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आवरण कथा/ओटीटी स्टारडम/फैसल मलिक: "संघर्ष के दिन ज्यादा रचनात्मक थे"

फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे।
फैसल मलिक

फिल्‍म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे। बॉलीवुड में करीब 22 साल गुजारने वाले फैसल से राजीव नयन चतुर्वेदी की खास बातचीत के संपादित अंश:

 

कहते हैं, आपको एक्टिंग में ब्रेक एक इत्तेफाक से मिला?

सही है। गैंग्स ऑफ वासेपुर में मैंने जो पुलिसवाले का रोल किया था, असल में मुझे वह रोल नहीं करना था। उस रोल के लिए जिस एक्टर को चुना गया था, वह शूटिंग के दिन काम पर नहीं आया। मेरी एक छोटी सी प्रोडक्शन कंपनी थी और मैं उसमें छोटे-मोटे कंटेंट लिखता था। उस दिन अनुराग कश्यप ने कहा कि तुम यह रोल करोगे? मैंने जो कपड़े पहने थे, वह भी उसी एक्टर के लिए बने थे। जब मैंने उन्हें पहना तो वह फट गया। एक्टिंग में वह मेरा पहला कदम था। बाद में मैंने फ्रॉड सैयां और डिक्लेरेशन जैसी कुछ फिल्मों में काम किया। उसके बाद मुझे पंचायत मिली।

आपने बताया कि आप छोटा प्रोडक्शन हाउस चलाते थे। आज आपको बहुत शोहरत मिल गई है। क्या आप अभी भी उसमें कुछ बड़ा करने के बारे में सोचते हैं या अब बस एक्टिंग ही करना है?

हमने मेहनत करके प्रोडक्शन सीखा है। इसे कैसे छोड़ा जा सकता है? मैं इस पर काम कर रहा हूं और कई डायरेक्टर से मिल रहा हूं। आगे जरूर कुछ बड़ा होगा।

आपके संघर्ष की एक कहानी यह है कि आप 10 रुपये देकर रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोते थे।

कुछ समय तक मुंबई में रहने के बाद मैंने अपने परिवार से पैसे मांगना बंद कर दिया। मैं अपने संघर्षों के बारे में बात करना पसंद नहीं करता। यह नियति है। मैं मुंबई में कड़ी मेहनत करता था और यहां मुझे बहुत से अच्छे लोग मिले। वह दौर मजेदार था। हम तब जितने रचनात्मक थे उतने आज नहीं हैं।

पहले बॉलीवुड को यूरोप बहुत पसंद था। बड़े-बड़े अभिनेता वहां फिल्मों की शूटिंग करने जाते थे। अब हम देख रहे हैं कि ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्में भी काफी हिट हो रही हैं। दर्शकों के मूड में क्या बदलाव आया है?

मेट्रो शहरों में रहने वाले लोग भी गांव से आए हैं। वे अब भी अपने गांव से जुड़े हुए हैं। जो लोग कई साल से अपने गांव नहीं गए हैं, उनके मन में भी गांव के प्रति एक नॉस्टेल्जिया है। जब वे रूटेड फिल्में देखते हैं, तो उन्हें जुड़ाव महसूस होता है। भविष्य में यह चलन और बढ़ेगा। बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। हिंदुस्तान में सिर्फ हिंदुस्तान की कहानियां ही चलेंगी।

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