे बहुत ही अच्छे कोच थे।
किम का अचानक जाना झटका था?
किम उस समय मेरी कोच थीं जब 2019 में मैंने स्विट्जरलैंड में वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती थी। हर मौके पर कहने के लिए उनके पास कुछ न कुछ होता था। वे मूल्यो से अलग हैं।
कोच किम ने आपको ‘अनस्मार्ट’ खिलाड़ी कहा था...
मेरे लिए यह चौंकाने वाला था, क्योंकि जब तक हम साथ थे, किम ने कभी ऐसा नहीं कहा। अगर उन्होंने मेरे सामने यह बात कही होती तो मैं उसे मान लेती, लेकिन भारत से जाने के बाद इस तरह की टिप्पणी करना शायद ठीक नहीं है। मुझे अब भी लगता है कि अनुवाद में कुछ गलती हुई है, क्योंकि उन्होंने कोरियाई भाषा में अपनी बात कही थी। स्विट्जरलैंड वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेरे खेल की उन्होंने बड़ी तारीफ की थी।
मौजूदा कोच पार्क के साथ आपके समीकरण कैसे हैं?
खिलाड़ी और कोच के बीच जो बंधन होना चाहिए, वह पार्क के साथ बहुत अच्छा है। वे मैच के दौरान आपका दिमाग पढ़ लेते हैं। जब मैं दबाव या मुश्किल परिस्थितियों में होती हूं, तो पार्क उससे निकलने का रास्ता बताते हैं। उन्हें मालूम है कि कब हस्तक्षेप करना चाहिए। विरोधी खिलाड़ी के बारे में उनका विश्लेषण भी बहुत उम्दा होता है। मुझे लगता है कि पार्क ने अच्छी तरह से किम की जगह ले ली है।
अपने सभी कोच में आप गोपीचंद को कहां रखना चाहेंगी?
गोपी सर 2016 में मेरे कोच थे और वह समय बहुत अच्छा था। हर कोच की अलग-अलग खासियत रही है। सबके सोचने का तरीका अलग है। एक खिलाड़ी के रूप में मेरे मानसिक विकास में सबने अहम भूमिका निभाई है। अब जब पार्क एक साल से भी ज्यादा समय से मेरे कोच हैं तो मुझे गोपी सर या किसी और की कमी महसूस नहीं होती। टोक्यो में कोर्ट के किनारे पार्क को देखना बहुत अच्छा लगेगा।
क्या यह कहना गलत होगा कि गोपीचंद वास्तव में आपके बैडमिंटन गुरु हैं?
गोपी सर मेरी यात्रा का हिस्सा रहे हैं, लेकिन वे अकेले नहीं हैं। मैंने अभी तक जो कुछ हासिल किया है, उसमें कई लोगों ने मदद की है। शुरुआत मेरे पिता से होती है जो मुझे रेलवे ग्राउंड लेकर जाते थे ताकि वहां दूसरे खिलाड़ियों के साथ खेल सकूं। मेरे पहले कोच महबूब अली थे। उसके बाद लाल बहादुर शास्त्री स्टेडियम में आसिफ सर थे। मैं अनेक लोगों की शुक्रगुजार हूं। यह सच है कि गोपी सर ने मुझे प्रशिक्षित करने और आगे बढ़ने में मदद की, लेकिन उनके नीचे और भी कोच थे। किसी एक व्यक्ति को सारा श्रेय देना ठीक नहीं होगा। मैं यही कहूंगी कि मैं सबकी बेटी हूं।
आपके पिता (पूर्व अंतरराष्ट्रीय वॉलीबॉल खिलाड़ी रमन्ना) ने आपके करियर में बड़ी भूमिका निभाई है...
मुझे लगता है कि मेरे करियर में वे मेरी तीसरी आंख हैं। वे मुझे सलाह देते रहते हैं। उनके टिप्स कभी खत्म नहीं होते। कोर्ट के बाहर से अगर कोई आपके खेल को बारीकी से देखे तो उसका बड़ा लाभ मिलता है।
आप भारत की सबसे महंगी महिला एथलीट हैं। आपकी ब्रांड वैल्यू 2.16 करोड़ डॉलर है। क्या कभी आपको अपनी छवि का दबाव महसूस हुआ?
जब मैंने खेलना शुरू किया तो माता-पिता ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन विश्व चैंपियन बनूंगी या ओलंपिक में मेडल जीतूंगी। आज मैं जिस हैसियत में हूं उसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी। जहां तक एंडोर्समेंट की बात है तो मुझे कभी उनका दबाव महसूस नहीं होता।
क्या आप टोक्यो ओलंपिक जीतने का दबाव महसूस कर रही हैं?
उम्मीदें तो बहुत होती हैं। मुझे वहां अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखाना है, अच्छा खेलना है और भारत के लिए जीत हासिल करनी है