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आवरण कथा/कांग्रेस: इंटरव्यू/गौरव वल्लभः “मुद्दे तो राहुल और प्रियंका ही उठा रहे हैं”

कांग्रेस की आगामी योजनाओं पर बातचीत
गौरव वल्लभ

कांग्रेस के मौजूदा संकट, विपक्षी एकता और तमाम मुद्दों पर कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ से आउटलुक की बातचीत के अंशः

 

लखीमपुर कांड पर सक्रियता से कांग्रेस को उत्तर प्रदेश या देश में कितना फायदा मिलेगा?

पिछले साढ़े तीन-चार साल में उत्तर प्रदेश या देश की राजनीति में सड़क से लेकर संसद में किसने सवाल उठाया है? सवाल सिर्फ राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने उठाए हैं। कांग्रेस में और भी बड़े नेता हैं, इतनी ही मुखरता से उन लोगों को भी सवाल उठाना था। चाहे उन्नाव की घटना हो, सोनभद्र, हाथरस या लखीमपुर खीरी, सड़क पर कौन उतरा? लखीमपुर जाते हुए प्रियंका गांधी गिरफ्तार नहीं होतीं, तो क्या अशीष मिश्रा गिरफ्तार होता? क्या हाथरस की बेटी के मुद्दे पर ध्यान दिया जाता?

क्या इसका फायदा चुनावों में मिलेगा?

कांग्रेस हर बात को चुनाव या राजनीति की दृष्टि से नहीं देखती। भाजपा का अपना मॉडल है। वह अपने हर एक्शन पर सोचती है कि इससे मेरे कितने वोट बढ़ेंगे या घटेंगे।

क्या उत्तर प्रदेश में संगठन की मजबूती में इसका लाभ मिलेगा?

उत्तर प्रदेश में ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण शिविर संपन्न हो चुके हैं। संगठन निर्माण डेढ़-दो साल से व्यापक स्तर पर चल रहा है। मुझे पूरा विश्वास है कि कांग्रेस सड़कों पर उतरी है, तो चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा।

उत्तर प्रदेश में किसके साथ गठबंधन होगा?

इस बारे में पार्टी समय आने पर निर्णय करेगी।

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के हटने से क्या फर्क पड़ेगा?

कैप्टन अमरिंदर को हटाने का दबाव वहां के विधायकों का था। हम उनके योगदान को नकारते नहीं हैं, लेकिन लोकतंत्र में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री चुनने का अधिकार सांसदों और विधायकों को है। आपने देखा होगा कि अमरिंदर के हटने के बाद भी सारे विधायक कांग्रेस में ही हैं।

कन्हैया और जिग्नेश मेवाणी को पार्टी में लाकर सेंटर टु लेफ्ट का रुख किया गया है। क्या पुराने नेताओं से नजरिए का फर्क भी जाहिर हो रहा है?

जो युवा पार्टी में आए हैं, उनका विचार है कि कांग्रेस के साथ जुड़ कर ही देश को फिर 9 फीसदी की जीडीपी पर लौटाया जा सकता है। हम लोगों को भी लगा कि इन लोगों के अंदर देश के लिए, देश के पुर्निमाण का, देश के विकास का जज्बा है।

जी-23 के नेताओं का रुख क्या होगा?

मेरा मानना है कि पार्टी और देश को उनकी वरिष्ठता और अनुभव की अभी सबसे ज्यादा जरूरत है। उन्हें तवज्जो न देने जैसी कोई बात नहीं है। राहुल गांधी से मिलना बहुत सरल है।

कांग्रेस विपक्षी एकता की धुरी बन पाएगी?

पिछले लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी को देश में 12 करोड़ मत मिले थे। इसलिए बिना कांग्रेस के कोई भी विपक्ष एकता संभव ही नहीं है। देश में जितनी भी ज्वलंत समस्याएं हैं, उन सबको जनता के सामने सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस ही लाती है। इसलिए जो भी वरिष्ठ नेता कोई बयान या वक्तव्य देते हैं, वे एक बार जरूर सोचें कि इस वक्तव्य से कांग्रेस को बल मिलता है या नहीं।

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